०६२ पावमानम्

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Whitney subject
  1. To Vāiśvānara etc.: for purification.
VH anukramaṇī

पावमानम्।
१-३ अथर्वा। रुद्रः, वैश्वानरः, वातः, द्यावापृथिवि। त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan (?).—rāudram uta mantroktadevatyam. trāiṣṭubham.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xix. (but the first verse is given only by its pratīka, and has not been found elsewhere), and its first two verses in other texts, as noted below. Agrees in use with the preceding hymn as regards the gaṇas to which it is reckoned (Kāuś. 9. 2, and note to 50. 13; Keś. ⌊to 61. 5⌋ and the comm. ⌊page 37 end⌋ further have it, with vi. 19 and 51, in a pavitra gaṇa), and (41. 14) in the rite for good fortune; and it appears (41. 15) in another similar rite, with worship of the rising sun; and is added (note to 41. 13) in one for luck in gambling.

Translations

Translated: Griffith, i. 279.

Griffith

A prayer for purification and riches

०१ वैश्वानरो रश्मिभिर्नः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

वै॑श्वान॒रो र॒श्मिभि॑र्नः पुनातु॒ वातः॑ प्रा॒णेने॑षि॒रो नभो॑भिः।
द्यावा॑पृथि॒वी पय॑सा॒ पय॑स्वती ऋ॒ताव॑री यज्ञिये नः पुनीताम् ॥

०१ वैश्वानरो रश्मिभिर्नः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let Vāiśvānara (Agni) by his rays purify us, the wind, lively with
    mists (? nábhas), by his breath; let heaven-and-earth, rich in milk,
    righteous, worshipful, purify us by milk.
Notes

The verse is found also in TB. (i. 4. 8³) and MS. (iii. 11. 10). They
read for nas in a and d, mayobhū́s (which is decidedly
better) for nábhobhis at end of b, and páyobhis for páyasvatī
in c. Pāda c is jagatī.

Griffith

Cleanse us Vaisvanara with rays of splendour! With breath and clouds let quickening Vayu cleanse us. And, rich in milky rain, let Earth and Heaven, worshipful, holy, cleanse us with their water.

पदपाठः

वै॒श्वा॒न॒रः। र॒श्मिऽभिः॑। नः॒। पु॒ना॒तु॒। वातः॑। प्रा॒णेन॑। इ॒षि॒रः। नभः॑ऽभिः। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। पय॑सा। पय॑स्वती॒ इति॑। ऋ॒तव॑री॒ इत्यृ॒तऽव॑री। य॒ज्ञिये॒ इति॑। नः॒। पु॒नी॒ता॒म्। ६२.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • पावमान सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

धन और नीरोगता का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वैश्वानरः) सब नरों का हितकारी परमेश्वर (रश्मिभिः) विद्याप्रकाशों से और (इषिरः) शीघ्रगामी (वातः) पवन (प्राणेन) प्राण से और (नभोभिः) मेघों से (नः) हमें (पुनातु) पवित्र करे। (पयस्वती) रसवाली (ऋतावरी) सत्यशील और (यज्ञिये) संगति करने योग्य (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी लोक (पयसा) अपने रस से (नः) हमें (पुनीताम्) शुद्ध करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विज्ञानपूर्वक सूर्य, वायु, मेघ, पृथिवी, आदि पदार्थों से शिल्प आदि और शरीररक्षण आदि में उपकार लेकर सुखी हों ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(वैश्वानरः) सर्वनरहितः परमेश्वरः (रश्मिभिः) विद्याप्रकाशैः (नः) अस्मान् (पुनातु) शोधयतु (वातः) वायुः (प्राणेन) श्वासप्रश्वासव्यापारेण (इषिरः) अ० ५।१।९। गमनशीलः (नभोभिः) अ० ४।१५।३। मेघैः (द्यावापृथिवी) सूर्यभूलोकौ (पयसा) रसेन (पयस्वती) रसवत्यौ (ऋतावरी) अ० ३।१३।७। सत्ययुक्ते (यज्ञिये) संगतिकरणयोग्ये (नः) (पुनीताम्) शोधयताम् ॥

०२ वैश्वानरीं सूनृतामा

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वै॑श्वान॒रीं सू॒नृता॒मा र॑भध्वं॒ यस्या॒ आशा॑स्त॒न्वो᳡ वी॒तपृ॑ष्ठाः।
तया॑ गृ॒णन्तः॑ सध॒मादे॑षु व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥

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Whitney
Translation
  1. Take ye hold upon the pleasantness of Vāiśvānara, of which the
    regions are the smooth-backed bodies; with that, singing in joint
    revelings, may we be lords of wealth (pl.).
Notes

The sense, especially of b, is obscure, and the version mechanical;
b is perhaps a reminiscence of RV. i. 162. 7 b. Found,
considerably altered in a, b, in VS. (xix. 44), and TB.MS. (as
above). They read for a, b vāiśvadevī́ punatī́ devy ā́ ’gād yásyām
(TB. yásyāi, MS. yásyās) imā́ (TB.MS. omit) bahvyàs (TB.
bahvī́s) tanvò (TB. tanúvo) vītápṛṣṭhāḥ; all have mádantas for
gṛṇántas in c, and TB.MS. -mā́dyeṣu—this last an alteration
plainly called for by the meter; and the Anukr. does not describe the
verse as nicṛt. Ppp. has at the beginning vāiśvadevyaṁ, for b a
wholly different text, śuddhā bhavanta śucayaṣ pāvakāḥ (our 3 b),
and in c, corruptly, -nta sasada ādayema. The variants indicate,
as often elsewhere, the hopelessness of a rendering.

Griffith

Lay hold on Sunrita whose forms and regions have fair smooth backs, her who is all men’s treasure. Through her may we, in sacrificial banquets singing her glory, be the lords of riches.

पदपाठः

वै॒श्वा॒न॒रीम्। सू॒नृता॑म्। आ। र॒भ॒ध्व॒म्। यस्याः॑। आशाः॑। त॒न्वः᳡। वी॒तऽपृ॑ष्ठाः। तया॑। गृ॒णन्तः॑। स॒ध॒ऽमादे॑षु। व॒यम्। स्या॒म॒। पत॑यः। र॒यी॒णाम्। ६२.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • पावमान सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

धन और नीरोगता का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्यो !] (वैश्वानरीम्) सब नरों का हित करनेवाली (सूनृताम्) प्रिय सत्य वेदवाणी को (आ रभध्वम्) तुम आरम्भ करो, (यस्याः) जिसके (तन्वः) शरीर के (आशाः) विस्तार (वीतपृष्ठाः) सेचन सामर्थ्य पहुँचानेवाले हैं। (तथा) उस [वेदवाणी] से (सधमादेषु) परस्पर आनन्द उत्सवों पर (गृणन्तः) बातचीत करते हुए (वयम्) हम लोग (रयीणाम्) धनों के (पतयः) स्वामी (स्याम) होवें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदविद्या का सर्वत्र प्रचार करके विद्या धन और सुवर्णादि धन बढ़ावें ॥२॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है=अ० १९।४४ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(वैश्वानरीम्) अ० १।१।४। वैश्वानर−ङीप्। सर्वनरहिताम् (सूनृताम्) अ० ३।१२।२। प्रियसत्यात्मिकां वेदवाणीम्। (आरभध्वम्) उपक्रमध्वम् (यस्याः) सूनृतायाः (आशाः) आङ्+अशू व्याप्तौ−अच्, टाप्। विस्ताराः (तन्वः) अ० १।१।१। तन्वाः शरीरस्य। स्वरूपस्य (वीतपृष्ठाः) वी गतिव्याप्त्यादिषु−क्त। तिथपृष्ठ०। उ० २।१२। इति पृषु सेचने−थक्। (तया) सूनृतया (गृणन्तः) गॄ शब्दे−शतृ। शब्दयन्तः (सधमादेषु) सह+मदी हर्षग्लेपनयोः−घञ्। सधमादस्थयोश्छन्दसि। पा० ६।३।९६। सहर्षोत्सवेषु (वयम्) वेदानुगामिनः (स्याम) भवेम (पतयः) स्वामिनः (रयीणाम्) बहुधनानाम् ॥

०३ वैश्वानरीं वर्चस

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वै॑श्वान॒रीं वर्च॑स॒ आ र॑भध्वं शु॒द्धा भव॑न्तः॒ शुच॑यः पाव॒काः।
इ॒हेड॑या सध॒मादं॒ मद॑न्तो॒ ज्योक्प॑श्येम॒ सूर्य॑मु॒च्चर॑न्तम् ॥

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Whitney
Translation
  1. Take ye hold upon that (f.) of Vāiśvānara in order to splendor,
    becoming cleansed, clear, purifying; here, reveling in joint reveling
    with Iḍā, may we long see the sun going up.
Notes

The first half-verse is nearly identical with xii. 2. 28 a, b. Durga
to Nir. vi. 12 (Calcutta ed’n, iii. 187) quotes vāiśvadevīṁ sūnṛtām ā
rabhadhvam
, showing that sūnṛta is meant here also, as in vs. 2. Ppp.
reads in a vaiśvānaryaṁ, combines varcasā ”rabh-; ⌊has for b
our 2 b, combining yasyā ”śās;⌋ and begins c with īḍe ’ha
sadh-
.

Griffith

For splendour, seize on her whom all men worship, becoming pure yourselves, and bright, and brilliant. Here, through our prayer rejoicing in the banquet, long may we look upon the Sun ascending.

पदपाठः

वै॒श्वा॒न॒रीम्। वर्च॑से। आ। र॒भ॒ध्व॒म्। शु॒ध्दाः। भव॑न्तः। शुच॑यः। पा॒व॒काः। इ॒ह। इड॑या। स॒ध॒ऽमाद॑म्। मद॑न्तः। ज्योक्। प॒श्ये॒म॒। सूर्य॑म्। उ॒त्ऽचर॑न्तम्। ६२.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • पावमान सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

धन और नीरोगता का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्यो !] (शुद्धाः) शुद्ध, (शुचयः) पवित्र और (पावकाः) शुद्ध करनेवाले (भवन्तः) होते हुए तुम (वैश्वानरीम्) सब नरों का हित करनेवाली [वेदवाणी] को (वर्चसे) तेज पाने के लिये (आरभध्वम्) आरम्भ करो। (इह) यहाँ पर (इडया) वेदवाणी से (सधमादम्) परस्पर हर्ष उत्सव को (मदन्तः) आनन्दित करते हुए हम (ज्योक्) बहुत काल तक (उच्चरन्तम्) चढ़ते हुए (सूर्य्यम्) सूर्य को (पश्येम) देखते रहें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदविद्या का आश्रय लेकर आप शुद्ध होकर और दूसरे अज्ञानियों को शुद्ध करके परस्पर आनन्द भोगते हुए चढ़ते हुए सूर्य के समान प्रतापी होवें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(वैश्वानरीम्) म० २। विश्वनरहितां वेदवाणीम् (वर्चसे) ब्रह्मवर्चसप्राप्तये (आ रभध्वम्) उपक्रमध्वम् (शुद्धाः) पवित्राचाराः (भवन्तः) सन्त (शुचयः) निष्पापाः (पावकाः) अन्येषां शोधकाः (इह) अस्मिन् लोके (इडया) वाचा। वेदवाण्या (सधमादम्) म० २। परस्परहर्षोत्सवम् (मदन्तः) अन्तर्गतण्यर्थः। मादयन्तः। आनन्दयन्तः (ज्योक्) अ० १।६।३। चिरकालम् (पश्येम) अवलोकयेम (सूर्यम्) आदित्यम् (उच्चरन्तम्) उद्गच्छन्तम् ॥