१३७ केशवर्धनम्

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Whitney subject
  1. To fasten and increase the hair.
VH anukramaṇī

केशवर्धनम्।
१-३ वीतहव्यः। वनस्पतिः। अनुष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan (⌊keśavardhanakāmaḥ⌋ vītahavyaḥ).—vānaspatyam. ānuṣṭubham.]

Whitney

Comment

Of this hymn only the second verse is found in Pāipp. (i.). It is used by Kāuś. only with the preceding hymn, as there explained.

Translations

Translated: Ludwig, p. 512; Zimmer, p. 68; Grill, 50, 176; Griffith, i. 321; Bloomfield, 31, 537.

०१ यां जमदग्निरखनद्दुहित्रे

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यां ज॒मद॑ग्नि॒रख॑नद्दुहि॒त्रे के॑श॒वर्ध॑नीम्।
तां वी॒तह॑व्य॒ आभ॑र॒दसि॑तस्य गृ॒हेभ्यः॑ ॥

०१ यां जमदग्निरखनद्दुहित्रे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. [The herb] which Jamadagni dug for his daughter, [as]
    hair-increaser, that one Vītahavya brought from Asita’s houses.
Notes

Or vītahavya may be understood (with the Anukr.) as an epithet, ‘after
the gods had enjoyed his oblations.’ The comm. takes it as a proper
name, as also ásitasya (=kṛṣṇakeśasyāi ’tatsaṁjñasya muneḥ).

Griffith

The Plant which Jamadagni dug to make his daughter’s locks. grow long, This same hath Vitahavya brought to us from Asita’s abode.

पदपाठः

याम्। ज॒मत्ऽअ॑ग्निः। अख॑नत्। दु॒हि॒त्रे। के॒श॒ऽवर्ध॑नीम्। ताम्। वी॒तऽह॑व्यः। आ। अ॒भ॒र॒त्। असि॑तस्य। गृ॒हेभ्यः॑। १३७.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • नितत्नीवनस्पतिः
  • वीतहव्य
  • अनुष्टुप्
  • केशवर्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

केश के बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (केशवर्धनीम्) केश बढ़ानेवाली (याम्) जिस [नितत्नी ओषधि] को (जमदग्निः) जलती अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष ने (दुहित्रे) पूर्ति करनेवाली क्रिया के लिये (अखनत्) खोदा है। (ताम्) उस [ओषधि] को (वीतहव्यः) पाने योग्य पदार्थ का पानेवाला ऋषि (असितस्य) मुक्तस्वभाव महात्मा के (गृहेभ्यः) घरों से (आ अभरत्) लाया है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - इस सूक्त में (नितत्नी) पद की अनुवृत्ति गत सूक्त से आती है। जिस प्रकार से वैद्य जनपरम्परा से एक दूसरे के पीछे शिक्षा पाते चले आये हैं, वैसे ही मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते रहें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(याम्) नितत्नीम्−गतसूक्तात् (जमदग्निः) अ० २।३२।३। प्रज्वलिताग्निवत्तेजस्वी (अखनत्) खननेन प्राप्तवान् (दुहित्रे) प्रपूरयित्रीक्रियायै (केशवर्धनीम्) केशवृद्धिकरीम् (ताम्) ओषधिम् (वीतहव्यः) वी गतौ−क्त+हु आदाने यत्। प्राप्तप्राप्तव्यः पुरुषः (असितस्य) षिञ् बन्धने−क्त। अबद्धस्य। मुक्तस्वभावस्य (गृहेभ्यः) गेहेभ्यः सकाशात् ॥

०२ अभीशुना मेया

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अ॒भीशु॑ना॒ मेया॑ आसन्व्या॒मेना॑नु॒मेयाः॑।
केशा॑ न॒डा इ॑व वर्धन्तां शी॒र्ष्णस्ते॑ असि॒ताः परि॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. To be measured with a rein were they, to be after-measured with a
    fathom: let the black hairs grow out of thy head like reeds.
Notes

The Ppp. version, though corrupt, suggests no different reading. The
comm., startled at the exaggeration implied in abhīśu, declares it to
mean “finger.” In d, asitā́s is read by all the mss., and
consequently by both editions; it apparently calls for emendation to
ásitās, and is so translated kṛṣṇavarṇāḥ, comm.). The Anukr. seems
to admit the contraction naḍe ’va in 2 c, 3 c.

Griffith

They might be measured with a rein, meted with both extended arms. Let the black locks spring thick and strong and grow like reeds upon thy head.

पदपाठः

अ॒भीशु॑नाः। मेयाः॑। आ॒स॒न्। वि॒ऽआ॒मेन॑। अ॒नु॒ऽमेयाः॑। केशाः॑। न॒डाःऽइ॑व। व॒र्ध॒न्ता॒म्। शी॒र्ष्णः। ते॒। अ॒सि॒ताः। परि॑। १३७.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • नितत्नीवनस्पतिः
  • वीतहव्य
  • अनुष्टुप्
  • केशवर्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

केश के बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (केशाः) केश (अभीशुना) अङ्गुली से (मेया) नापने योग्य, फिर (व्यामेन) दोनों [ऊपर-नीचे के] भुज दण्ड से (अनुमेया) नापने योग्य (आसन्) हो गये हैं। वे (असिताः) काले होकर (ते) तेरे (शीर्ष्णः) शिर से (नडाः इव) नरकट घास के समान (परि वर्धन्ताम्) भले प्रकार बढ़ें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - केशरोगी मनुष्य वैद्य की सम्मति से रोगनिवृत्ति करे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(अभीशुना) भृमृशीङ्०। उ० १।७। इति अभि+अशू व्याप्तौ−ड अलोपो दीर्घश्च। अभीशवः, रश्मिनाम−निघ० १।५। अङ्गुलिनाम−२।५। पदनाम−५।३। अभीशवोऽभ्यश्नुवते कर्माणि−निरु० ३।९। अङ्गुल्या (मेयाः) मातव्याः (आसन्) (व्यामेन) वि+अम गतौ−घञ्। प्रसारितभुजद्वयपरिमाणेन (अनुमेयाः) पश्चात् मातव्याः (केशाः) (नडाः) तृणविशेषाः (इव) यथा (वर्धन्ताम्) वर्धमाना भवन्तु (शीर्ष्णः) शिरसः (ते) तव (असिताः) कृष्णवर्णाः (परि) सर्वतः ॥

०३ दृंह मूलमाग्रम्

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दृंह॒ मूल॒माग्रं॑ यच्छ॒ वि मध्यं॑ यामयौषधे।
केशा॑ न॒डा इ॑व वर्धन्तां शी॒र्ष्णस्ते॑ असि॒ताः परि॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Fix thou the root, stretch the. end, make the middle stretch out, O
    herb; let the black hairs grow out of thy head like reeds.
Notes

Yāmaya, in b, is yamaya in pada-text, by Prāt. iv. 93.

Griffith

Strengthen the roots, prolong the points, lengthen the middle part, O Plant. Let the black locks spring thick and strong and grow like reeds upon thy head.

पदपाठः

दृंह॑। मूल॑म्। आ। अग्र॑म्। य॒च्छ॒। वि। मध्य॑म्। य॒म॒य॒। ओ॒ष॒धे॒। केशाः॑। न॒डाःऽइ॑व। व॒र्ध॒न्ता॒म्। शी॒र्ष्णः। ते॒। अ॒सि॒ताः। परि॑। १३७.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • नितत्नीवनस्पतिः
  • वीतहव्य
  • अनुष्टुप्
  • केशवर्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

केश के बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ओषधे) हे ओषधि ! [केशों के] (मूलम्) मूल को (दृंह) दृढ़ कर, (अग्रम्) अग्र भाग को (आ यच्छ) बढ़ा, (मध्यम्) मध्यभाग को (वि यमय) लम्बा कर। (केशाः) केश (असिताः) काले होकर (ते शीर्ष्णः) तेरे शिर से (नडा इव) नरकट घास के समान (परि वर्धन्ताम्) भले प्रकार बढ़ें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र २ के समान ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(दृंह) दृढीकुरु (मूलम्) केशमूलम् (अग्रम्) अग्रभागम् (आ यच्छ) आयतं कुरु (मध्यम्) (वियमय) विविधं दीर्घीकुरु (ओषधे) अन्यत्पूर्ववत् ॥