०९१ यक्ष्मनाशनम् ...{Loading}...
Whitney subject
- For remedy from disease.
VH anukramaṇī
यक्ष्मनाशनम्।
१-३ भृग्वङ्गिराः। यक्ष्मनाशनम्, ३ आपः। अनुष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Bhṛgvan̄giras.—mantroktayakṣmanāśanadevatyam. ānuṣṭubham.]
Whitney
Comment
Found also in Pāipp. xix. Used by Kāuś. (28. 17-20) in a healing rite against all diseases (in 17 with v. 9; in 20 alone), with binding on of a barley amulet; also reckoned to the takmanāśana gaṇa (note to 26. 1).
Translations
Translated: Grill, 14, 168; Griffith, i. 295; Bloomfield, 40, 507.
०१ इमं यवमष्टायोगैः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
इ॒मं यव॑मष्टायो॒गैः ष॑ड्यो॒गेभि॑रचर्कृषुः।
तेना॑ ते त॒न्वो॒३॒॑ रपो॑ऽपा॒चीन॒मप॑ व्यये ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इ॒मं यव॑मष्टायो॒गैः ष॑ड्यो॒गेभि॑रचर्कृषुः।
तेना॑ ते त॒न्वो॒३॒॑ रपो॑ऽपा॒चीन॒मप॑ व्यये ॥
०१ इमं यवमष्टायोगैः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- This barley they plowed mightily with yokes of eight, with yokes of
six; therewith I unwrap away the complaint (rápas) of thy body.
Notes
The last half-verse is defaced in Ppp.; it appears to end pratīcīna
apahvayatā.
Griffith
They made this barley ready with a team of eight, a team of six. With this I drive to westward, far away, thy bodily disease.
पदपाठः
इ॒मम्। यव॑म्। अ॒ष्टा॒ऽयो॒गैः। ष॒ट्ऽयो॒गेभिः॑। अ॒च॒र्कृ॒षुः॒। तेन॑। ते॒। त॒न्वः᳡। रपः॑। अ॒पा॒चीन॑म्। अप॑। व्य॒ये॒। ९१.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- यक्षमनाशनम्
- भृग्वङ्गिरा
- अनुष्टुप्
- यक्षमनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आत्मिक दोष नाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इमम्) इस [सर्वव्यापी] (यवम्) संयोग-वियोग करनेवाले परमेश्वर को (अष्ठायोगैः) आठ प्रकार के [यम नियम आदि] योगों से और (षड्योगेभिः) छह प्रकार के [पढ़ना-पढ़ाना आदि ब्राह्मणों के कर्मों से (अचर्कृषुः) उन [महात्माओं] ने कर्षण अर्थात् परिश्रम से प्राप्त किया है। (तेन) उसी [कर्म] से (ते) तेरे (तन्वः) शरीर के (रपः) पाप को (अपाचीनम्) विपरीत गति करके (अप व्यये) मैं हटाता हूँ ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार से महर्षियों ने योगसाधन और ब्राह्मण कर्म से ईश्वर को प्राप्त किया है, इसी प्रकार विद्वान् मनुष्य ईश्वरप्राप्ति से आत्मदोष त्यागकर आनन्दित होवें ॥१॥ आठ प्रकार के योगाङ्ग यह हैं−यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि ॥ योगदर्शने २।२९। अर्थात् १−यम, २−नियम, ३−आसन, ४−प्राणायाम, ५−प्रत्याहार, अर्थात् जितेन्द्रियता, ६−धारणा, ७−ध्यान और ८−समाधि, यह आठ योग के अङ्ग हैं ॥ ब्राह्मणों के छह कर्म यह हैं−अध्यापनमध्ययनं यजनं याजनं तथा। दानं प्रतिग्रहश्चैव ब्राह्मणानामकल्पयत् ॥ मनुः १।८८। १−पढ़ना, २−पढ़ाना, ३−यज्ञ करना, ४−यज्ञ कराना, ५−दान देना और ६−दान लेना यह छह कर्म [प्रभु ने] ब्राह्मणों के बताये हैं ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(इमम्) दृश्यमानं सर्वव्यापिनम् (यवम्) यु मिश्रणामिश्रणयोः−अप्। यवः, मिश्रणामिश्रणकर्ता इति दयानन्दभाष्ये यजुः० ५।२६। संयोजकवियोजकं परमात्मानम् (अष्टायोगैः) यमनियमाद्यष्टयोगाङ्गैः−योगदर्शने २।२९। (षड्योगेभिः) अध्यापनाध्ययनादिब्राह्मणषट्कर्मभिः−मनुस्मृति १।८८। (अचर्कृषुः) कृष विलेखने स्वार्थे ण्यन्ताल्लुङि चङि रूपम्। कर्षणेन श्रमेण प्राप्तवन्तः (तेन) कर्षणकर्मणा (ते) तव (तन्वः) शरीरस्य (रपः) अ० ४।१३।२। दोषम् (अपाचीनम्) विभाषाञ्चेरदिक् स्त्रियाम्। पा० ५।४।८। इति अपाच्−स्वार्थे ख, खस्य ईनादेशः। अपगतम्। अपाङ्मुखम् (अप व्यये) व्यय गतौ विषसमुत्सर्गे च। अपगमयामि ॥
०२ न्यग्वातो वाति
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
न्य१॒॑ग्वातो॑ वाति॒ न्य᳡क्तपति॒ सूर्यः॑।
नी॒चीन॑म॒घ्न्या दु॑हे॒ न्य᳡ग्भवतु ते॒ रपः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
न्य१॒॑ग्वातो॑ वाति॒ न्य᳡क्तपति॒ सूर्यः॑।
नी॒चीन॑म॒घ्न्या दु॑हे॒ न्य᳡ग्भवतु ते॒ रपः॑ ॥
०२ न्यग्वातो वाति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Downward blows the wind; downward burns the sun; downward the
inviolable [cow] milks; downward be thy complaint.
Notes
This verse is RV. x. 60. 11; the latter rectifies the meter of a by
introducing áva (‘va) before vāti ⌊or rather, by not being guilty
of the haplography which spoils our AV. text: cf. note to iv. 5. 5⌋. The
Anukr. ignores the deficiency of our text.
Griffith
Vita breathes downward from above, and downward Surya sends his heat: Downward is drawn the milch-cow’s milk: so downward go thy malady!
पदपाठः
न्य᳡क्। वातः॑। वा॒ति॒। न्य᳡क्। त॒प॒ति॒। सूर्यः॑। नी॒चीन॑म्। अ॒घ्न्या। दु॒हे॒। न्य᳡क्। भ॒व॒तु॒। ते॒। रपः॑। ९१.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- यक्षमनाशनम्
- भृग्वङ्गिरा
- अनुष्टुप्
- यक्षमनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आत्मिक दोष नाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वातः) वायु (न्यक्) नीचे की ओर (वाति) बहता है, (सूर्यः) सूर्य (न्यक्) नीचे की ओर (तपति) तपता है (अघ्न्या) न मारने योग्य गौ (नीचीनम्) नीचे को (दुहे=दुग्धे) दूध देती है, [हे मनुष्य !] (ते) तेरा (रपः) दोष (न्यक्) नीचे की ओर (भवतु) होवे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार वायु आदि पदार्थ निर्दोष होकर उपकार करते हैं, वैसे ही मनुष्य दोषों का त्याग कर उपकारी हों ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(न्यक्) नि+अञ्चु गतिपूजनयोः−क्विन्। निम्नम् (वातः) वायुः (वाति) गच्छति (न्यक्) (तपति) उपतापयति (सूर्यः) सरणशील आदित्यः (नीचीनम्) विभाषाञ्चेर०। पा० ५।४।८। इति न्यच्−स्वार्थे ख, खस्य ईनादेशः (अघ्न्या) अहन्तव्या गौः−निघ० २।११। (दुहे) लोपस्त आत्मनेपदेषु। पा० ७।१।४१। इति तलोपः। दुग्धे दुग्धं ददाति (न्यक्) अधोमुखम् (भवतु) (ते) तव (रपः) पापम् ॥
०३ आप इद्वा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
आप॒ इद्वा उ॑ भेष॒जीरापो॑ अमीव॒चात॑नीः।
आपो॒ विश्व॑स्य भेष॒जीस्तास्ते॑ कृण्वन्तु भेष॒जम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आप॒ इद्वा उ॑ भेष॒जीरापो॑ अमीव॒चात॑नीः।
आपो॒ विश्व॑स्य भेष॒जीस्तास्ते॑ कृण्वन्तु भेष॒जम् ॥
०३ आप इद्वा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The waters verily are remedial; the waters are disease-expelling; the
waters are remedial of everything; let them make remedy for thee.
Notes
The first three-pādas are the same with those of iii. 7. 5, above; and
the whole verse corresponds with RV. x. 137. 6, which differs only by
reading sárvasya for víśvasya in c. Ppp. has a wholly original
second half-verse: āpaḥ samudrārthāyatīṣ parā vahantu te rapaḥ.
Griffith
The Waters verily bring health, the Waters drive disease away. The Waters cure all malady: may they bring medicine for thee.
पदपाठः
आपः॑। इत्। वै। ऊं॒ इति॑। भे॒ष॒जीः। आपः॑। अ॒मी॒व॒ऽचात॑नीः। आपः॑। विश्व॑स्य। भे॒ष॒जीः। ताः। ते॒। कृ॒ण्व॒न्तु॒। भे॒ष॒जम्। ९१.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आपः
- भृग्वङ्गिरा
- अनुष्टुप्
- यक्षमनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आत्मिक दोष नाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (आपः) शुभकर्म वा जल (इत् वै उ) अवश्य ही (भेषजीः=०−ज्यः) भयनिवारक है, (आपः) शुभकर्म वा जल (अमीवचातनीः=०−न्यः) पीडानाशक है। (आपः) शुभ कर्म वा जल (विश्वस्य) सब के (भेषजीः) भयनिवारक है, (ताः) वे (ते) तेरा (भेषजम्) भयनिवारण (कृण्वन्तु) करें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदविहित कर्मों को करके अपने आत्मिक, और शारीरिक दोष मिटावें, और जलचिकित्सा करके शारीरिक रोगों की निवृत्ति करें ॥३॥ यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है−अ० ३।७।५ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(आपः) आप्नोतेर्ह्रस्वश्च उ० २।५८। इति आप्लृ व्याप्तौ−क्विप् अप्तृन्तृच्०। पा० ६।४।११। इत्युपधादीर्घः। अपः कर्मनाम−निघ० २।१। आप्यन्ते प्राप्यन्ते सुखदुःखानि याभिस्ता आपः कर्माणि−इति महीधरभाष्ये यजु० ४०।४। वेदविहितकर्माणि (इद् वा उ) इति सर्वेऽवधारणे (भेषजीः) अ० ३।७।५। भेषज्यः। भयनिवारकाः (अमीवचातनीः−रोगाणां नाशयित्र्यः (विश्वस्य) सर्वस्य (ताः) आपः (ते) तव (कृण्वन्तु) कुर्वन्तु (भेषजम्) रोगनिवर्तनम् ॥