०५७ जलचिकित्सा

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Whitney subject
  1. With a certain remedy against disease.
VH anukramaṇī

जलचिकित्सा।
१-३ शन्तातिः। रुद्रः। १-२ अनुष्टुप् ३ पथ्याबृहती।

Whitney anukramaṇī

[śaṁtāti.—1, 2. rāudryāu; anuṣṭubh; 3. ⌊?⌋; pathyābṛhatī.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xix. Used by Kāuś. (31. 11) in a healing rite, while treating a bruise ⌊? akṣata: cf. Bloomfield, Introd. p. xliii⌋ with foam of urine; and vs. 3 is reckoned (9. 2) to the bṛhachānti gaṇa, and employed, with vi. 19 etc. (41. 14), in a rite for welfare.

Translations

Translated: Griffith, i. 276; Bloomfield, 19, 488.

Griffith

A charm for a wound or bruise

०१ इदमिद्वा उ

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इ॒दमिद्वा उ॑ भेष॒जमि॒दं रु॒द्रस्य॑ भेष॒जम्।
येनेषु॒मेक॑तेजनां श॒तश॑ल्यामप॒ब्रव॑त् ॥

०१ इदमिद्वा उ ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This verily is a remedy; this is Rudra’s remedy; wherewith one may
    spell away (apa-brū) the one-shafted (-téjana), hundred-tipped
    arrow.
Notes

The comm. has at the end upabruvat. He regards the remedy as used
against the vraṇaroga, and the arrow of c, d as that of Mahadeva,
used tripurasaṁhṛtisamaye.

Griffith

This is a medicine indeed, Rudra’s own medicine is this, Wherewith he warns the arrow off one-shafted, with a hundred tips.

पदपाठः

इ॒दम्। इत्। वै। ऊं॒ इति॑। भे॒ष॒जम्। इ॒दम्। रु॒द्रस्य॑। भे॒ष॒जम्। येन॑। इषु॑म्। एक॑ऽतेजनाम्। श॒तऽश॑ल्याम्। अ॒प॒ऽब्रव॑त्। ५७.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • शन्ताति
  • अनुष्टुप्
  • जलचिकित्सा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

दोष के नाश के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) यह [वेदज्ञान] (इत्) ही (वै) निश्चय करके (भेषजम्) भयनिवारक वस्तु है, (इदम्) यह (उ) ही (रुद्रस्य) दुःखनाशक परमेश्वर का (भेषजम्) औषध है। (येन) जिससे [मनुष्य] (एकतेजनाम्) देहरूप एक दण्डवाले और (शतशल्याम्) व्याधिरूप सैकड़ों अणीवाले (इषुम्) बाण को (अपब्रवत्) हटा कर बोले ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वरदत्त वेदज्ञान से अपन पापों को नष्ट कर सुखी होवे, जैसे घाव से तीर निकलने पर सुख मिलता है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(इदम्) प्रत्यक्षं वेदज्ञानम् (इत्) एव (वै) निश्चयेन (उ) एव (भेषजम्) भयनाशकं वस्तु (इदम्) (रुद्रस्य) अ० २।२७।६। दुःखनाशकस्य परमेश्वरस्य (भेषजम्) औषधम् (येन) औषधेन (इषुम्) बाणम् (एकतेजनाम्) तिज निशाने पालने च−ल्यु। तेजनो वशः। एकस्तेजनः शरीररूपो वेणुकाण्डो यस्याः सा, तथाविधाम् (शतशल्याम्) व्याधिरूपाणि शतानि बहूनि शल्यानि अयोमुखानि प्रोतानि यस्यां, तादृशीम् (अपब्रवत्) अप वियोगे। वियुज्य ब्रूयात् ॥

०२ जालाषेणाभि षिञ्चत

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

जा॑ला॒षेणा॒भि षि॑ञ्चत जाला॒षेणोप॑ सिञ्चत।
जा॑ला॒षमु॒ग्रं भे॑ष॒जं तेन॑ नो मृड जी॒वसे॑ ॥

०२ जालाषेणाभि षिञ्चत ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Pour ye on with the jālāṣá; pour in with the jālāṣá; the
    jālāṣá is a formidable remedy; with it do thou be gracious to us, unto
    life (jīvás).
Notes

Ppp. has, for second half-verse, jālāṣe bhadraṁ bheṣajaṁ tasyo no dehi
jīvase
, which is better. The comm. reads jal- in all three cases; and
it has the RV. form mṛḻa in d; it understands the foam of cows’
urine to be intended by jalāṣa ⌊See Bloomfield, AJP. xii. 425⌋.

Griffith

Besprinkle it with anodyne, bedew it with relieving balm: Strong, soothing is the medicine: bless us therewith that we may live.

पदपाठः

जा॒ला॒षेण॑। अ॒भि। सि॒ञ्च॒त॒। जा॒ला॒षेण॑। उप॑। सि॒ञ्च॒त॒। जा॒ला॒षम्। उ॒ग्रम्। भे॒ष॒जम्। तेन॑। नः॒। मृ॒ड॒। जी॒वसे॑। ५७.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • शन्ताति
  • अनुष्टुप्
  • जलचिकित्सा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

दोष के नाश के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (जालाषेण) जलसम्बन्धी द्रव्य से [फोड़े को] (अभि सिञ्चत) सब और से सींचो, (जालाषेण) सुखकारक पदार्थों से [उसे] (उप सिञ्चत) पास से सींचो। (जालाषम्) सुखों का समूह [वेदज्ञान] (उग्रम्) तीक्ष्ण (भेषजम्) औषध है, (तेन) उससे [हे रुद्र] (नः) हमें (जीवसे) जीने के लिये (मृड) सुखी रख ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे वैद्य औषधियों द्वारा रोगों को अच्छा करते हैं, वैसे ही मनुष्य वेदज्ञान से अपने पाप नष्ट कर के सुखी होवें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(जालाषेण) जायते जः। जैर्जातैर्लष्यते वाञ्छ्यते। ज+लष इच्छायाम्−घञ्। जलाषमुदकम्−निघ० १।१२। सुखनाम−निघ० ३।६। तस्येदम्। पा० ४।१।९२। इति, अण्। जलसम्बन्धिना वस्तुना (अभि) अभितः (सिञ्चत) व्रणं प्रक्षालयत, हे वैद्याः (जालाषेण) सुखकरेण द्रव्येण (उप) उपेत्य (सिञ्चत) शोधयत (जालाषम्) तस्य समूहः। पा० ४।२।३७। इति, अण्। सुखस्य समूहो वेदज्ञानम् (उग्रम्) तीक्ष्णम् (भेषजम्) भयनिवारकं वस्तु (तेन) जालाषेण (नः) अस्मान् (मृड) सुखय (जीवसे) जीवनार्थम् ॥

०३ शं च

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शं च॑ नो॒ मय॑श्च नो॒ मा च॑ नः॒ किं च॒नाम॑मत्।
क्ष॒मा रपो॒ विश्वं॑ नो अस्तु भेष॒जं सर्वं॑ नो अस्तु भेष॒जम् ॥

०३ शं च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. [Be there] both weal for us and kindness (máyas) for us, and let
    nothing whatever ail (am) us; down with [our] complaint (rápas)!
    be every remedy ours; be all remedy ours.
Notes

Pāda b and the first two words of our c occur at RV. x. 59. 8
e, d, 9 f, e, 10 f, e, where, however, we have mó ṣú te
instead of mā́ ca nas, and dyāúḥ pṛthivi before kṣamā́ rápas, making
a complete pāda. ⌊Cf. also RV. viii. 20. 26.⌋ The comm. explains kṣamā
by kṣāntir upaśamo bhavatu. Our b occurs also elsewhere (as AV. x.
5. 23 c, and RV. ix. 114. 4 d ⌊this time with mó ca nas⌋). The
first pāda lacks a syllable ⌊unheeded by the Anukr.: read śáṁ cā́stu
no?
⌋ . ⌊The Anukr. scans as 7 + 8: 12 + 8: but perhaps the
“12-syllabled pāda” contains, as the RV. hints, the damaged remnants of
two (8 + 8).⌋ ⌊Ppp. omits our last pāda, sárvam etc.⌋

Griffith

Let it be health and joy to us. Let nothing vex or injure us. Down with the wound! Let all to us be balm, the whole be medicine.

पदपाठः

शम्। च॒। नः॒। मयः॑। च॒। नः॒। मा। च॒। नः॒। किम्। च॒न। आ॒म॒म॒त्। क्ष॒मा। रपः॑। विश्व॑म्। नः॒। अ॒स्तु॒। भे॒ष॒ज॒म्। सर्व॑म्। नः॒। अ॒स्तु॒। भे॒ष॒जम्। ५७.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • शन्ताति
  • पथ्याबृहती
  • जलचिकित्सा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

दोष के नाश के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (च) निश्चय करके (नः) हमारे लिये (शम्) शान्ति (च) और (नः) हमारे लिये (मयः) सुख होवे, (च) और (नः) हमें (किं चन) कोई भी दुःख (मा आममत्) न पीड़ा देवे। (रपः=रपसः) पाप की (क्षमा) क्षमा हो। (विश्वम्) सब जगत् (नः) हमारे लिये (भेषजम्) भयनिवारक (अस्तु) होवे, (सर्वम्) सब (नः) हमारे लिये (भेषजम्) रोगनाशक (अस्तु) होवे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य रुद्र परमात्मा के अनुग्रह से पुरुषार्थपूर्वक अपने विघ्न हटा कर सुख भोगें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(शम्) शान्तिः। स्वास्थ्यम् (च) निश्चयेन (नः) अस्मभ्यम् (मयः) अ० १।१३।२। सुखम् (च) समुच्चये (नः) (च) (नः) अस्मान् (किंचन) किमपि दुःखम् (मा आममत्) अम पीडने−लुङि चङि रूपम्। न पीडयेत् (क्षमा) क्षमूष् सहने−अङ्। क्षान्तिः। उपशमः (रपः) अ० ४।१३।२। रपो रप्रमिति पापनामनी। भवतः−निरु० ४।२१। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति षष्ठ्या लुक्। रपसः। दोषस्य (विश्वम्) सर्वं जगत् (नः) अस्मभ्यम् (भेषजम्) भयनिवारकम् (सर्वम्) समस्तम् (नः) (अस्तु) (भेषजम्) रोगनाशकम् ॥