०८५ यक्ष्मनाशनम्

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Whitney subject
  1. For relief from yákṣma.
VH anukramaṇī

यक्ष्मनाशनम्।
१-३ अथर्वा। वनस्पतिः। अनुष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan (yakṣmanāśanakāmaḥ).—vānaspatyam. ānuṣṭubham.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xix. Used by Kāuś. (26. 33-37) in a healing rite, with vi. 109, 127 and others; in 37 with the direction mantroktam badhnāti; and reckoned (note to 26. 1) to the takmanāśana gaṇa. And the first half of vs. 2 is part of a verse given entire in 6. 17.

Translations

Translated: Griffith, i. 291; Bloomfield, 39, 505.

Griffith

A charm against Consumption

०१ वरणो वारयाता

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

व॑र॒णो वा॑रयाता अ॒यं दे॒वो वन॒स्पतिः॑।
यक्ष्मो॒ यो अ॒स्मिन्नावि॑ष्ट॒स्तमु॑ दे॒वा अ॑वीवरन् ॥

०१ वरणो वारयाता ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The varaṇá, this divine forest-tree, shall ward off (vāray-); the
    yákṣma that has entered into this man—that have the gods warded off.
Notes

The verse is repeated as x. 3. 5. An amulet made of varaṇá is used, as
the comm. points out. ⌊Similar word-play at iv. 7. 1—see note.⌋ The
deficiency of a syllable in a is not noticed by the Anukr.

Griffith

Let Varana the heavenly tree here present keep disease away. The Gods have driven off Decline that entered and possessed this man.

पदपाठः

व॒र॒णः। वा॒र॒या॒तै॒। अ॒यम्। दे॒वः। वन॒स्पतिः॑। यक्ष्मः॑। यः। अ॒स्मिन्। आऽवि॑ष्टः। तम्। ऊं॒ इति॑। दे॒वाः। अ॒वी॒व॒र॒न्। ८५.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वनस्पतिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मानाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

रोग के नाश के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह (देव) दिव्य गुणवाला, (वनस्पतिः) सेवनीय गुणों का रक्षक (वरणः) स्वीकार करने योग्य [वैद्य अथवा वरणा अर्थात् वरुणवृक्ष] [राजरोग आदि को] (वारयातै) हटावे। (यः) जो (यक्ष्मः) राजरोग (अस्मिन्) इस पुरुष में (आविष्टः) प्रवेश कर गया है (तम्) उसको (उ) निश्चय करके (देवाः) व्यवहार जाननेवाले विद्वानों ने (अवीवरन्) हटाया है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस प्रकार से सद्वैद्य पूर्वज विद्वानों से शिक्षा पाकर बड़े-बड़े रोगों को वरण वा अन्य ओषधिद्वारा मिटाता है, वैसे ही मनुष्य उत्तम गुण को प्राप्त करके दुष्कर्मों का नाश करे ॥१॥ (वरणः) ओषधिविशेष भी है, जिसको वरुण, वरणा और उरण आदि कहते हैं। वरुण कटु, उष्ण, रक्तदोष, शीत वात हरनेवाला, चिकना और दीपन है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(वरणः) सुयुरुवृञ युच्। उ० २।७४। इति वृञ्−वरणे=स्वीकरणे−युच्। स्वीकरणीयः। वैद्यो वरुणवृक्षो वा। वरुणस्य गुणाः। कटुत्वम् उष्णत्वम्, रक्तदोषशीतवातहरत्वम्, स्निग्धत्वम्, दीपनत्वम्−इति शब्दकल्पद्रुमात् (वारयातै) अ० ४।७।१। वारयातेर्लेटि आडागमः। वैतोऽन्यत्र। पा० ३।४।९६। इति ऐकारः। वारयतु। निवर्तयतु (अयम्) प्रसिद्धः। (देवः) दिव्यः (वनस्पतिः) अ० १।३५।३। वन सेवने−अच्। वन+पतिः, सुट् च। सेवनीयगुणानां रक्षकः (यक्ष्मः) अ० २।१०।५। राजरोगः क्षयः (यः) (अस्मिन्) पुरुषे (आविष्टः) प्रविष्टः (तम्) यक्ष्मम् (उ) एव (देवाः) व्यवहारकुशला विद्वांसः (अवीवरन्) वारयतेर्लुङ् चङि रूपम्। निवारितवन्तः ॥

०२ इन्द्रस्य वचसा

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इन्द्र॑स्य॒ वच॑सा व॒यं मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य च।
दे॒वानां॒ सर्वे॑षां वा॒चा यक्ष्मं॑ ते वारयामहे ॥

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Whitney
Translation
  1. With the word (vácas) of Indra, of Mitra, and of Varuṇa, with the
    voice (vā́c) of all the gods, do we ward off thy yákṣma.
Notes
Griffith

We with the speech of Indra and of Mitra and of Varuna. We with the speech of all the Gods will drive Decline away from thee.

पदपाठः

इन्द्र॑स्य। वच॑सा। व॒यम्। मि॒त्रस्य॑। वरु॑णस्य। च॒। दे॒वाना॑म्। सर्वे॑षाम्। वा॒चा। यक्ष्म॑म्। ते॒। वा॒र॒या॒म॒हे॒। ८५.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वनस्पतिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मानाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

रोग के नाश के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रस्य) प्रतापी, (मित्रस्य) स्नेही (च) और (वरुणस्य) सेवनीय पुरुष के (वचसा) वचन से और (सर्वेषाम्) सब (देवानाम्) व्यवहार जाननेवाले विद्वानों के (वाचा) वचन से (ते) तेरे (यक्ष्मम्) राजरोग को (वयम्) हम लोग (वारयामहे) हटाते हैं ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे विद्वानों से शिक्षा पाकर वैद्य रोगों की निवृत्ति करता है, इसी प्रकार मनुष्य अपने दोषों की निवृत्ति करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(इन्द्रस्य) प्रतापिनः पुरुषस्य (वचसा) वचनेन। उपदेशेन (वयम्) पुरुषार्थिनः (मित्रस्य) स्नेहिनः (वरुणस्य) वरणीयस्य। सेवनीयस्य (च) (देवानाम्) व्यवहारिणां विदुषाम् (सर्वेषाम्) समस्तानाम् (वाचा) वचनेन (यक्ष्मम्) राजरोगम् (ते) तव (वारयामहे) निवारयामः ॥

०३ यथा वृत्र

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यथा॑ वृ॒त्र इ॒मा आप॑स्त॒स्तम्भ॑ वि॒श्वधा॑ य॒तीः।
ए॒वा ते॑ अ॒ग्निना॒ यक्ष्मं॑ वैश्वान॒रेण॑ वारये ॥

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Whitney
Translation
  1. As Vritra stopped (stambh) these waters [when] going in all
    directions, so, by means of Agni Vāiśvānara, do I ward off thy yákṣma.
Notes

For viśvádhā yatī́s, in b, the comm. reads viśvadhāyanīs. Ppp.
combines, in a, vṛtrāi ’mā ’paḥ.

Griffith

Even as Vritra checked and stayed these waters flowing every way, With Agni, God of all mankind. I check and banish thy Decline.

पदपाठः

यथा॑। वृ॒त्रः। इ॒माः। आपः॑। त॒स्तम्भ॑। वि॒श्वधा॑। य॒तीः। ए॒व। ते॒। अ॒ग्निना॑। यक्ष्म॑म्। वै॒श्वा॒न॒रेण॑। वा॒र॒ये॒। ८५.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वनस्पतिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • यक्ष्मानाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

रोग के नाश के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (वृत्रः) मेघ ने (विश्वधा) सब ओर (यतीः) बहती हुई (इमाः) इन (आपः=अपः) जलधाराओं को (तस्तम्भ) रोका था। (एव) वैसे ही (ते) तेरे (यक्ष्मम्) राजरोग को (वैश्वानरेण) सब मनुष्यों के हित करनेवाले (अग्निना) अग्नि से (वारये) मैं हटाता हूँ ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे मेघ ईश्वरनियम से जल की भाफों को मेघमण्डल में रोक लेता है, उसी प्रकार वैद्य रोगी की पाचन शक्ति ठीक करके रोग को रोक दे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यथा) येन प्रकारेण (वृत्रः) अ० २।५।३। आवरको मेघः−निघ० १।१०। (इमाः) परिदृश्यमानाः (आपः) अपः। जलानि (तस्तम्भ) ष्टभि गतिप्रतिबन्धे। अवरुरोध (विश्वधा) सर्वतः (यतीः) इण् गतौ−शतृ, ङीप्। गच्छन्ती (एव) एवम्। तथा (ते) त्वदीयम् (अग्निना)। जाठराग्निना (यक्ष्मम्) राजरोगम् (वैश्वानरेण) अ० १।१०।४। विश्वनरहितेन (वारये) निवारयामि ॥