०६४ सांमनस्यम् ...{Loading}...
Whitney subject
- For concord.
VH anukramaṇī
सांमनस्यम्।
१-३ अथर्वा। सांमनस्यम्, १ विश्वे देवाः। अनुष्टुप्, (२ त्रिष्टुप्)।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan.—sāmmanasyam. vāiśvadevam. ānuṣṭubham: [2. triṣṭubh].]
Whitney
Comment
The first two verses are found in Pāipp. xix. The whole hymn is RV. x. 191. 2, 3, 4, and is also read in TB. ii. 4. 44-5, and (with the order of the verses inverted) in MS. ii. 2. 6. In neither of these texts does the first verse of the RV. hymn (our 63. 4) stand in connection with the other verses; and as the situation of the RV. hymn is one that calls for three verses only, it is pretty evident that the first verse (which also has nothing to do with the others in point of sense) is a later addition, and has also, by an extremely curious process, not paralleled elsewhere in our text, been added at the end of our 63, in order to stand in its RV. relation to the other verses. See Oldenberg, Die Hymnen des RV., i. 244. The hymn is used by Kāuś. (12. 5) in a rite for harmony, with iii. 30, v. 1, etc.
Translations
Translated: by the RV. translators; and, as an AV. hymn, by Ludwig, p. 372; Grill, 31, 164; Griffith, i. 280; Bloomfield, 136, 492.
Griffith
To promote unanimity in an assembly
०१ सं जानीध्वम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
सं जा॑नीध्वं॒ सं पृ॑च्यध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम्।
दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सं जा॑नीध्वं॒ सं पृ॑च्यध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम्।
दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥
०१ सं जानीध्वम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Do ye concur; be ye closely combined; let your minds be concurrent,
as the gods of old sat concurrent about their portion.
Notes
The other texts begin sáṁ gachadhvaṁ sáṁ vadadhvam (but MS.
jānīdhvam); at the end, TB. reads (if it be not a misprint) upā́sata;
the pū́rve gives, at any rate, a past meaning to -te.
⌊Poona ed. has -ata.⌋
Griffith
Agree and be united: let your minds be all of one accord, Even as the Gods of ancient days, unanimous, await their share.
पदपाठः
सम्। जा॒नी॒ध्व॒म्। सम्। पृ॒च्य॒ध्व॒म्। सम्। वः॒। मनां॑सि। जा॒न॒ता॒म्। दे॒वाः। भा॒गम्। यथा॑। पूर्वे॑। स॒म्ऽजा॒ना॒नाः। उ॒प॒ऽआस॑ते। ६४.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विश्वे देवाः, मनः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संगति के लाभ का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सम् जानीध्वम्) आपस में जान पहिचान करो, (सम् पृच्यध्वम्) आपस में मिले रहो, (जानताम् वः) ज्ञानवाले तुम लोगों के (मनांसि) मन (सम्) एकसे होवें [अथवा−(वः) तुम्हारे (मनांसि) मन (सम्) एकसे (जानताम्) होवें]। (यथा) जैसे (पूर्वे) प्रथम स्थानवाले, (संजानानाः) यथावत् ज्ञानी (देवाः) विद्वान् लोग (भागम्) सेवनीय परमेश्वर अथवा ऐश्वर्यों के समूह को (उपासते) सेवन करते हैं ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परस्पर मिलकर वेद आदि शास्त्रों का विचार करके ज्ञानी पुरुषों के समान ईश्वर आज्ञा पालन करते हुए अनेक ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥१॥ मन्त्र १-३ कुछ भेद से ऋग्वेद के चार मन्त्रवाले अन्तिम सूक्त, म० १०। सू० १९१ के म० २-४। हैं, पहिला मन्त्र गत सूक्त में आ चुका है और स्वामी दयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, वेदोक्त धर्मविषय में भी आये हैं ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(सम् जानीध्वम्) संप्रतिभ्यामनाध्याने। पा० १।३।४६। इत्यात्मनेपदत्वम्। समानज्ञानयुक्ता भवत (सम् पृच्यध्वम्) पृची सम्पर्के। संपृक्ताः संसृष्टकार्य्या भवत (सम्) समानानि (वः) युष्माकम् (मनांसि) अन्तःकरणानि (जानताम्) ज्ञा अवबोधने−शतृ। ज्ञानवताम्, अथवा। अकर्मकाच्च। पा० १।३।४५। इत्यात्मनेपदम्। लोटि रूपम्। प्रवर्तन्ताम् (देवाः) विद्वांसः (भागम्) भज सेवायाम्−घञ्। भजनीयमीश्वरम्, अथवा, भग−अण्। भगानामैश्वर्य्याणां समूहम् (यथा) येन प्रकारेण (पूर्वे) प्रथमस्थाने वर्तमानाः श्रेष्ठाः (संजानानाः) सम्+शानच् सम्यग् ज्ञानवन्तः (उपासते) सेवन्ते ॥
०२ समानो मन्त्रः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
स॑मा॒नो मन्त्रः॒ समि॑तिः समा॒नी स॑मा॒नं व्र॒तं स॒ह चि॒त्तमे॑षाम्।
स॑मा॒नेन॑ वो ह॒विषा॑ जुहोमि समा॒नं चेतो॑ अभि॒संवि॑शध्वम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स॑मा॒नो मन्त्रः॒ समि॑तिः समा॒नी स॑मा॒नं व्र॒तं स॒ह चि॒त्तमे॑षाम्।
स॑मा॒नेन॑ वो ह॒विषा॑ जुहोमि समा॒नं चेतो॑ अभि॒संवि॑शध्वम् ॥
०२ समानो मन्त्रः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- [Be] their counsel (mántra) the same, their gathering the same,
their course (vratá) the same, their intent alike (sahá); I offer
for you with the same oblation; do ye enter together into the same
thought (cétas).
Notes
The other texts differ from ours in the first half-verse only in this,
that RV.TB. read mánas instead of vratám in b; but our c is
their d (TB.* having saṁjñā́nena for samānéna), and their c
agrees nearest with our d, TB. reading s. kéto abhí sáṁ
rabhadhvam, RV. s. mántram abhí mantraye vaḥ, and MS. s. krátum abhí
mantrayadhvam. Ppp. has, for b, samānaṁ cittaṁ saha vo manāṅsi,
and omits d. The Anukr. omits to describe the verse, as a
triṣṭubh. *⌊TB. has also yajāmas for juhomi.⌋
Griffith
The rede is common, common the assembly, common the law, so be their thoughts united. I offer up your general oblation: together entertain one common purpose.
पदपाठः
स॒मा॒नः। मन्त्रः॑। सम्ऽइ॑तिः। स॒मा॒नी। स॒मा॒नम्। व्र॒तम्। स॒ह। चि॒त्तम्। ए॒षा॒म्। स॒मा॒नेन॑। वः॒। ह॒विषा॑। जु॒हो॒मि॒। स॒मा॒नम्। चे॑तः। अ॒भि॒ऽसंवि॑शध्वम्। ६४.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विश्वे देवाः, मनः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संगति के लाभ का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्यो तुम्हारा] (मन्त्रः) मन्त्र, विचार (समानः) एकसा, (समितिः) समिति [सामाजिक व्यवस्था] (समानी) एकसी, (व्रतम्) धर्म का आचरण (समानम्) एकसा और (एषाम्) इन तुम सब का (चित्तम्) चित्त [सब पदार्थों का ज्ञान] (सह) मिला हुआ होवे। (समानेन) एक से (हविषा) ग्राह्य धर्म के साथ (वः) तुम को (जुहोमि) मैं ग्रहण करता हूँ, (समानम्) एक से (चेतः) चिन्तन [भूत, भविष्यत् के अनुभव के स्मरण] में (अभिसंविशध्वम्) तुम भली-भाँति प्रवेश करो ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि सदा वेदमार्ग पर चलकर एकचित्त होकर धर्मसभा, विद्यासभा, राजसभा आदि बनाकर बुद्धि, बल, और पराक्रम आदि उत्तम गुण बढ़ावें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(समानः) सम्+अन प्राणने−घञ्। तुल्यः। एकरूपः (मन्त्रः) मत्रि गुप्तभाषणे−घञ्। सत्यासत्यविवेकः (समितिः) सम्+इण्−क्तिन्। संगतिः। सभा (समानी) एकरसा (समानम्) अविरुद्धम् (व्रतम्) अ० २।३०।२। वृञ्−अतच्। वरणीयं धर्माचरणम् (सह) संगतम् (चित्तम्) सर्वपदार्थविषयि ज्ञानम् (एषाम्) एतेषां युष्माकम् (समानेन) एकरूपेण (वः) युष्मान् (हविषा) ग्राह्येण धर्मणा (जुहोमि) हु दानादानादनेषु। आददे। स्वीकरोमि (समानम्) साधारणम् (चेतः) पूर्वापरानुभूतं स्मरणात्मकं चिन्तनम् (अभिसंविशध्वम्) अभितः प्रविशत। आत्मनि धारयत ॥
०३ समानी व
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
स॑मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः।
स॑मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ वः॒ सुस॒हास॑ति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स॑मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः।
स॑मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ वः॒ सुस॒हास॑ति ॥
०३ समानी व ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Be your design the same, your hearts the same, your mind the same,
that it may be well for you together.
Notes
MS. has, for a, samānā́ vā (i.e. vas) ā́kūtāni. The comm.
appears to understand su saha as two independent words in d. ⌊See
MGS. i. 8. 10 and p. 156, s.v. samānā.⌋ ⌊Pāda a lacks a syllable,
easily supplied.⌋
Griffith
One and the same be your resolve, be all your hearts in har- mony: One and the same be all your minds that all may happily con- sent.
पदपाठः
स॒मा॒नी। वः॒। आऽकू॑तिः। स॒मा॒ना। हृद॑यानि। वः॒। स॒मा॒नम्। अ॒स्तु॒। वः। मनः॑। यथा॑। वः॒। सुऽस॑ह। अस॑ति। ६४.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विश्वे देवाः, मनः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- सांमनस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
संगति के लाभ का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वः) तुम्हारा (आकूतिः) निश्चय, उत्साह, अथवा सङ्कल्प (समानी) एकसा और (वः) तुम्हारे (हृदयानि) हृदय [हार्दिक कर्म] (समाना) एक से होवें। (वः) तुम्हारा (मनः) मन [मनन कर्म] (समानम्) एकसा (अस्तु) होवे, (यथा) जिससे (वः) तुम्हारी (असति) गति (सुसह) बड़ा सहाय करनेवाली होवे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य धर्म के विचारों में प्रीतिपूर्वक एकमत होकर अपने सब काम समाज द्वारा सिद्ध करके सुख बढ़ावें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(समानी) एकरूपा (वः) युष्माकम् (आकूतिः) अध्यवसाय उत्साह आप्तरीतिः संकल्पो वा (समाना) अविरुद्धानि (हृदयानि) हार्दिककर्माणि (वः) (समानम्) तुल्यम् (अस्तु) भवतु (वः) युष्माकम् (मनः) मननम्। सङ्कल्पविपकल्पात्मकेन्द्रियव्यापारः (यथा) येन प्रकारेण (वः) युष्माकम् (सुसह) अव्ययम्। सुष्ठु धर्मेण सह सहायिका भवतु (असति) अमेरतिः। उ० ४।५९। इति अस गतौ−अति। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति विभक्तेर्लुक्। असतिः। गतिः ॥