१२६ दुन्दुभिः ...{Loading}...
Whitney subject
- To the drum: for success against the foe.
VH anukramaṇī
दुन्दुभिः।
१-३ अथर्वा। दुन्दुभिः। भुरिक् त्रिष्टुप्, ३ पुरोबृहतीगर्भा त्रिष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan.—vānaspatyadundubhidevatyam. bhuriktrāiṣṭubham: 3. purobṛhatī virāḍgarbhā triṣṭubh.]
Whitney
Comment
Found also in Pāipp. xv.* (but 1 c, d and 2 a, b are wanting, probably by an error of the copyist), and in the same other texts as the preceding hymn (RV.VS.TS.MS.: in MS. the three verses are not in consecution with those of 125). Applied by Kāuś. (16. 1) in a battle rite, with v. 20, as the drums and other musical instruments of war, duly prepared, are sounded thrice and handed to those who are to play them. Vāit. (34. 11) has it (also with v. 20) in the same ceremony as the preceding hymn, as the drum-heads are drawn on. *⌊Seems to be an error for Pāipp. vii.⌋
Translations
Translated: by the RV. translators; and Griffith, 1.315—See also Bergaigne-Henry, Manuel, p. 156.
०१ उप श्वासय
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
उप॑ श्वासय पृथि॒वीमु॒त द्यां पु॑रु॒त्रा ते॑ वन्वतां॒ विष्ठि॑तं॒ जग॑त्।
स दु॑न्दुभे स॒जूरिन्द्रे॑ण दे॒वैर्दू॒राद्दवी॑यो॒ अप॑ सेध॒ शत्रू॑न् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उप॑ श्वासय पृथि॒वीमु॒त द्यां पु॑रु॒त्रा ते॑ वन्वतां॒ विष्ठि॑तं॒ जग॑त्।
स दु॑न्दुभे स॒जूरिन्द्रे॑ण दे॒वैर्दू॒राद्दवी॑यो॒ अप॑ सेध॒ शत्रू॑न् ॥
०१ उप श्वासय ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Blast thou unto heaven and earth; in many places let them win for
thee the scattered living creatures (jágat); do thou, O drum, allied
with Indra [and] the gods, drive away our foes further than far.
Notes
The second pāda is translated according to the reading of our text,
whose vanvatām, however, can hardly be otherwise than a corruption of
the manutām of the other texts; Ppp. has instead sunutām, which is
yet worse; the comm. has vanutām. MS. has, in d, ārā́t for
dūrā́t*.*
Griffith
Send forth thy voice aloud through earth and heaven, and let the world in all its breadth regard thee. O Drum, accordant with the Gods and Indra, drive thou afar, yea, very far, our foemen.
पदपाठः
उप॑। श्वा॒स॒य॒। पृ॒थि॒वीम्। उ॒त। द्याम्। पु॒रु॒ऽत्रा। ते॒। व॒न्व॒ता॒म्। विऽस्थि॑तम्। जग॑त्। सः। दु॒न्दु॒भे॒। स॒ऽजूः। इन्द्रे॑ण। दे॒वैः। दू॒रात्। दवी॑यः। अप॑। से॒ध॒। शत्रू॑न्। १२६.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- दुन्दुभिः
- अथर्वा
- भुरिक्त्रिष्टुप्
- दुन्दुभि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और सेना के कर्तव्यों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन्] (पृथिवीम्) भूमि वा अन्तरिक्ष को (उत) और (द्याम्) सूर्य वा बिजुली में (उप) उपयोग के साथ (श्वासय) जीवन डाल, (पुरुत्रा) अनेक पदार्थों में (ते) तेरे लिये (विष्ठितम्) व्याप्त (जगत्) जगत् की (वन्वताम्) वे [वीर लोग] याचना करें। (दुन्दुभे) हे दुन्दुभि [ढोल] के सदृश गर्जनेवाले वीर ! (सः) सो तू (इन्द्रेण) ऐश्वर्य व बिजुली के अस्त्र समूह से और (देवैः) विजयी वीरों से (सजूः) प्रीति करता हुआ (दूरात्) दूर से (दवीयः) अति दूर (शत्रून्) शत्रुओं को (अपसेध) हटा दे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा वीरों द्वारा बिजुली आदि के अस्त्र-शस्त्रों से शत्रुओं को हटा कर चक्रवर्ती राज्य करके आकाश और भूमि पर शान्ति करे ॥१॥ मन्त्र १, ३ कुछ भेद से ऋग्वेद में है−म० ६।४७।२९, ३१, यजु० २९।५५।५७। इन मन्त्रों का अर्थ भगवान् दयानन्द सरस्वती के आधार पर किया गया है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(उप) उपयोगेन (श्वासय) प्राणय। आश्रय (पृथिवीम्) भूमिमन्तरिक्षं वा (उत) अपि (द्याम्) सूर्यं विद्युतं वा (पुरुत्रा) बहुषु पदार्थेषु (ते) तुभ्यम् (वन्वताम्) वनु याचने। याचन्तां वीराः (विष्ठितम्) व्याप्तम् (जगत्) जगद्राज्यम् (सः) स त्वम् (दुन्दुभे) अ० ५।२०।१। दुन्दुभिरिव गर्जक (सजूः) अ० ६।३५।२। प्रीतिसहितः (इन्द्रेण) विद्युदस्त्रेण (देवैः) विजिगीषुभिर्वीरैः (दूरात्) (दवीयः) दूर−ईयसुन्। स्थूलदूरयुव० पा० ६।४।१५६। इति रलोपः पूर्वस्य च गुणः। अदूरतरम् (अपसेध) अपनय (शत्रून्) ॥
०२ आ क्रन्दय
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
आ क्र॑न्दय॒ बल॒मोजो॑ न॒ आ धा॑ अ॒भि ष्टन दुरि॒ता बाध॑मानः।
अप॑ सेध दुन्दुभे दु॒च्छुना॑मि॒त इन्द्र॑स्य मु॒ष्टिर॑सि वी॒डय॑स्व ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ क्र॑न्दय॒ बल॒मोजो॑ न॒ आ धा॑ अ॒भि ष्टन दुरि॒ता बाध॑मानः।
अप॑ सेध दुन्दुभे दु॒च्छुना॑मि॒त इन्द्र॑स्य मु॒ष्टिर॑सि वी॒डय॑स्व ॥
०२ आ क्रन्दय ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Resound thou at [them]; mayest thou assign strength [and] force
to us; thunder against [them], forcing off difficulties; drive, O
drum, misfortune away from here; Indra’s fist art thou; be stout.
Notes
The other texts have, in b, níḥ ṣṭanihi for abhi ṣṭana, and, in
c, protha for sedha, and the plural duchúnās (save TS., which
gives -nāṅ, in pada-text -nān).
Griffith
Thunder out strength and fill us full of vigour, yea, thunder forth and drive away misfortunes. Drive hence, O Drum, drive thou away mischances. Thou art the fist of Indra, show thy firmness.
पदपाठः
आ। क्र॒न्द॒य॒। बल॑म्। ओजः॑। नः॒। आ। धाः॒। अ॒भि। स्त॒न॒। दुः॒ऽइ॒ता। बाध॑मानः। अप॑। से॒ध॒। दु॒न्दु॒भे॒। दु॒च्छुना॑म्। इ॒तः। इन्द्र॑स्य। मु॒ष्टिः। अ॒सि॒। वी॒डय॑स्व। १२६.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- दुन्दुभिः
- अथर्वा
- भुरिक्त्रिष्टुप्
- दुन्दुभि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और सेना के कर्तव्यों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (बलम्) बल और (ओजः) पराक्रम (नः) हमें (आ धाः) अच्छे प्रकार दे, [शत्रुओं को] (आ क्रन्दय) सब ओर से …. और (दुरिता) कष्टों को (बाधमानः) हटाता हुआ (अभि) सब ओर (स्तन) मेघध्वनि कर। (दुन्दुभे) हे दुन्दुभी [के समान गरजनेवाले !] (इतः) यहाँ से (दुच्छुनाम्) दुष्ट गति को (अप सेध) हटा दे, तू (इन्द्रस्य) बिजुली की (मुष्टिः) मूँठ [के समान दुष्टों को मारनेवाला] (असि) है, [राज्य को] (वीडयस्व) दृढ कर ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे राजा बलवान् होकर यथावत् अस्त्र-शस्त्रों से शत्रुओं को जीतकर प्रजापालन करता है, वैसे ही मनुष्य आत्मदोष मिटा कर धर्मिष्ठ होवें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(आ) समन्तात् (क्रन्दय) रोदय शत्रून् (बलम्) (ओजः) पराक्रमम् (नः) अस्मभ्यम् (आ) (धा) धेहि (अभि) सर्वतः (स्तन) स्तन मेघशब्दे। मेघध्वनिं कुरु (दुरिता) कष्टानि (बाधमानः) निवारयन् (अप सेध) अपगमय (दुन्दुभे) दुन्दुभिरिव शब्दायमान (दुच्छुनाम्) अ० ५।१७।४। दुर्गतिम् (इतः) अस्माद् देशात् (इन्द्रस्य) विद्युतः (मुष्टिः) मुष्टिरिव दुष्टानां हन्ता (असि) (वीडयस्व) बलयस्व राज्यम् ॥
०३ प्रामूं जयाभीमे
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
प्रामूं ज॑या॒भी॒३॒॑मे ज॑यन्तु केतु॒मद्दु॑न्दु॒भिर्वा॑वदीतु।
समश्व॑पर्णाः पतन्तु नो॒ नरो॒ऽस्माक॑मिन्द्र र॒थिनो॑ जयन्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्रामूं ज॑या॒भी॒३॒॑मे ज॑यन्तु केतु॒मद्दु॑न्दु॒भिर्वा॑वदीतु।
समश्व॑पर्णाः पतन्तु नो॒ नरो॒ऽस्माक॑मिन्द्र र॒थिनो॑ जयन्तु ॥
०३ प्रामूं जयाभीमे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Conquer thou those yonder; let these here conquer; let the drum
speak loud ⌊vāvad-⌋ [and] clear; let our horse-winged heroes fly
together; let our chariot-men, O Indra, conquer.
Notes
All the other texts have, for a, ā́ ’mū́r aja pratyā́vartaye ’mā́ḥ,
and vāvaditi at end of b; in c, for patantu, cáranti (but
MS. cárantu); while Ppp. reads patayanti. Amū́ṁ before jaya
doubtless means amū́n, and is so translated above; but the pada-text
understands it as amū́m, and the comm. supplies śatrusenām. The
Anukr. contracts the first pāda into 9 syllables.
Griffith
Conquer those yonder and let these be victors. Let the Drum speak aloud as battle’s signal. Let our men, winged with horses, fly together. Let our car- warriors, Indra! be triumphant.
पदपाठः
प्र। अ॒मूम्। ज॒य॒। अ॒भि। इ॒मे। ज॒य॒न्तु॒। के॒तु॒ऽमत्। दु॒न्दु॒भिः। वा॒व॒दी॒तु॒। सम्। अश्व॑ऽपर्णाः। प॒त॒न्तु॒। नः॒। नरः॑। अ॒स्माक॑म्। इ॒न्द्र॒। र॒थिनः॑। ज॒य॒न्तु॒। १२६.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- दुन्दुभिः
- अथर्वा
- पुरोबृहती विराड्गर्भा त्रिष्टुप्
- दुन्दुभि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और सेना के कर्तव्यों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अमूम्) उस [शत्रुसेना] को (प्र) अच्छे प्रकार (जय) जीत ले, (इमे) यह (केतुमत्) ध्वजा पताकावाले शूर (अभि) सब ओर से (जयन्तु) जीत लेवें, (दुन्दुभिः) ढोल (वावदीति) ऊँचे स्वर से बजता है। (अश्वपर्णाः) घुड़चढ़ों के पक्ष [सेना दल]वाले (नः) हमारे (नरः) नायक लोग (सम्) ठीक रीति से (पतन्तु) धावा करें, (इन्द्र) हे बड़े ऐश्वर्यवाले राजन् ! (अस्माकम्) हमारे (रथिनः) अच्छे-अच्छे रथों पर चढ़े हुए वीर (जयन्तु) जीतें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा अपने शूर वीरों से दुन्दुभि बजा कर घुड़चढ़े सैन्यकों का दल बना कर शत्रुओं पर धावा करके जीत लेवे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(प्र) प्रकर्षेण (अमूम्) शत्रुसेनाम् (अभि) सर्वतः (जयन्तु) (केतुमत्) विभक्तेर्लुक्। प्रशस्तध्वजयुक्ताः शूराः (वावदीति) भृशं वदति (सम्) सम्यक् (अश्वपर्णाः) अश्वानामश्ववाराणां पर्णाः पक्षाः पार्श्वा येषां ते (पतन्तु) धावन्तु (नः) अस्माकम् (नरः) नायकाः (अस्माकम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् सेनापते (रथिनः) प्रशस्तरथारूढाः शूराः (जयन्तु) ॥