०२० अनुमतिः

०२० अनुमतिः ...{Loading}...

Whitney subject

20 (21). Praise and prayer to Anumati.

VH anukramaṇī

अनुमतिः।
१-६ अथर्वा। अनुमतिः। १-२ अनुष्टुप्, ३ त्रिष्टुप्, ४ भुरिक्, ५ जगती ६ अतिशाक्वरीगर्भा जगती।

Whitney anukramaṇī

[Brahman.—ṣaḍṛcam. ānumatīyam. ānuṣṭubham: 3, ⌊4⌋. triṣṭubh; 4. bhurij; 5, 6. jagatī; 6. atiśākvaragarbā.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xx. (in the verse-order 1, 2, 3, 5, 6, 4). Used by Kāuś. (59. 19) with hymn 17 etc.: see under 17; and vs. 1 a appears also (45. 16) as first pāda of a gāyatrī verse accompanying an oblation at the end of the vaśāśamana ceremony. Verse 6 is also understood by the schol. as intended by ānumatī, occurring in the rule ānumatīṁ caturthīm in three different rites, house-building (23. 4), acquisition of Vedic knowledge (42. 11), and vaśāśamana (45. 10). In Vāit (1. 15), the hymn is quoted in the parvan ceremonies on the day of full moon.

Translations

Translated: Henry, 8, 60; Griffith, i. 337.

Griffith

A prayer for prosperity and happiness

०१ अन्वद्य नोऽनुमतिर्यज्ञम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अन्व॒द्य नोऽनु॑मतिर्य॒ज्ञं दे॒वेषु॑ मन्यताम्।
अ॒ग्निश्च॑ हव्य॒वाह॑नो॒ भव॑तां दा॒शुषे॒ मम॑ ॥

०१ अन्वद्य नोऽनुमतिर्यज्ञम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let Anumati (‘approval’) approve ⌊anu-man⌋ today our sacrifice
    among the gods; and let Agni be oblation-carrier of me worshiping.
Notes

Ppp’s only variant is yachatām for manyatām at end of b. The
verse is found in various other texts: VS. (xxxiv. 9), TS. (iii. 3.
11³), MS. (iii. 16. 4), AśS. (iv. 12. 2), and śśS. (ix. 27. 2). In
a, MS.śśS. preserve the a after no; the others put no before
adyá (‘dyá); in d, all save TS. change bhávatām to -tam, and
all have máyaḥ for máma. MB. (ii. 2. 19) also has mayas, but in
a iyam for adya, and in d sa no ‘dād dāś-. The translation
given implies emendation in d to dāśúṣas; the comm. regards it as
a case of substitution of dative for genitive. The comm. takes
bhávatām as 3d sing, middle; but it may perhaps better be viewed (like
the -tam of the other texts) as dual active, with anumati and agni
together as subject; the corruption of máyas to máma has rather
spoiled the whole construction. The comm. explains Anumati as intending
here also, as elsewhere, the goddess of the day of full moon; there is
nothing in the hymn that demands or implies that character.

Griffith

Anumati approve to-day our sacrifice among the Gods! May Agni bear mine offerings away for me the worshipper.

पदपाठः

अनु॑। अ॒द्य। नः॒। अनु॑ऽमतिः। य॒ज्ञम्। दे॒वेषु॑। म॒न्य॒ता॒म्। अ॒ग्निः। च॒। ह॒व्य॒ऽवाह॑नः भव॑ताम्। दा॒शुषे॑। मम॑। २१.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अनुमतिः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • अनुमति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अनुमतिः) अनुमति, अनुकूल बुद्धि (अद्य) आज (नः) हमारे (यज्ञम्) संगति व्यवहार को (देवेषु) विद्वानों में (अनु मन्यताम्) निरन्तर माने। (च) और (अग्निः) अग्नि [पराक्रम] (मम दाशुषे) मुझ दाता के लिये (हव्यवाहनः) ग्राह्य पदार्थों का पहुँचानेवाला (भवताम्) होवे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धार्मिक व्यवहारों में अनुकूल बुद्धिवाले और पराक्रमी होते हैं, वे ही उत्तम पदार्थों को पाकर सुखी होते हैं ॥१॥ निरुक्त ११।२९। के अनुसार (अनुमति) पूर्णमासी का नाम है। अर्थात् हमारा समय पौर्णमासी के समान पुष्टि और हर्ष करनेवाला हो ॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है-अ० ३४।९ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(अनु) निरन्तरम् (अद्य) अस्मिन् दिने (नः) अस्माकम् (अनुमतिः) अ० १।१८।२। अनुकूला बुद्धिः। अनुमती राकेति देवपत्न्याविति नैरुक्ताः पौर्णमास्याविति याज्ञिका या पूर्वा पौर्णमासी सानुमतिर्योत्तरा सा राकेति विज्ञायते। अनुमतिरनुमननात्-निरु० ११।२९। (यज्ञम्) संगतिव्यवहारम् (देवेषु) विद्वत्सु (मन्यताम्) जानातु। ज्ञापयतु (अग्निः) पराक्रमः (च) (हव्यवाहनः) हव्येऽनन्तःपादम्। पा० ३।२।६६। इति हव्य+वह प्रापणे ञ्युट्। ग्राह्यपदार्थस्य प्रापकः (भवताम्) आत्मनेपदं छान्दसम्। भवतात् (दाशुषे) दानशीलाय (मम) चतुर्थ्यां षष्ठी। मह्यम् ॥

०२ अन्विदनुमते त्वम्

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अन्विद॑नुमते॒ त्वं मंस॑से॒ शं च॑ नस्कृधि।
जुषस्व॑ ह॒व्यमाहु॑तं प्र॒जां दे॑वि ररास्व नः ॥

०२ अन्विदनुमते त्वम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Mayest thou, indeed, O Anumati, approve, and do thou make weal for
    us; enjoy thou the offered oblation; grant us progeny, O goddess.
Notes

The first half-verse, with a wholly different second half, is found in
the same texts that have vs. 1 (VS. xxxiv. 8; the others as quoted
above: also K. xiii. 16): all read mányāsāi instead of máṅsase, and
TS. combines naḥ kṛdhi. Ppp. has, for c, d, iṣas tokāya no dadhat
pra ṇa āyūṅṣi tāriṣat
, of which the last pāda agrees* with the other
texts (they have, for c, krátve dákṣāya no hinu). The comm. reads
maṅsiṣe for -sase, both here and in 6 d. Our last half-verse is
also 68. 1 c, d, and nearly 46. 1 c, d. *⌊But VS.TS.śśS. have
tāriṣas.⌋

Griffith

Do thou, Anumati! approve, and grant us health and happiness. Accept the offered sacrifice, and, Goddess, give us progeny.

पदपाठः

अनु॑। इत्। अ॒नु॒ऽम॒ते॒। त्वम्। मंस॑से। शम्। च॒। नः॒। कृ॒धि॒। जु॒षस्व॑। ह॒व्यम्। आऽहु॑तम्। प्र॒ऽजाम्। दे॒वि॒। र॒रा॒स्व॒। नः॒। २१.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अनुमतिः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • अनुमति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अनुमते) हे अनुमति ! [अनुकूलबुद्धिः] (त्वम्) तू (इत्) अवश्य [हमारी प्रार्थना] (अनु मंससे) सदा मानती रहे, (च) और (नः) हमारे लिये (शम्) कल्याण (कृधि) कर। (हव्यम्) ग्रहणयोग्य (आहुतम्) यथावत् दिया पदार्थ (जुषस्व) स्वीकार कर, (देवि) हे देवी ! (नः) हमें (प्रजाम्) सन्तान भृत्य आदि (ररास्व) दे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य उत्तम बुद्धि द्वारा पथ्य कुपथ्य विचार कर युक्त आहार-विहार करके उत्तम सन्तान और भृत्य आदि पाकर सुख भोगें ॥२॥ इस मन्त्र का पूर्वार्ध कुछ भेद से यजु० में है−३४।८ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(अनु) निरन्तरम् (इत्) एव (अनुमते)-म० १। अनुकूलबुद्धे (त्वम्) (मंससे) मन ज्ञाने अवबोधने च, लेट्। सिब्बहुलं लेटि। पा० ३।१।३४। इति सिप्। लेटोऽडाटौ। पा० ३।४।९४। इत्यट्। अवमन्येथाः (शम्) कल्याणम् (च) (नः) अस्मभ्यम् (जुषस्व) स्वीकुरु (हव्यम्) ग्राह्यम् (आहुतम्) समन्तात् समर्पितम् (प्रजाम्) सन्तानभृत्यादिरूपाम् (देवि) दिव्यगुणे (ररास्व) रातेः शपः श्लुः, आत्मनेपदं च। देहि ॥

०३ अनु मन्यतामनुमन्यमानः

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अनु॑ मन्यतामनु॒मन्य॑मानः प्र॒जाव॑न्तं र॒यिमक्षी॑यमाणम्।
तस्य॑ व॒यं हेड॑सि॒ मापि॑ भूम सुमृडी॒के अ॑स्य सुम॒तौ स्या॑म ॥

०३ अनु मन्यतामनुमन्यमानः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let him, approving, approve wealth rich in progeny, not being
    exhausted; let us not come to be within his wrath; may we be in his very
    gracious favor.
Notes

The first three pādas correspond to that part of a verse in TS. iii. 3.
11⁴ (to which the comm., by an almost isolated proceeding, refers, with
notice of the differences of reading) which preserves the consistency of
the hymn by reading the feminines, -mānā at end of a, and tásyāi
in c; Ppp. apparently intends the same with -mānāṣ and tasyā,
and it further agrees with TS. in giving, for d, sā no devī suhavā
śarma yachatu
. The change of our text to masculines seems a mere
corruption. Our d is nearly RV. viii. 48. 12 d.

Griffith

May he approving in return accord us wealth inexhaustible with store of children. Never may we be subject to his anger, but rest in his benevo- lence and mercy.

पदपाठः

अनु॑। म॒न्य॒ता॒म्। अ॒नु॒ऽमन्य॑मानः। प्र॒जाऽव॑न्तम्। र॒यिम्। अक्षी॑यमाणम्। तस्य॑। व॒यम्। हेड॑सि। मा। अपि॑। भू॒म॒। सु॒ऽमृ॒डी॒के। अ॒स्य॒। सु॒ऽम॒तौ। स्या॒म॒। २१.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अनुमतिः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • अनुमति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अनुमन्यमानः) निरन्तर जाननेवाला परमेश्वर (प्रजावन्तम्) उत्तम सन्तान, भृत्य आदि वाला, (अक्षीयमाणम्) न घटनेवाला (रयिम्) धन (अनु) अनुग्रह करके (मन्यताम्) जतावे। (वयम्) हम (तस्य) उसके (हेडसि) क्रोध में (अपि) कभी (मा भूम) न होवें, (अस्य) इसके (सुमृडीके) उत्तम सुख में और (सुमतौ) सुमति [कल्याणी बुद्धि] में (स्याम) बने रहें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य धार्मिक रीति में प्राप्त किये धन से प्रजापालन करके ईश्वर की आज्ञा में सुख के साथ सदा वर्तमान रहें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(अनु) सर्वदा (मन्यताम्) ज्ञापयतु (अनुमन्यमानः) निरन्तरं मन्ता ज्ञाता परमेश्वरः (प्रजावन्तम्) प्रशस्तसन्तानभृत्यादियुक्तम् (रयिम्) धनम् (अक्षीयमाणम्) क्षि क्षये-शानच्। अक्षीणम् (तस्य) ईश्वरस्य (वयम्) (हेडसि) क्रोधे-निघ० २।१३। (अपि) कदापि (मा भूम) न स्याम (सुमृडीके) मृडः कीकच्कङ्कणौ। उ० ४।२४। इति मृड सुखने-कीकच्। शोभने सुखे (अस्य) (सुमतौ) कल्याण्यां बुद्धौ (स्याम) भवेम ॥

०४ यत्ते नाम

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यत्ते॒ नाम॑ सु॒हवं॑ सुप्रणी॒तेऽनु॑मते॒ अनु॑मतं सु॒दानु॑।
तेना॑ नो य॒ज्ञं पि॑पृहि विश्ववारे र॒यिं नो॑ धेहि सुभगे सु॒वीर॑म् ॥

०४ यत्ते नाम ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The easily-invoked, approved, generous (sudā́nu) name that is
    thine, O well-conducting Anumati—therewith fill our sacrifice, O thou of
    all choice things; assign us, O fortunate one, wealth rich in heroes.
Notes

Ppp. reads sudāvas at end of b, and has a wholly different second
half-verse: tena tvaṁ sumatiṁ devy asma iṣaṁ pinva viśvavāraṁ suvīram.
The last half-verse is repeated below as 79. 1 c, d. ⌊In c, no
is superfluous.⌋

Griffith

Thy name is easy to invoke, good leader! approved, Anumati and rich in bounty. Source of all bonds! fill up therewith our worship, and, Blest One! grant us wealth with goodly heroes.

पदपाठः

यत्। ते॒। नाम॑। सु॒ऽहव॑म्। सु॒ऽप्र॒नी॒ते॒। अनु॑ऽमते। अनु॑ऽमतम्। सु॒ऽदानु॑। तेन॑। नः॒। य॒ज्ञम्। पि॒पृ॒हि॒। वि॒श्व॒ऽवा॒रे॒। र॒यिम्। नः॒। धे॒हि॒। सु॒ऽभ॒गे॒। सु॒ऽवीर॑म्। २१.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अनुमतिः
  • ब्रह्मा
  • भुरिगनुष्टुप्
  • अनुमति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सुप्रणीते) हे उत्तम नीतिवाली ! [वा भले प्रकार चलानेवाली] (अनुमते) अनुमति ! [अनुकूल बुद्धि] (यत्) जो (ते) तेरा (नाम) नाम [यश] (सुहवम्) आदर से आवाहन योग्य, (सुदानु) बड़ा दानी (अनुमतम्) निरन्तर माना गया है। (विश्ववारे) हे वरणीय पदार्थोंवाली ! (तेन) उस [अपने यश] से (नः) हमारे (यज्ञम्) यज्ञ [पूजनीय व्यवहार] को (पिपृहि) पूरण कर दे, (सुभगे) हे बड़े ऐश्वर्यवाली ! (नः) हमें (सुवीरम्) अच्छे वीरोंवाला (रयिम्) धन (धेहि) दे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य सर्वमाननीय ज्ञान द्वारा धन आदि पदार्थ प्राप्त करके कीर्तिमान् होवें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(यत्) (ते) तव (नाम) यशः (सुहवम्) आदरेण ह्वातव्यम् (सुप्रणीते) शोभननीतियुक्ते। सुष्ठुप्रणेत्रि (अनुमते) (अनुमतम्) निरन्तरं ज्ञातम् (सुदानु) शोभनदानयुक्तम् (तेन) नाम्ना (नः) अस्माकम् (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (पिपृहि) पूरय (विश्ववारे) हे सर्वैर्वरणीयैः पदार्थैर्युक्ते (रयिम्) धनम् (नः) अस्मभ्यम् (धेहि) देहि (सुभगे) प्रभूतैश्वर्ययुक्ते (सुवीरम्) महद्भिर्वीरैर्युक्तम् ॥

०५ एमं यज्ञमनुमतिर्जगाम

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एमं य॒ज्ञमनु॑मतिर्जगाम सुक्षे॒त्रता॑यै सुवी॒रता॑यै॒ सुजा॑तम्।
भ॒द्रा ह्य᳡स्याः॒ प्रम॑तिर्ब॒भूव॒ सेमं य॒ज्ञम॑वतु दे॒वगो॑पा ॥

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Whitney
Translation
  1. Anumati hath come unto this well-born offering, in order to [our]
    abounding in fields and in heroes; for her forethought (prámati) hath
    been excellent; let her, god-shepherded, aid this offering.
Notes

Ppp. has a different first half: ā no devy anumatir jagamyāt sukṣatrā
vīratā yā sujātā;
⌊its d appears to be sa imaṁ yajñaṁ bhavatu
nevajuṣṭā
, intending perhaps avatu devajuṣṭam: Roth’s collation is
not quite consistent with his note.⌋ Neither this verse nor the next has
any jagatī character. ⌊For b, the Ppp. version suggests that the
original reading may have been sukṣetrá suvīrátāyāi sújātā: cf. Roth,
Ueber gewisse Kürzungen im Wortende im Veda, page 6.⌋

Griffith

Anumati hath come to this our worship well-formed to give good lands and valiant heroes: For her kind care hath blessed us. God-protected, may she assist the sacrifice we offer.

पदपाठः

आ। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। अनु॑ऽमतिः। ज॒गा॒म॒। सु॒ऽक्षे॒त्रता॑यै। सु॒ऽवी॒रता॑यै। सुऽजा॑तम्। भ॒द्रा। हि। अ॒स्याः॒। प्रऽम॑तिः। ब॒भूव॑। सा। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। अ॒व॒तु॒। दे॒वऽगो॑पा। २१.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अनुमतिः
  • ब्रह्मा
  • जगती
  • अनुमति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अनुमतिः) अनुमति [अनुकूल बुद्धि] (सुजातम्) बहुत प्रसिद्ध (इमम्) इस (यज्ञम्) हमारे यज्ञ [संगति व्यवहार] में (सुक्षेत्रतायै) अच्छी भूमियों और (सुवीरतायै) साहसी वीरों की प्राप्ति के लिये (आ जगाम) आई है। और (अस्याः) इसकी (हि) ही (प्रमतिः) अनुग्रह बुद्धि (भद्रा) कल्याणी (बभूव) हुई है, (सा) वही (देवगोपा) विद्वानों की रक्षिका [अनुमति] (इमम्) इस (यज्ञम्) हमारे यज्ञ [पूजनीय व्यवहार] की (अवतु) रक्षा करे ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस प्रकार मनुष्य वेदद्वारा सत्यज्ञान पाकर चक्रवर्ती राज्य और उत्साही वीरों के पराक्रम से सुखवृद्धि करते रहें, वैसे ही मनुष्य अनुकूल मति से प्रतिकूल बुद्धि छोड़कर सदा सुखी रहें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(इमम्) क्रियमाणम् (यज्ञम्) संगतिव्यवहारम् (अनुमतिः) अनुकूला बुद्धिः (आ जगाम) प्राप (सुक्षेत्रतायै) शोभनानां भूमीनां प्राप्तये (सुवीरतायै) उत्साहिनां वीराणां लाभाय (सुजातम्) सुप्रसिद्धम् (भद्रा) कल्याणी (अस्याः) अनुमतेः (प्रमतिः) अनुग्रहबुद्धिः (बभूव) (सा) अनुमतिः (इमम्) (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (अवतु) रक्षतु (देवगोपा) आयादयः आर्धधातुके वा। पा० ३।१।३१। इत्यायप्रत्ययस्य वैकल्पिकत्वात् देव+गुपू रक्षणे-अच्, टाप्। विदुषां गोप्त्री रक्षित्री ॥

०६ अनुमतिः सर्वमिदम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अनु॑मतिः॒ सर्व॑मि॒दं ब॑भूव॒ यत्तिष्ठ॑ति॒ चर॑ति॒ यदु॑ च॒ विश्व॒मेज॑ति।
तस्या॑स्ते देवि सुम॒तौ स्या॒मानु॑मते॒ अनु॒ हि मंस॑से नः ॥

०६ अनुमतिः सर्वमिदम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Anumati hath become all this—what stands, moves, and all that stirs;
    may we be in the favor ⌊sumatí⌋ of thee as such, O goddess; O Anumati,
    for mayest thou approve us.
Notes

Ppp. has, for a, anumatir viśvam idaṁ jajāna; ⌊in b (omitting
u and viśvam), it reads yad ejati carati yac ca tiṣṭhati, thus
rectifying the meter⌋.

Griffith

Anumati became this All, whatever standeth or walketh, every- thing that moveth. May we enjoy thy gracious love, O Goddess. Regard us, O Anu- mati, with favour.

पदपाठः

अनु॑ऽमतिः। सर्व॑म्‌। इ॒दम्। ब॒भू॒व॒। यत्। तिष्ठ॑ति। चर॑ति। यत्। ऊं॒ इति॑। च॒। विश्व॑म्। एज॑ति। तस्याः॑। ते॒। दे॒वि॒। सु॒ऽम॒तौ। स्या॒म॒। अनु॑ऽमते। अनु॑। हि। मंस॑से। नः॒। २१.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अनुमतिः
  • ब्रह्मा
  • अतिशाक्वरगर्भा जगती
  • अनुमति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अनुमतिः) अनुमति [अनुकूल बुद्धि] (इदम्) इस (सर्वम्) सब में (बभूव) व्यापी है, (यत्) जो कुछ (तिष्ठति) खड़ा होता है, (चरति) चलता है, (च) और (विश्वम्) सब (यत् उ) जो कुछ भी (एजति) चेष्टा करता है [हाथ-पाँव चलाता है]। (देवि) हे देवी ! (तस्याः ते) उस तेरी (सुमतौ) सुमति [अनुग्रहबुद्धि] में (स्याम) हम रहें, (अनुमते) हे अनुमति ! तू (हि) ही (नः) हमें (अनु) अनुग्रह से (मंससे) जानती रहे ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य प्रतिकूलता त्यागकर प्रत्येक कर्तव्य में अनुकूलता देवी का ध्यान रखते हैं, वे ही परमेश्वर के कृपापात्र होते हैं ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(अनुमतिः) म० १। अनुकूला बुद्धिः (सर्वम्) समस्तं जगत् (इदम्) दृश्यमानम् (बभूव) भू प्राप्तौ। प्राप (यत्) जगत् (तिष्ठति) स्थित्या वर्तते (चरति) गच्छति (यत्) (उ) अपि (च) (विश्वम्) सर्वम् (एजति) एजृ कम्पने। साहसेन चेष्टते (तस्याः) तादृश्याः (ते) तव (सुमतौ) अनुग्रहबुद्धौ (स्याम) भवेम (अनु) अनुग्रहेण (हि) अवश्यम् (मंससे) म० २। जानीय (नः) अस्मान् ॥