१०७ विश्वजित् ...{Loading}...
Whitney subject
- For protection: to various divinities.
VH anukramaṇī
विश्वजित्।
१-४ शन्तातिः। विश्वजित्। अनुष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[śaṁtāti.—caturṛcam. viśvajiddevatyam. ānuṣṭubham.]
Whitney
Comment
Found also in Pāipp. xix. Reckoned by Kāuś. (9. 2) to the bṛhachānti gaṇa; and used (50. 13), with vi. 1. 3-7, etc., in a rite for welfare. The metrical definition of the Anukr. is forced and bad; although the number of syllables is each time not far from 32 (29-33).
Translations
Translated: Griffith, i. 303.
०१ विश्वजित्त्रायमाणायै मा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
विश्व॑जित्त्रायमा॒णायै॑ मा॒ परि॑ देहि।
त्राय॑माणे द्वि॒पाच्च॒ सर्वं॑ नो॒ रक्ष॒ चतु॑ष्पा॒द्यच्च॑ नः॒ स्वम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
विश्व॑जित्त्रायमा॒णायै॑ मा॒ परि॑ देहि।
त्राय॑माणे द्वि॒पाच्च॒ सर्वं॑ नो॒ रक्ष॒ चतु॑ष्पा॒द्यच्च॑ नः॒ स्वम् ॥
०१ विश्वजित्त्रायमाणायै मा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O all-conqueror (viśvajít), commit me to rescuer; O rescuer,
protect both all our bipeds, and whatever quadrupeds are ours.
Notes
Ppp. begins trāyamāṇe sarvavide mām; it omits nas before rakṣa in
the refrain. All the beings addressed are doubtless female; the comm.
has nothing to say in explanation of them otherwise than that they are
divinities so named.
Griffith
Entrust me, Visvajit, to Trayamana. Guard, Trayamana, all our men, guard all our wealth of quadrupeds.
पदपाठः
विश्व॑ऽजित्। त्रा॒य॒मा॒णायै॑। मा॒। परि॑। दे॒हि॒। त्राय॑माणे। द्वि॒ऽपात्। च॒। सर्व॑म्। नः॒। रक्ष॑। चतुः॑ऽपात्। यत्। च॒। नः॒। स्वम्। १०७.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विश्वजित्
- शन्ताति
- अनुष्टुप्
- विश्वजित् सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब सुख की प्राप्ति के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वजित्) हे संसार के जीतनेवाले परमेश्वर ! (त्रायमाणायै) त्रायमाणा, रक्षा करनेवाली [शाला वा ओषधि विशेष] को (मा) मुझे (परि देहि) सौंप। (त्रायमाणे) हे रक्षा करनेवाली शाला ! (नः) हमारे (सर्वम्) सब (द्विपात्) दो पाये (च) और (चतुष्पात्) चौपाये (च) और (नः) हमारे (यत् स्वम्) सब कुछ धन की (रक्ष) रक्षा कर ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर के दिये सामर्थ्य से दृढ़स्थान बनाकर और त्रायमाणा आदि औषध का सेवन करके मनुष्यों, पशुओं और धन की सर्वथा रक्षा करे ॥१॥ इस मन्त्र में (शाला) शब्द की अनुवृत्ति गत मन्त्र ३ से आती है, और (त्रायमाणा) ओषधि विशेष भी है, जिसके नाम त्रायन्ती, बलभद्रिका आदि हैं ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(विश्वजित्) हे जगद्विजयिन् परमेश्वर (त्रायमाणायै) त्रैङ् पालने−शानच्। रक्षाशीलायै शालायै ओषधिविशेषायै वा (मा) माम् (परि देहि) समर्पय (त्रायमाणे) हे रक्षाशीले (द्विपात्) पादद्वयोपेतं मनुष्यादिकम् (सर्वम्) अखिलम् (नः) अस्माकम् (रक्ष) पालय (चतुष्पात्) गोमहिषादिकम् (यत्) यत्किञ्चित्सर्वम् (स्वम्) धनम् ॥
०२ त्रायमाणे विश्वजिते
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
त्राय॑माणे विश्व॒जिते॑ मा॒ परि॑ देहि।
विश्व॑जिद्द्वि॒पाच्च॒ सर्वं॑ नो॒ रक्ष॒ चतु॑ष्पा॒द्यच्च॑ नः॒ स्वम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्राय॑माणे विश्व॒जिते॑ मा॒ परि॑ देहि।
विश्व॑जिद्द्वि॒पाच्च॒ सर्वं॑ नो॒ रक्ष॒ चतु॑ष्पा॒द्यच्च॑ नः॒ स्वम् ॥
०२ त्रायमाणे विश्वजिते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O rescuer, commit me to all-conqueror; O all-conqueror, protect both
all etc. etc.
Notes
Ppp. has sarvavide instead of viśvajite. The comm. prefixes
viśvajit at the beginning.
Griffith
To Visvajit entrust me, Trayamana. O Visvajit, guard all our men, etc.
पदपाठः
त्राय॑माणे। वि॒श्व॒ऽजिते॑। मा॒। परि॑। दे॒हि॒। विश्व॑ऽजित्। द्वि॒ऽपात्। च॒। सर्व॑म्। नः॒। रक्ष॑। चतुः॑ऽपात्। यत्। च॒। नः॒। स्वम्। १०७.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विश्वजित्
- शन्ताति
- अनुष्टुप्
- विश्वजित् सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब सुख की प्राप्ति के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (त्रायमाणे) हे त्रायमाणा, रक्षा करनेवाली ! (विश्वजिते) संसार के जीतनेवाले परमेश्वर को (मा) मुझे (परिदेहि) सौंप। (विश्वजित्) हे संसार के जीतनेवाले परमेश्वर (नः) हमारे (सर्वम्) सब… म० १ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य उत्तम घर और औषध के सेवन से परमेश्वर की आज्ञा पालन करके सब पदार्थों की यथावत् रक्षा करें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−यथा व्याख्यातम्−म० १ ॥
०३ विश्वजित्कल्याण्यै मा
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विश्व॑जित्कल्या॒ण्यै᳡ मा॒ परि॑ देहि।
कल्या॑णि द्वि॒पाच्च॒ सर्वं॑ नो॒ रक्ष॒ चतु॑ष्पा॒द्यच्च॑ नः॒ स्वम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
विश्व॑जित्कल्या॒ण्यै᳡ मा॒ परि॑ देहि।
कल्या॑णि द्वि॒पाच्च॒ सर्वं॑ नो॒ रक्ष॒ चतु॑ष्पा॒द्यच्च॑ नः॒ स्वम् ॥
०३ विश्वजित्कल्याण्यै मा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O all-conqueror, commit me to beauty; O beauty, protect both all etc.
etc.
Notes
Ppp. has sarvavid viśvavid instead of viśvajit at the beginning.
Griffith
To Visvajit entrust me, O Kalyani. Guard, O Kalyani, all our men, etc.
पदपाठः
विश्व॑ऽजित्। क॒ल्या॒ण्यै᳡। मा॒। परि॑। दे॒हि॒। कल्या॑णि। द्वि॒ऽपात्। च॒। सर्व॑म्। नः॒। रक्ष॑। चतुः॑ऽपात्। यत्। च॒। नः॒। स्वम्। १०७.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विश्वजित्
- शन्ताति
- अनुष्टुप्
- विश्वजित् सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब सुख की प्राप्ति के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वजित्) हे संसार के जीतनेवाले परमेश्वर ! (कल्याण्यै) कल्याणी, मङ्गल करनेवाली [शाला अथवा ओषधि विशेष] को (मा) मुझे (परिदेहि) सौंप। (कल्याणि) हे कल्याणि (नः) हमारे (सर्वम्) सब…. म० १ ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र एक तथा दो के समान ॥३॥ (कल्याणी) ओषधि विशेष भी है, जिसका नाम मासपर्णी है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(कल्याण्यै) कल्यं शुभम् अण्यते शब्द्यते। अकर्तरि च कारके०। [पा० ३।३।१९। कल+अण शब्दे जीवने च−घञ्, ङीप्। हे मङ्गलकारिणि शाले मासपर्णि वा। अन्यद्गतम् ॥
०४ कल्याणि सर्वविदे
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
कल्या॑णि सर्व॒विदे॑ मा॒ परि॑ देहि।
सर्व॑विद्द्वि॒पाच्च॒ सर्वं॑ नो॒ रक्ष॒ चतु॑ष्पा॒द्यच्च॑ नः॒ स्वम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कल्या॑णि सर्व॒विदे॑ मा॒ परि॑ देहि।
सर्व॑विद्द्वि॒पाच्च॒ सर्वं॑ नो॒ रक्ष॒ चतु॑ष्पा॒द्यच्च॑ नः॒ स्वम् ॥
०४ कल्याणि सर्वविदे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O beauty, commit me to all-possessor; O all-possessor, protect both
all etc. etc.
Notes
Ppp. reads trāyamāṇāyāi instead of sarvavíde, and rakṣata instead
of no rakṣa. Sarvavíd might, of course, mean ‘all-knower.’
Griffith
To Sarvavid entrust me, O Kalyani. O Sarvavid, guard all our men, guard all our wealth of quadrupeds.
पदपाठः
कल्या॑णि। स॒र्व॒ऽविदे॑। मा॒। परि॑। दे॒हि॒। सर्व॑ऽवित्। द्वि॒ऽपात्। च॒। सर्व॑म्। नः॒। रक्ष॑। चतुः॑ऽपात्। यत्। च॒। नः॒। स्वम्। १०७.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विश्वजित्
- शन्ताति
- अनुष्टुप्
- विश्वजित् सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सब सुख की प्राप्ति के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कल्याणि) हे कल्याणी, मङ्गलकारिणी ! [शाला वा ओषधि विशेष] (सर्वविदे) सर्वज्ञ परमेश्वर को (मा) मुझे (परिदेहि) सौंप (सर्वविद्) हे सर्वज्ञ परमेश्वर ! (नः) हमारे (सर्वम्) सब (द्विपात्) दो पाये (च) और (चतुष्पात्) चौपाये (च) और (नः) हमारे (यत् स्वम्) सब कुछ धन की (रक्ष) रक्षा कर ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र एक और दो के समान ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(सर्वविदे) विद् ज्ञाने−क्विप्। सर्वज्ञाय परमेश्वराय। (सर्ववित्) हे सर्वज्ञ ॥अन्यत्पूर्ववत्॥