००९ स्वस्तिदा पूषा

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Whitney subject

9 (10). Praise and prayer to Pūshan.

VH anukramaṇī

स्वस्तिदा पूषा।
१-४ उपरिबभ्रवः। पूषा। त्रिष्टुप्, ३ त्रिपदा आर्षी गायत्री, ४ अनुष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Uparibabhrava.—caturṛcam. pāuṣṇam. trāiṣṭubham: 3. 3-p. ārṣī gāyatrī; 4. anuṣṭubh.]

Whitney

Comment

Of this hymn only vs. 4 is found in Pāipp. (xx.). For other correspondences see under the several verses. Kāuś. (52. 12), among the rites for welfare (svastyayana), uses the hymn in one for the recovery of lost articles of property; and verse 2 is reckoned (on account of abhayatamena in b) to the abhaya gaṇa (note to 16. 8). Vāit. (8. 13) makes it accompany a libation to Pūshan in the cāturmāsya ceremony.

Translations

Translated: Henry, 4, 52; Griffith, i. 332; Bloomfield, 159, 542.

Griffith

A prayer to Pushan for protection and the recovery of lost property

०१ प्रपथे पथामजनिष्ट

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

प्रप॑थे प॒थाम॑जनिष्ट पू॒षा प्रप॑थे दि॒वः प्रप॑थे पृथि॒व्याः।
उ॒भे अ॒भि प्रि॒यत॑मे स॒धस्थे॒ आ च॒ परा॑ च चरति प्रजा॒नन् ॥

०१ प्रपथे पथामजनिष्ट ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On the forward road of the roads hath Pūshan been born, on the
    forward road of heaven, on the forward road of the earth; unto both the
    dearest stations, both hither and yon, goeth he, foreknowing.
Notes

The verse is, without variation, RV. x. 17. 6 (also TB. ii. 8. 5³, and
MS. iv. 14. 16, the latter with ájaniṣṭa accented).

Griffith

Pushan was born to move on distant pathways, on roads remote from earth, remote from heaven. To both most lovely places of assembly he travels and returns with perfect knowledge.

पदपाठः

प्रऽप॑थे। प॒थाम्। अ॒ज॒नि॒ष्ट॒। पू॒षा। प्रऽप॑थे। दि॒वः। प्रऽप॑थे। पृ॒थि॒व्याः। उ॒भे इति॑। अ॒भि। प्रि॒यत॑मे॒ इति॑ प्रि॒यऽत॑मे। स॒धऽस्थे इति॑ स॒धऽस्थे॑। आ। च॒। परा॑। च॒। च॒र॒ति॒। प्र॒ऽजा॒नन्। १०.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पूषा
  • उपरिबभ्रवः
  • त्रिष्टुप्
  • स्वस्तिदा पूषा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के उपासना का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषा) पूषा, पोषण करनेवाला परमेश्वर (पथाम्) सब मार्गों में से (प्रपथे) चौड़े मार्ग में (दिवः) सूर्य के (प्रपथे) चौड़े मार्ग में और (पृथिव्याः) पृथिवी के (प्रपथे) चौड़े मार्ग में (अजनिष्ट) प्रकट हुआ है। (प्रजानन्) बड़ा विद्वान् वह (उभे) दोनों (प्रियतमे) [परस्पर] अति प्रिय (सधस्थे) एक साथ स्थिति करनेवाले [सूर्य और पृथिवी लोक] (अभि) में (आ) हमारे निकट (च च) और (परा) दूर (चरति) विचरता रहता है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो परमात्मा सूर्य, पृथिवी आदि लोकों को परस्पर आकर्षण से धारण करता है, वही हमारा पालन पोषण करता है, चाहे हम अपने घर के निकट वा दूर हों ॥१॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है-म० १०।१७।६ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(प्रपथे) प्रकृष्टे विस्तृते मार्गे (पथाम्) मार्गाणां मध्ये (अजनिष्ट) प्रादुर्भूत (पूषा) अ० १।९।१। पोषकः परमेश्वरः (दिवः) सूर्यस्य (पृथिव्याः) भूलोकस्य (उभे) द्वे द्यावापृथिव्यौ (अभि) प्रति (प्रियतमे) अतिशयेन प्रीतिमत्यौ (सधस्थे) परस्पराकर्षणेन सहस्थितिशीले (आ) समीपे (च च) (परा) दूरे (चरति) गच्छति (प्रजानन्) प्रकृष्टविद्वान् ॥

०२ पूषेमा आशा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

पू॒षेमा आशा॒ अनु॑ वेद॒ सर्वाः॒ सो अ॒स्माँ अभ॑यतमेन नेषत्।
स्व॑स्ति॒दा आघृ॑णिः॒ सर्व॑वी॒रोऽप्र॑युच्छन्पु॒र ए॑तु प्रजा॒नन् ॥

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Whitney
Translation
  1. Pūshan knows throughout all these places; he shall conduct us by that
    which is most free from fear; giving well-being, glowing, preserving
    heroes, let him go before unremitting, foreknowing.
Notes

This verse is again, without variation, RV. x. 17. 5 (also MS. iv. 14.
16, with meṣat for neṣat; TB. ii. 4. 1⁶ and TA. vi. 1. 1⁶, with
ághṛṇi in c; but TA. has further pravidvā́n at end).

Griffith

Pushan knows all these realms: may he conduct us by ways that are most free from fear and danger. Giver of blessings, glowing, all heroic, may he the wise and watchful go before us.

पदपाठः

पू॒षा। इ॒माः। आशाः॑। अनु॑। वे॒द॒। सर्वाः॑। सः। अ॒स्मान्। अ॑भयऽतमेन। ने॒ष॒त्। स्व॒स्ति॒ऽदाः। आघृ॑णिः। सर्व॑ऽवीरः। अप्र॑ऽयुच्छन्। पु॒रः। ए॒तु॒। प्र॒ऽजा॒नन्। १०.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पूषा
  • उपरिबभ्रवः
  • त्रिष्टुप्
  • स्वस्तिदा पूषा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के उपासना का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषा) पूषा, पोषण करनेवाला परमेश्वर (इमाः) इन (सर्वाः) सब (आशाः) दिशाओं को (अनु) लगातार (वेद) जानता है, (सः) वह (अस्मान्) हमें (अभयतमेन) अत्यन्त अभय [मार्ग] से (नेषत्) ले चले। (स्वस्तिदाः) मङ्गलदाता, (आघृणिः) बड़ा प्रकाशमान (सर्ववीरः) सब में वीर, (प्रजानन्) बड़ा विद्वान् वह (अप्रयुच्छन्) बिना चूक किये हुए (पुरः) हमारे आगे-आगे (एतु) चले ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सर्वव्यापक, मङ्गलप्रद, सर्ववीर, महाबुद्धिमान् परमेश्वर को निरन्तर सहायक जानकर, मनुष्य उत्तम कर्मों में आगे बढ़े ॥२॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है-म० १०।१७।५ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(पूषा) पोषक ईश्वरः (इमाः) (आशाः) दिशः (अनु) निरन्तरम् (वेद) वेत्ति (सर्वाः) (सः) पूषा (अस्मान्) धार्मिकान् (अभयतमेन) अत्यन्तभयरहितेन पथा (नेषत्) नयतेर्लेट्। नयेत् (स्वस्तिदाः) मङ्गलदाता (आघृणिः) सम्यक् प्रकाशमानः (सर्ववीरः) सर्वेषु वीरः (अप्रयुच्छन्) अप्रमाद्यन् (पुरः) अग्रे (एतु) गच्छतु (प्रजानन्) अतिविद्वान् ॥

०३ पूषन्तव व्रते

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पूष॒न्तव॑ व्र॒ते व॒यं न रि॑ष्येम क॒दा च॒न।
स्तो॒तार॑स्त इ॒ह स्म॑सि ॥

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Whitney
Translation
  1. O Pūshan, in thy sphere (vratá) may we at no time soever be harmed;
    thy praisers are we here.
Notes

RV. vi. 54. 9 differs from this verse only by the accent kádā in
b; VS. (xxxiv. 41) is the same with RV.; TB. (ii. 5. 5⁵) has kadā́,
and combines at the beginning pū́ṣaṅs táva. SPP. reports three of his
authorities as reading nā́ at beginning of b.

Griffith

We are thy praisers here, O Pushan: never let us be injured under thy protection.

पदपाठः

पूष॑न्। तव॑। व्र॒ते। व॒यम्। न। रि॒ष्ये॒म। क॒दा। च॒न। स्तो॒तारः॑। ते॒। इ॒ह। स्म॒सि॒। १०.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पूषा
  • उपरिबभ्रवः
  • त्रिपदार्षी गायत्री
  • स्वस्तिदा पूषा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के उपासना का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषन्) हे पूषा, पालन करनेवाले परमेश्वर ! (तव) तेरे (व्रते) वरणीय नियम में [रहकर] (वयम्) हम (कदा चन) कभी भी (न) न (रिष्येम) दुःखी होवें। (इह) यहाँ पर (ते) तेरे (स्तोतारः) स्तुति करनेवाले (स्मसि) हम लोग हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पुरुषार्थी लोग परमेश्वर के गुण और कर्मों के अनुकूल चलकर सदा सुखी रहते हैं ॥३॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है-म० ६।५४।९ और यजु० ३४।४१ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(पूषन्) पोषक परमात्मन् (तव) (व्रते) वरणीये नियमे (वयम्) उपासकाः (न) निषेधे (रिष्येम) रिष हिंसायाम्, दैवादिकः, अकर्मकः। हिंसिता भवेम (कदा चन) कदापि (स्तोतारः) स्तावकाः (ते) तव (इह) अत्र (स्मसि) स्मः। भवामः ॥

०४ परि पूषा

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परि॑ पू॒षा प॒रस्ता॒द्धस्तं॑ दधातु॒ दक्षि॑णम्।
पुन॑र्नो न॒ष्टमाज॑तु॒ सं न॒ष्टेन॑ गमेमहि ॥

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Whitney
Translation
  1. Let Pūshan place about his right hand in front; let him drive back to
    us what is lost; may we be united with what is lost.
Notes

The first three pādas of the verse are RV. vi. 54. 10, which differs
only by reading parástāt instead of pur-. SPP., having the comm. and
three of his (thirteen) authorities to support it, wrongly receives
parástāt into his text. ⌊Pāda a is catalectic.⌋ ⌊Ppp’s c is
unintelligible; its d is punar ṇo naṣṭam ā kṛdhi.⌋

Griffith

From out the distance, far and wide, may Pushan stretch his right hand forth. Let him drive back our lost to us, let us return with what is lost.

पदपाठः

परि॑। पू॒षा। प॒रस्ता॑त्। हस्त॑म्। द॒धा॒तु॒। दक्ष‍ि॑णम्। पुनः॑। नः॒। न॒ष्टम्। आ। अ॒जतु॒। सम्। न॒ष्टेन॑। ग॒मे॒म॒हि॒। १०.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • पूषा
  • उपरिबभ्रवः
  • अनुष्टुप्
  • स्वस्तिदा पूषा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के उपासना का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषा) पूषा, पोषण करनेवाला परमात्मा (दक्षिणम्) अपना दाहिना (हस्तम्) हाथ (परस्तात्) पीछे से [हमारे पुरुषार्थानुकूल] (परि) सब ओर (दधातु) धारण करे। वह (नः) हमें (नष्टम्) नष्ट बल को (पुनः) फिर (आ अजतु) लावे, [पाये हुए] (नष्टेन) नष्ट बल के साथ (सम् गमेमहि) हम मिले रहें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे मनुष्य बायें हाथ की अपेक्षा दाहिने हाथ से अधिक उपकार करता है, वैसे ही परमात्मा अपनी पूरण कृपा हम पर रक्खे, जिससे हम प्रयत्नपूर्वक अपने खोये बल [प्रारब्ध फल] को फिर पाकर रख सकें ॥४॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-म० ६।५४।१० ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(परि) परितः (पूषा) पोषकः परमात्मा (परस्तात्) उत्तरे काले (हस्तम्) कृपाहस्तम् (दधातु) धारयतु (दक्षिणम्) (पुनः) (नः) अस्मभ्यम् (नष्टम्) ध्वस्तं बलम् (आ अजतु) अज गतिक्षेपणयोः। आनयतु (नष्टेन) अदृष्टबलेन प्रारब्धफलेन (सं गमेमहि) संगच्छेमहि ॥