०८१ गर्भाधानम्

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Whitney subject
  1. For successful pregnancy: with an amulet.
VH anukramaṇī

गर्भाधानम्।
१-३ अथर्वा। आदित्यः, ३ त्वष्टा। अनुष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Tvaṣṭar.—mantroktadevatyam utā ”dityam. ānuṣṭubham.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xix. Applied by Kāuś. (35. 11) in a rite for conception of a male, with the direction iti mantroktam badhnāti; and the schol. (note to 35. 26) quotes it also in a women’s rite.

Translations

Translated: Weber, Ind. Stud. v. 239; Ludwig, p. 477; Griffith, i. 289; Bloomfield, 96, 501.—Cf. Bergaigne-Henry, Manuel, p. 153.

Griffith

A charm to facilitate child-birth

०१ यन्तासि यच्छसे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

य॒न्तासि॒ यच्छ॑से॒ हस्ता॒वप॒ रक्षां॑सि सेधसि।
प्र॒जां धनं॑ च गृह्णा॒नः प॑रिह॒स्तो अ॑भूद॒यम् ॥

०१ यन्तासि यच्छसे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou art a holder, thou boldest (yam) the two hands, thou drivest
    away the demons. Seizing (grah) progeny and riches, this hath become a
    hand-clasp (parihastá).
Notes

In Ppp., the a of abhūt in d is elided. The comm. reads
kṛṇvānas in c; he understands Agni to be addressed in a, b.

Griffith

Thou art a grasper, holding fast both hands: drivest fiends away. A holder both of progeny and riches hath this Ring become.

पदपाठः

य॒न्ता। अ॒सि॒। यच्छ॑से। हस्तौ॑। अप॑। रक्षां॑सि। से॒ध॒सि॒। प्र॒ऽजाम्। धन॑म्। च॒। गृ॒ह्णा॒नः। प॒रि॒ऽह॒स्तः। अ॒भू॒त्। अ॒यम्। ८१.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आदित्यः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • गर्भाधान सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

उत्तम गर्भधारण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे पुरुष !] तू (यन्ता) नियम में चलनेवाला (असि) है, तू (हस्तौ) अपने दोनों हाथों को [सहायता के लिये] (यच्छसे) देनेवाला है, तू (रक्षांसि) राक्षसों [विघ्नों] को (अप सेधसि) हटाता है। (प्रजाम्) प्रजा (च) और (धनम्) धन को (गृह्णानः) सहारा देते हुए (अयम्) यह आप (परिहस्तः) हाथ का सहारा देनेवाले (अभूत्) हुए हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जितेन्द्रिय पुरुष ही सब दरिद्रता आदि विघ्नों को हटा कर प्रजा और धन की रक्षा करके गृहस्थ आश्रम चलाने में समर्थ होते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(यन्ता) नियामकः। जितेन्द्रियः (असि) (यच्छसे) पाघ्राध्मास्थाम्नादाण्०। पा० ७।३।७८। इति दाण् दाने−यच्छादेशः, आत्मनेपदं छान्दसम्। ददासि सहायार्थम् (हस्तौ) (रक्षांसि) दारिद्र्यादिविघ्नान् (अप सेधसि) अपगमयसि (प्रजाम्) पुत्रभृत्यादिरूपाम् (धनम्) सुवर्णादिकम् (च) (गृह्णानः) अवलम्बमानः (परिहस्तः) परिगतः प्रसृतः परोपकाराय हस्तो यस्य सः पुरुषः (अभूत्) (अयम्) प्रसिद्धो भवान् ॥

०२ परिहस्त वि

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परि॑हस्त॒ वि धा॑रय॒ योनिं॒ गर्भा॑य॒ धात॑वे।
मर्या॑दे पु॒त्रमा धे॑हि॒ तं त्वमा ग॑मयागमे ॥

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Whitney
Translation
  1. O hand-clasp, hold apart the womb, in order to placing of the
    embryo; O thou sign (? maryā́dā), put in a son; him do thou make to
    come, thou comer (? ā́gamā).
Notes

The obscure words maryādā and āgamā are apparently epithets of the
parihasta; the comm. understands the ⌊first⌋ of the woman: maryādā =
marya + ā-dā ’taken possession of by men’; ⌊and he takes āgame as
= āgamane sati ‘when sexual approach takes place,’ which would be
acceptable if it did not wholly disregard the accent⌋. One might
conjecture maryadās ‘giver of a male.’ Ppp. has at end -gamaḥ.

Griffith

Prepare accordantly, O Ring, the mother for the infant’s birth. On the right way bring forth the boy. Make him come hither. I am here.

पदपाठः

परि॑ऽहस्त। वि। धा॒र॒य॒। योनि॑म्। गर्भा॑य। धात॑वे। मर्या॑दे। पु॒त्रम्। आ। धे॒हि॒। तम्। त्वम्। आ। ग॒म॒य॒। आ॒ऽग॒मे॒। ८१.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आदित्यः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • गर्भाधान सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

उत्तम गर्भधारण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (परिहस्त) हे हाथ का सहारा देनेवाले पुरुष ! (योनिम्) घर को (गर्भाय धातवे) गर्भ पुष्ट करने के लिये (वि) विशेष करके (धारय) सँभाल। (मर्यादे) हे मर्यादायुक्त पत्नी ! (पुत्रम्) [गर्भस्थ] कुलशोधक सन्तान को (आ) भले प्रकार से (धेहि) पुष्ट कर। (त्वम्) तू (तम्) उस [सन्तान] को (आगमे) योग्य समय पर (आ गमय) उत्पन्न कर ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - उचित गृह आदि से यथावत् गर्भरक्षा करके पति-पत्नी सावधान रहें, जिससे बालक पूरे दिनों में उत्पन्न होवे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(परिहस्त) हे प्रसृतहस्त सहायार्थम् (वि) विशेषेण (धारय) स्थापय (योनिम्) गृहम्−निघ० ३।४। (गर्भाय) कर्मणि चतुर्थी। गर्भम् (धातवे) धाञस्तुमर्थे तवेन्। धातुं पोषयितुम् (मर्यादे) मर्यादा−अर्शआद्यच्। हे मर्यादायुक्ते पत्नि (पुत्रम्) अ० १।११।५। गर्भस्थं कुलशोधकं सन्तानम् (आ) समन्तात् (धेहि) पोषय (तम्) गर्भम् (त्वम्) (आ गमय) उत्पादय (आगमे) आगमनकाले। उत्पत्तियोग्यस्थाने ॥

०३ यं परिहस्तमबिभरदितिः

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यं प॑रिह॒स्तमबि॑भ॒रदि॑तिः पुत्रका॒म्या।
त्वष्टा॒ तम॑स्या॒ आ ब॑ध्ना॒द्यथा॑ पु॒त्रं जना॑दिति॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. The hand-clasp that Aditi wore [when] desiring a son—may Tvashṭar
    bind that on for her, saying “that she may give birth to a son.”
Notes

Ppp. reads suvāt in d. For Aditi desiring a son, compare xi. 1. 1.

Griffith

The Amulet which Aditi wore when desirous of a son, Tvashtar hath bound upon this dame and said, Be mother of a boy.

पदपाठः

यम्। प॒रि॒ऽह॒स्तम्। अबि॑भः। अदि॑तिः। पु॒त्र॒ऽका॒म्या। त्वष्टा॑। तम्। अ॒स्यै॒। आ। ब॒ध्ना॒त्। यथा॑। पु॒त्रम्। जना॑त्। इति॑। ८१.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • त्वष्टा
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • गर्भाधान सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

उत्तम गर्भधारण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पुत्रकाम्या) उत्तम सन्तान की कामनावाली (अदितिः) अखण्डव्रता स्त्री ने (यम्) जिस [जैसे] (परिहस्तम्) हाथ का सहारा देनेवाले पति को (अबिभः) धारण किया है। (त्वष्टा) विश्वकर्मा वा शिल्पी परमात्मा (तम्) उस [वैसे ही पति] को (अस्यै) इस पत्नी के लिये (आ बध्नात्) नियमबद्ध करे (यथा) जिससे वह पत्नी (पुत्रम्) कुलशोधक सन्तान (जनात्) उत्पन्न करे, (इति) यही प्रयोजन है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस प्रकार स्त्री-पुरुष वेदविहित रीति से प्रेम के साथ उत्तम सन्तान उत्पन्न करते रहे हैं, उसी प्रकार से स्त्री-पुरुष परस्पर अनुराग के साथ श्रेष्ठ सन्तान उत्पन्न करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यम्) यादृशम् (परिहस्तम्) परोपकाराय प्रसृतकरं पुरुषम् (अबिभः) डुभृञ् धारणपोषणयोः−लङि रूपम्। धृतवती (अदितिः) अ० २।२८।४। दो अवखण्डने−क्तिन्। अखण्डव्रता स्त्री (पुत्रकाम्या) काम्यच्च। पा० ३।१।९। इति पुत्र−काम्यच् इच्छार्थे। पुत्रं कुलशोधकं सन्तानम् आत्मनमिच्छन्ती (त्वष्टा) अ० २।५।६। विश्वकर्मा परमात्मा (तम्) तादृशं पतिम् (अस्यै) पत्नीहिताय (आ) समन्तात् (बध्नात्) नियमे बध्नातु (यथा) येन प्रकारेण (पुत्रम्) कुलशोधकं सन्तानम् (जनात्) जनेर्ण्यन्तात् लेटि आडागमः। छन्दस्युभयथा। पा० ३।४।११७। आर्धधातुकत्वात् णिलोपः। जनयेत् ॥