१३६ केशदृंहणम्

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Whitney subject
  1. To fasten and increase the hair.
VH anukramaṇī

केशदृंहणम्।
१-३ वीतहव्यः। नितत्नि वनस्पतिः। अनुष्टुप् २ एकावसाना द्विपदा साम्नी बृहती।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan (keśavardhanakāmaḥ ⌊vītahavyaḥ⌋).—vānaspatyam. ānuṣṭubham: 2. 1-av. 2-p. sāmni bṛhatī.]

Whitney

Comment

Not found in Pāipp. Used by Kāuś. (31. 28), with the following hymn, in a remedial rite for the growth of the hair.

Translations

Translated: Zimmer, p. 68; Grill, 50, 176; Griffith, i. 321; Bloomfield, 31, 536.

०१ देवी देव्यामधि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

दे॒वी दे॒व्यामधि॑ जा॒ता पृ॑थि॒व्याम॑स्योषधे।
तां त्वा॑ नितत्नि॒ केशे॑भ्यो॒ दृंह॑णाय खनामसि ॥

०१ देवी देव्यामधि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou art born divine on the divine one, [namely] the earth, O herb;
    thee here, O down-stretcher, we dig in order to fix the hair.
Notes

The comm. explains the plant addressed to be the kācamācī etc.;
nitatnī apparently not the name, but an epithet, “sending its roots
far down” (nyakprasaraṇaśīlā, comm.).

Griffith

Born from the bosom of wide Earth the Goddess, godlike Plant, art thou: So we, Nitatni! dig thee up to strengthen and fix fast the hair.

पदपाठः

दे॒वी। दे॒व्याम्। अधि॑। जा॒ता। पृ॒थि॒व्याम्। अ॒सि॒। ओ॒ष॒धे॒। ताम्। त्वा॒। नि॒ऽत॒त्नि॒। केशे॑भ्यः। दृंह॑णाय। ख॒ना॒म॒सि॒। १३६.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • नितत्नीवनस्पतिः
  • वीतहव्य
  • अनुष्टुप्
  • केशदृंहण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

केश के बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ओषधे) हे ओषधि ! तू (देव्याम्) दिव्य [प्रकाशवाली, अच्छे गुणवाली] (पृथिव्याम्) पृथिवी में (अधि) ठीक ठीक (जाता) उत्पन्न हुई (देवी) दिव्य गुणवाली (असि) है। (नितत्नि) हे नीचे को फैलनेवाली, नितत्नी ! [ओषधी विशेष] (ताम् त्वा) उस तुझ को (केशेभ्यः) केशों के (दृंहणाय) दृढ़ करने और बढ़ाने के लिये (खनामसि) हम खोदते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य नितत्नी नाम ओषधि को केश दृढ़ करने और बढ़ाने के लिये काम में लावें। काचमाची फल, जीवन्तीफल और भृङ्गराज वा भंगरा ओषधि के भी केश बढ़ाना आदि गुण हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(देवी) दिव्यगुणा (देव्याम्) दिव्यगुणायाम् (अधि) अधिकम् (जाता) उत्पन्ना (पृथिव्याम्) (असि) (ओषधे) (ताम्) तादृशीम् (त्वा) (नितत्नि) आदृगमहन०। पा० ३।२।१७१। इति तनोतेः−कि, लिड्वद्भावाद् द्विर्वचनम्। तनिपत्योश्छन्दसि। पा० ६।४।९९। उपधालोपः। हे नितन्वाने न्यक्प्रसरणशीले (केशेभ्यः) केशानामर्थे (दृंहणाय) दृढीकरणाय। वर्धनाय (खनामसि) खनामः। खोडामः ॥

०२ दृंह प्रत्नान्

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दृंह॑ प्र॒त्नान् ज॒नयाजा॑तान् जा॒तानु॒ वर्षी॑यसस्कृधि ॥

०२ दृंह प्रत्नान् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Fix thou the old ones, generate those unborn, and make longer those
    born.
Notes

The comm. strangely divides vss. 2 and 3 differently, adding 3 a, b
to 2, and leaving 3 c, d to form by themselves a verse. ⌊The Anukr.
scans as 9 + 9. The “verse” seems to be prose.⌋

Griffith

Make the old firm, make new hair spring, lengthen what has already grown.

पदपाठः

दृंह॑। प्र॒त्नान्। ज॒नय॑। अजा॑तान्। जा॒तान्। ऊं॒ इति॑। वर्षी॑यसः। कृ॒धि॒। १३६.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • नितत्नीवनस्पतिः
  • वीतहव्य
  • एकावसाना द्विपदा साम्नी बृहती
  • केशदृंहण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

केश के बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे नितत्नी !] (प्रत्नान्) पुराने [केशों] को (दृंह) दृढ कर, (अजातान्) बिना उत्पन्न हुओं को (जनय) उत्पन्न कर, (उ) और (जातान्) उत्पन्न हुओं को (वर्षीयसः) बहुत लम्बा (कृधि) बना ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में नितत्नी ओषधि के गुणों का वर्णन है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(दृंह) दृढीकुरु (प्रत्नान्) पुरातनान् केशान् (जनय) उत्पादय (अजातान्) अनुत्पन्नान् (जातान्) (उ) अपि (वर्षीयसः) अ० ४।९।८। वृद्ध−ईयसुन्। प्रवृद्धतरान् (कृधि) कुरु ॥

०३ यस्ते केशोऽवपद्यते

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यस्ते॒ केशो॑ऽव॒पद्य॑ते॒ समू॑लो॒ यश्च॑ वृ॒श्चते॑।
इ॒दं तं वि॒श्वभे॑षज्या॒भि षि॑ञ्चामि वी॒रुधा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. What hair of thine falls down, and what one is hewn off with its
    root, upon it I now pour with the all-healing plant.
Notes

The comm., as well as all the mss. (and both editions), has the false
form vṛścáte (for vṛścyáte).

Griffith

Thy hair where it is falling off, and with the roots is torn away, I wet and sprinkle with the Plant, the remedy for all disease.

पदपाठः

यः। ते॒। केशः॑। अ॒व॒ऽपद्य॑ते। सऽमू॑लः। यः। च॒। वृ॒श्चते॑। इ॒दम्। तम्। वि॒श्वऽभे॑षज्या। अ॒भि। सि॒ञ्चा॒मि॒। वी॒रुधा॑। १३६.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • नितत्नीवनस्पतिः
  • वीतहव्य
  • अनुष्टुप्
  • केशदृंहण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

केश के बढ़ाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (यः) जो (ते) तेरा (केशः) केश (अव पद्यते) गिर जावे (च) और (यः) जो (समूलः) समूल (वृश्चते) टूट जावे। (इदम्) अब (तम्) उस को (विश्वभेषज्या) सब [केश रोगों] की ओषधि (वीरुधा) उस जड़ी-बूटी से (अभि षिञ्चामि) चुपड़ कर ठीक करता हूँ ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य नितत्नी नाम ओषधि से केशों के रोगों को दूर करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यः) (ते) तव (अवपद्यते) निपतति (समूलः) मूलसहितः (यः) (च) (वृश्चते) वृश्च्यते। छिद्यते (इदम्) इदानीम् (तम्) केशम् (विश्वभेषज्या) सर्वस्य केशरोगस्य निवर्तयित्र्या (अभि) अभितः (सिञ्चामि) आर्द्रीकरोमि (वीरुधा) लतया ॥