१३५ बलप्राप्तिः

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Whitney subject
  1. To crush an enemy.
VH anukramaṇī

बलप्राप्तिः।
१-३ शुक्रः। वज्रः। अनुष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[śukra.—mantroktavajradevatyam. ānuṣṭubham.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. v. Used by Kāuś. (47. 20) in the same rite of sorcery as the two preceding hymns, with the direction “do as stated in the text.”

Translations

Translated: Griffith, i. 321.

०१ यदश्नामि बलम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यद॒श्नामि॒ बलं॑ कुर्व इ॒त्थं वज्र॒मा द॑दे।
स्क॒न्धान॒मुष्य॑ शा॒तय॑न्वृ॒त्रस्ये॑व॒ शची॒पतिः॑ ॥

०१ यदश्नामि बलम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When (yát) I eat, I make strength; thus do I take the thunderbolt,
    cutting to pieces (śat) the shoulders of him yonder, as Cachīpati of
    Vritra.
Notes

Skandhá ‘shoulder’ is always plural ⌊in AV.⌋, and so is not precisely
equivalent to the word used to render it. Ppp. has for b, vajram
anupātayati
. Pāda b is deficient unless we read va-jṛ-am.

Griffith

Whate’er I eat I turn to strength, and thus I grasp the Thunder- bolt, Rending the shoulders of that man as Indra shattered Vritra’s neck.

पदपाठः

यत्। अ॒श्नामि॑। बल॑म्। कु॒र्वे॒। इ॒त्थम्। वज्र॑म्। आ। द॒दे॒। स्क॒न्धान्। अ॒मुष्य॑। शा॒तय॑न्। वृ॒त्रस्य॑ऽइव। शची॒ऽपतिः॑। १३५.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वज्रः
  • शुक्र
  • अनुष्टुप्
  • बलप्राप्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

खान-पान का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो कुछ (अश्नामि) मैं खाता हूँ [उसे] (बलम्) बल (कुर्वे) बना देता हूँ, (इत्थम्) तब मैं (वज्रम्) वज्र को (आ ददे) ग्रहण करता हूँ। (अमुष्य) उस [शत्रु] के (स्कन्धान्) कन्धों को (शातयन्) तोड़ता हुआ, (इव) जैसे (शचीपतिः) कर्म वा बुद्धि का स्वामी [शूर] (वृत्रस्य) शत्रु वा अन्धकार के ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पाचनशक्ति से भोजन को भलीभाँति पचावे, जिस से वह शारीरिक और आत्मिक बल बढ़ाकर उसे सुखदायक हो। इसी मन्त्र का विवरण मन्त्र २ तथा ३ में है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(यत्) भोजनम् (अश्नामि) भुञ्जे (बलम्) (कुर्वे) करोमि (इत्थम्) एकम् (वज्रम्) वर्जकं शस्त्रम् (आ ददे) गृह्णामि (स्कधान्) स्कन्धादिशरीरावयवान् (अमुष्य) शत्रोः (शातयन्) शद्लृ शातने णिचि। शदेरगतौ तः। पा० ७।३।४२। इति तकारादेशः, शतृ प्रत्ययः। छिन्दन् (इव) यथा (शचीपतिः) अ० ३।१०।१२। कर्मणां प्रज्ञानां वा पालकः ॥

०२ यत्पिबामि सम्

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यत्पिबा॑मि॒ सं पि॑बामि समु॒द्र इ॑व संपि॒बः।
प्रा॒णान॒मुष्य॑ सं॒पाय॒ सं पि॑बामो अ॒मुं व॒यम् ॥

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Whitney
Translation
  1. When I drink, I drink up, an up-drinker like the ocean; drinking up
    the breath of him yonder, we drink him up.
Notes

Ppp. combines samudrāi ’va in b, and reads, in c, d, saṁpivāṁ
saṁpivāmy ahaṁ pivā
.

Griffith

I drink together what I drink, even as the sea that swallows all. Drinking the life-breath of that man, we drink that man and swallow him.

पदपाठः

यत्। पिबा॑मि। सम्। पि॒बा॒मि॒। स॒मु॒द्रःऽइ॑व। स॒म्ऽपि॒बः। प्रा॒णान्। अ॒मुष्य॑। स॒म्ऽपाय॑। सम्। पि॒बा॒मः॒। अ॒मुम्। व॒यम्। १३५.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वज्रः
  • शुक्र
  • अनुष्टुप्
  • बलप्राप्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

खान-पान का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो कुछ [जल दुग्ध आदि] (पिबामि) मैं पीता हूँ, (सम्) यथाविधि (पिबामि) पीता हूँ (इव) जैसे (संपिबः) यथाविधि पीनेवाला (समुद्रः) समुद्र [खाकर पचा लेता है]। (अमुष्य) उस [पदार्थ] के (प्राणान्) जीवन बलों को (संपाय) चूस कर (अमुम्) उस [पदार्थ] को (सम्) यथाविधि (वयम्) हम (पिबामः) पीवें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य न्यूनाधिक मात्रा और देश काल का विचार करके जल दुग्ध आदि पीकर पुष्टि बढ़ाकर सुख प्राप्त करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(यत्) जलदुग्धादिपानम् (पिबामि) (सम्) यथाविधि (संपिबः) पाघ्राध्माधेट्दृशः शः। पा० ३।१।१३७। इति पा पाने−श प्रत्ययः। सम्यक् पाता (प्राणान्) जीवनबलानि (अमुष्य) तस्य पदार्थस्य (सम्पाय) सम्यक् पीत्वा (सम्) (पिबामः) (अमुम्) पदार्थम् (वयम्) पानकर्तारः ॥

०३ यद्गिरामि सम्

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यद्गिरा॑मि॒ सं गिरा॑मि समु॒द्र इ॑व संगि॒रः।
प्रा॒णान॒मुष्य॑ सं॒गीर्य॒ सं गि॑रामो अ॒मुं व॒यम् ॥

०३ यद्गिरामि सम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When I swallow, I swallow up, a swallower-up like the ocean;
    swallowing up the breath of him yonder, we swallow him up.
Notes

Ppp. reads, for c, d, prāṇam amuṣya saṁgiraṁ saṁgirāmy ahaṁ giraṁ.
The accent gírāmi in our text is doubtless wrong (read girā́mi), but
it is read by all the authorities, and accordingly is adopted in both
editions.

Griffith

Whate’er I eat I swallow up, even as the sea that swallows all. Swallowing that man’s vital breath, we swallow him completely up.

पदपाठः

यत्। गिरा॑मि। सम्। गि॒रा॒मि॒। स॒मु॒द्रःऽइ॑व। स॒म्ऽगि॒रः। प्रा॒णान्। अ॒मुष्य॑। स॒म्ऽगीर्य॑। सम्। गि॒रा॒मः॒। अ॒मुम्। व॒यम्। १३५.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वज्रः
  • शुक्र
  • अनुष्टुप्
  • बलप्राप्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

खान-पान का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो कुछ वस्तु (गिरामि) मैं खाता हूँ, (सम्) यथाविधि (गिरामि) खाता हूँ, (इव) जैसे (संगिरः) यथाविधि खानेवाला (समुद्रः) समुद्र [खाकर पचा लेता है]। (अमुष्य) उस [पदार्थ] के (प्राणान्) जीवन शक्तियों को (संगीर्य) चबाकर (अमुम्) उस [पदार्थ] को (सम्) यथाविधि (वयम्) हम (गिरामः) खावें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो निरालसी मनुष्य विचारपूर्वक भोजन करके उसे पचाते हैं, वे बलवान् रहते हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यत्) भोजनम् (गिरामि) गॄ निगरणे तुदादित्वात्−शः। ॠत इद्धातोः। पा० ७।१।१००। इत्वम्। भक्ष्यामि (सम्) सम्यक् (संगिरः) इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः। पा० ३।१।१३५। इति किरतेर्विधीयमानः कः प्रत्ययो गिरतेरपि। सम्यङ् निगरिता (संगीर्य्य) ॠत इत्वे। हलि च। पा० ८।२।७७। इति दीर्घः। यथाविधि भक्षयित्वा। अन्यत्पूर्ववत् ॥