१३३ मेखलाबन्धनम्

१३३ मेखलाबन्धनम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. To a girdle: for long life etc.
VH anukramaṇī

मेखलाबन्धनम्।
१-५ अगस्त्यः। मेखला। १ भुरिक् २, ५ अनुष्टुप्, ३ त्रिष्टुप्, ४ जगती।

Whitney anukramaṇī

[Agastya.—pañcarcam. mekhalādevatākam. trāiṣṭubham: 1. bhūrij; 2, 5. anuṣṭubh; 4. jagatī.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. v. Used by Kāuś. (47. 14-15) in a rite of sorcery, with the following hymn, for due preparation of girdle and staff; vs. 3 also alone in the same rite (47. 13), with laying fuel of bādhaka on the fire; and vss. 4 and 5 twice in the upanayana ceremony (56. 1; 57. 1), with tying on a girdle.

Translations

Translated: Ludwig, p. 432; Griffith, i. 319.

०१ य इमाम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

य इ॒मां दे॒वो मेख॑लामाब॒बन्ध॒ यः सं॑न॒नाह॒ य उ॑ नो यु॒योज॑।
यस्य॑ दे॒वस्य॑ प्र॒शिषा॒ चरा॑मः॒ स पा॒रमि॑च्छा॒त्स उ॑ नो॒ वि मु॑ञ्चात् ॥

०१ य इमाम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The god that bound on this girdle, that fastened [it] together
    (sam-nah), and that joined (yuj) [it] for us, the god by whose
    instruction we move—may he seek the further shore, and may he release
    us.
Notes

Ppp. has in c the singular carāmi. ‘Further shore’ is a familiar
expression for the end of a difficult or dangerous act or process
(prāripsitasya karmaṇaḥ samāptim, comm.). Tásya at beginning of c
in our text is a misprint for yásya. ⌊The Anukr. refuses to sanction
the contraction ye ’mām.⌋

Griffith

By the direction of that God we journey, he will seek means to save and he will free us; The God who hath engirt us with this Girdle, he who hath fast- ened it, and made us ready.

पदपाठः

यः। इ॒माम्। दे॒वः। मेख॑लाम्। आ॒ऽब॒बन्ध॑। यः। स॒म्ऽन॒नाह॑। यः। ऊं॒ इति॑। नः॒। यु॒योज॑। यस्य॑। दे॒वस्य॑। प्र॒ऽशिषा॑। चरा॑मः। सः। पा॒रम्। इ॒च्छा॒त्। सः। ऊं॒ इति॑। नः॒। वि। मु॒ञ्चा॒त्। १३३.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मेखला
  • अगस्त्य
  • भुरिक्त्रिष्टुप्
  • मेखलाबन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मेखना बाँधने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः देवः) जिस विद्वान् [आचार्य] ने (नः) हमारे (इमाम्) इस (मेखलाम्) मेखला [तागड़ी, पेटी, कटिबन्धन] (आबबन्ध) अच्छे प्रकार बाँधी है, (वः) जिसने (सन्ननाह) सजाई है। (उ) और (यः) जिसने (युयोज) संयुक्त की है। (यस्य देवस्य) जिस विद्वान् के (प्रशिषा) उत्तम शासन से (चरामः) हम विचरते हैं (सः) वह (नः) हमें (पारम्) पार (इच्छात्) लगावे, (सः उ) वही [कष्ट से] (विमुञ्चात्) मुक्त करे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वेदारम्भ संस्कार के अन्तर्गत मेखलाबन्धन एक संस्कार है। आचार्य ब्रह्मचारी के मेखला इस लिये बाँधे कि वह कटि को कस कर फुर्ती से वेदों को पढ़ कर संसार में उपकारी होवे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(यः) (इमाम्) (देवः) विद्वान्, आचार्यः (मेखलाम्) मीयते प्रक्षिप्यते कायमध्यभागे। डुमिञ् क्षेपे−खलच्। कटिबन्धनम्। कक्ष्याम् (आबबन्ध) आबद्धवान् (यः) (सन्ननाह) णह बन्धने लिट्। सज्जितवान् (यः उ) (नः) अस्मभ्यम् (युयोज) संयोजितवान् (यस्य) (देवस्य) विदुषः (प्रशिषा) उत्तमशासनेन (चरामः) वर्त्तामहे (सः) (पारम्) कर्मणः समाप्तिम् (इच्छात्) इच्छेत् (सः) (उ) (नः) अस्मान् (विमुञ्चात्) कष्टाद् विमोचयेत् ॥

०२ आहुतास्यभिहुत ऋषीणामस्यायुधम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

आहु॑तास्य॒भिहु॑त॒ ऋषी॑णाम॒स्यायु॑धम्।
पूर्वा॑ व्र॒तस्य॑ प्राश्न॒ती वी॑र॒घ्नी भ॑व मेखले ॥

०२ आहुतास्यभिहुत ऋषीणामस्यायुधम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Offered to art thou, offered unto; thou art the weapon of the seers
    (ṛṣi); partaking (pra-aś) first of the vow (vratá), be thou a
    hero-slayer, O girdle.
Notes

For the first pāda Ppp. has only the single word āhuta (perhaps by
accidental omission); in d it reads avīraghnī. The comm. explains
vrata as either ‘vow’ or, by the usual secondary application, ‘milk
etc’ (kṣīrādikam); to abhihutā in a it prefixes an explanatory
sampāta-.

Griffith

Thou, weapon of the Rishis, art adored and served with sacrifice. First tasting of the votive milk, Zone, be a hero-slayer thou!

पदपाठः

आऽहु॑ता। अ॒सि॒। अ॒भिऽहु॑ता। ऋषी॑णाम्। अ॒सि॒। आयु॑धम्। पूर्वा॑। व्र॒तस्य॑। प्र॒ऽअ॒श्न॒ती। वी॒र॒ऽघ्नी। भ॒व॒। मे॒ख॒ले॒। १३३.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मेखला
  • अगस्त्य
  • अनुष्टुप्
  • मेखलाबन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मेखना बाँधने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मेखले) हे मेखला ! तू (आहुता) यथाविधि दान की गई (असि) है, (ऋषीणाम्) धर्ममार्ग बतानेवाले ऋषियों का (आयुधम्) शस्त्ररूप (असि) है। (व्रतस्य) उत्तम व्रत वा नियम के (पूर्वा) पहिले (प्राश्नती) व्याप्त होनेवाली और (वीरघ्नी) वीरों को प्राप्त होनेवाली तू (भव) हो ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य नियमपूर्वक मेखला से कटि कस कर कर्म करते हैं, वे ही वीर होते हैं ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(आहुता) यथाविधि दत्ता (अभिहुता) सर्वतः स्वीकृता (ऋषीणाम्) अ० २।६।१। सन्मार्गदर्शकानाम् (असि) (आयुधम्) शस्त्ररूपा (पूर्वा) आद्या (व्रतस्य) अ० २।३०।२। श्रेष्ठकर्मणः (प्राश्नती) व्याप्नुवती (वीरघ्नी) हन गतौ−क्विप्। वीराणां हन्त्री गन्त्री (भव) (मेखले)−म० १। हे कटिबन्धन ॥

०३ मृत्योरहं ब्रह्मचारी

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मृ॒त्योर॒हं ब्र॑ह्मचा॒री यदस्मि॑ नि॒र्याच॑न्भू॒तात्पुरु॑षं य॒माय॑।
तम॒हं ब्रह्म॑णा॒ तप॑सा॒ श्रमे॑णा॒नयै॑नं॒ मेख॑लया सिनामि ॥

०३ मृत्योरहं ब्रह्मचारी ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Since I am death’s student (brahmacārín), soliciting from existence
    (? bhūtá) a man (púruṣa) for Yama, him do I, by incantation
    (bráhman), by fervor, by toil, tie with this girdle.
Notes

It is the duty of a Vedic student to beg provision for his teacher. Ppp.
begins b with bhūtāu niryācan. The comm. reads niryācam,
explaining it as first person sing. (= yāce)! The result he takes to
be “by this binding on of a girdle I impede the progress of my enemy.”
Pāda c has a redundant syllable.

Griffith

As I am now Death’s Brahmachari claiming out of the living world a man for Yama, So with Austerity and Prayer and Fervour I bind this Girdle round the man before me.

पदपाठः

मृ॒त्योः। अ॒हम्। ब्र॒ह्म॒ऽचा॒री। यत्। अस्मि॑। निः॒ऽयाच॑न्। भू॒तात्। पुरु॑षम्। य॒माय॑। तम्। अ॒हम्। ब्रह्म॑णा। तप॑सा। श्रमे॑ण। अ॒नया॑। ए॒न॒म्। मेख॑लया। सि॒ना॒मि॒। १३३.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मेखला
  • अगस्त्य
  • त्रिष्टुप्
  • मेखलाबन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मेखना बाँधने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूतात्) प्राप्त (मृत्योः) मृत्यु से (पुरुषम्) इस पुरुष, आत्मा को (निर्याचन्) बाहिर निकालता हुआ (अहम्) मैं (यमाय) नियम पालन के लिये (यत्) जो (ब्रह्मचारी) ब्रह्मचारी, वेदपाठी और वीर्यनिग्राहक पुरुष (अस्मि) हूँ। (तम्) वैसे (एनम्) इस आत्मा को (ब्रह्मणा) वेदज्ञान, (तपसा) तप [योगाभ्यास] और (श्रमेण) परिश्रम के साथ (अनया मेखलया) इस मेखला से (अहम्) मैं (सिनामि) बाँधता हूँ ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो ब्रह्मचारी मेखला के समान शरीर को कसकर शीत उष्ण आदि द्वन्द्व का सहन करके आलस्य आदि मृत्यु को हटाते हैं, वे ही ब्रह्मज्ञान को प्राप्त होते हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(मृत्योः) आलस्यरूपमरणात् (अहम्) (ब्रह्मचारी) अ० ६।१०८।२। वेदपाठी वीर्यनिग्रहीता (यत्) (अस्मि) (निर्याचन्) निर्गमयन् (भूतात्) प्राप्तात् (पुरुषम्) अ० १।१६।४। अग्रगामिनमात्मानम् (ब्रह्मणा) वेदज्ञानेन (तपसा) योगाभ्यासेन (श्रमेण) शीतोष्णादिद्वन्द्वसहनेन (अनया) उपस्थितया (एनम्) पुरुषम् (मेखलया) (सिनामि) बध्नामि ॥

०४ श्रद्धाया दुहिता

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श्र॒द्धाया॑ दुहि॒ता तप॒सोऽधि॑ जा॒ता स्वसा॒ ऋषी॑णां भूत॒कृतां॑ ब॒भूव॑।
सा नो॑ मेखले म॒तिमा धे॑हि मे॒धामथो॑ नो धेहि॒ तप॑ इन्द्रि॒यं च॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Daughter of faith, born out of fervor, sister of the being-making
    seers was she; do thou, O girdle, assign to us thought (matí), wisdom;
    also assign to us fervor and Indra’s power.
Notes

All the mss. (and both editions) accent babhū́va at end of b, as if
a relative were expressed or implied in the line somewhere. The verse is
really mixed triṣṭubh and jagatī; ⌊a is jagatī only by count;
no in c looks like an intrusion⌋. ⌊As to the combination -sa
ṛṣ-
, see note to Prāt. iii. 46.⌋

Griffith

She hath become, Faith’s daughter, sprung from Fervour, the sister of the world-creating Rishis; As such, O Girdle, give us thought and wisdom, give us religious zeal and mental vigour.

पदपाठः

श्र॒ध्दायाः॑। दु॒हि॒ता। तप॑सः। अधि॑। जा॒ता। स्वसा॑। ऋषी॑णाम्। भू॒त॒ऽकृता॑म्। ब॒भूव॑। सा। नः॒। मे॒ख॒ले॒। म॒तिम्। आ। धे॒हि॒। मे॒धाम्। अथो॒ इति॑। नः॒। धे॒हि॒। तपः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। च॒। १३३.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मेखला
  • अगस्त्य
  • जगती
  • मेखलाबन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मेखना बाँधने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [वह मेखला] (श्रद्धायाः) श्रद्धा [आस्तिक बुद्धि, विश्वास] की (दुहिता) पूरण करनेहारी [यद्वा पुत्री समान प्रिय], (तपसः) तप [योगाभ्यास] से (अधि) अच्छे प्रकार (जाता) उत्पन्न हुई, (भूतकृताम्) सत्यकर्मी (ऋषीणाम्) ऋषियों [सन्मार्गदर्शकों] की (स्वसा) अच्छे प्रकार प्रकाश करनेहारी [अथवा बहिन के समान हितकारिणी] (बभूव) हुई है। (सा) सो तू (मेखले) हे मेखला ! (नः) हमें (मतिम्) मननशक्ति और (मेधाम्) निश्चय बुद्धि (आ) सब ओर से (धेहि) दान कर, (अथो) और भी (नः) हमें (तपः) योगाभ्यास (च) और (इन्द्रियम्) इन्द्र का चिह्न [पराक्रम वा परम ऐश्वर्य] (धेहि) दान कर ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो श्रद्धालु, तपस्वी ऋषियों के समान शुभकर्म के लिये कटिबद्ध रहते हैं, वे ही मननशक्ति और निश्चल बुद्धि पाकर ऐश्वर्यवान् होते हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(श्रद्धायाः) श्रत् सत्यम्−निघ० ३।१०। श्रद्धा श्रद्धानात्−निरु० ९।३०। सत्यं धीयतेऽत्र। षिद्भिदादिभ्योऽङ्। पा० ३।३।१०४। श्रत्+धा−अङ्, टाप्। आस्तिक्यबुद्धेः। विश्वासस्य (दुहिता) अ० ३।१०।१३। प्रपूरयित्री। पुत्रीसदृशहितकारिका वा (तपसः) योगाभ्यासात्। (अधि) अधिकम् (जाता) उत्पन्ना (स्वसा) अ० ६।१००।३। सुदीपयित्री। भगिनीतुल्यहिता (ऋषीणाम्)−म० २। सन्मार्गदर्शकानाम् (भूतकृताम्) आ० ६।१०८।४। सत्यकर्मणाम् (बभूव) (सा) त्वम् (नः) अस्मभ्यम् (मेखले) (मतिम्) मननशक्तिम् (आ) समन्तात् (धेहि) देहि (मेधाम्) अ० ६।१०८।२। निश्चलां बुद्धिम् (अथो) अपि च (तपः) (इन्द्रियम्) अ० १।३५।३। इन्द्रलिङ्गं वीर्यमैश्वर्यं वा (च) ॥

०५ यां त्वा

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यां त्वा॒ पूर्वे॑ भूत॒कृत॒ ऋष॑यः परिबेधि॒रे।
सा त्वं परि॑ ष्वजस्व॒ मां दी॑र्घायु॒त्वाय॑ मेखले ॥

०५ यां त्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou whom the ancient being-making seers bound about, do thou embrace
    me, in order to length of life, O girdle.
Notes
Griffith

Thou whom primeval Rishis girt about them, they who made the world, As such do thou encircle me, O Girdle, for long days of life.

पदपाठः

याम्। त्वा॒। पूर्वे॑। भू॒त॒ऽकृतः॑। ऋष॑यः। प॒रि॒ऽबे॒धि॒रे। सा। त्वम्। परि॑। स्व॒ज॒स्व॒। माम्। दी॒र्घा॒यु॒ऽत्वाय॑। मे॒ख॒ले॒। १३३.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मेखला
  • अगस्त्य
  • अनुष्टुप्
  • मेखलाबन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मेखना बाँधने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (याम् त्वा) जिस तुझको (पूर्वे) पहिले (भूतकृतः) सत्यकर्मी (ऋषयः) ऋषियों ने (परिबेधिरे) चारों ओर बाँधा था। (सा त्वम्) सो तू, (मेखले) हे मेखला ! (दीर्घायुत्वाय) दीर्घ आयु के लिये (माम्) मुझ में (परि) सब ओर से (स्वजस्व) चिपट जा ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ऋषियों के समान कटिबद्ध होकर शुभकार्य करते हैं, वे ही कीर्तिमान् होते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(याम्) मेखलाम् (त्वा) (पूर्वे) पूर्वजाः (भूतकृतः) सत्यकर्माणः (ऋषयः) साक्षात्कृतधर्माणः (परिबेधिरे) बध बन्धने−लिट्, आत्मनेपदत्वं छान्दसम्। परिबद्धवन्तः (सा) (त्वम्) (परि) सर्वतः (स्वजस्व) ष्वञ्ज परिष्वङ्गे। आलिङ्ग (दीर्घायुत्वाय) चिरकालजीवनाय (मेखले) ॥