०७० अघ्न्याः ...{Loading}...
Whitney subject
- To attach a cow to her calf.
VH anukramaṇī
अघ्न्याः।
१-३ काङ्कायनः। अघ्न्याः। जगती।
Whitney anukramaṇī
[Kān̄kāyana.—āghnyam. jāgatam.]
Whitney
Comment
Not found in Pāipp. Used by Kāuś. (41. 18) in a rite for producing mutual attachment between cow and calf.
Translations
Translated: Grill, 65, 165; Griffith, i. 283; Bloomfield, 144, 493.
Griffith
A benediction on cow and calf
०१ यथा मांसम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथा॑ मां॒सं यथा॒ सुरा॒ यथा॒क्षा अ॑धि॒देव॑ने।
यथा॑ पुं॒सो वृ॑षण्य॒त स्त्रि॒यां नि॑ह॒न्यते॒ मनः॑।
ए॒वा ते॑ अघ्न्ये॒ मनोऽधि॑ व॒त्से नि ह॑न्यताम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॑ मां॒सं यथा॒ सुरा॒ यथा॒क्षा अ॑धि॒देव॑ने।
यथा॑ पुं॒सो वृ॑षण्य॒त स्त्रि॒यां नि॑ह॒न्यते॒ मनः॑।
ए॒वा ते॑ अघ्न्ये॒ मनोऽधि॑ व॒त्से नि ह॑न्यताम् ॥
०१ यथा मांसम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As flesh, as strong-drink, as dice on the gambling-board; as of a
lustful man the mind is fastened (ni-han) on a woman—-so let thy mind,
O inviolable one (aghnyā́), be fastened on thy calf.
Notes
The verses are six-pāda jagatī (6 × 8 = 48). ⌊The stanza is wrongly
numbered.⌋
Griffith
As wine associates with flesh, as dice attend the gaming-board, As an enamoured man’s desire is firmly set upon a dame, So let thy heart and soul, O Cow, be firmly set upou thy calf.
पदपाठः
यथा॑। मां॒सम्। यथा॑। सुरा॑। यथा॑। अ॒क्षाः। अ॒धि॒ऽदेव॑ने। यथा॑। पुं॒सः। वृ॒ष॒ण्य॒तः। स्त्रि॒याम्। नि॒ऽह॒न्यते॑। मनः॑। ए॒व। ते॒। अ॒घ्न्ये॒। मनः॑। अधि॑। व॒त्से। नि। ह॒न्य॒ता॒म्। ७०.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अघ्न्या
- काङ्कायन
- जगती
- अघ्न्या सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर की भक्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (मांसम्) ज्ञान, (यथा) जैसे (सुरा) ऐश्वर्य, (यथा) जैसे (अक्षाः) अनेक व्यवहार (अधिदेवने) बहुत व्यवहारयुक्त राजद्वार में रहते हैं। (यथा) जैसे (वृषण्यतः) अपने को ऐश्वर्यवान् माननेवाले (पुंसः) पुरुष का (मनः) मन (स्त्रियाम्) स्तुति क्रिया [वा अपनी पत्नी] में (निहन्यते) स्थिर रहता है। (एव) वैसे ही (अघ्न्ये) हे न मारने योग्य प्रजा ! (ते) तेरा (मनः) मनः (वत्से) सब में निवास करनेवाले परमेश्वर में (अधि) अच्छे प्रकार (नि हन्यताम्) दृढ़ होवे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर में दृढ़ भक्ति करके सदा आनन्द भोगे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(यथा) येन प्रकारेण (मांसम्) अ० ४।१७।४। मन ज्ञाने−स प्रत्ययः, दीर्घश्च। मांसं माननं वा मानसं वा मनोऽस्मिन्त्सीदतीति वा निरु० ४।३। ज्ञानम् (यथा) (सुरा) सू० ७०। म० १। ऐश्वर्यम् (यथा) (अक्षाः) अक्षू व्याप्तिसंघातयोः−अच्। यद्वा। अशेर्देवने। उ० ३।६५। इति अशू व्याप्तौ−स प्रत्ययः। व्यवहाराः (अधिदेवने) दिवु व्यवहारे−ल्युट्। अधिकव्यवहारस्थाने राजद्वारे। (पुंसः) अ० १।८।१। पा रक्षणे−डुमसुन्। रक्षणशीलस्य पुरुषस्य (वृषण्यतः) दुरस्युर्द्रविणस्युर्वृषण्यति रिषण्यति। पा० ७।४।३६। इति वृषन्−क्यचि निपातितः। वृषाणम् इन्द्रम् ऐश्वर्यवन्तमात्मानमिच्छतः (स्त्रियाम्) अ० १।८।१। ष्टुञ् स्तुतौ−ड्रट्, ङीप्। स्तुतिक्रियायाम्। स्तुत्यायां पत्न्यां वा (निहन्यते) स्थाप्यते (मनः) चित्तम् (एव) एवम्। तथा (ते) तव (अघ्न्ये) अ० ३।३०।१। अघ्न्याऽहन्तव्या भवत्यघघ्नीति वा−निरु० ११।४३। हे अहन्तव्ये प्रजे (मनः) (अधि) (अधिकम्) (वत्से) अ० ३।१२।३। वृतॄवदिवचिवसि०। उ० ३।६२। इति वस निवासे−स। सर्वनिवासशीले परमेश्वरे (निहन्यताम्) दृढीक्रियताम् ॥
०२ यथा हस्ती
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथा॑ ह॒स्ती ह॑स्ति॒न्याः प॒देन॑ प॒दमु॑द्यु॒जे।
यथा॑ पुं॒सो वृ॑षण्य॒त स्त्रि॒यां नि॑ह॒न्यते॒ मनः॑।
ए॒वा ते॑ अघ्न्ये॒ मनोऽधि॑ व॒त्से नि ह॑न्यताम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॑ ह॒स्ती ह॑स्ति॒न्याः प॒देन॑ प॒दमु॑द्यु॒जे।
यथा॑ पुं॒सो वृ॑षण्य॒त स्त्रि॒यां नि॑ह॒न्यते॒ मनः॑।
ए॒वा ते॑ अघ्न्ये॒ मनोऽधि॑ व॒त्से नि ह॑न्यताम् ॥
०२ यथा हस्ती ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As the elephant strains foot with foot of the she-elephant; as of a
lustful man etc. etc.
Notes
The obscure first line is with intention rendered obscurely; the
Petersburg Lexicon conjectures ‘hastens after, step with step,’ which
then Grill follows. The comm. takes udyujé as = unnamayati, “bends
up, for love (premṇā), her foot with his foot.”
Griffith
As the male elephant pursues with eager step his female’s track, As an enamoured man’s desire is firmly set upon a dame, So let thy heart and soul, O Cow, be firmly set upon the calf.
पदपाठः
यथा॑। ह॒स्ती। ह॒स्ति॒न्याः। प॒देन॑। प॒दम्। उ॒त्ऽयु॒जे। यथा॑। पुं॒सः। वृ॒ष॒ण्य॒तः। स्त्रि॒याम्। नि॒ऽह॒न्यते॑। मनः॑। ए॒व। ते॒। अ॒घ्न्ये॒। मनः॑। अधि॑। व॒त्से। नि। ह॒न्य॒ता॒म्। ७०.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अघ्न्या
- काङ्कायन
- जगती
- अघ्न्या सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर की भक्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (हस्ती) हाथी (हस्तिन्याः) हथिनी के (पदेन) पदचिह्न से (पदम्) अपना पद (उद्युजे) बढ़ाये जाता है। (यथा) जैसे… म० १ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र एक के समान है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(यथा) (हस्ती) हस्ताज्जातौ। पा० ५।२।१३३। इति−णिनि। गजः (हस्तिन्याः) करेण्वाः (पदम्) पादम् (उद्युजे) युजिर् योगे, छान्दसो विकरणस्य लुक्। उद्युङ्क्ते। उन्नमयति। अन्यत्पूर्ववत् ॥
०३ यथा प्रधिर्यथोपधिर्यथा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथा॑ प्र॒धिर्यथो॑प॒धिर्यथा॒ नभ्यं॑ प्र॒धावधि॑।
यथा॑ पुं॒सो वृ॑षण्य॒त स्त्रि॒यां नि॑ह॒न्यते॒ मनः॑।
ए॒वा ते॑ अघ्न्ये॒ मनोऽधि॑ व॒त्से नि ह॑न्यताम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॑ प्र॒धिर्यथो॑प॒धिर्यथा॒ नभ्यं॑ प्र॒धावधि॑।
यथा॑ पुं॒सो वृ॑षण्य॒त स्त्रि॒यां नि॑ह॒न्यते॒ मनः॑।
ए॒वा ते॑ अघ्न्ये॒ मनोऽधि॑ व॒त्से नि ह॑न्यताम् ॥
०३ यथा प्रधिर्यथोपधिर्यथा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As the felly (pradhí), as the rim (upadhí), as the nave upon the
felly; as of a lustful man etc. etc.
⌊See p. xcii.⌋
Notes
The first line is again obscure, both in its internal relations and in
its relation to the refrain (in this resembling 1 a, b). BR. define
upadhi as ’the part of the wheel between the felly and nave,’ but this
ought to be arās ’the spokes’: the comm. explains it as ’the circle,
bound together by the felly, that is the binder together of the spokes’
(nemisambaddhaḥ arāṇāṁ sambandhako valayaḥ)—i.e. a sort of rim inside
the felly. Probably a solid wheel, without spokes, is had in view. We
should expect some other preposition than adhi ‘on’ to express the
relation of the nave to the felly.
Griffith
Close as the felly and the spoke, fixt as the wheel-rim on the nave, As an enamoured man’s desire is firmly set upon a dame, So let thy heart and soul, O Cow, be firmly set upon thy calf.
पदपाठः
यथा॑। प्र॒ऽधिः। यथा॑। उ॒प॒ऽधिः। यथा॑। नभ्य॑म्। प्र॒ऽधौ। अधि॑। यथा॑। पुं॒सः। वृ॒ष॒ण्य॒तः। स्त्रि॒याम्। नि॒ऽह॒न्यते॑। मनः॑। ए॒व। ते॒। अ॒घ्न्ये॒। मनः॑। अधि॑। व॒त्से। नि। ह॒न्य॒ता॒म्। ७०.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अघ्न्या
- काङ्कायन
- जगती
- अघ्न्या सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर की भक्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (प्रधिः) पहिये की पुट्ठी [अरों के जोड़ से] और (यथा) जैसे (उपधिः) अरों का जोड़ [पुट्ठों से] और (यथा) जैसे (नभ्यम्) नाभि स्थान (प्रधौ अधि) पुट्ठी के भीतर [जमा होता है], (यथा) जैसे म० १ ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र एक के समान है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(प्रधिः) उपसर्गे घोः किः। पा० ३।२।९२। इति धाञः−कि। रथचक्रस्य नेमिः (उपधिः) अराणां सन्धिः (नभ्यम्) उगवादिभ्यो यत्। पा० ५।१।२। इति नाभि−यत्। नाभये हितं रथाङ्गम्−अन्यत्पूर्ववत् ॥