०२७ इडा ...{Loading}...
Whitney subject
27 (28). Prayer and praise to Iḍā.
VH anukramaṇī
इडा।
१ मेधातिथिः। इडा। त्रिष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Medhātithi (?).—mantrokteḍādāivatam. trāiṣṭubham.]
Whitney
Comment
Not found in Pāipp., but occurs in ĀpśS. iv. 13. 4. Kāuś. makes no use of the verse; but in Vāit. (3. 15) it accompanies a libation to Iḍā in the parvan ceremonies.
Translations
Translated: Ludwig, p. 433; Henry, 11, 64; Griffith, i. 341.
Griffith
A prayer to Ida, Goddess of devotion
०१ इडैवास्माँ अनु
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
इडै॒वास्माँ अनु॑ वस्तां व्र॒तेन॒ यस्याः॑ प॒दे पु॒नते॑ देव॒यन्तः॑।
घृ॒तप॑दी॒ शक्व॑री॒ सोम॑पृ॒ष्ठोप॑ य॒ज्ञम॑स्थित वैश्वदे॒वी ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इडै॒वास्माँ अनु॑ वस्तां व्र॒तेन॒ यस्याः॑ प॒दे पु॒नते॑ देव॒यन्तः॑।
घृ॒तप॑दी॒ शक्व॑री॒ सोम॑पृ॒ष्ठोप॑ य॒ज्ञम॑स्थित वैश्वदे॒वी ॥
०१ इडैवास्माँ अनु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let Iḍā herself dress us with the vow (vratá), [she] in whose
place {padá) the pious purify themselves; ghee-footed, able,
soma-backed, she, belonging to all the gods, hath approached the
offering.
Notes
Or vratá in a may mean the vrata-milk (comm. simply karman).
ĀpśS. omits eva and reads ghṛtena for vratena in a, and has
for c, vāiśvānarī śakvarī vāvṛdhānā. The comm. reads upā ’stṛta
in d.
Griffith
May Ida with her statute dwell beside us, she in whose place the pious purge and cleanse them. She, mighty, Soma-decked, whose foot drops fatness, meet for All-Gods, hath come to aid our worship.
पदपाठः
इडा॑। ए॒व। अ॒स्मान्। अनु॑। व॒स्ता॒म्। व्र॒तेन॑। यस्याः॑। प॒दे। पु॒नते॑। दे॒व॒ऽयन्तः॑। घृ॒तऽप॑दी। शक्व॑री। सोम॑ऽपृष्ठा। उप॑। य॒ज्ञम्। अ॒स्थि॒त॒। वै॒श्व॒ऽदे॒वी। २८.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इडा
- मेधातिथिः
- त्रिष्टुप्
- इडा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
विद्या प्राप्ति के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इडा एव) वही प्रशंसनीय विद्या (अस्मान्) हमें (व्रतेन) उत्तम कर्म से (अनु) अनुग्रह करके (वस्ताम्) ढके [शोभायमान करे], (यस्याः) जिसके (पदे) अधिकार में (देवयन्तः) उत्तमगुण चाहनेवाले पुरुष (पुनते) शुद्ध होते हैं। [और जो] (घृतपदी) प्रकाश का अधिकार रखनेवाली, (शक्वरी) समर्थ, (सोमपृष्ठा) ऐश्वर्य सींचनेवाली, (वैश्वदेवी) सब उत्तम पदार्थों से सम्बन्धवाली होकर (यज्ञम्) पूजनीय व्यवहार में (उप अस्थित) उपस्थित हुई है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य वेद द्वारा शास्त्रविद्या, शस्त्रविद्या, शिल्पविद्या, वाणिज्यविद्या आदि प्राप्त करके ऐश्वर्य बढ़ावें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(इडा) अ० ३।१०।६। स्तुत्या विद्या। वाक्-निघ० ३।११। (एव) अवधारणे (अस्मान्) सत्यकर्मणः (अनु) अनुग्रहेण (वस्ताम्) वस आच्छादने। आच्छादयतु। अलङ्करोतु (व्रतेन) शुभकर्मणा (यस्याः) इडायाः (पदे) अधिकारे (पुनते) शुद्ध्यन्ति (देवयन्तः) सुप आत्मनः क्यच्। पा० ३।१।८। देव-क्यच्, शतृ। देवान् शुभगुणान् आत्मन इच्छन्तः (घृतपदी) घृतं प्रकाशः पदे अधिकारे यस्याः सा (शक्वरी) अ० ३।१३।७। शक्ता। समर्था (सोमपृष्ठा) अ० ३।२१।६। ऐश्वर्यसेचिका (उप अस्थित) उपस्थिता अभवत् (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (वैश्वदेवी) दिव्यपदार्थानां सम्बन्धिनी ॥