०७८ दम्पत्यो रयिप्राप्तये प्रार्थना ...{Loading}...
Whitney subject
- For matrimonial happiness.
VH anukramaṇī
दम्पत्यो रयिप्राप्तये प्रार्थना।
१-३ अथर्वा। १-२ चन्द्रमाः, ३ त्वष्टा। अनुष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan.—1, 2. cāndramasyāu; 3. tvāṣṭrī. 1-3. anuṣṭubh.]
Whitney
Comment
Found also in Pāipp. xix. ⌊and at MP. i. 8. 6, 7, 10⌋. Employed by Kāuś. twice (78. 10, 14) in the marriage ceremonies, with other passages, with anointing the heads of the married pair, making them eat together, etc.
Translations
Translated: Weber, Ind. Stud. v. 238; Ludwig, p. 371; Grill, 57, 166; Griffith, i. 287; Bloomfield, 96, 498; also, as part of the MP. hymn, by Winternitz, Hochzeitsrituell, p. 73.
Griffith
A nuptial benediction
०१ तेन भूतेन
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तेन॑ भू॒तेन॑ ह॒विषा॒यमा प्या॑यतां॒ पुनः॑।
जा॒यां याम॑स्मा॒ आवा॑क्षु॒स्तां रसे॑ना॒भि व॑र्धताम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तेन॑ भू॒तेन॑ ह॒विषा॒यमा प्या॑यतां॒ पुनः॑।
जा॒यां याम॑स्मा॒ आवा॑क्षु॒स्तां रसे॑ना॒भि व॑र्धताम् ॥
०१ तेन भूतेन ...{Loading}...
Whitney
Translation
- By this actual (? bhūtá) oblation let this man be filled up again;
the wife that they have brought to him, let him grow superior
(abhi-vṛdh) to her by essence (rása).
Notes
Ppp. has bhūtasya for bhūtena in a, and inverts the order of
words in b. Grill acutely suggests bhūtyena in a, ‘for
prosperity (bhūti),’ and the comm. paraphrases it with
samṛddhikareṇa ‘prosperity-malting.’ Abhi in d, and in 2 a,
b, seems to have a meaning like that which it has in abhi-bhū. The
comm. makes no difficulty of rendering the neuter vardhatām as if it
were causative. Ppp. takes away the difficulty of the expression in this
verse by the very different reading jāyāṁ yām asmā ’vidaṁ sā rasenā
’bhi vardhatām.
Griffith
Let this man be again bedewed with this presented sacrifice. And comfort with the sap of life the bride whom they have brought to him.
पदपाठः
तेन॑। भू॒तेन॑। ह॒विषा॑। अ॒यम्। आ। प्या॒य॒ता॒म्। पुनः॑। जा॒याम्। याम्। अ॒स्मै॒। आ॒ऽअवा॑क्षुः। ताम्। रसे॑न। अ॒भि। व॒र्ध॒ता॒म्। ७८.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- चन्द्रमाः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- धनप्राप्ति प्रार्थना सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
गृहस्थ के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह पुरुष (तेन) उस [प्रसिद्ध] (भूतेन) बहुत (हविषा) ग्राह्य अन्न के साथ (आ) सब ओर से (पुनः) अवश्य (प्यायताम्) बढ़ती करे। (अस्मै) इस पुरुष को (याम् जायाम्) जो वीरों को उत्पन्न करनेवाली पत्नी (आवाक्षुः) उन लोगों ने प्राप्त करायी है, (ताम् अभि) उस पत्नी के लिये वह [पति] (रसेन) अनुराग से वा पराक्रम से (वर्धताम्) बढ़े ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - अन्न आदि पदार्थों के उपार्जन का पूर्ण सामर्थ्य प्राप्त करके माता, पिता, आचार्य आदि की अनुमति से स्त्री-पुरुष गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करके पुरुषार्थपूर्वक उन्नति करें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(तेन) प्रसिद्धेन (भूतेन) प्रभूतेन (हविषा) ग्राह्येण, अन्नेन (अयम्) वरः। उपलक्षणेन कन्यापि (आ) समन्तात् (प्यायताम्) वर्धताम् (पुनः) अवधारणे (जायाम्) अ० ३।४।३। जनयति वीरान् तां वीरजननीं पत्नीम् (याम्) (अस्मै) वराय (आवाक्षुः) वह प्रापणे लुङि रूपम्। प्रापितवन्तः, मातापित्राचार्यादयः (ताम्) पत्नीम् (रसेन) अनुरागेण। वीरभावेन (अभि) अभिरभागे। पा० १।४।९१। इति इत्थं भूताख्याने कर्मप्रवचनीयत्वम्। प्रति (वर्धताम्) प्रवृद्धो भवतु ॥
०२ अभि वर्धताम्
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अ॒भि व॑र्धतां॒ पय॑साभि रा॒ष्ट्रेण॑ वर्धताम्।
र॒य्या स॒हस्र॑वर्चसे॒मौ स्ता॒मनु॑पक्षितौ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒भि व॑र्धतां॒ पय॑साभि रा॒ष्ट्रेण॑ वर्धताम्।
र॒य्या स॒हस्र॑वर्चसे॒मौ स्ता॒मनु॑पक्षितौ ॥
०२ अभि वर्धताम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let him grow superior to [her] by fatness (páyas), let him grow
superior to [her] by royalty; by wealth of thousand-fold splendor let
these two be unexhausted.
Notes
Ppp. has, in a, prajayā instead of payasā. The accent stā́m is
read by all but one (O.) of our mss. and by all but one ⌊or two⌋ of
SPP’s.
Griffith
With life’s sap let him comfort her, and raise her high with princely sway. In wealth that hath a thousand powers, this pair be inexhausti- ble!
पदपाठः
अ॒भि। व॒र्ध॒ता॒म्। पय॑सा। अ॒भि। रा॒ष्ट्रेण॑। व॒र्ध॒ता॒म्। र॒य्या। स॒हस्र॑ऽवर्चसा। इ॒मौ। स्ता॒म्। अनु॑पऽक्षितौ। ७८.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- रयिः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- धनप्राप्ति प्रार्थना सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
गृहस्थ के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पयसा) प्राप्तियोग्य अन्न से और (राष्ट्रेण) राज्य वा ऐश्वर्य से (अभि) पत्नी के लिये (वर्द्धताम्) पति बढ़े, और (अभि) पति के लिये (वर्धताम्) पत्नी बढ़े। (सहस्रवर्चसा) सहस्र प्रकार के तेजवाले (रथ्या) धन से (इमौ) यह दोनों (अनुपक्षितौ) घटती बिना [सदा भरपूर] (स्ताम्) रहें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस घर में स्त्री-पुरुष प्रसन्न रह कर पुरुषार्थपूर्वक परस्पर सहाय करते हैं, वहाँ सब प्रकार की सम्पदा सदा विराजमान रहती है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(अभि) पत्नी प्रति (वर्धताम्) पतिः प्रवृद्धो भवतु (पयसा) प्राप्तव्येनान्नेन। पयः, अन्नम्−निघ० २।७। (अभि) पतिं प्रति (राष्ट्रेण) राज्येन ऐश्वर्येण (वर्धताम्) वधूः प्रवृद्धा भवतु (रय्या) रयिः, धननाम−निघ० २।१०। (सहस्रवर्चसा) अपरिमिततेजोयुक्तेन (इमौ) जायापती (स्ताम्) भवताम् (अनुपक्षितौ) अनुपक्षीणौ। सम्पूर्णकामौ ॥
०३ त्वष्टा जायामजनयत्त्वष्टास्यै
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
त्वष्टा॑ जा॒याम॑जनय॒त्त्वष्टा॑स्यै॒ त्वां पति॑म्।
त्वष्टा॑ स॒हस्र॒मायुं॑षि दी॒र्घमायुः॑ कृणोतु वाम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्वष्टा॑ जा॒याम॑जनय॒त्त्वष्टा॑स्यै॒ त्वां पति॑म्।
त्वष्टा॑ स॒हस्र॒मायुं॑षि दी॒र्घमायुः॑ कृणोतु वाम् ॥
०३ त्वष्टा जायामजनयत्त्वष्टास्यै ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Tvashṭar generated the wife, Tvashṭar [generated] thee as husband
for her; let Tvashṭar make for you two a thousand life-times (ā́yus), a
long life-time.
Notes
⌊Ppp. adds dadhāu after patim in b, which is better; has, in
c, sahasra āy-; and, in d, mām for vām.⌋
Griffith
Tvashtar formed her to be thy dame, Tvashtar made thee to be her lord. Long life let Tvashtar give you both. Let Tvashtar give a thousand lives.
पदपाठः
त्वष्टा॑। जा॒याम्। अ॒ज॒न॒य॒त्। त्वष्टा॑। अ॒स्यै॒। त्वाम्। पति॑म्। त्वष्टा॑। स॒हस्र॑म्। आयूं॑षि। दी॒र्घम्। आयुः॑। कृ॒णो॒तु॒। वा॒म्। ७८.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- त्वष्टा
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- धनप्राप्ति प्रार्थना सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
गृहस्थ के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (त्वष्टा) विश्वकर्मा परमेश्वर ने [तेरे हित के लिये] (जायाम्) वीरों को उत्पन्न करनेवाली पत्नी को, और (त्वष्टा) विश्वकर्मा ने (अस्यै) इस पत्नी के लिये (त्वाम्) तुझे (पतिम्) पति (अजनयत्) उत्पन्न किया है। (त्वष्टा) वही विश्वकर्मा (सहस्रम्=सहस्राणि) बल देनेवाले (आयूंषि) जीवनसाधन और (दीर्घम्) दीर्घ (आयुः) आयु (वाम्) तुम दोनों के लिये (कृणोतु) करे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो स्त्री-पुरुष परमेश्वर की आज्ञा मान कर परस्पर हित करते हैं, वे अनेक प्रकार की वृद्धि करके अति आनन्द और कीर्ति पाते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(त्वष्टा) अ० २।५।६। विश्वकर्मा परमेश्वरः। तुभ्यमिति शेषः (जायाम्) म० १। वीरजननीं वधूम् (अजनयत्) उदपादयत् (त्वष्टा) (अस्यै) वधूहिताय (त्वाम्) विद्वांसम् (पतिम्) भर्तारम् (त्वष्टा) (सहस्रम्) सहो बलनाम−निघ० २।९। सहः+रा दाने−क, बहुवचनस्यैकवचनम्। सहस्राणि। बलप्रदानि (आयूंषि) प्राप्याणि जीवनसाधनानि (दीर्घम्) चिरम्। कीर्तियुक्तम् (आयुः) जीवनम् (कृणोतु) करोतु (वाम्) युवाभ्यां स्त्रीपुरुषाभ्याम् ॥