०१५ सविता ...{Loading}...
Whitney subject
15 (16). Prayer to Savitar.
VH anukramaṇī
सविता
१ भृगुः। सविता। त्रिष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Bhṛgu.—sāvitram. trāiṣṭubham.]
Whitney
Comment
Found also in Pāipp. xx.; and in VS. (xvii. 74), TS. (iv. 6. 54), MS. (ii. 10. 6), and CB. (ix. 2. 3. 38). This hymn, like the preceding, is used by Kāuś. (24. 7) in a general rite for prosperity, with the binding on of a heifer-rope as amulet. In Vāit. (29. 18), it accompanies the laying on of fuel in the agnicayana ceremony.
Translations
Translated: Henry, 6, 58; Griffith, i. 335.
Griffith
A charm to win divine favour and felicity
०१ तां सवितः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तां स॑वितः स॒त्यस॑वां सुचि॒त्रामाहं वृ॑णे सुम॒तिं वि॒श्ववा॑राम्।
याम॑स्य॒ कण्वो॒ अदु॑ह॒त्प्रपी॑नां स॒हस्र॑धारां महि॒षो भगा॑य ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तां स॑वितः स॒त्यस॑वां सुचि॒त्रामाहं वृ॑णे सुम॒तिं वि॒श्ववा॑राम्।
याम॑स्य॒ कण्वो॒ अदु॑ह॒त्प्रपी॑नां स॒हस्र॑धारां महि॒षो भगा॑य ॥
०१ तां सवितः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- This favor, O Savitar, of true impulse, very wondrous, having all
choice things, do I choose for myself; which of him, full-fed,
thousand-streamed, Kaṇva the bull (mahiṣā) milked for Bhaga.
Notes
Or (at the end) ‘for a portion,’ as the comm. understands it
(bhāgyāya). The reading (alike in all) of the other texts is very
different: for a, tā́ṁ savitúr váreṇyasya citrā́m; in b,
viśvájanyām at end; in d (for mah- etc.) páyasā mahī́ṁ gā́m.
This gives a decidedly more intelligible meaning. Ppp. is still
different: in a, satyasavasya citrām; for b, vayaṁ devasya
prasave manāmahe; and, in c, prapīnāṁ.
Griffith
I choose, O Savitar, that glorious favour, with fruitful energy and every blessing, Even this one’s teeming cow, erst milked by Kanva, thousand- streamed, milked for happiness by the mighty.
पदपाठः
ताम्। स॒वि॒तः॒। स॒त्यऽस॑वाम्। सु॒ऽचि॒त्राम्। आ। अ॒हम्। वृ॒णे॒। सु॒ऽम॒तिम्। वि॒श्वऽवा॑राम्। याम्। अ॒स्य॒। कण्वः॑। अदु॑हत्। प्रऽपी॑नाम्। स॒हस्र॑ऽधाराम्। म॒हि॒षः। भगा॑य। १६.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सविता
- भृगुः
- त्रिष्टुप्
- सविता सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आचार्य और ब्रह्मचारी के कृत्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सवितः) हे सब ऐश्वर्यवाले आचार्य ! (ताम्) उस (सत्यसवाम्) सत्य ऐश्वर्यवाली, (सुचित्राम्) बड़ी विचित्र, (विश्ववाराम्) सब से स्वीकार करने योग्य (सुमतिम्) सुमति [यथावत् विषयवाली बुद्धि] को (अहम्) मैं (आ) आदरपूर्वक (वृणे) माँगता हूँ, (याम्) जिस (प्रपीनाम्) बहुत बढ़ी हुई, (सहस्रधाराम्) सहस्रों विषयों की धारण करनेवाली [सुमति] को (अस्य) इस [जगत्] के (भगाय) ऐश्वर्य के लिये (कण्वः) मेधावी, (महिषः) पूजनीय परमात्मा ने (अदुहत्) परिपूर्ण किया है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - तपस्वी ब्रह्मचारी और ब्रह्मचारिणी योगी, आप्त विद्वान् पुरुषों से संसार के हित के लिये परमेश्वरदत्त वेद द्वारा अपनी बुद्धि को बढ़ाते रहें ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है-अ० १७।७४ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(ताम्) (सवितः) सर्वैश्वर्यन्नाचार्य (सत्यसवाम्) सत्यैश्वर्ययुक्ताम् (सुचित्राम्) अमिचिमि०। उ० ४।१६४। चिञ् चयने−क्त्र। सुचयनीयाम्। महाविचित्रविषयाम् (आ) अङ्गीकारे (अहम्) स्त्री पुरुषो वा (वृणे) याचे (सुमतिम्) शोभनां यथाविषयां प्रज्ञाम् (विश्ववाराम्) सर्वैर्वरणीयाम् (याम्) सुमतिम् (अस्य) प्रसिद्धस्य जगतः (कण्वः) अ० २।३२।३। मेधावी निघ० ३।१५। (अदुहत्) परिपूरितवान् (प्रपीनाम्) प्यायतेः-क्त, पीभावः। प्रवृद्धाम् (सहस्रधाराम्) सहस्रमसंख्यानर्थान् धरति ताम् (महिषः) अ० २।२५।४। पूजनीयः परमेश्वरः (भगाय) ऐश्वर्याय ॥