०८४ निर्ऋतिमोचनम्

०८४ निर्ऋतिमोचनम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. For release from perdition.
VH anukramaṇī

निर्ऋतिमोचनम्।
१-४ भगः।निर्ऋतिः। १ भुरिग्जगती, २ त्रिपदार्षी बृहती, ३ जगती, ४ भुरिक् त्रिष्टुप् (जगती)

Whitney anukramaṇī

[An̄giras.—caturṛcam. nāirṛtam. 1. bhurig jagatī; 2. 3-p. ārcī bṛhatī; 3, 4. jagatī; 4. bhurik triṣṭubh.]

Whitney

Comment

This hymn is not found in Pāipp. Kāuś. applies it (52. 3), with vi. 63 and 121, in a rite for welfare. The comm. takes no notice of this, but regards the hymn as implied in 31. 21: see under the preceding hymn. In Vāit. (38. 1) it is found used in a healing rite in the puruṣamedha: this also the comm. overlooks.

Translations

Translated: Ludwig, p. 444; Griffith, i. 291.

Griffith

A charm to accompany the symbolical loosing of sacrificial victims

०१ यस्यास्त आसनि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्या॑स्त आ॒सनि॑ घो॒रे जु॒होम्ये॒षां ब॒द्धाना॑मव॒सर्ज॑नाय॒ कम्।
भूमि॒रिति॑ त्वाभि॒प्रम॑न्वते॒ जना॒ निरृ॑ति॒रिति॑ त्वा॒हं परि॑ वेद स॒र्वतः॑ ॥

०१ यस्यास्त आसनि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou in whose terrible mouth I make oblation, in order to the release
    of these bound ones; people think of thee as “earth”; I know thee
    completely as “perdition” (nírṛti).
Notes

The verse is found also in VS. (xii. 64), TS. (iv. 2. 5³), and MS. (ii.
2. 1). In a, for āsáni ghoré, VS. MS. have ghor̥á āsán, and TS.
krūrá āsán; before it, TS. inserts asyā́s, while MS. begins yád adyá
te;
in b, all (also our comm.) read bandhā́nām, which is better;
MS. has after it pramócanāya, and all omit kám; for c, d, VS.
MS. yā́ṁ tyā jáno bhū́mir íti pramándate nírṛtiṁ tvā ’hám pári veda
viśvátaḥ
, while TS. agrees nearly with our text, though having simply
jánā vidúr for abhiprámanvate jánāḥ, and at the end viśvátaḥ. The
chief result for our text is the demonstration of manvate as probably
a corruption of mandate. It was noted at the end of the preceding hymn
that the comm. mixes up the end and beginning of the two hymns. The
metrical definition of the Anukr. is very poor.

Griffith

Thou in whose dread mouth I present oblation, that these bound victims may obtain their freedom, The people deem that thou art Earth: I know thee thoroughly, and I say thou art Destruction.

पदपाठः

यस्याः॑। ते॒। आ॒सनि॑। घो॒रे। जु॒होमि॑। ए॒षाम्। ब॒ध्दाना॑म्। अ॒व॒ऽसर्ज॑नाय। कम्। भूमिः॑। इत‍ि॑। त्वा॒। अ॒भि॒ऽप्रम॑न्वते। जनाः॑। निःऽऋ॑तिः। इति॑। त्वा॒। अ॒हम्। परि॑। वे॒द॒। स॒र्वतः॑। ८४.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • निर्ऋतिः
  • अङ्गिरा
  • भुरिग्जगती
  • निर्ऋतिमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पाप से मुक्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्याः) जिस (ते) तेरे (घोरे) भयानक (आसनि) मुख में (एषाम्) इन (बद्धानाम्) बँधे हुए प्राणियों के (अवसर्जनाय) छुड़ाने के लिये (कम्) कमनीय व्यवहार को (जुहोमि) मैं देता हूँ। (त्वा) उस तुझको (जनाः) पामर लोग (भूमिः इति) यह भूमि अर्थात् आश्रय देनेवाली है (अभिप्रमन्वते) मानते हैं। (अहम्) मैं (त्वा) तुझको (निर्ऋतिः इति) यह अलक्ष्मी है (सर्वतः) सब प्रकार से (परि वेद) भलीभाँति जानता हूँ ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - अज्ञानी मनुष्य दुष्क्रिया को अपनी उन्नति की (भूमि) आश्रय समझते हैं, और बुद्धिमान् मनुष्य उसको (निर्ऋति) अलक्ष्मी अर्थात् अवनति का कारण जानते हैं, इसलिये विद्वान् मनुष्य अज्ञानबन्धन में फँसे हुए प्राणियों के छुड़ाने के लिये अलक्ष्मी के कारणों को जताकर उत्तम व्यवहार का उपदेश करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(यस्याः) निर्ऋतेः (ते) तव (आसनि) आस्ये। मुखे (घोरे) घुर भीमभावे−अच्। भयानके (जुहोमि) ददामि (एषाम्) प्राणिनाम् (बद्धानाम्) बन्धगतानाम् (अवसर्जनाय) दुःखाद् विमोचनाय (कम्) अ० २।१।५। कः कमनो वा क्रमणं वा सुखो वा। निरु० १०।२२। कमनीयं व्यवहारम् (भूमिः) आश्रयभूता (इति) वाक्यसमाप्तौ (त्वा) तां त्वाम् (अभिप्रमन्वते) मनु अवबोधने। अभितः प्रबुद्धयन्ते (जनाः) पामरलोकाः (निर्ऋतिः) अ० २।१०।१। निर्ऋतिः−कृच्छापत्तिः−निरु० २।७। अलक्ष्मीः (इति) (त्वा) निर्ऋतिम् (अहम्) तत्त्वज्ञानी पुरुषः (परि) परितः (वेद) जानामि (सर्वतः) सर्वस्मात्कारणात् ॥

०२ भूते हविष्मती

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

भूते॑ ह॒विष्म॑ती भवै॒ष ते॑ भा॒गो यो अ॒स्मासु॑।
मु॒ञ्चेमान॒मूनेन॑सः॒ स्वाहा॑ ॥

०२ भूते हविष्मती ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O earth (?), be thou rich in oblations; this is thy share which is in
    us; free these [and] those from sin: hail!
Notes

The translation follows Ludwig’s suggested emendation of bhū́te at the
beginning to bhū́me.

Griffith

Be thou enriched, O Welfare, with oblations, here among us is thine allotted portion. Free–Hail to thee!–from sin those here and yonder.

पदपाठः

भूते॑। ह॒विष्म॑ती। भ॒व॒। ए॒षः। ते॒। भा॒गः। यः। अ॒स्मासु॑। मु॒ञ्च। इ॒मान्। अ॒मून्। एन॑सः। स्वाहा॑। ८४.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • निर्ऋतिः
  • अङ्गिरा
  • त्रिपदार्षी बृहती
  • निर्ऋतिमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पाप से मुक्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूते) हे चिन्तायोग्य [अलक्ष्मी !] [हमारे लिये] (हविष्मती) देने और लेने योग्य क्रियावाली (भव) हो, (एषः) यह (ते) तेरा (भागः) सेवनीय व्यवहार है, (यः) जो (अस्मासु) हम लोगों के बीच होवे।(इमान्) इन [इस जन्मवाले] और (अमून्) उन [अगले वा पिछले जन्मवाले] जीवों को (एनसः) पाप से (मुञ्च) मुक्त करदे, (स्वाहा) यह सुन्दर वाणी है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य तीव्र तप अर्थात् पूर्ण पुरुषार्थ करके भूत भविष्यत् और वर्तमान क्लेशों के फल को नाश करके सुखी होवे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(भूते) क्तिच्क्तौ च संज्ञायाम्। पा० ३।३।१७४। इति चौरादिको भू चिन्तने−क्तिच्। आमन्त्रितस्य च। पा० ६।१।१९८। इति आदिरुदात्तः। हे चिन्तनीये निर्ऋते (हविष्मती) दातव्यग्राह्यक्रियायुक्ता (भव) (एषः) वक्ष्यमाणः−मुञ्चेमानम् (ते) तव (भागः) भजनीयः स्वीकरणीयो व्यवहारः (यः) (अस्मासु) अस्माकं मध्ये भवतु (मुञ्च) विसृज (इमान्) इदानीन्तनान् जीवान् (अमून्) दूरस्थान् पूर्वपरजन्मनि वर्तमानान् (एनसः) पापात्। कष्टात् (स्वाहा) सुवाणी। सुप्रार्थना ॥

०३ एवो ष्वस्मन्निरृतेऽनेहा

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ए॒वो ष्व१॒॑स्मन्नि॑रृतेऽने॒हा त्वम॑य॒स्मया॒न्वि चृ॑ता बन्धपा॒शान्।
य॒मो मह्यं॒ पुन॒रित्त्वां द॑दाति॒ तस्मै॑ य॒माय॒ नमो॑ अस्तु मृ॒त्यवे॑ ॥

०३ एवो ष्वस्मन्निरृतेऽनेहा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. So, O perdition, do thou, free from envy, kindly unfasten from us the
    bond-fetters of iron. Yama verily giveth thee back to me; to that Yama,
    to death, be homage.
Notes

All of this verse except the first pāda is a repetition of 63. 2 b,
c, d
, above. The comm. explains anehā by anāhantrī. The fourth is
the only jagatī pāda.

Griffith

Do thou, Destruction, thus, without a rival, release us from the iron bonds that hind us. To me doth Yama verily restore thee. To him, to Yama, yea, to Death be worship!

पदपाठः

ए॒वो इति॑। सु। अ॒स्मत्। निः॒ऽऋ॒ते॒। अ॒ने॒हा। त्वम्। अ॒य॒स्मया॑न्। वि। चृ॒त॒। ब॒न्ध॒ऽपा॒शान्। य॒मः। मह्म॑म्। पुनः॑। इत्। त्वाम्। द॒दा॒ति॒। तस्मै॑। य॒माय॑। नमः॑। अ॒स्तु॒। मृ॒त्यवे॑। ८४.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • निर्ऋतिः
  • अङ्गिरा
  • जगती
  • निर्ऋतिमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पाप से मुक्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (निर्ऋते) हे अलक्ष्मी ! (त्वम्) तू (अनेहा) न मारनेवाली होकर (अस्मत्) हमसे (अयस्मयान्) लोहे की बनी (बन्धपाशान्) बन्धन की बेड़ियों को (एवो) अवश्य ही (सु) भले प्रकार (वि चृत) खोल दे। (यमः) न्यायकारी परमेश्वर (मह्यम्) मेरे लिये (पुनः) बार-बार (इत्) ही (त्वाम्) तुझको (ददाति) देता है, (तस्मै) उस (यमाय) न्यायकारी परमेश्वर को (मृत्यवे) दुःखरूप मृत्यु नाश करने के लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पाप कर्मों को छोड़ कर सदा धर्म आचरण करें। परमेश्वर अपनी न्यायव्यवस्था से पापियों को सदा दण्ड देता है ॥३॥ यह मन्त्र कुछ भेद से अ० ६।६३।२। में आ चुका है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(एवो) एव−उ। अवश्यमेव (सु) सुष्ठु। यथाविधि (अस्मत्) अस्मत्तः (निर्ऋते) म० १। हे कृच्छापत्ते (अनेहा) नञि हन एह च। उ० ४।२२४। इति हन्तेर्नञ्युपपदेऽसिः, धातोरेहादेशश्च। ऋदुशनस्पुरुदंशोऽनेहसां चा पा० ७।१।९४। इति सावनङ्। अहन्त्री। अबाधमाना (त्वम्) अन्यद् गतम्−अ० ६।६३।२ ॥

०४ अयस्मये द्रुपदे

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अ॑य॒स्मये॑ द्रुप॒दे बे॑धिष इ॒हाभिहि॑तो मृ॒त्युभि॒र्ये स॒हस्र॑म्।
य॒मेन॒ त्वं पि॒तृभिः॑ संविदा॒न उ॑त्त॒मं नाक॒मधि॑ रोहये॒मम् ॥

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Whitney
Translation
  1. Thou wast bound here to an iron post, bridled with deaths that are a
    thousand; do thou, in concord with Yama, with the Fathers, make this man
    ascend to the highest firmament.
Notes

This verse is a repetition of 63.3, above.

Griffith

Thou hast been fastened to an iron pillar, here compassed with a thousand deaths around thee. In full accord with Yama and the Fathers, send this man up- ward to the loftiest heaven.

पदपाठः

अ॒य॒स्मये॑। द्रु॒ऽप॒दे। बे॒धि॒षे॒। इ॒ह। अ॒भिऽहि॑तः। मृ॒त्युऽभिः॑। ये। स॒हस्र॒म्। य॑मेन॑। त्वम्। पि॒तृऽभिः॑। स॒म्ऽवि॒दा॒नः। उ॒त्ऽत॒मम्। नाक॑म्। अधि॑। रो॒ह॒य॒। इ॒मम्। ८४.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • निर्ऋतिः
  • अङ्गिरा
  • भुरिक्त्रिष्टुप्
  • निर्ऋतिमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पाप से मुक्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (इह) यहाँ पर (मृत्युभिः) मृत्यु के कारणों से (ये) जो (सहस्रम्) सहस्र प्रकार है (अभिहितः) घिरा हुआ तू (अयस्मये) लोहे से जकड़े हुए (द्रुपदे) काठ के बन्धन में (वेधिषे=बध्यसे) बँध रहा है। (यमेन) नियम से (पितृभिः) पालन करनेवाले ज्ञानियों से (संविदानः) मिला हुआ (त्वम्) तू (इमम्) इस पुरुष को (उत्तमम्) उत्तम (नाकम्) आनन्द में (अधि रोहय) ऊपर चढ़ा ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पापों के कारण बड़े-बड़े कष्ट उठाते हैं, वे विद्वानों से ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष पद प्राप्त करें ॥४॥ यह मन्त्र अ० ६।६३।३। में आ चुका है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(अयस्मये द्रुपदे) इत्येषा व्याख्याता−अ० ६।६३−३ ॥