००२ आत्मा

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Whitney subject
  1. Of Atharvan.
VH anukramaṇī

आत्मा।
१ अथर्वा (ब्रह्मवर्चसकामः) । आत्मा। त्रिष्टुप्,

Whitney anukramaṇī

[Atharvan (as above).—ātmadevatyam. trāiṣṭubham.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xx. Used by Kāuś. (59. 18: the comm. says, hymns 2-5) in a kāmya rite, like the preceding hymn, with vi. 33, and vii. 6, 7, 16; and, according to the schol. (note to 30. 11), with hymn 3, in a healing ceremony.

Translations

Translated: Henry, 1, 48; Griffith, i. 328.

Griffith

Praise of Atharvan

०१ अथर्वाणं पितरम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अथ॑र्वाणं पि॒तरं॑ दे॒वब॑न्धुं मा॒तुर्गर्भं॑ पि॒तुरसुं॒ युवा॑नम्।
य इ॒मं य॒ज्ञं मन॑सा चि॒केत॒ प्र णो॑ वोच॒स्तमि॒हेह ब्र॑वः ॥

०१ अथर्वाणं पितरम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Father Atharvan, god-relative, mother’s fœtus, father’s spirit
    (ásu), young, who understands (cit) with the mind this sacrifice—him
    mayest thou proclaim to us here, here mayest thou speak.
Notes

Ppp. has a quite different version, reading viśvadevam instead of
devabandhum in a, and, for c, d, ayaṁ ciketā ’mṛtasya dhāma
nityasya rājaṣ paridhir apaśyat
. The second half-verse is the same with
5. 5 c, d below. The accent of the second ihá seems to require
that the sentence be divided between the two. ⌊The comm., to be sure,
reads the second iha as accentless. Cf. Gram. §1260 c.⌋

Griffith

Invoke for us, proclaim in sundry places, the kinsman of the Gods, our sire Atharvan, His mother’s germ, his father’s breath, the youthful, who with his mind hath noticed this oblation.

पदपाठः

अथ॑र्वाणम्। पि॒तर॑म्। दे॒वऽब॑न्धुम्। मा॒तुः। गर्भ॑म्। पि॒तुः। असु॑म्। युवा॑नम्। यः। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। मन॑सा। चि॒केत॑। प्र। नः॒। वो॒चः॒। तम्। इ॒ह। इ॒ह। ब्र॒वः॒। २.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आत्मा
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • आत्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मविद्या का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जिस आप ने (इमम्) इस (यज्ञम्) पूजनीय, (पितरम्) पालनकर्त्ता, (देवबन्धुम्) विद्वानों के हितकारी, (मातुः) निर्माण के कारण पृथिवी के (गर्भम्) गर्भ [गर्भसमान व्यापक], (पितुः) पालनहेतु सूर्य के (असुम्) प्राण, (युवानम्) संयोजक-वियोजक (अथर्वाणम्) निश्चल परमेश्वर को (मनसा) विज्ञान के साथ (चिकेत) जाना है, और जिस तूने (नः) हमें (प्र) अच्छे प्रकार (वोचः) उपदेश किया है, सो तू (तम्) उस [ब्रह्म] का (इह इह) यहाँ पर ही (ब्रवः) उपदेश कर ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिन महर्षियों ने सर्वनियन्ता परमेश्वर के गुणों को साक्षात् किया है, उनके उपदेशों को श्रवण, मनन और निदिध्यासन से वारंवार विचार द्वारा आनन्द प्राप्त करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(अथर्वाणम्) अ० ४।१।७। अथर्वाणोऽथर्वन्तस्थर्वतिश्चरतिकर्मा तत्प्रतिषेधः-निरु० ११।१८। निश्चलं परमात्मानम् (पितरम्) पालकम् (देवबन्धुम्) अ० ४।१।७। विदुषां हितकरम् (मातुः) निर्मात्र्या भूमेः (गर्भम्) अ० ३।१०।१२। गर्भवद् व्यापकम् (पितुः) पालनहेतोः सूर्यस्य (युवानम्) अ० ६।१।२। संयोजकवियोजकं बलवन्तम् (यः) भवान् तत्त्ववेत्ता (इमम्) सर्वव्यापिनम् (यज्ञम्) यजनीयं पूजनीयम् (मनसा) मननेन (चिकेत) कित ज्ञाने-लिट्। जज्ञौ (प्र) प्रकर्षेण (नः) अस्मभ्यम् (वोचः) वच व्यक्तायां वाचि-लुङ्, अडभावः। अवोचः। उपदिष्टवानसि (तम्) अथर्वाणम् (इह इह) वीप्सायां द्विर्वचनम्। अस्माकमेव मध्ये (ब्रवः) लेटि रूपम्। उपदिश ॥