०५५ सौमनस्यम्

०५५ सौमनस्यम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. For various blessings.
VH anukramaṇī

सौमनस्यम्।
१-३ ब्रह्म। १ विश्वे देवाः, २-३ रुद्रः। जगती, २ त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Brahman (?).—1. vāiśvadevī, jagatī; 2, 3. rāudryāu: 2. triṣṭubh; 3. jagatī.]

Whitney

Comment

Not found in Pāipp., but in TS. (v. 7. 23-4) etc. as noted below. Used by Kāuś. (52. 1) in a rite for welfare, on going away; and vs. 2 is reckoned (note to 50. 13) to the rāudra gaṇa. With vs. 2, according to Vāit. 2. 16, are offered the prayājas in the parvan sacrifice; and with vs. 3 (8. 5), the initial and final homas in the āgrayaṇa.

Translations

Translated: Ludwig, p. 218; Griffith, i. 275.—As to cycles of lunar years, see Zimmer, p. 370.

Griffith

A prayer for general protection and prosperity

०१ ये पन्थानो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ये पन्था॑नो ब॒हवो॑ देव॒याना॑ अन्त॒रा द्यावा॑पृथि॒वी सं॒चर॑न्ति।
तेषा॒मज्या॑निं यत॒मो वहा॑ति॒ तस्मै॑ मा देवाः॒ परि॑ धत्ते॒ह सर्वे॑ ॥

०१ ये पन्थानो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The many paths, traveled by the gods, that go between
    heaven-and-earth—whichever of them shall carry [one] to unscathedness,
    to that one, O gods, do ye all here give me over.
Notes

The first half-verse is also iii. 15. 2 a, b. TS. begins
catvā́raḥ patháyo
, and ends b with viyánti (metrically better);
its c is téṣāṁ yó ájyānim ájītim āváhāt; and in d it has nas
for , and datta for dhatta. PGS. (iii. 1. 2) agrees with TS.
except in this last point, and in combining yo ‘jyānim in c; MB.
(ii. 1. 10) ⌊also agrees with TS. save that it⌋ has ajījim for
ajītim. The comm. has datta, like TS., and it is the better reading.
Both this verse and vs. 3 are incomplete as jagatī.

Griffith

Of all the many God-frequented pathways that traverse realms between the earth and heaven, Consign me, all ye Gods to that which leadeth to perfect and inviolable safety.

पदपाठः

ये। पन्था॑नः। ब॒हवः॑। दे॒व॒ऽयानाः॑। अ॒न्त॒रा। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। स॒म्ऽचर॑न्ति। तेषा॑म्। अज्या॑निम्। य॒त॒मः। वहा॑ति। तस्मै॑। मा॒। दे॒वाः॒। परि॑। ध॒त्त॒। इ॒ह। सर्वे॑। ५५.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • विश्वे देवाः
  • ब्रह्मा
  • जगती
  • सौम्नस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब सम्पत्ति प्राप्ति के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (देवयानाः) विद्वानों के यानों, रथादिकों के योग्य (बहवः) बहुत से (पन्थानः) मार्ग (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी के (अन्तरा) बीच (संचरन्ति) चलते रहते हैं, (तेषाम्) उन मार्गों में से (यतमः) जो कोई मार्ग (अज्यानिम्) अभङ्ग शान्ति (वहाति) पहुँचावे। (सर्वे देवा) हे सब विद्वानों ! (तस्मै) उस मार्ग के लिये (मा) मुझे (इह) यहाँ पर (परि) अच्छे प्रकार (धत्त) स्थिर करो ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्वज महात्माओं के समान विज्ञानपूर्वक वैदिक मार्ग में चलकर शान्ति प्राप्त करें ॥१॥ इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध अ० ३।१५।२। में आ गया है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−पूर्वार्द्धो व्याख्यातः−अ० ३।१५।२। यथा (ये) (पन्थानः) मार्गाः (बहवः) नानाविधाः (देवयानाः) विदुषां यानयोग्याः (अन्तरा) मध्ये (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (संचरन्ति) वर्तन्ते (तेषाम्) पथां मध्ये (अज्यानिम्) ज्या वयोहानौ−क्तिन्। अजरां शान्तिम् (यतमः) अ० ४।११।५। यः कश्चित् (वहाति) लेटि, अडागमः। वहेत् प्रापयेत् (तस्मै) मार्गाय (मा) माम् (देवाः) विद्वांसः (परि) सर्वतः (धत्त) स्थापय (इह) अस्मिन् लोके (सर्वे) समस्ताः ॥

०२ ग्रीष्मो हेमन्तः

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ग्री॒ष्मो हे॑म॒न्तः शिशि॑रो वस॒न्तः श॒रद्व॒र्षाः स्वि॒ते नो॑ दधात।
आ नो॒ गोषु॒ भज॒ता प्र॒जायां॑ निवा॒त इद्वः॑ शर॒णे स्या॑म ॥

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Whitney
Translation
  1. Hot season, winter, cool season, spring, autumn, rains—do ye set us
    in welfare (svitá); portion ye us in kine, in progeny; may we verily
    be in your windless shelter.
Notes

TS. and MB. (ii. 1. 11) read utá nas for śíśiras in a, end b
with suvitáṁ no astu, and have, for c, d, téṣām ṛtūṇā́ḿ
śatáśāradānāṁ nivātá eṣām ábhaye syāma
. ⌊See also MGS. ii. 8. 6 a,
and p. 158, s.v. hemanto. PGS. (iii. 2. 2) follows TS. except that it
ends with vasema and has for b śivā varṣā abhayā śaran naḥ.⌋

Griffith

Maintain us in well-being Summer, Winter Dew-time and Spring, Autumn, and Rainy Season Give us our share of cattle and of Children. May we enjoy your unassailed protection.

पदपाठः

ग्री॒ष्मः। हे॒म॒न्तः। शिशि॑रः। व॒स॒न्तः। श॒रत्। व॒र्षाः। सु॒ऽइ॒ते। नः॒। द॒धा॒त॒। आ। नः॒। गोषु॑। भज॑त। आ। प्र॒ऽजाया॑म्। नि॒ऽवा॒ते। इत्। वः॒। श॒र॒णे। स्या॒म॒। ५५.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • सौम्नस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब सम्पत्ति प्राप्ति के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वसन्तः) वसन्तकाल [चैत्र, वैशाख] (ग्रीष्मः) घाम ऋतु [ज्येष्ठ, आषाढ़] (वर्षाः) बरसा [श्रावण, भाद्रमास] (शरत्) शरद् ऋतु [आश्विन, कार्तिक] (हेमन्तः) शीत काल [आग्रहायण, पौष] (शिशिरः) उतरता शीतकाल [माघ, फाल्गुन] यह तुम सब (नः) हमें (स्विते) अच्छे प्रकार प्राप्त कुशल में (दधात) स्थापित करो। (नः) हमें (गोषु) गौ आदि पशुओं में (आ) और (प्रजायाम्) प्रजा में (आ) सब ओर से (भजत) भागी करो, (वः) तुम्हारे (इत्) ही (निवाते) हिंसारहित (शरणे) शरण में (स्याम) हम रहें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रत्येक ऋतु में उचित आहार-विहार करके गौ आदि पशुओं और पुत्र पौत्र भृत्य प्रजाओं सहित सुखी रहें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(ग्रीष्मः) घर्मग्रीष्मौ। उ० १।१४९। इति ग्रसु अदने−मक्, ग्रीभावः षुगागमश्च। निदाघः। ज्येष्ठाषाढात्मकः कालः (हेमन्तः) अ० ३।११।४। आग्रहायणपौषात्मकः कालः (शिशिरः) अजिरशिशिर०। उ० १।५३। इति शश प्लुतगतौ−किरच्, उपधाया इत्वम्। माघफाल्गुनमासात्मकशीतान्तः कालः (वसन्तः) अ० ३।११।४। चैत्रवैशाखात्मकः पुष्पकालः (शरत्) अ० १।१०।२। आश्विनकार्तिकात्मकः कालः (वर्षाः) वर्ष वर्षणमस्त्यासु। वर्ष−अर्शआदिभ्योऽच्, टाप्। यद्वा। व्रियन्ते। वृतॄवदि०। उ० ३।६२। इति वृञ् वरणे−स, टाप्। श्रावणभाद्रात्मको मेघकालः (स्विते) सुष्ठु प्राप्ते कुशले (नः) अस्मान् (दधात) धत्त। स्थापयत (आ) समुच्चये (नः) अस्मान् (गोषु) गवादिपशुषु (भजत) भागिनः कुरुत (आ) समन्तात् (प्रजायाम्) पुत्रपौत्रभृत्यादिरूपे जने (निवाते) वा गतिहिंसनयोः−क्त। अहिंसिते (इत्) एव (वः) युष्माकम् (शरणे) रक्षणे (स्याम) भवेम ॥

०३ इदावत्सराय परिवत्सराय

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इ॑दावत्स॒राय॑ परिवत्स॒राय॑ संवत्स॒राय॑ कृणुता बृ॒हन्नमः॑।
तेषां॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिया॑ना॒मपि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म ॥

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Whitney
Translation
  1. Unto the idā-year, the pari-year, the sam-year, pay ye great
    homage; may we be in the favor of these worshipful ones, likewise in
    their auspicious well-willing.
Notes

TS. begins with the idvatsara or id-year (in the form iduvat-),
and has, for d, jyóg ájītā áhatāḥ syāma; MB. (ii. 1. 12) differs
from it only in the form idvat-; PGS. (iii. 2. 2) also agrees except
in giving in a the whole series of five year-names of the cycle:
saṁv-, pariv-, idāv-, id-vatsarāya, and vatsarāya. Our latter
half-verse occurs repeatedly in RV. (e.g. iii. 1. 21 c, d*), and
once more in AV. (xviii. 1. 58 c, d). Ppp. xvii. 6. 15 enumerates in
succession ṛtavas, ārtavās, and idā-, anu-, pari-, and
samvatsarās. The comm. quotes from an unknown source the following
verse: cāndrāṇām prabhavādīnām pañcake-pañcake yuge:
sam-parī-’dā-’nv-id-ityetacchabdapūrvās tu vatsarās
. *⌊With slight
changes; and verbatim at x. 14. 6.⌋

Griffith

Pay to the Year your lofty adoration, to the first Year, the second, and the present. Many we abide in the auspicious favour and gracious love of these who claim our worship.

पदपाठः

इ॒दा॒व॒त्स॒राय॑। प॒रि॒ऽव॒त्स॒राय॑। स॒म्ऽव॒त्स॒राय॑। कृ॒णु॒त॒। बृ॒हत्। नमः॑। तेषा॑म्। व॒यम्। सु॒ऽम॒तौ। य॒ज्ञिया॑नाम्। अपि॑। भ॒द्रे। सौ॒म॒न॒से। स्या॒म॒। ५५.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • ब्रह्मा
  • जगती
  • सौम्नस्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब सम्पत्ति प्राप्ति के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (परिवत्सराय) सब ओर से निवास करानेवाले पिता को, (इदावत्सराय) विद्या में निवास करानेवाले आचार्य को और (संवत्सराय) यथानियम निवास करानेवाले राजा को तुम (बृहत्) बहुत-बहुत (नमः) नमस्कार (कृणुत) करो। (तेषाम्) उन (यज्ञियानाम्) उत्तम व्यवहार करने हारों के (अपि) ही (सुमतौ) सुमतिवाले और (भद्रे) कल्याणकारक (सौमनसे) हार्दिक स्नेह में (वयम्) हम लोग (स्याम) रहें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य माता-पिता, आचार्य और राजा की आज्ञा सत्कारपूर्वक मानकर उत्तम विद्या प्राप्त करके आनन्द से रहें ॥३॥ इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध यजुर्वेद में है−अ० १९।५० ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(इदावत्सराय) इडा+वत्सराय, डस्य दः। वसेश्च। उ० ३।७१। इति वस निवासे−सरन्। सः स्यार्धधातुके। पा० ७।४।४९। इति सस्य तकारः। इडायां विद्यायां निवासकायाचार्याय (परिवत्सराय) परितो निवासकाय जनकाय (संवत्सराय) संपूर्वाच्चित्। उ० ३।७२। इति सम्+वस−सरन्, स च चित् तत्वं च। सम्यग् यथाविधि निवासकाय राज्ञे (कृणुत) कुरुत (बृहत्) प्रभूतम् (नमः) नमस्कारम् (तेषाम्) (वयम्) (सुमतौ) शोभनबुद्धियुक्ते (यज्ञियानाम्) यज्ञर्त्विग्भ्यां घखञौ। पा० ५।१।७१। इति घ प्रत्ययः। पूजार्हाणां विदुषाम् (अपि) एव (भद्रे) कल्याणकारके (सौमनसे) सुमनस्−अण्। सुमनसो भावे। हार्दिक−स्नेहे (स्याम) भवेम ॥