०३५ सपत्नीनाशनम् ...{Loading}...
Whitney subject
35 (36). Against a rival (woman).
VH anukramaṇī
सपत्नीनाशनम्।
१-३ अथर्वा। जातवेदाः। १ जगती, २ अनुष्टुप्, ३ त्रिष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan.—tṛcam. jātavedasam. ānuṣṭubham: 1, 3. triṣṭubh.]
Whitney
Comment
The first two verses are found also in Pāipp. xx., but not together. Kāuś. employs the hymn in the same rule (36. 33) as hymn 34, to prevent an enemy’s wife from bearing children; only vss. 2 and 3 are suited to such use. For the use of vs. 1 by Vāit. (29. 6), see under the preceding hymn.
Translations
Translated: Ludwig, p. 477 (vss. 2, 3); Henry, 13, 67; Griffith, 1. 343, and 475; Bloomfield, 98, 545.
Griffith
A prayer for the prosperity of a King and his kingdom
०१ प्रान्यान्त्सपत्नान्त्सहसा सहस्व
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
प्रान्यान्त्स॒पत्ना॒न्त्सह॑सा॒ सह॑स्व॒ प्रत्यजा॑ताञ्जातवेदो नुदस्व।
इ॒दं रा॒ष्ट्रं पि॑पृहि॒ सौभ॑गाय॒ विश्व॑ एन॒मनु॑ मदन्तु दे॒वाः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्रान्यान्त्स॒पत्ना॒न्त्सह॑सा॒ सह॑स्व॒ प्रत्यजा॑ताञ्जातवेदो नुदस्व।
इ॒दं रा॒ष्ट्रं पि॑पृहि॒ सौभ॑गाय॒ विश्व॑ एन॒मनु॑ मदन्तु दे॒वाः ॥
०१ प्रान्यान्त्सपत्नान्त्सहसा सहस्व ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Overpower away with power [our] other rivals; thrust back, O
Jātavedas, those unborn; fill this royalty unto good fortune; let all
the gods revel after him.
Notes
Of this verse also the first half, with a wholly different second half,
is found in VS. (xv. 2), TS. (iv. 3. 12¹), and MS. (ii. 8. 7); all read,
for a, sáhasā jātā́n prá ṇudā naḥ sapátnān. Our second half,
especially the last pāda, is rather wanting in connection with what
precedes; Ppp. improves d by reading anu tvā devās sarve juṣantām.
The comm. explains rāṣṭram by asmadīyaṁ janapadam, and enam by
śatruhananakarmaṇaḥ prayoktāram.
Griffith
Subdue with conquering might his other rivals, those yet unborn repel, O Jatavedas. For great felicity protect this kingdom, and in this man let all the Gods be joyful.
पदपाठः
प्र। अ॒न्यान्। स॒ऽपत्ना॑न्। सह॑सा। सह॑स्व। प्रति॑। अजा॑तान्। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। नु॒द॒स्व॒। इ॒दम्। रा॒ष्ट्रम्। पि॒पृ॒हि। सौभ॑गाय। विश्वे॑। ए॒न॒म्। अनु॑। म॒द॒न्तु॒। दे॒वाः। ३६.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- जातवेदाः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- सपत्नीनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (जातवेदः) हे बड़े धनवाले राजन् ! (सहसा) अपने बल से (अन्यान्) दूसरे लोगों [विरोधियों] को (प्र सहस्व) हरा दे और (अजातान्) अप्रकट (सपत्नान्) वैरियों को (प्रति) उलटा (नुदस्व) हटा दे। (इदम्) इस (राष्ट्रम्) राज्य को (सौभगाय) बड़े ऐश्वर्य के लिये (पिपृहि) पूर्ण कर, (विश्वे) सब (देवाः) व्यवहारकुशल लोग (एनम् अनु) इस आप के साथ-साथ (मदन्तु) प्रसन्न हों ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा अपनी सुनीति से बाहिरी और भीतरी वैरियों का नाश करके प्रजापालन करे और प्रजागण उस राजा के साथ-साथ ऐश्वर्य बढ़ा कर सदा प्रसन्न रहें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(प्र) प्रकर्षेण (अन्यान्) विरोधिनः (सपत्नान्) शत्रून् (सहसा) स्वबलेन (सहस्व) अभिभव। पराजय (प्रति) प्रतिकूलम् (अजातान्) अप्रकटान् (जातवेदः) हे प्रभूतधन राजन् (नुदस्व) अपसारय (इदम्) (राष्ट्रम्) राज्यम् (पिपृहि) पूरय (सौभगाय) सौभाग्याय (विश्वे) (एनम्) राजानम् (अनु) अनुसृत्य (मदन्तु) हर्षन्तु (देवाः) व्यवहारकुशलाः ॥
०२ इमा यास्ते
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इ॒मा यास्ते॑ श॒तं हि॒राः स॒हस्रं॑ ध॒मनी॑रु॒त।
तासां॑ ते॒ सर्वा॑साम॒हमश्म॑ना॒ बिल॒मप्य॑धाम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इ॒मा यास्ते॑ श॒तं हि॒राः स॒हस्रं॑ ध॒मनी॑रु॒त।
तासां॑ ते॒ सर्वा॑साम॒हमश्म॑ना॒ बिल॒मप्य॑धाम् ॥
०२ इमा यास्ते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- These hundred veins that are thine, and the thousand tubes—of them
all of thine I have covered the opening with a stone.
Notes
Ppp. reads sākam for aham in c. The comm. regards the verse as
addressed to a vidveṣiṇī strī. To him the hirās are the minute, and
the dhamanīs the large vessels.
Griffith
Hae quot tibi sunt venae atque arteriae harum omnium os tibi lapide occlusi.
पदपाठः
इ॒माः। याः। ते॒। श॒तम्। हि॒राः। स॒हस्र॑म्। ध॒मनीः॑। उ॒त। तासा॑म्। ते॒। सर्वा॑साम्। अ॒हम्। अश्म॑ना। बिल॑म्। अपि॑। अ॒धा॒म्। ३६.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- जातवेदाः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- सपत्नीनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (ते) तेरी (इमाः) यह (याः) जो (शतम्) सौ [बहुत] (हिराः) सूक्ष्म नाड़ियाँ (उत) और (सहस्रम्) सहस्र [अनेक] (धमनीः) स्थूल नाड़ियाँ हैं। (ते) तेरी (तासाम्) उन (सर्वासाम्) सब [नाड़ियों] के (बिलम्) छिद्र को (अहम्) मैं [प्रजागण] ने (अश्मना) व्यापक [अथवा पाषाण समान दृढ़] उपाय से (अपि) निश्चय करके (अधाम्) पुष्ट किया है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - प्रजागण राजा की शारीरिक और आत्मिक शक्ति बढ़ा कर उसे सदा प्रसन्न रक्खें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(इमाः) शरीरस्थाः (याः) (ते) त्वदीयाः (शतम्) बहुसंख्याकाः (हिराः) अ० १।१७।१। सूक्ष्मा नाड्यः (सहस्रम्) अनेकाः (धमनीः) अ० १।१७।२। स्थूला नाड्यः (उत) अपि (तासाम्) (ते) त्वदीयानाम् (सर्वासाम्) नाडीनाम् (अहम्) प्रजागणः (अश्मना) अ० १।२।२। व्यापकेनोपायेन। यद्वा पाषाणवद्दृढोपायेन (बिलम्) बिल भेदने-क। बिलं भरं भवति बिभर्त्तेः-निरु० २।१७। छिद्रम् (अपि) निश्चयेन (अधाम्) धाञो लुङ्। पोषितवानस्मि ॥
०३ परं योनेरवरम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
परं॒ योने॒रव॑रं ते कृणोमि॒ मा त्वा॑ प्र॒जाभि भू॒न्मोत सूनुः॑।
अ॒स्वं१॒॑ त्वाप्र॑जसं कृणो॒म्यश्मा॑नं ते अपि॒धानं॑ कृणोमि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
परं॒ योने॒रव॑रं ते कृणोमि॒ मा त्वा॑ प्र॒जाभि भू॒न्मोत सूनुः॑।
अ॒स्वं१॒॑ त्वाप्र॑जसं कृणो॒म्यश्मा॑नं ते अपि॒धानं॑ कृणोमि ॥
०३ परं योनेरवरम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The upper part of thy womb I make the lower; let there not be progeny
to thee, nor birth; I make thee barren (asū́), without progeny; I make
a stone thy cover.
Notes
The mss. are divided between sū́tuḥ and sū́nuḥ at end of b (our
Bp.D. read sū́nuḥ), and SPP. adopts sū́nuḥ (following half his
authorities and the comm.), but wrongly, as the accent plainly shows.*
The comm. reads aśvām at beginning of c, and supports it by a
ridiculous explanation: it stands for aśvatarīm ‘a she-mule,’ and
she-mules are not fruitful! ⌊In the Berlin ed., the ṛ of kṛṇomi in
c is wanting.⌋ *⌊Cf. the note to i. 11. 1.⌋
The discordance between vs. 1 and vss. 2 and 3 is so complete that it is
difficult to believe them all to form one hymn together; and vs. 1
evidently belongs with hymn 34; vss. 2 and 3, moreover, are probably
combined on account of their resemblance in the closing pādas. But there
is no disagreement among the authorities with regard to the division.
Griffith
Uteri tui summam partem inferam facio: ne tibi soboles neque filius eveniat. Sterilem et infecundam te facio: lapidem tuum, operimentum facio.
पदपाठः
पर॑म्। योनेः॑। अव॑रम्। ते॒। कृ॒णो॒मि॒। मा। त्वा॒। प्र॒ऽजा। अ॒भि। भू॒त्। मा। उ॒त। सूनुः॑। अ॒स्व᳡म्। त्वा॒। अप्र॑जसम्। कृ॒णो॒मि॒। अश्मा॑नम्। ते॒। अ॒पि॒ऽधान॑म्। कृ॒णो॒मि॒। ३६.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- जातवेदाः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- सपत्नीनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (ते) तेरे (योनेः) घर के (परम्) शत्रु को (अवरम्) नीच (कृणोमि) बनाता हूँ, (त्वा) तुझको (मा) न तो (प्रजा) प्रजा भृत्य आदि (उत) और (मा) न (सूनुः) पुत्र (अभि भूत्) तिरस्कार करे। (त्वा) तुझको (अस्वम्) बुद्धिमान् और (अप्रजसम्) अताड़नीय पुरुष (कृणोमि) मैं करता हूँ और (ते) तेरे (अपिधानम्) ओढ़ने [कवच] को (अश्मानम्) पत्थरसमान दृढ़ (कृणोमि) मैं बनाता हूँ ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - बुद्धिमान्, बलवान्, दृढ़स्वभाव राजा ऐसी सुनीति का प्रचार करे कि उससे उसकी प्रजा और सन्तान में फूट न पड़े, किन्तु सब प्रीतिपूर्वक रहें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(परम्) शत्रुम् (योनेः) गृहस्य (अवरम्) अधमम् (ते) तव (कृणोमि) करोमि (मा) निषेधे (त्वा) राजानम् (प्रजा) भृत्यादिः (अभिभूत्) अभिभवेत्। तिरस्कुर्यात् (मा) निषेधे (उत) अपि (सूनुः) पुत्रः (अस्वम्) असु-अर्शआद्यच्। असुः प्रज्ञाः-निघ० ३।९। प्रज्ञावन्तम् (त्वा) राजानम् (अप्रजसम्) जसु हिंसायां ताडने च-पचाद्यच्। अताडनीयम् बलवन्तम् (कृणोमि) (अश्मानम्) पाषाणवद् दृढम् (ते) तव (अपिधानम्) संवरणम्। कवचम् ॥