०९९ संग्रामजयः ...{Loading}...
Whitney subject
- For safety: to Indra.
VH anukramaṇī
संग्रामजयः।
१-३ अथर्वा। इन्द्रः, सोमः, सविता च। अनुष्टुप्, ३ भुरिग्बृहती (सौम्या सावित्री)।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan.—āindram: 3. sāumyā sāvitrī ca. ānuṣṭubham: 3. bhurig bṛhatī.]
Whitney
Comment
[Partly prose, “vs.” 3.⌋ Found also in Pāipp. xix. No use of the hymn is made by Kāuś. except in connection with its two predecessors, as explained under hymn 97. But Vāit. has it in the agniṣṭoma, as whispered stotra (18. 16).
Translations
Translated: Grill, 18, 168; Griffith, i. 299; Bloomfield, 123, 510.
०१ अभि त्वेन्द्र
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒भि त्वे॑न्द्र॒ वरि॑मतः पु॒रा त्वां॑हूर॒णाद्धु॑वे।
ह्वया॑म्यु॒ग्रं चे॒त्तारं॑ पु॒रुणा॑मानमेक॒जम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒भि त्वे॑न्द्र॒ वरि॑मतः पु॒रा त्वां॑हूर॒णाद्धु॑वे।
ह्वया॑म्यु॒ग्रं चे॒त्तारं॑ पु॒रुणा॑मानमेक॒जम् ॥
०१ अभि त्वेन्द्र ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Unto thee, O Indra, on account of width, thee against (purā́)
distress I call; I call on the stern corrector, the many-named,
sole-born.
Notes
In spite of its wrong accent (cf. aṇimatás, sthavimatás*) várimatas
is probably an adverb in tas. The comm. interprets it, doubtless
correctly, “for the sake of width” (urutvād dhetoḥ): i.e., of free
space, opposed to distress or narrowness. ⌊The derivatives of aṅh and
uru are in frequent antithesis, as, e.g., at RV. v. 24. 4.⌋
‘Sole-born,’ i.e. ‘unique.’ Ppp. ends b with aṅhúraṇebhyaḥ. *⌊MS.
iii. 10. 4, p. 135, 1. 4.⌋
Griffith
Indra, before affliction comes, I call thee from the wide expanse. The mighty guardian, born alone, wearer of many names, I call.
पदपाठः
अ॒भि। त्वा॒। इ॒न्द्र॒। वरि॑मतः। पु॒रा। त्वा॒। अं॒हू॒र॒णात्। हु॒वे॒। ह्वया॑मि। उ॒ग्रम्। चे॒त्तार॑म्। पु॒रुऽना॑मानम्। ए॒क॒ऽजम्। ९९.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वनस्पतिः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- कल्याण के लिए यत्न
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संग्राम में जय का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे संपूर्ण ऐश्वर्यवाले इन्द्र जगदीश्वर ! (त्वा त्वाम्) तुझको, तुझको (वरिमतः) तेरे विस्तार के कारण (अंहूरणात्) पापवाले कर्म से (पुरा) पहिले (अभि) सब ओर से (हुवे) मैं बुलाता हूँ। (उग्रम्) तेजस्वी, (चेत्तारम्) सत्य और असत्य के जाननेवाले, (पुरुनामानम्) अनेक उत्तम नामवाले, (एकजम्) अकेले उत्पन्न [अद्वितीय, तुझ प्रभु] को (ह्वयामि) मैं पुकारता हूँ ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित है कि उस जगदीश्वर को सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान् जान कर पाप कर्म को छोड़ कर शुभ कर्म करते रहें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(अभि) अभितः (त्वा) त्वाम् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् जगदीश्वर (वरिमतः) अ० ४।५।२। उरुत्वात्। विस्तारहेतोः (पुरा) पूर्वम् (त्वा) (अंहूरणात्) खर्जिपिञ्जादिभ्य ऊरोलचौ। उ० ४।९०। इति अहि गतौ−ऊर−प्रत्ययः, इदित्त्वान्नुम्। पामादिभ्यो नः। वा० पा० ५।२।१००। इति मत्वर्थे नः। आङ्पूर्वाद्धन्तेर्वा रूपमुन्नेयम्। अंहुरोंऽहस्वान्नहूरणमित्यप्यस्य भवति−निरु० ६।२७। अंहस्वतः पापयुक्तात् कर्मणः (हुवे) ह्वयामि (ह्वयामि) (उग्रम्) तेजस्विनम् (चेत्तारम्) सत्यासत्ययोर्विज्ञातारम् (पुरुनामानम्) पुरुभिर्बहुभिः प्रशस्तैर्नामधेयैर्युक्तम् (एकजम्) एकं जातम्। अद्वितीयम् ॥
०२ यो अद्य
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यो अ॒द्य सेन्यो॑ व॒धो जिघां॑सन्न उ॒दीर॑ते।
इन्द्र॑स्य॒ तत्र॑ बा॒हू स॑म॒न्तं परि॑ दद्मः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यो अ॒द्य सेन्यो॑ व॒धो जिघां॑सन्न उ॒दीर॑ते।
इन्द्र॑स्य॒ तत्र॑ बा॒हू स॑म॒न्तं परि॑ दद्मः ॥
०२ यो अद्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The hostile (? sénya) weapon that goes up today, desiring to slay
us—in that case we put completely about us Indra’s two arms.
Notes
Ppp. reads at the beginning yo ‘dya, and at the end pari dadmahe,
which rectifies the meter of d. The pada mss. strangely read
jighāṅsam in b; both editions make the necessary emendation to
-san, which the comm. also has. The comm. further has the better
reading dadhmas, as have three of our mss. (Bp.M.T.); and this ⌊which,
in connection with the Ppp. reading, suggests the emendation dadhmahe⌋
is adopted in our text, though not in SPP’s. The metrical irregularity
of the verse should not have been overlooked by the Anukr. ⌊Cf. i. 20. 2
a, b.⌋
Griffith
Whatever deadly missile launched to-day flies forth to slaughter us. We take both arms of Indra to encompass us on every side.
पदपाठः
यः। अ॒द्य। सेन्यः॑। व॒धः। जिघां॑सन्। नः॒। उ॒त्ऽईर॑ते। इन्द्र॑स्य। तत्र॑। बा॒हू इति॑। स॒म॒न्तम्। परि॑। द॒द्मः॒। ९९.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सोमः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- कल्याण के लिए यत्न
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संग्राम में जय का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अद्य) आज (यः) (सेन्यः) शत्रु सेना सम्बन्धी (वधः) शस्त्रसमूह (जिघांसन्) मारने की इच्छा करता हुआ (नः) हम पर (उदीरते) चढ़ा आता है। (तत्र) उसमें (इन्द्रस्य) महाप्रतापी इन्द्र परमात्मा के (बाहू) भुजाओं के तुल्य बल पराक्रम को (समन्तः) सब प्रकार (परिदद्मः) हम ग्रहण करते हैं ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य कठिन समय में परमात्मा का आश्रय लेकर शत्रुओं का सामना करके दुःख से निवृत्त होवें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(यः) (अद्य) वर्तमाने दिने (सेन्यः) सेना यत्। शत्रुसेनासंबन्धी (वधः) हननसाधकः शस्त्रसमूहः (जिघांसन्) हन्तुमिच्छन् (नः) अस्मान् (उदीरते) उद्गच्छति (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः परमात्मनः (तत्र) तस्मिन् कर्मणि (बाहू) भुजवद्बलपराक्रमौ (समन्तम्) सर्वतः (परिदद्मः) अङ्गीकुर्मः। आश्रयामः ॥
०३ परि दद्म
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
परि॑ दद्म॒ इन्द्र॑स्य बा॒हू स॑म॒न्तं त्रा॒तुस्त्राय॑तां नः।
देव॑ सवितः॒ सोम॑ राजन्सु॒मन॑सं मा कृणु स्व॒स्तये॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
परि॑ दद्म॒ इन्द्र॑स्य बा॒हू स॑म॒न्तं त्रा॒तुस्त्राय॑तां नः।
देव॑ सवितः॒ सोम॑ राजन्सु॒मन॑सं मा कृणु स्व॒स्तये॑ ॥
०३ परि दद्म ...{Loading}...
Whitney
Translation
- We put completely about the two arms of Indra the savior; let him
save us. God Savitar! king Soma! make thou me well-willing, in order to
well-being.
Notes
In this verse, only our Bp.M. read dadhmas, but it is adopted in our
text. The comm. again gives it. Ppp. has dadmān; and in d it
reads, for kṛṇu, kṛṇutam, which is preferable for sense, though it
makes the verse still less metrical. The verse is bṛhatī only by
count.
Griffith
We draw about us both the arms of Indra, our deliverer. May they protect us thoroughly. O Savitar, thou God, O royal Soma, make thou me pious- minded for my welfare.
पदपाठः
परि॑। द॒द्मः॒। इन्द्र॑स्य। बा॒हू इति॑। स॒म॒न्तम्। त्रा॒तुः। त्राय॑ताम्। नः॒। देव॑। स॒वि॒तः॒। सोम॑। रा॒ज॒न्। सु॒ऽमन॑सम्। मा॒। कृ॒णु॒। स्व॒स्तये॑। ९९.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सविता
- अथर्वा
- भुरिग्बृहती
- कल्याण के लिए यत्न
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संग्राम में जय का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (त्रातुः) रक्षा करनेवाले (इन्द्रस्य) महाप्रतापी इन्द्र परमात्मा के (बाहू) भुजाओं के तुल्य बल पराक्रम को (समन्तम्) सब प्रकार (परिदद्मः) हम ग्रहण करते हैं, यह (नः) हमारी (त्रायताम्) रक्षा करे। (देव) प्रकाश स्वरूप, (सवितः) सर्वप्रेरक (सोम) संपूर्ण ऐश्वर्ययुक्त (राजन्) राजन् जगदीश्वर ! (स्वस्तये) कल्याण पाने के लिये (मा) मुझे (सुमनसम्) उत्तम विचारवाला (कुरु) कर ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमात्मा की भुजाओं में शरण लेकर शुद्ध अन्तःकरण से पुरुषार्थ करके सुखी रहे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(त्रातुः) रक्षकस्य (त्रायताम्) स रक्षतु (नः) अस्मान् (देव) हे प्रकाशस्वरूप (सवितः) सर्वप्रेरक (सोम) परमैश्वर्यवन् (राजन्) सर्वनियामक (सुमनसम्) शोभनमननयुक्तम् (मा) माम् (कृणु) कुरु (स्वस्तये) क्षेमाय ॥