०९४ सांमनस्यम् ...{Loading}...
Whitney subject
- For harmony.
VH anukramaṇī
सांमनस्यम्।
१-३ अथर्वाङ्गिराः। सरस्वती। अनुष्टुप्, २ विराड्-जगती।
Whitney anukramaṇī
[Atharvān̄giras.—sārasvatyam. ānuṣṭubham. 2. virāḍ jagatī.]
Whitney
Comment
The first verse (= iii. 8. 5; the four preceding verses of iii. 8 occurred elsewhere) is found in Pāipp. xix. The comm. regards it as intended by Kāuś. 12. 5, in a rite for harmony, as, in almost identical terms, he had above (under iii. 8) declared iii. 8. 5, 6 to be intended.
Translations
Translated: Ludwig, p. 514; Griffith, i. 296; Bloomfield, 138, 508.
०१ सं वो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
सं वो॒ मनां॑सि॒ सं व्र॒ता समाकू॑तीर्नमामसि।
अ॒मी ये विव्र॑ता॒ स्थन॒ तान्वः॒ सं न॑मयामसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सं वो॒ मनां॑सि॒ सं व्र॒ता समाकू॑तीर्नमामसि।
अ॒मी ये विव्र॑ता॒ स्थन॒ तान्वः॒ सं न॑मयामसि ॥
०१ सं वो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- We bend together your minds, together your courses, together your
designs; ye yonder who are of discordant courses, we make you bend
[them] together here.
Notes
Ppp. in d apparently saṁ jñapayāmasi.
Griffith
We bend your minds in union, bend in harmony your hopes and plans: You there, who turn to sundered ways, we bend and bow in unison.
पदपाठः
सम्। वः॒। मनां॑सि॒। सम्। व्र॒ता। सम्। आऽकू॑तीः। न॒मा॒म॒सि॒। अ॒मी इति॑। ये। विऽव्र॑ताः। स्थन॑। तान्। वः॒। सम्। न॒म॒या॒म॒सि॒। ९४.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सरस्वती
- अथर्वाङ्गिरा
- अनुष्टुप्
- सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शान्ति करने के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्यो !] (वः) तुम्हारे (मनांसि) मनों को (सम्) ठीक रीति से, (व्रता=व्रतानि) कर्मों को (सम्) ठीक रीति से (आकूतीः) संकल्प को (सम्) ठीक रीति से (नमामसि=०−मः) हम झुकते हैं। (अमी ये) यह जो तुम (विव्रताः) विरुद्धकर्मी (स्थन) हो, (तान् वः) उन तुमको (सम्) ठीक रीति से (नमयामसि=०−मः) हम झुकाते हैं ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - प्रधान पुरुष सब के उत्तम विचारों, उत्तम कर्मों और उत्तम मनोरथों का माने और धर्मपथ में विरुद्ध मतवालों को भी सहमत कर लेवे ॥१॥ यह मन्त्र आ चुका है−अ० ३।८।५ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−पूर्ववद् व्याख्येयः−अ० ३।८।५ ॥
०२ अहं गृभ्णामि
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अ॒हं गृ॑भ्णामि॒ मन॑सा॒ मनां॑सि॒ मम॑ चि॒त्तमनु॑ चि॒त्तेभि॒रेत॑।
मम॒ वशे॑षु॒ हृद॑यानि वः कृणोमि॒ मम॑ या॒तमनु॑वर्त्मान॒ एत॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒हं गृ॑भ्णामि॒ मन॑सा॒ मनां॑सि॒ मम॑ चि॒त्तमनु॑ चि॒त्तेभि॒रेत॑।
मम॒ वशे॑षु॒ हृद॑यानि वः कृणोमि॒ मम॑ या॒तमनु॑वर्त्मान॒ एत॑ ॥
०२ अहं गृभ्णामि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- I seize [your] minds with [my] mind; come after my intent with
[your] intents; I put your hearts in my control; come with [your]
tracks following my motion.
Notes
These two verses are a repetition of iii. 8. 5, 6. In our text, -rete
at the end of b is a misprint for reta. ⌊As to the meter, see note
to iii. 8. 6.⌋
Griffith
I with my spirit make your spirits captive: these with their thoughts follow my thought and wishes. I make your hearts submissive to mine order closely attending go where I precede you.
पदपाठः
अ॒हम्। गृ॒भ्णा॒मि॒। मन॑सा। मनां॑सि। मम॑। चि॒त्तम्। अनु॑। चि॒त्तेभिः॑। आ। इ॒त। मम॑। वशे॑षु। हृद॑यानि। वः॒। कृ॒णो॒मि॒। मम॑। या॒तम्। अनु॑ऽवर्त्मानः। आ। इ॒त॒। ९४.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सरस्वती
- अथर्वाङ्गिरा
- विराड्जगती
- सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शान्ति करने के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैं (मनसा) अपने मन से (मनांसि) तुम्हारे मनों को (गृभ्णामि=गृह्णामि) थामता हूँ (मम) मेरे (चित्तम् अनु) चित्त के पीछे-पीछे (चित्तेभि=चित्तैः) अपने चित्तों से (आ इत) आओ। (मम वशेषु) अपने वश में (वः हृदयानि) तुम्हारे हृदयों को (कृणोमि) मैं करता हूँ, (मम यातम्) मेरी चाल पर (अनुवर्त्मानः) मार्ग चलते हुए (आ इत) यहाँ आओ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - प्रधान पुरुष अपने शुभ विचार और साहस से सब सभासदों और प्रजागणों को धर्मपथ पर चलाकर परस्पर मेल के साथ साहसी और उत्साही बनावें ॥२॥ यह मन्त्र आ चुका है−अ० ३।८।६ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−पूर्ववद् व्याख्येयः−अ० ३।८।६ ॥
०३ ओते मे
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ओते॑ मे॒ द्यावा॑पृथि॒वी ओता॑ दे॒वी सर॑स्वती।
ओतौ॑ म॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॒र्ध्यास्मे॒दं स॑रस्वति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ओते॑ मे॒ द्यावा॑पृथि॒वी ओता॑ दे॒वी सर॑स्वती।
ओतौ॑ म॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॒र्ध्यास्मे॒दं स॑रस्वति ॥
०३ ओते मे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Worked in for me [are] heaven-and-earth; worked in [is] divine
Sarasvatī; worked in for me [are] both Indra and Agni; may we be
successful here, O Sarasvatī.
Notes
Save the last pāda, this verse is a repetition of v. 23. 1. The comm.
paraphrases ota by ābhimukhyena saṁtata or parasparaṁ saṁbaddha.
Griffith
I have invoked both Heaven and Earth, invoked divine Sarasvati, Indra and Agni have I called: Sarasvati, so may we thrive!
पदपाठः
ओते॒ इत्याऽउ॑ते। मे॒। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। आऽउ॑ता। दे॒वी। सर॑स्वती। आऽउ॑तौ। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। अ॒ग्निः। च॒। ऋ॒ध्यास्म॑। इ॒दम्। स॒र॒स्व॒ति॒। ९४.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सरस्वती
- अथर्वाङ्गिरा
- अनुष्टुप्
- सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शान्ति करने के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (द्यावापृथिवी) सूर्य और भूलोक (ओते) बुने हुए हैं, (देवी) दिव्य गुणवाली (सरस्वती) विज्ञानवती विद्या (ओता) परस्पर बुनी हुई है। (च) और (मे) मेरे लिये (इन्द्रः) मेघ (च) और (अग्निः) अग्नि (ओतौ) परस्पर बुने हुए हैं। (सरस्वति) हे विज्ञानवती विद्या ! (इदम्) अब (ऋध्यास्म) हम श्रीमान् होवें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य विज्ञानपूर्वक विद्या प्राप्त करके संसार के सब पदार्थों से उपकार लेकर धनी होवें ॥३॥ यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है−अ० ५।२३।१ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(ओते) आ+वेञ् तन्तुसन्ताने−क्त। परस्परं स्यूने। अन्तर्व्याप्ते (सरस्वती) विज्ञानवती विद्या (इन्द्रः) मेघः (ऋध्यास्म) ऋधु वृद्धौ। श्रीमन्तो भूयास्म। अन्यद् गतम्−अ० ५।२३।१ ॥