०२५ विष्णुः ...{Loading}...
Whitney subject
25 (26). Praise to Vishṇu and Varuṇa.
VH anukramaṇī
विष्णुः।
१-२ मेधातिथिः। विष्णुः, वरुणः। त्रिष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Medhātithi.—dvyṛcam. vāiṣṇavam. trāiṣṭubham.]
Whitney
Comment
The hymn is found also in Pāipp. xx. Used by Kāug. (59. 19) only with hymn 17 etc. (which see).
Translations
Translated: Ludwig, p. 429; Henry, 10, 63; Griffith, i. 339.
Griffith
Praise of Vishnu and Varuna
०१ ययोरोजसा स्कभिता
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ययो॒रोज॑सा स्कभि॒ता रजां॑सि॒ यौ वी॒र्यै᳡र्वी॒रत॑मा॒ शवि॑ष्ठा।
यौ पत्ये॑ते॒ अप्र॑तीतौ॒ सहो॑भि॒र्विष्णु॑मग॒न्वरु॑णं पू॒र्वहू॑तिः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ययो॒रोज॑सा स्कभि॒ता रजां॑सि॒ यौ वी॒र्यै᳡र्वी॒रत॑मा॒ शवि॑ष्ठा।
यौ पत्ये॑ते॒ अप्र॑तीतौ॒ सहो॑भि॒र्विष्णु॑मग॒न्वरु॑णं पू॒र्वहू॑तिः ॥
०१ ययोरोजसा स्कभिता ...{Loading}...
Whitney
Translation
- By whose ⌊du.⌋ force were established the spaces (rájas), who by
heroisms are most heroic, most mighty, who by their powers lord it
unopposed—to Vishṇu, to Varuṇa hath gone the first invocation.
Notes
The verse is found also in a number of other texts: VS. (viii. 59), TB.
(ii. 8. 4⁵), MS. (iv. 14. 6), SB. (i. 5), AśS. (v. 20. 6), śśS. (iii.
20. 4); all of them agree nearly in their variations from our text:
thus, vīryèbhir (but MS. vīrébhir) for yāú vīryāìr in b; yā́
and ápratītā (but TB. -tīttā) in c; and víṣṇū, váruṇā, and
pūrváhūtāu (but MS. -tim) in d; TB. further śáciṣṭhā in b.
Ppp. has stabhitā in a, and śacībhiḥ (for śaviṣṭhā) in b.
Griffith
The early morning prayer hath come to Vishnu and Varuna, Lords through might, whom none hath equalled, Gods by whose power the realms of air were stablished, strongest and most heroic in their vigour.
पदपाठः
ययोः॑। ओज॑सा। स्क॒भि॒ता। रजां॑सि। यौ। वी॒र्यैः᳡। वी॒रऽत॑मा। शवि॑ष्ठा। यौ। पत्ये॑ते॒ इति॑। अप्र॑तिऽइतौ। सहः॑ऽभिः। विष्णु॑म्। अ॒ग॒न्। वरु॑णम्। पू॒र्वऽहू॑तिः। २६.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विष्णुः
- मेधातिथिः
- त्रिष्टुप्
- विष्णु सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और मन्त्री के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ययोः) जिन दोनों के (ओजसा) बल से (रजांसि) लोक-लोकान्तर (स्कभिता) थमे हुए हैं, (यौ) जो दोनों (वीर्यैः) अपने पराक्रमों से (वीरतमा) अत्यन्त वीर और (शविष्ठा) महाबली हैं, (यौ) जो दोनों (सहोभिः) अपने बलों से (अप्रतीतौ) न रुकनेवाले होकर (पत्येते) ऐश्वर्यवान् हैं, [उन दोनों] (विष्णुम्) व्यापनशील [वा सूर्यसमान प्रतापी] राजा और (वरुणम्) श्रेष्ठ [वा जलसमान उपकारी] मन्त्री को (पूर्वहूतिः) सब लोगों का आवाहन (अगन्) पहुँचा है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जहाँ पर राजा और मन्त्री बलवान् और धार्मिक होते हैं, वहाँ प्रजागण उनका सदा सन्मान करते हैं ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है। अ० ८।५९।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(ययोः) विष्णुवरुणयोः (ओजसा) बलेन (स्कभिता) स्कन्भ स्तम्भे-क्त, शेर्लोपः। स्तभितानि। दृढीकृतानि (रजांसि) लोकाः-निरु० ४।१९। (यौ) विष्णुवरुणौ (वीर्यैः) पराक्रमैः (वीरतमा) अतिशयेन वीरौ (शविष्ठा) शवः=बलम्-निघ० २।९। शवस्-इष्ठन्। विन्मतोर्लुक्। पा० ५।३।६५। विनिलोपः। अतिशवस्विनौ। बलवन्तौ (यौ) (पत्येते) पत ऐश्वर्ये। ईशाते। ऐश्वर्यं प्राप्नुतः (अप्रतीतौ) इण् गतौ-क्त। अप्रतिगतौ। अतिरस्कृतौ (सहोभिः) बलैः (विष्णुम्) अ० ३।२०।४। व्यापनशीलं वा सूर्यवत्प्रतापिनं राजानम् (अगन्) अ० २।९।३। अगमत्। प्रापत् (वरुणम्) अ० १।३।३। श्रेष्ठं वा जलसमानोपकारिणं मन्त्रिणम् (पूर्वहूतिः) पूर्वाणां समस्तानां जनानां हूतिराह्वानम् ॥
०२ यस्येदं प्रदिशि
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यस्ये॒दं प्र॒दिशि॒ यद्वि॒रोच॑ते॒ प्र चान॑ति॒ वि च॒ चष्टे॒ शची॑भिः।
पु॒रा दे॒वस्य॒ धर्म॑णा॒ सहो॑भि॒र्विष्णु॑मग॒न्वरु॑णं पू॒र्वहू॑तिः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यस्ये॒दं प्र॒दिशि॒ यद्वि॒रोच॑ते॒ प्र चान॑ति॒ वि च॒ चष्टे॒ शची॑भिः।
पु॒रा दे॒वस्य॒ धर्म॑णा॒ सहो॑भि॒र्विष्णु॑मग॒न्वरु॑णं पू॒र्वहू॑तिः ॥
०२ यस्येदं प्रदिशि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In whose (sing.) direction is whatever shines out here, [whatever]
both breathes forth and looks abroad mightily (śácībhis), of old, by
the god’s ordinance, with powers (sáhas)—to Vishṇu, to Varuṇa hath
gone the first invocation.
Notes
The first pāda is found above as iv. 23. 7 a, and nearly as iv. 28.
1 b; also in TS. iii. 3. 11⁴. Ppp. reads, for c, maho* ṛtasya
dharmaṇā yuvānā, and begins with yayos. The comm., in b, seems to
give prā ’niti ca. The first pāda is rather jagatī. *⌊So Roth’s
collation: his notes give mahā.⌋
Griffith
The early prayer hath ever come to Vishnu and Varuna by that God’s high power and statute. In whose control is all this world that shineth, all that hath powers to see and all that breatheth.
पदपाठः
यस्य॑। इ॒दम्। प्र॒ऽदिशि॑। यत्। वि॒ऽरोच॑ते। प्र। च॒। अन॑ति। वि। च॒। चष्टे॑। शची॑भिः। पु॒रा। दे॒वस्य॑। धर्म॑णा। सहः॑ऽभिः। विष्णु॑म्। अ॒ग॒न्। वरु॑णम्। पू॒र्वऽहू॑तिः। २६.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विष्णुः
- मेधातिथिः
- त्रिष्टुप्
- विष्णु सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और मन्त्री के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिन (देवस्य) व्यवहारकुशल [राजा और मन्त्री] के (प्रदिशि) अच्छे शासन में (धर्म्मणा) उनके धर्म अर्थात् नीति और (सहोभिः) पराक्रम से (इदम्) यह [राज्य] है, (यत्) जो कुछ (पुरा) हमारे सन्मुख (शचीभिः) अपने कर्मों से (विरोचते) जगमगाता है, (च) और (प्र अनति) श्वास लेता है (च) और (वि चष्टे) निहारता है, [उन दोनों] (विष्णुम्) व्यापनशील राजा और (वरुणम्) श्रेष्ठ मन्त्री को (पूर्वहूतिः) सबका आवाहन (अगन्) पहुँचा है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जहाँ राजा और मन्त्री के सुप्रबन्ध से प्रजा के सब स्थावर और जङ्गम पदार्थ सुरक्षित रहते हैं, वहाँ सब लोग प्रसन्न रह कर उस राज्य की प्रशंसा करते हैं ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(यस्य) सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। अत्र द्विवचनस्यैकवचनम्। ययोः (इदम्) राज्यम् (प्रदिशि) अनुशासने (यत्) विश्वम् (विरोचते) विविधं दीप्यते (प्र) प्रकर्षेण (च) (अनति) अनिति। श्वसिति (च) (वि) विविधम् (च) (वि) विविधम् (चष्टे) पश्यति (शचीभिः) कर्मभिः-निघ० १।२। (पुरा) अस्माकं निकटे (देवस्य) व्यवहारकुशलयोः (धर्मणा) धारणसामर्थ्येन (सहोभिः) पराक्रमैः। अन्यत्पूर्ववत्-म० १ ॥