०५० अभययाचना ...{Loading}...
Whitney subject
- Against petty destroyers of grain.
VH anukramaṇī
अभययाचना।
१-३ अथर्वा (अभयकामः)। अश्विनौ। १ विराड्जगती, २-३ पथ्यापङ्क्तिः।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan (abhayakāmaḥ).—āśvinam. 1. virāḍ jagatī; 2, 3. pathyāpan̄kti.]
Whitney
Comment
Only the second verse is found in Pāipp., in book xix.; and no occurrence of any part of the hymn has been noted elsewhere. Its intent is obvious. In Kāuś. (51. 17) the hymn is applied in a rite for ridding the fields of danger from mice and other pests; one goes about the field scratching lead with iron (? the comm. reads ayaḥsīsaṁ gharṣan); and it is reckoned (note to 16. 8) to the abhaya gaṇa.
Translations
Translated: Ludwig, p. 499; Florenz, 312 or 64; Griffith, i. 272; Bloomfield, 142, 485.
Griffith
A charm for the destruction of vermin
०१ हतं तर्दम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ह॒तं त॒र्दं स॑म॒ङ्कमा॒खुम॑श्विना छि॒न्तं शिरो॒ अपि॑ पृ॒ष्टीः शृ॑णीतम्।
यवा॒न्नेददा॒नपि॑ नह्यतं॒ मुख॒मथाभ॑यं कृणुतं धा॒न्या᳡य ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ह॒तं त॒र्दं स॑म॒ङ्कमा॒खुम॑श्विना छि॒न्तं शिरो॒ अपि॑ पृ॒ष्टीः शृ॑णीतम्।
यवा॒न्नेददा॒नपि॑ नह्यतं॒ मुख॒मथाभ॑यं कृणुतं धा॒न्या᳡य ॥
०१ हतं तर्दम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Smite, O Aśvins, the borer, the samān̄ká, the rat; split their head;
crush in their ribs; lest they eat the barley, shut up their mouth; then
make fearlessness for the grain.
Notes
All the mss. accent áśvinā, as if the word began the second pāda
instead of ending the first, and SPP. follows them; our text emends to
aśv-. In b, SPP. reads, with most of the mss., chintám, which is
better, being prescribed by Prāt. ii. 20. The comm. reads at the
beginning of c yuvāṁ ned adāt. Tarda perhaps denotes a special
kind of ākhu or rat. The comm. regards saman̄ka as adj. to ākhum
and = samañcanam bilaṁ sampraviśya gacchantam.
Griffith
Destroy the rat, the mole, the boring beetle, cut off their heads and crush their ribs, O Asvins. Bind fast their mouths; let them not eat our barley: so guard, ye twain, our growing corn from danger.
पदपाठः
ह॒तम्। त॒र्दम्। स॒म्ऽअ॒ङ्कम्। आ॒खुम्। अश्वि॑ना। छि॒न्तम्। शिरः॑। अपि॑। पृ॒ष्टीः। शृ॒णी॒त॒म्। यवा॑न्। न। इत्। अदा॑न्। अपि॑। न॒ह्य॒त॒म्। मुख॑म्। अथ॑। अभ॑यम्। कृ॒णु॒त॒म्। धा॒न्या᳡य। ५०.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अश्विनौ
- अथर्वा
- विराड्जगती
- अभययाचना सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आत्मा के दोष निवारण का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे कामों मे व्याप्त रहनेवाले स्त्री-पुरुषो ! (तर्दम्) हिंसा करनेवाले कौवे आदि को, (समङ्कम्) पृथिवी में अङ्क करनेवाले शूकर आदि को और (प्राखुम्) कुतरनेवाले चूहे आदि को (हतम्) तुम मारो, (शिरः) उनका शिर (छिन्तम्) काटो और (पृष्टीः) पसलियाँ (अपि) भी (शृणीतम्) तोड़ो। वे (यवान्) यवादि अन्नों को (न इत्) कभी न (अदान्) खावें, (मुखम्) उनका मुख (अपि) भी (नह्यतम्) तुम बाँधो, (अथ) और (धान्याय) धान्य के लिये (अभयम्) अभय (कृणुतम्) करो ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे किसान लोग हानिकारक पक्षी पशु आदि से खेती की रक्षा करके धान्य प्राप्त करते हैं, वैसे ही विद्वान् स्त्री-पुरुष काम क्रोध आदि शत्रुओं से अपनी रक्षा करके सुख भोगें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(हतम्) हन्तेर्लोट्। युवां नाशयतम् (तर्दम्) तर्द हिंसायाम्−अच्। हिंसकं काकादिकम् (समङ्कम्), अकि लक्षणे−अच्। भूमौ अङ्कनशीलं शूकरादिकम् (आखुम्) आड्परयोः खनिशॄभ्यां डिच्च। उ० १।३३। इति आङ्+खनु अवदारणे−उ, स च डित्। खननशीलमूषकादिकम् (अश्विना) अ० २।२९।६। अश्विनौ। हे कर्मसु व्यापनशीलौ स्त्रीपुरुषौ (छिन्तम्) भिन्तम् (शिरः) ललाटम् (अपि) (पृष्टीः) अ० २।७।५। पार्श्वास्थीनि (शृणीतम्) हिंस्तं चुर्णीकुरुतम् (यवान्) यवाद्यन्नानि (न इत्) नैव (अदान्) अद भक्षणे−लेट्। भक्षयेयुः (अपि) (नह्यतम्) बध्नीतम् (मुखम्) (अथ) अनन्तरम् (अभयम्) भयराहित्यं कुशलम् (कृणुतम्) कुरुतम् (धान्याय) अन्नवर्धनाय ॥
०२ तर्द है
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तर्द॒ है पत॑ङ्ग॒ है जभ्य॒ हा उप॑क्वस।
ब्र॒ह्मेवासं॑स्थितं ह॒विरन॑दन्त इ॒मान्यवा॒नहिं॑सन्तो अ॒पोदि॑त ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तर्द॒ है पत॑ङ्ग॒ है जभ्य॒ हा उप॑क्वस।
ब्र॒ह्मेवासं॑स्थितं ह॒विरन॑दन्त इ॒मान्यवा॒नहिं॑सन्तो अ॒पोदि॑त ॥
०२ तर्द है ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Hey, borer! hey, locust! hey, grinder, upakvasa! as a priest
(brahman) an unfinished oblation, not eating this barley, go up away,
doing no harm.
Notes
Ppp’s version is quite corrupt: tarda heṁ patan̄ga heṁ jabhyā upakvasaḥ
anadanta idaṁ dhānya hiṅsanto ’podita. The comm. reads apakvasas in
b (explaining it by adagdhāḥ santaḥ), and brahma (instead of
brahmā) in c, and anudantas at beginning of d. The first two
pādas are deficient by a syllable each. ⌊I think Roth intended hi
twice, not heṁ.⌋
Griffith
Ho! boring beetle, ho! thou worm, ho! noxious grub and grasshopper! As a priest leaves the unfinished sacrifice, go hence devouring not, injuring not this corn.
पदपाठः
तर्द॑। है। पत॑ङ्ग। है। जभ्य॑। है। उप॑ऽक्वस। ब्र॒ह्माऽइ॑व। अस॑म्ऽस्थितम्। ह॒विः। अन॑दन्तः। इ॒मान्। यवा॑न्। अहि॑सन्तः। अ॒प॒ऽउदि॑त। ५०.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अश्विनौ
- अथर्वा
- पथ्यापङ्क्तिः
- अभययाचना सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आत्मा के दोष निवारण का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (है) हे (तर्द) हे हिंसक काक आदि ! (है) हे (पतङ्ग) फुदकनेवाले टिड्डी आदि ! (हा) हे (जभ्य) वधयोग्य (उपक्वस) भूमि पर रेंगनेवाले कीड़े ! (ब्रह्मा इव) विद्वान् पुरुष ब्रह्मा के समान (असंस्थितम्) बिना संस्कार किये हुए (हविः) अन्न को, (इमाम्) इन् (यवान्) यव आदि अन्न को (अनदन्तः) न खाते हुए और (अहिंसन्तः) न तोड़ते हुए (अपोदित) उड़ जाओ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे विद्वान् पुरुष कुपथ्य अन्न को छोड़कर चला जाता है, इसी प्रकार हिंसक पशु आदि जवादि अन्नों के खेतों को छोड़कर चले जावें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(तर्द) हिंसककाकादे (है) हे (पतङ्ग) पतनशील शलभादे (है) (जभ्य) हिंस्य (हा) हे (उपक्वस) उप+कु+अस गतौ−अच्। उप हीनतया कौ भूमौ असति गच्छतीति यः सः, तत्सम्बुद्धौ। हे कीटादे (ब्रह्मा) ऋत्विक्। महाविद्वान् (इव) यथा (असंस्थितम्) असंस्कृतम्। अपथ्यम् (हविः) अन्नम् (अनदन्तः) अभक्षयन्तः (इमान्) समीपस्थान् (यवान्) यवाद्यन्नानि (अहिंसन्तः) अविनाशयन्तः (अपोदित) अप+उत्+इण् गतौ लोट्। उड्डीय गच्छत ॥
०३ तर्दापते वघापते
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तर्दा॑पते॒ वघा॑पते॒ तृष्ट॑जम्भा॒ आ शृ॑णोत मे।
य आ॑र॒ण्या व्य᳡द्व॒रा ये के च॒ स्थ व्य᳡द्व॒रास्तान्त्सर्वा॑ञ्जम्भयामसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तर्दा॑पते॒ वघा॑पते॒ तृष्ट॑जम्भा॒ आ शृ॑णोत मे।
य आ॑र॒ण्या व्य᳡द्व॒रा ये के च॒ स्थ व्य᳡द्व॒रास्तान्त्सर्वा॑ञ्जम्भयामसि ॥
०३ तर्दापते वघापते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O lord of borers, lord of vághā’s! with arid jaws do ye (pl.)
listen to me: what devourers (vyadvará) there are of the forest, and
whatever devourers ye are, all them do we grind up.
Notes
In vyadvarā́s, some of our mss. blunder the dv into ddh or dhv,
even ddhv; but most of them, with all SPP’s authorities save one, have
vyadvarā́s, which is accordingly, doubtless with reason, admitted by
SPP. into his text as the true reading, and our vyadhv- is to be
corrected accordingly. ⌊For vy-advará, vy-ádvarī, see note to iii. 28.
2. But at HGS. ii. 16. 5 we have vyadhvara with maśaka; cf. note to
ii. 31. 4.⌋ Some mss. appear to read vaṭyāpate in a, but SPP.
gives vaghā- as supported by all his authorities, and the comm. also
has it, giving it a fictitious etymology from ava-han; he explains it
by patan̄gādi. Pāda b is redundant, unless we contract -bhā́
”śṛṇota.
Griffith
Hearken to me, lord of the female borer, lord of the female grub! ye rough-toothed vermin! Whate’er ye be, dwelling in woods, and piercing, we crush and mangle all those piercing insects.
पदपाठः
तर्द॑ऽपते। वघा॑ऽपते। तृष्ट॑ऽजम्भाः। आ। शृ॒णो॒त॒। मे॒। ये। आ॒र॒ण्याः। वि॒ऽअ॒द्व॒राः। ये। के। च॒। स्थ। वि॒ऽअ॒द्व॒राः। तान्। सर्वा॑न्। ज॒म्भ॒या॒म॒सि॒। ५०.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अश्विनौ
- अथर्वा
- पथ्यापङ्क्ति
- अभययाचना सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आत्मा के दोष निवारण का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (तर्दपते) हे हिंसकों के स्वामी ! (वघापते) हे टिड्डी आदिकों के स्वामी ! (तृष्टजम्भाः) हे प्यासे मुखवाले कीड़ो ! (मे) मेरी (आ) अच्छे प्रकार (शृणोत) सुनो। (ये) जो तुम (आरण्याः) जंगली और (व्यद्वराः) विविध प्रकार खानेवाले (च) और (ये) (के) जो कोई दूसरे जन्तु (व्यद्वराः) भख लेनेवाले (स्थ) हो, (तान्) उन तुम (सर्वान्) सब को (जम्भयामसि) हम नाश करते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे मनुष्य छोटे बड़े हिंसक जन्तुओं को मार हटाते हैं, वैसे ही विद्वान् लोग अपने दोषों को हटावें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(तर्दपते) सांहितिको दीर्घः। तर्दानां हिंसकानां स्वामिन् (वघापते) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। इति अव+हन् हिंसागत्योः−ड। वष्टि भागुरिरल्लोपम्−अव शब्दस्य अलोपः−टाप्। हे अवहननशीलानां जन्तूनां कीटादीनां स्वामिन् (तृष्टजम्भाः) पिपासितमुखाः (आ) सम्यक् (शृणोत) तशब्दस्य तप्। शृणुत (मे) मम वचनम् (ये) (आरण्याः) अरण्ये भवाः (व्यद्वराः) अ० ३।२८।२। विविधमदनशीलाः (ये के) ये केचित् अन्ये जन्तवः (च) (स्थ) भवथ (तान्) तान् युष्मान् (सर्वान्) समस्तान् (जम्भयामसि) जम्भयामः। नाशयामः ॥