११० दीर्घायुः प्राप्तिः

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Whitney subject
  1. For a child born at an unlucky time.
VH anukramaṇī

दीर्घायुः प्राप्तिः।
१-३ अथर्वा। अग्निः। त्रिष्टुप्, १ पङ्क्तिः।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan.—āgneyam. trāiṣtubham: 1. pan̄kti.]

Whitney

Comment

This hymn is not found in Pāipp. Kāuś. (46. 25) applies it for the benefit of a child born under an inauspicious asterism.

Translations

Translated: Ludwig, p. 431; Zimmer, p. 321; Griffith, i. 305; Bloomfield, 109, 517.—With reference to the asterisms, see note to ii. 8. i; Zimmer, p. 356; Jacobi in Festgruss an Roth, p. 70.

०१ प्रत्नो हि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

प्र॒त्नो हि कमीड्यो॑ अध्व॒रेषु॑ स॒नाच्च॒ होता॒ नव्य॑श्च॒ सत्सि॑।
स्वां चा॑ग्ने त॒न्वं᳡ पि॒प्राय॑स्वा॒स्मभ्यं॑ च॒ सौभ॑ग॒मा य॑जस्व ॥

०१ प्रत्नो हि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Since, an ancient one, to be praised at the sacrifices, thou sittest
    as hótar both of old and recent—do thou, O Agni, both gratify thine
    own self, and bestow (ā-yaj) good fortune on us.
Notes

The verse is RV. viii. 11. 10 (also TA. x. 1⁶⁹). Our text has several
bad readings, which are corrected in the other version: kám in a
should be kam, satsi should be sátsi, and piprā́yasva should be
-práy- (TA. has, in a, pratnóṣi, which its comm. explains by
vistārayasi!): this last the comm. also reads, but renders it
ājyādihaviṣā pūraya. The verse is not at all a pan̄kti, although
capable of being read as 40 syllables.

Griffith

Yea, ancient, meet for praise at sacrifices, ever and now thou sittest down as Hotar. And now, O Agni, make thy person friendly, and win felicity for us by worship.

पदपाठः

प्र॒त्नः। हि। कम्। ईड्यः॑। अ॒ध्व॒रेषु॑। स॒नात्। च॒। होता॑। नव्यः॑। च॒। स॒त्सि॒। स्वाम्। च॒। अ॒ग्ने॒। त॒न्व᳡म्। प्रि॒प्राय॑स्व। अ॒स्मभ्य॑म्। च॒। सौभ॑गम्। आ। य॒ज॒स्व॒। ११०.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • अथर्वा
  • पङ्क्तिः
  • दीर्घायु सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य बढ़ाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे विद्वान् आचार्य ! (प्रत्नः) प्राचीन, [अनुभवी] (च) और (नव्यः) नूतन [उद्योगी,] (ईड्यः) स्तुतियोग्य (च) और (होता) दाता होकर (सनात्) सदा से (अध्वरेषु) सन्मार्ग देनेवाले वा हिंसारहित व्यवहारों में (हि) अवश्य (कम्) सुख से (सत्सि) तू बैठता है। (च) निश्चय करके (स्वाम्) अपने (तन्वम्) शरीर को (पिप्रायस्व) प्रीतियुक्त कर (च) और (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (सौभगम्) अनेक सुन्दर ऐश्वर्य (आ) आकर (यजस्व) दान कर ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वृद्ध, अनुभवी उत्साही, उत्तम आचार्य से नम्रतापूर्वक उत्तम शिक्षा ग्रहण करके अपना ऐश्वर्य बढ़ावें ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−म० ८।११।१० ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(प्रत्नः) नश्च पुराणे प्रात्। वा० पा० ५।४।२५। इति प्र−तप्। प्रत्नः पुराणः−निरु० १२।३˜२। प्राचीनः। अनुभवी (हि) अवश्यम् (कम्) सुखेन (ईड्यः) स्तुत्यः (अध्वरेषु) अ० ३।१६।६। सन्मार्गदातृषु हिंसारहितेषु वा व्यवहारेषु (सनात्) सत्यम् (च) समुच्चये। अवधारणे (होता) दाता (नव्यः) अचो यत्। पा० १।३।९७। णु स्तुतौ−यत्। नूतनः। पुरुषार्थी (सत्सि) सीदसि (स्वाम्) स्वकीयाम् (अग्ने) हे विद्वन्। आचार्य (तन्वम्) शरीरम् (प्रिप्रायस्व) प्री प्रीतौ णिचि छान्दसं रूपम्। प्रसन्नां कुरु (अस्मभ्यम्) सेवकेभ्यः (सौभगम्) समूहे−अण्। बह्वैश्वर्याणां समूहम् (आ) आगत्य (यजस्व) देहि ॥

०२ ज्येष्ठघ्न्यां जातो

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ज्ये॑ष्ठ॒घ्न्यां जा॒तो वि॒चृतो॑र्य॒मस्य॑ मूल॒बर्ह॑णा॒त्परि॑ पाह्येनम्।
अत्ये॑नं नेषद्दुरि॒तानि॒ विश्वा॑ दीर्घायु॒त्वाय॑ श॒तशा॑रदाय ॥

०२ ज्येष्ठघ्न्यां जातो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Born in jyeṣṭhaghnī́, in Yama’s two Unfasteners (vicṛ́t)—do thou
    protect him from the Uprooter (mūlabárhaṇa); may he conduct him across
    all difficulties unto long life, of a hundred autumns.
Notes

The consecutiveness of the verse is very defective, inasmuch as ‘born’
(jātás, nom.) in a can hardly be understood otherwise than of the
child, while Agni is addressed in b, and spoken of in third person
in c, d. Three asterisms are here ⌊and in 112⌋ referred to, all in
our constellation Scorpio: Antares or Cor Scorpionis (either alone or
with σ, τ) is usually called jyeṣṭhā ‘oldest,’ but also (more
anciently?), as an asterism of ill omen, jyeṣṭhaghnī ‘she that slays
the oldest’*; mūla ‘root,’ also in the same manner mūlabarhaṇī ⌊or
-ṇa⌋, lit. ‘root-wrencher,’* is the tail, or in the tail, of which
the terminal star-pair, or the sting (λ, υ), has the specific name
vicṛtāu. ⌊See note to ii. 8. i.⌋ The comm. takes yamasya as
belonging to mūlabarhaṇāt. By a misprint, our text begins with jyāi-
(read jye-). *⌊See TB. i. 5. 2⁸.⌋

Griffith

Neath Jyaishthaghni and Yama’s Two Releasers this child was born: preserve him from uprooting. He shall conduct him safe past all misfortunes to lengthened life that lasts a hundred autumns.

पदपाठः

ज्ये॒ष्ठ॒ऽघ्न्याम्। जा॒तः। वि॒ऽचृतोः॑। य॒मस्य॑। मू॒ल॒ऽबर्ह॑णात्। परि॑। पा॒हि॒। ए॒न॒म्। अति॑। ए॒न॒म्। ने॒ष॒त्। दुः॒ऽइ॒तानि॑। विश्वा॑। दी॒र्घा॒यु॒ऽत्वाय॑। श॒तऽशा॑रदाय। ११०.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • दीर्घायु सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य बढ़ाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ज्येष्ठघ्न्याम्) ज्येष्ठ अर्थात् अतिवृद्ध वा उत्तम ब्रह्म को प्राप्त करनेवाली क्रिया में (जातः) प्रसिद्ध तू (विचृतोः) अन्धकार से छुड़ानेवाले, सूर्य और चन्द्रमा के (यमस्य) नियम के (मूलबर्हणात्) मूल छेदन से (एनम्) इस जीव को (परि पाहि) सब प्रकार बचा। (विश्वा) सब (दुरितानि) विघ्नों को (अति=अतीत्य) उल्लाँघ कर (शतशारदाय) सौ वर्षवाले (दीर्घायुत्वाय) दीर्घ जीवन के लिये (एनम्) इस [प्राणी] को (नेषत्) आप ले चलें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य श्रेष्ठजनों के अनुकरण से पुरुषार्थ के साथ विघ्नों को हटा कर सूर्य और चन्द्रमा के समान सदा नियम में चलकर यश प्राप्त करे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(ज्येष्ठघ्न्याम्) बहुलं छन्दसि। पा० ३।२।८८। इति ज्येष्ठ+हन् गतौ−क्विप्। ऋन्नेभ्यो ङीप्। पा० ४।१।५। इति ङीप्। अल्लोपोऽनः। पा० ६।४।१३४। इत्यकारलोपः। ज्येष्ठं वृद्धतमं प्रशस्यतमं वा ब्रह्म हन्ति प्राप्नोति यया तस्यां क्रियायाम् (जातः) प्रसिद्धः (विचृतोः) अ० २।८।१। अन्धकाराद् विमोचयित्रोः सूर्याचन्द्रमसोः (यमस्य) नियमस्य (मूलबर्हणात्) बर्ह हिंसायाम्−ल्युट्। मूलच्छेदनात् (परि) सर्वतः (पाहि) रक्ष (एनम्) जीवम् (अति) अतीत्य (एनम्) प्राणिनम् (नेषत्) नयतु भवान् (दुरितानि) विघ्नान् (विश्वा) सर्वाणि (दीर्घायुत्वाय) चिरकालजीवनाय (शतशारदाय) अ० १।३५।१। शतसम्वत्सरयुक्ताय ॥

०३ व्याघ्रेऽह्न्यजनिष्ट वीरो

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व्या॒घ्रेऽह्न्य॑जनिष्ट वी॒रो न॑क्षत्र॒जा जाय॑मानः सु॒वीरः॑।
स मा व॑धीत्पि॒तरं॒ वर्ध॑मानो॒ मा मा॒तरं॒ प्र मि॑नी॒ज्जनि॑त्रीम् ॥

०३ व्याघ्रेऽह्न्यजनिष्ट वीरो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On the tiger day hath been born the hero, asterism-born, being born
    rich in heroes; let him not, increasing, slay his father; let him not
    harm his mother that gave him birth.
Notes

We should expect at the beginning vyāghryé or vāíyāghre; the comm.
paraphrases the word with vyāghravat krūre. ⌊In d, read sá mā́
mātáram?
—As to minīt, see Gram. §726.⌋

Griffith

Born on the Tiger’s day was he, a hero, the Constellations’ child, born brave and manly. Let him not wound, when grown in strength, his father, nor disregard his mother, her who bare him.

पदपाठः

व्या॒घ्रे। अह्नि॑। अ॒ज॒नि॒ष्ट॒। वी॒रः। न॒क्ष॒त्र॒ऽजाः। जाय॑मानः। सु॒ऽवी॑रः। सः। मा। व॒धी॒त्। पि॒तर॑म्। वर्ध॑मानः। मा। मा॒तर॑म्। प्र। मि॒नी॒त्। जनि॑त्रीम्। ११०.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • दीर्घायु सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य बढ़ाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वीरः) यह वीर पुरुष (नक्षत्रजाः) नक्षत्र के समान गति, उपाय उत्पन्न करनेवाला (सुवीरः) महावीर (जायमानः) होता हुआ (व्याघ्रे) व्याघ्र के समान बलवान् (अति) दिन में [माता-पिता के बल के समय] (अजनिष्ट) उत्पन्न हुआ है। (सः) वह (वर्धमानः) बढ़ता हुआ (पितरम्) पिता को (मा वधीत्) न मारे और (जनित्रीम्) जन्म देनेवाली (मातरम्) माता को (मा प्र मिनीत्) कभी न सतावे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शूरवीर पुरुष सुशिक्षित बलवान् माता से जन्म पाकर उनको कष्ट से बचा कर सदा सुखी रख कर अपना सौभाग्य बढ़ावे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(व्याघ्रे) अ० ४।२।१। सिंहो व्याघ्र इति पूजायाम् व्याघ्रो व्याघ्रणाद् व्यादाय हन्तीति वा−निरु० ३।१८। व्याघ्रतुल्ये बलवति (अह्नि) दिने। काले (अजनिष्ट) जातोऽभूत् (वीरः) वीर्योपेतः (नक्षत्रजाः) जनसनखनक्रमगमो विट्। पा० ३।२।६७। इति नक्ष+जन जनने विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात् पा० ६।४।४१। इत्यात्वम्। नक्षत्रसमानां गतिमुपायं जनयति यः सः (जायमानः) उत्पद्यमानः (सुवीरः) अतिशूरः (सः) (मा वधीत्) मा हन्तु (पितरम्) पालकं जनकम् (वर्धमानः) वृद्धिं कुर्वन् (मातरम्) मानकर्त्रीम् (मा प्र मिनीत्) मीञ् हिंसायाम्, लिङि सिपि छान्दसं रूपम्। मा प्र मीनीयात् न दुःखयेत् (जनित्रीम्) जनयित्रीम्। जननीम् ॥