०३२ दीर्घायुः ...{Loading}...
Whitney subject
32 (33). Homage to Soma (?).
VH anukramaṇī
दीर्घायुः।
१ ब्रह्मा। आयुः। अनुष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Brahman.—āyuṣyam. ānuṣṭubham.]
Whitney
Comment
Found also (except d) in Pāipp. xx. It is, without variant, RV. ix. 67. 29 (which also lacks d). Used by Kāuś. twice (58. 3, 11) in rites for length of life (on account of the concluding pāda), with iii. 31, iv. 13, and other passages, in the ceremony of initiation of a Vedic student. It is reckoned (54. 11, note) to the āyuṣya gaṇa.
Translations
Translated: by RV. translators; and Henry, 12, 66; Griffith, i. 342.
Griffith
A prayer to Agni for long life
०१ उप प्रियम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
उप॑ प्रि॒यं पनि॑प्नतं॒ युवा॑नमाहुती॒वृध॑म्।
अग॑न्म॒ बिभ्र॑तो॒ नमो॑ दी॒र्घमायुः॑ कृणोतु मे ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उप॑ प्रि॒यं पनि॑प्नतं॒ युवा॑नमाहुती॒वृध॑म्।
अग॑न्म॒ बिभ्र॑तो॒ नमो॑ दी॒र्घमायुः॑ कृणोतु मे ॥
०१ उप प्रियम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Unto the dear, wonder-working, young, oblation-increasing one have
we gone, bearing homage; long life-time let him make for me.
Notes
The verse is in RV. addressed to Soma. The comm. understands it here of
Agni. He explains pánipnatam as śabdāyamānaṁ stūyamānaṁ vā.
Griffith
We bringing homage have approached the friend who seeks our wondering praise, Young, strengthener of the sacrifice. May he bestow long life on me.
पदपाठः
उप॑। प्रि॒यम्। पनि॑प्नतम्। युवा॑नम्। आ॒हु॒ति॒ऽवृध॑म्। अग॑न्म। बिभ्र॑तः। नमः॑। दी॒र्घम्। आयुः॑। कृ॒णो॒तु॒। मे॒। ३३.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आयुः
- ब्रह्मा
- अनुष्टुप्
- दीर्घायु सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के कर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (नमः) वज्र को (बिभ्रतः) धारण करते हुए [पुरुषार्थ करते हुए] हम लोग (प्रियम्) प्रीति करनेवाले, (पनिप्नतम्) अत्यन्त व्यवहारकुशल, (युवानम्) पदार्थों के संयोग-वियोग करनेवाले वा बलवान्, (आहुतीवृधम्) यथावत् देने लेने योग्य क्रिया के बढ़ानेवाले राजा को (उप अगन्म) प्राप्त हुए हैं, वह (मे) मेरी (आयुः) आयु को (दीर्घम्) दीर्घ (कृणोतु) करे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार नीतिकुशल, प्रतापी राजा अनेक विद्याओं के दान से प्रजा की रक्षा करे, उसी प्रकार प्रजा भी उसके उपकारों को सन्मानपूर्वक ग्रहण करे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(उप) पूजायाम् (प्रियम्) प्रीतिकरम् (पनिप्नतम्) पन व्यवहारे स्तुतौ च यङ्लुकि शतृ। दाधर्तिदर्धर्ति०। पा० ७।४।६५। इति सूत्र इतिकरणस्य प्रदर्शनादत्राभ्यासस्य निगागम उपधालोपश्च। अत्यन्तं व्यवहारकुशलम् (युवानम्) पदार्थानां संयोजकवियोजकं बलवन्तं वा (आहुतीवृधम्) यथावद् दातव्यग्राह्यक्रियावर्धकम् (अगन्म) वयं प्राप्तवन्तः (बिभ्रतः) धारयन्तः (नमः) वज्रम्-निघ० २।२०। (दीर्घम्) चिरम् (आयुः) जीवनम् (कृणोतु) करोतु (मे) मम ॥