०९७ अभिभूर्वीरः

०९७ अभिभूर्वीरः ...{Loading}...

Whitney subject
  1. For victory.
VH anukramaṇī

अभिभूर्वीरः
-३ अथर्वा। १,३ देवाः, २ मित्रावरुणौ। १ त्रिष्टुप्, २ जगती, ३ भुरिक्।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan.—māitrāvaruṇam. trāiṣṭubham: 2. jagatī; 3. bhurij.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xix. The three hymns 97-99 are used together in a battle rite, for victory, with vi. 65-67 and others, by Kāuś. (14. 7); and they are reckoned to the aparājita gaṇa (note to 14. 7), and noted by the comm. as therefore intended at 139. 7; they are again specifically prescribed in the indramahotsava (140. 10): a full homa is offered, with the king joining in the act.

Translations

Translated: Ludwig, p. 460; Griffith, i. 298; Bloomfield, 122, 510.

०१ अभिभूर्यज्ञो अभिभूरग्निरभिभूः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॑भि॒भूर्य॒ज्ञो अ॑भि॒भूर॒ग्निर॑भि॒भूः सोमो॑ अभि॒भूरिन्द्रः॑।
अ॒भ्य१॒॑हं वि॑श्वाः॒ पृत॑ना॒ यथासा॑न्ये॒वा वि॑धेमा॒ग्निहो॑त्रा इ॒दं ह॒विः ॥

०१ अभिभूर्यज्ञो अभिभूरग्निरभिभूः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. An overcomer (abhibhū́) [is] the sacrifice, an overcomer Agni, an
    overcomer Soma, an overcomer Indra; that I may overcome (abhi-as) all
    fighters, so would we, Agni-offerers, pay worship with this oblation.
Notes

The comm. paraphrases agnihotrās by agnāu juhvataḥ. ⌊The Anukr.
balances the deficiencies of a, b by the redundancies of c, d.⌋

Griffith

The sacrifice is victor, Agni victor, victorious is Soma, Indra conquers: So will we bring oblation unto Agni, this sacrifice that I may win all battles.

पदपाठः

अ॒भि॒ऽभूः। य॒ज्ञः। अ॒भिः॒ऽभूः। अ॒ग्निः। अ॒भि॒ऽभूः। सोमः॑। अ॒भि॒ऽभूः। इन्द्रः॑। अ॒भि। अहम्। विश्वाः॑। पृत॑नाः। यथा॑। असा॑नि। ए॒व। वि॒धे॒म॒। अ॒ग्निऽहो॑त्राः। इ॒दम्। ह॒विः। ९७.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • देवाः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा की उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जिस प्रकार से (अहम्) मैं (अभिभूः) दुष्टों का तिरस्कार करनेवाला (यज्ञः) पूजनीय, (अभिभूः) शत्रुओं का जीतनेवाला (अग्निः) अग्निसमान तेजस्वी, (अभिभूः) वैरियों को वश में करनेवाला (सोमः) चन्द्रसमान सुख देनेवाला और (अभिभूः) दुराचारियों को हरानेवाला (इन्द्रः) महाप्रतापी होकर (विश्वाः) सब (पृतनाः) शत्रुसेनाओं को (अभि असानि) हरा दूँ। (एव) वैसे ही (अग्निहोत्रा) अग्नि [परमेश्वर, सूर्य बिजुली और आग की विद्या] के लिये वाणीवाले हम लोग (इदम्) यह (हविः) देने लेने योग्य कर्म (विधेम) करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य आत्मिक, शारीरिक और सामाजिक बल बढ़ाकर शत्रुओं का नाश करके अपनी उन्नति करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(अभिभूः) दुष्टानां तिरस्कर्त्ता (यज्ञः) पूजनीयः (अभिभूः) शत्रुजेता (अग्निः) अग्निवत्तेजस्वी (अभिभूः) वैरिणां वशयिता (सोमः) चन्द्रवदाह्लादकः (अभिभूः) दुराचारिणामभिभावयिता (इन्द्रः) महाप्रतापी (अहम्) जयकामः (विश्वाः) सर्वाः (पृतनाः) अ० ३।२१।३। शात्रवीः सेनाः (यथा) येन प्रकारेण (अभि असानि) अभिभवानि (एव) एवम् (विधेम) विध विधाने। कुर्याम (अग्निहोत्राः) हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। इति हु दानादानादनेषु−त्रन्, टाप्। होत्रा वाक्−निघ० १।११। अग्नये परमेश्वरस्य सूर्यविद्वत्पावकस्य वा बोधाय होत्रा वाणी येषां ते तथाभूताः (इदम्) अनुष्ठीयमानम् (हविः) दातव्यग्राह्यकर्म ॥

०२ स्वधास्तु मित्रावरुणा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स्व॒धास्तु॑ मित्रावरुणा विपश्चिता प्र॒जाव॑त्क्ष॒त्रं मधु॑ने॒ह पि॑न्वतम्।
बाधे॑थां दू॒रं निरृ॑तिं परा॒चैः कृ॒तं चि॒देनः॒ प्र मु॑मुक्तम॒स्मत् ॥

०२ स्वधास्तु मित्रावरुणा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Be there svadhā́, O Mitra-and-Varuṇa, inspired ones; fatten (pinv)
    ye here with honey our dominion, rich in progeny; drive off perdition
    far away; put away from us any committed sin.
Notes

Ppp. has, in a, b, prajāpatis for vip. praj.; in c, dveṣas
for dūram; and, for d, asmāi kṣatraṁ vacā dhattam ojaḥ. The
second half-verse is RV. i. 24. 9 c, d, also found in TS. (1. 4.
45¹) and MS. (i. 3. 39); all have bādhasva and mumugdhi, 2d sing.;
for dūrám in c, RV. has dūré, TS. (like Ppp.) dvéṣas, and MS.
omits it, prefixing instead āré to bādhasva. The comm. takes
svadhā in a as havirlakṣaṇam annam. Only the first half-verse is
jagatī.

Griffith

स्व॒धास्तु॑ मित्रावरुणा विपश्चिता प्र॒जाव॑त् क्ष॒त्रं मधु॑ने॒ह पि॑न्वतम्।
बाधे॑थां दू॒रं निरृ॑तिं परा॒चैः कृ॒तं चि॒देनः॒ प्र मु॑मुक्तम॒स्मत्॥२॥

पदपाठः

स्व॒धा। अ॒स्तु॒। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। वि॒पः॒ऽचि॒ता॒। प्र॒जाऽव॑त्। क्ष॒त्रम्। मधु॑ना। इ॒ह। पि॒न्व॒त॒म्। बाधे॑थाम्। दू॒रम्। निःऽऋ॑तिम्। प॒रा॒चैः। कृ॒तम्। चि॒त्। एनः॑। प्र। मु॒मु॒क्त॒म्। अ॒स्मत्। ९७.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मित्रावरुणौ
  • अथर्वा
  • जगती
  • शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा की उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विपश्चिता) हे बड़े बुद्धिमान् (मित्रावरुणा) प्राण और अपान के समान प्रिय माता-पिता ! [हम में] (स्वधा) आत्मधारण शक्ति (अस्तु) होवे, (प्रजावत्) उत्तम प्रजाओं से युक्त (क्षत्रम्) राज्य को (मधुना) मधुविद्या से [ईश्वरज्ञान से] (इह) यहाँ पर (पिन्वतम्) सींचो। (निर्ऋतिम्) अलक्ष्मी को (पराचैः) अधोमुख करके (दूरम्) दूर (बाधेथाम्) हटाओ और [इसके] (कृतम्) किये हुए (एनः) दुःख को (चित्) भी (अस्मत्) हम से (प्र) अच्छे प्रकार (मुमुक्तम्) छुड़ाओ ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस प्रकार सन्तान माता-पिता से उत्तम शिक्षा पाकर सुख भोगते हैं, इसी प्रकार मनुष्य उत्तम ज्ञानियों के सत्सङ्ग से क्लेशों का नाश करके सुखी होवें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(स्वधा) अ० ६।९६।३। आत्मधारणशक्तिः (अस्तु) भवतु (मित्रावरुणा) प्राणापानवत् प्रियमातापितरौ (विपश्चिता) अ० ६।५२।३। मेधाविनौ (प्रजावत्) उत्तमप्रजायुक्तम् (क्षत्रम्) राज्यम् (मधुना) मधुविद्यया। ईश्वरज्ञानेन (इह) अत्र लोके (पिन्वतम्) पिवि सेचने, इदित्वान्नुम्। सिञ्चतम्। प्रवर्धयतम् (बाधेथाम्) निवर्त्तयतम् (दूरम्) (निर्ऋतिम्) अ० १।३१।२। अलक्ष्मीम् कृच्छ्रापत्तिम्−निरु० २।७। (पराचैः) अ० २।१०।५। पराङ्मुखीं कृत्वा (कृतम्) निर्ऋत्या निष्पादितम् (चित्) अपि (एनः) दुःखम् (प्र) प्रकर्षेण (मुमुक्तम्) छान्दसः शपः श्लुः। मोचयतम् (अस्मत्) धार्मिकेभ्यः सकाशात् ॥

०३ इमं वीरमनु

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इ॒मं वी॒रमनु॑ हर्षध्वमु॒ग्रमिन्द्रं॑ सखायो॒ अनु॒ सं र॑भध्वम्।
ग्रा॑म॒जितं॑ गो॒जितं॒ वज्र॑बाहुं॒ जय॑न्त॒मज्म॑ प्रमृ॒णन्त॒मोज॑सा ॥

०३ इमं वीरमनु ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Be ye excited after this formidable hero; take hold, O companions,
    after Indra, the troop-conqueror, kine-conqueror, thunderbolt-armed,
    conquering in the course (ájman), slaughtering with force.
Notes

This verse appears again as xix. 13. 6, in the midst of the hymn to
which it belongs, and which is found also in various other texts. The
verse corresponds to RV. x. 103. 6, SV. ii. 1204, VS. xvii. 38, and one
in TS. iv. 6. 4², MS. ii. 10. 4. They all reverse the order of the two
half-verses, begin our c with gotrabhídaṁ govídam, and have,
instead of our a, imáṁ sajātā ánu vīrayadhvam; TS. differs from
the rest by reading ‘nu for anu in our b. The comm. explains
ájma by ajanaśīlaṁ kṣepaṇaśīlaṁ śatrubalam. ⌊The word “in” were
better omitted from the translation of d.⌋

Griffith

In this strong hero be ye glad and joyful: cleave ye to him even as ye cleave to Indra. Victorious, kine-winner, thunder-wielder, who quells a host and with his might destroys it.

पदपाठः

इ॒मम्। वी॒रम्। अनु॑। ह॒र्ष॒ध्व॒म्। उ॒ग्रम्। इन्द्र॑म्। स॒खा॒यः॒। अनु॑। सम्। र॒भ॒ध्व॒म्। ग्रा॒म॒ऽजित॑म्। गो॒ऽजित॑म्। वज्र॑ऽबाहुम्। जय॑न्तम्। अज्म॑। प्र॒ऽमृ॒णन्त॑म्। ओज॑सा। ९७.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • देवाः
  • अथर्वा
  • भुरिक्त्रिष्टुप्
  • शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा की उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सखायः) हे परस्पर सहायक मित्रो ! (इमम्) इस (वीरम् अनु) वीर सेनापति के साथ (हर्षध्वम्) हर्ष करो, (ओजसा) अपने शरीर, बुद्धि और सेना बल से (ग्रामजितम्) शत्रुओं के समूह को जीतनेवाले, (गोजितम्) उनकी भूमि को जीतनेवाले (वज्रबाहुम्) अपनी भुजाओं में शस्त्र रखनेवाले, (अज्म) संग्राम को (जयन्तम्) विजय करनेवाले (प्रमृणन्तम्) वैरियों को मार डालनेवाले (उग्रम्) तेजस्वीः, (इन्द्रम् अनु) महा प्रतापी सेनाध्यक्ष के साथ होकर (सम्) अच्छे प्रकार (रभध्वम्) युद्ध आरम्भ करो ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सेनापति और सैनिक लोग परस्पर सहायक होकर शत्रुओं का राज्य आदि पाकर प्रजापालन करके सदा सुखी रहें ॥३॥ यह मन्त्र ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, राजप्रजाधर्म विषय में पृष्ठ २२४ पर व्याख्यात है, और कुछ भेद से यजुर्वेद में है−अ० १७ म० ३८ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(इमम्) (वीरम्) शूरसेनापतिम् (अनु) अनुसृत्य (हर्षध्वम्) हर्षं प्राप्नुत (उग्रम्) तेजस्विनम् (इन्द्रम्) महाप्रतापिनं सेनाध्यक्षम् (अनु) अनुगत्य (सम्) सम्यक् (रभध्वम्) युद्धारम्भं कुरुत (ग्रामजितम्) जि−क्विप्। शत्रुसमूहजेतारम् (गोजितम्) शत्रुभूमिविजयिनम् (वज्रबाहुम्) वज्राः शस्त्राणि बाह्वोर्यस्य तं (जयन्तम्) तॄभृवहिवसि०। उ० ३।१२८। जि जये−झच्। विजयिनम् (अज्म) सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। अज गतिक्षेपणयोः मनिन्। संग्रामम्−निघ० २।१७। (प्रमृणन्तम्) प्रकर्षेण शत्रुं मारयन्तम् (ओजसा) स्वस्य शरीरबुद्धिसेनाबलेन ॥