१०५ कासशमनम् ...{Loading}...
Whitney subject
- To get rid of cough.
VH anukramaṇī
कासशमनम्।
१-३ उन्मोचनः। कासा। अनुष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Unmocana—kāsādevatyam. ānuṣṭubham.]
Whitney
Comment
Not found in Pāipp. except 2 a, b in xix. Employed by Kāuś. (31. 27) in a remedial rite against cough and catarrh.
Translations
Translated: Ludwig, p. 510; Zimmer, p. 385; Griffith, i.302; Bloomfield, 8, 513.—Cf. Hillebrandt, Veda-chrestomathie, p. 50.
०१ यथा मनो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथा॒ मनो॑ मनस्के॒तैः प॑रा॒पत॑त्याशु॒मत्।
ए॒वा त्वं का॑से॒ प्र प॑त॒ मन॒सोऽनु॑ प्रवा॒य्य᳡म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॒ मनो॑ मनस्के॒तैः प॑रा॒पत॑त्याशु॒मत्।
ए॒वा त्वं का॑से॒ प्र प॑त॒ मन॒सोऽनु॑ प्रवा॒य्य᳡म् ॥
०१ यथा मनो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As the mind with mind-aims flies away swiftly, so do thou, O cough,
fly forth, after the forth-driving (?) of the mind.
Notes
The comm. paraphrases manasketāis with manasā buddhivṛttyā
ketyamānāir jñāyamānāir dūrasthāir viṣayāiḥ; and the obscure
pravāyyam with pragantavyam avadhim.
2 As the well-sharpened arrow flies away swiftly, so do thou, O cough,
fly forth, after the stretch (?) of the earth.
The comm. explains saṁvat by saṁhatapradeśa, which at least shows
his perplexity.
Griffith
Rapidly as the fancy flies forth with conceptions of the mind. So following the fancy’s flight, O Cough, flee rapidly away.
पदपाठः
यथा॑। मनः॑। म॒नः॒ऽके॒तैः। प॒रा॒ऽपत॑ति। आ॒शु॒ऽमत्। ए॒व। त्वम्। का॒से॒। प्र। प॒त॒। मन॑सः। अनु॑। प्र॒ऽवा॒य्य᳡म्। १०५.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कासा
- उन्मोचन
- अनुष्टुप्
- कासशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
महिमा पाने के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (मनः) मन (मनस्केतैः) मन के विषयों के साथ (आशुमत्) शीघ्रता से (परापतति) आगे बढ़ता जाता है। (एव) वैसे ही [हे मनुष्य !] (त्वम्) तू (कासे) ज्ञान वा उपाय के बीच (मनसः) मन के (प्रवाय्यम् अनु) प्राप्ति योग्य देश की ओर (प्र पत) आगे बढ़ ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य मन की कुवृत्तियों को रोक कर ज्ञानपूर्वक शुभकर्म में शीघ्र लगावे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(यथा) येन प्रकारेण (मनः) मननसाधकमिन्द्रियम् (मनस्केतैः) कित ज्ञाने−घञ्। अन्तःकरणस्य ज्ञायमानैर्विषयैः सह (परापतति) आभिमुख्येन गच्छति (आशुमत्) यथा तथा। शीघ्रम् (एव) एवम् (त्वम्) हे मनुष्य त्वम् (कासे) कस गतौ−घञ्। ज्ञाने। उपाये (मनसः) अन्तःकरणस्य (अनु) अनुलक्ष्य (प्रवाय्यम्) भय्यप्रवय्ये च च्छन्दसि। पा० ६।१।८३। इति प्र+वा गतौ−यत्, अयादेशश्च, छान्दसो दीर्घः। प्रवय्यं प्रगन्तव्यं देशम्। अवधिम् ॥
०२ यथा बाणः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथा॒ बाणः॒ सुसं॑शितः परा॒पत॑त्याशु॒मत्।
ए॒वा त्वं का॑से॒ प्र प॑त पृथि॒व्या अनु॑ सं॒वत॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॒ बाणः॒ सुसं॑शितः परा॒पत॑त्याशु॒मत्।
ए॒वा त्वं का॑से॒ प्र प॑त पृथि॒व्या अनु॑ सं॒वत॑म् ॥
०२ यथा बाणः ...{Loading}...
Whitney
यथा॒ बाणः॒ सुसं॑शितः परा॒पत॑त्याशु॒मत्।
ए॒वा त्वं कासे॒ प्र प॑त पृथि॒व्या अनु॑ सं॒वत॑म्॥२॥
Griffith
Rapidly as an arrow flies away with keenly-sharpened point, So swiftly flee away, O Cough, over the region of the earth!
पदपाठः
यथा॑। बाणः॑। सुऽसं॑शितः। प॒रा॒ऽपत॑ति। आ॒शु॒ऽमत्। ए॒व। त्वम्। का॒से॒। प्र। प॒त॒। पृ॒थि॒व्याः। अनु॑। स॒म्ऽवत॑म्। १०५.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कासा
- उन्मोचन
- अनुष्टुप्
- कासशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
महिमा पाने के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (सुसंशितः) यथाविधि तीक्ष्ण किया हुआ (बाणः) बाण वा शब्द (आशुमत्) वेग से (परापतति) आगे बढ़ा जाता है। (एव) वैसे ही [हे मनुष्य !] (त्वम्) तू (कासे) ज्ञान वा उपाय के बीच (पृथिव्याः) पृथिवी के (संवतम् अनु) यथावत् सेवनीय देश की ओर (प्रपत) आगे बढ़ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार यथावत् सन्धान किया हुआ बाण और ठीक-ठीक बोला गया शब्द लक्ष्य पर शीघ्र पहुँचता है, वैसे ही मनुष्य यथावत् ज्ञान और उपाय से पृथिवी पर अभीष्ट पदार्थ को शीघ्र प्राप्त करे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(बाणः) अकर्तरि च कारके संज्ञायाम्। पा० ३।३।१९। इति वण शब्दे−घञ्। वाणो वाक्−निघ० १।११। शरः। शब्दः (सुसंशितः) शो तनूकरणे−क्त। सुष्ठु सम्यक् तीक्ष्णीकृतः (पृथिव्याः) भूम्याः (संवतम्) अ० ६।२९।३। सम्+वन संभक्तौ−क्विप्, नकारलोपे तुक्। सम्यग् वननीयं सेवनीयं देशम्। अन्यत् पूर्ववत्−म० १ ॥
०३ यथा सूर्यस्य
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यथा॒ सूर्य॑स्य र॒श्मयः॑ परा॒पत॑न्त्याशु॒मत्।
ए॒वा त्वं का॑से॒ प्र प॑त समु॒द्रस्यानु॑ विक्ष॒रम् ॥
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मूलम् (VS)
यथा॒ सूर्य॑स्य र॒श्मयः॑ परा॒पत॑न्त्याशु॒मत्।
ए॒वा त्वं का॑से॒ प्र प॑त समु॒द्रस्यानु॑ विक्ष॒रम् ॥
०३ यथा सूर्यस्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As the sun’s rays fly away swiftly, so do thou, O cough, fly forth,
after the outflow of the ocean.
Notes
In all these verses, all the authorities anomalously accent the
vocative, kā́se; our edition makes the called-for emendation to kāse;
SPP. reads kā́se.
Griffith
Rapidly as the beams of light, the rays of Surya, fly away, So, Cough! fly rapidly away over the current of the sea!
पदपाठः
यथा॑। सूर्य॑स्य। र॒श्मयः॑। प॒रा॒ऽपत॑न्ति। आ॒शु॒ऽमत्। ए॒व। त्वम्। का॒से॒। प्र। प॒त॒। स॒मु॒द्रस्य॑। अनु॑। वि॒ऽक्ष॒रम्। १०५.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कासा
- उन्मोचन
- अनुष्टुप्
- कासशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
महिमा पाने के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (सूर्यस्य) सूर्य की (रश्मयः) किरणें (आशुमत्) शीघ्र (परापतन्ति) आगे बढ़ती जाती हैं। (एव) वैसे ही [हे मनुष्य !] (त्वम्) तू (कासे) ज्ञान वा उपाय के बीच (समुद्रस्य) अन्तरिक्ष के (विक्षरम् अनु) प्रवाहस्थान [मेघमण्डल आदि] की ओर (प्रपत) आगे बढ़ ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सूर्य की किरणों के समान बेरोक शीघ्रगामी होकर विज्ञानपूर्वक पुष्पक विमान आदि द्वारा अन्तरिक्ष में प्रवेश करे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(सूर्यस्य) भूचन्द्रादिलोकप्रेरकस्यादित्यस्य (रश्मयः) अ० २।३२।१। व्यापनाः किरणाः (समुद्रस्य) अ० १।३।८। अन्तरिक्षस्य−निघ० १।३। (विक्षरम्) विविधं क्षरणं प्रवाहो यस्मिन् तं देशं मेघमण्डलादिलोकम्। अन्यत्पूर्ववत्−म० १ ॥