०४६ दुःष्वप्ननाशनम् ...{Loading}...
Whitney subject
- Against evil dreams.
VH anukramaṇī
दुःष्वप्ननाशनम्।
१-३ अङ्गिराः प्रचेता, यमश्च। दुःष्वप्ननाशनम्।१ विष्टारपङ्क्तिः, २ त्र्यवसाना शक्वरीगर्भा पञ्चपदा जगती, ३ अनुष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[An̄giras.—pūrvoktadevatyam uta svāpnam. 1. kakummatī vistārapan̄ktiḥ; 2. 3-av. śakvarīgarbhā 5-p. jagatī; 3. anuṣṭubh.]
Whitney
Comment
The first and third verses are found also in Pāipp. xix.,* but not in connection with the hymn which here precedes. The first two “verses” are pure prose, and their description as metrical gives the Anukr. much trouble, with unsatisfactory result. The hymn is used by Kāuś. (46. 9) with the preceding: see under the latter; further, in the same ceremonies against bad dreams appears (46. 13) a pratīka which might signify either vs. 2 or xvi. 5. 1: the comm. holds that the former is intended (as including vss. 2 and 3). *⌊Roth reports xix. 57. i (= vs. 3 here) as occurring in Pāipp. ii.⌋
Translations
Translated: Ludwig, p. 498; Florenz, 306 or 58; Griffith, i. 269; Bloomfield, 167, 485.
Griffith
A charm against evil dreams
०१ यो न
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यो न जी॒वोऽसि॒ न मृ॒तो दे॒वाना॑ममृतग॒र्भो᳡ऽसि॑ स्वप्न।
व॑रुणा॒नी ते॑ मा॒ता य॒मः पि॒ताररु॒र्नामा॑सि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यो न जी॒वोऽसि॒ न मृ॒तो दे॒वाना॑ममृतग॒र्भो᳡ऽसि॑ स्वप्न।
व॑रुणा॒नी ते॑ मा॒ता य॒मः पि॒ताररु॒र्नामा॑सि ॥
०१ यो न ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Thou who art not alive, not dead, immortal-embryo of the gods art
thou, O sleep; Varuṇāni is thy mother, Yama thy father; Araru by name
art thou.
Notes
Ppp. reads yamaṣ pitā. The mss. are much at variance as to two points
in this verse: whether asi or ási after -garbhás, and whether
árarus or arárus. As regards the former, they are nearly equally
divided; both printed texts give asi, which is doubtless preferable.
In the other case, the great majority of authorities have árarus,
which is accordingly adopted in both texts (our Bp.E.T.K. read
arárus); but TB. (iii. 2. 9⁴) and MS. (iv. i. 10), which have a legend
about an Asura of this name, accent aráru, and this was probably to
have been preferred.
Griffith
Thou, neither quick nor dead, O Sleep, art fraught with Amrit of the Gods. Thy name is Araru: thy sire is Yama; Varunani bare thee.
पदपाठः
यः। न। जी॒व ः। असि॑। न। मृ॒तः। दे॒वाना॑म्। अ॒मृ॒त॒ऽग॒र्भः। अ॒सि॒। स्व॒प्न॒। व॒रु॒णा॒नी। ते॒। मा॒ता। य॒मः। पि॒ता। अर॑रुः। नाम॑। अ॒सि॒। ४६.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- दुःष्वप्ननाशनम्
- अङ्गिरस्
- ककुम्मती विष्टारपङ्क्तिः
- दुःष्वप्ननाशन
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
स्वप्न के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (स्वप्न) हे स्वप्न ! (यः) जो तू (न) न तो (जीवः) जीवित और (न) न (मृत) मृतक (असि) है, [परन्तु] (देवानाम्) इन्द्रियों के (अमृतगर्भः) अमरपन का आधार (असि) तू है। (वरुणानी) वरुण अर्थात् ढकनेवाले अन्धकार की शक्ति, रात्रि (ते) तेरी (माता) माता और (यमः) नियम में चलानेवाला सूर्य (पिता) पिता है, और तू (अररुः) हिंसक (नाम) नाम (असि) है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - स्वप्न अवस्था में शरीर के कुछ अङ्ग चेष्टा करते रहते हैं और कुछ चेष्टा बिना हो जाते हैं, इससे स्वप्न जीवन और मरण के बीच में है। स्वप्न इन्द्रियों को सुख देता है अर्थात् दिन में परिश्रम करनेवालों को रात्रि में सोने से सुख मिलता है परन्तु नियमविरुद्ध सोने से आयु घटती है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(यः) यस्त्वम् (न) निषेधे (जीवः) प्राणधारकः (असि) (न) (मृतः) मृतकः। त्यक्तप्राणः (देवानाम्) इन्द्रियाणाम् (अमृतगर्भः) अमरणस्य सुखस्य गर्भ आधारः (असि) (स्वप्न) स्वपो नन्। पा० ३।३।९१। इति ञिष्वप् शये−नन्। यद्वा। कॄवृजॄ०। उ० ३।१०। इति नन्। हे निद्रे (वरुणानि) वृणोति आच्छादयतीति वरुणः, अन्धकारः अ० १।३।३। इन्द्रवरुणभवशर्व०। पा० ४।१।४९। इति वरुण−ङीपानुकौ। वरुणस्य अन्धकारस्य पत्नी पालयित्री शक्तिः। रात्रिः (ते) तव (माता) जननी (यमः) नियामकः सूर्यः (पिता) पालकः। जनकः (अररुः) अर्तेररुः। उ० ४।७६। इति ऋ गतिहिंसनयोः−अरु। हिंसकः। वयोनाशकः (असि) ॥
०२ विद्म ते
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
वि॒द्म ते॑ स्वप्न ज॒नित्रं॑ देवजामी॒नां पु॒त्रो᳡ऽसि॑ य॒मस्य॒ कर॑णः।
अन्त॑कोऽसि मृ॒त्युर॑सि॒।
तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्न दुः॒ष्वप्न्या॑त्पाहि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
वि॒द्म ते॑ स्वप्न ज॒नित्रं॑ देवजामी॒नां पु॒त्रो᳡ऽसि॑ य॒मस्य॒ कर॑णः।
अन्त॑कोऽसि मृ॒त्युर॑सि॒।
तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्न दुः॒ष्वप्न्या॑त्पाहि ॥
०२ विद्म ते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- We know thy place of birth (janítra), O sleep; thou art son of the
gods’ sisters (-jāmí), agent of Yama; end-maker art thou; death art
thou; so, O sleep, do we comprehend thee here; do thou, O sleep,
protect us from evil-dreaming.
Notes
This verse is repeated below as xvi. 5. 6. The comm. renders -jāmi by
-strī.
Griffith
We know thy birth, O Sleep, thou art son of the sisters of the Gods; the minister of Yama thou, thou art Antaka, thou art Death. So well we know thee who thou art. Sleep, guard us from the evil dream.
पदपाठः
वि॒द्म। ते॒। स्व॒प्न॒। ज॒नित्र॑म्। दे॒व॒ऽजा॒मी॒नाम्। पु॒त्रः। अ॒सि॒। य॒मस्य॑। कर॑णः। अन्त॑कः। अ॒सि॒। मृ॒त्युः। अ॒सि॒। तम्। त्वा॒। स्व॒प्न॒। तथा॑। सम्। वि॒द्म॒। सः। नः॒। स्व॒प्न॒। दुः॒ऽस्वप्न्या॑त्। पा॒हि॒। ४६.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- दुःष्वप्ननाशनम्
- प्रचेता
- त्र्यवसाना पञ्चपदा शक्वरीगर्भा जगती
- दुःष्वप्ननाशन
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
स्वप्न के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (स्वप्न) हे स्वप्न (ते) तेरे (जनित्रम्) जन्मस्थान को (विद्म) हम जानते हैं, तू (देवजामीनाम्) इन्द्रियों की गतियों का (पुत्रः) शुद्ध करनेवाला और (यमस्य) नियम का (करणः) बनानेवाला (असि) है। तू (अन्तकः) अन्त करनेवाला (असि) है, और तू (मृत्युः) मरण करनेवाला (असि) है। (स्वप्न) हे स्वप्न ! (तम्) उस (त्वा) तुझको (तथा) वैसा ही (सम्) अच्छे प्रकार (विद्म) हम जानते हैं, (सः) सो तू (स्वप्न) हे स्वप्न ! (नः) हमें (दुःस्वप्न्यात्) बुरी निद्रा में उठे कुविचार से (पाहि) बचा ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सदा धर्म कर्म में लगे रहते हैं, उनके हृदय में सोते समय भी कुविचार नहीं आते ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(विद्म) जानीमः (ते) तव (स्वप्न) म० १। हे निद्रे (जनित्रम्) अ० १।२५।१। जन्मस्थानम् (देवजामीनाम्) नियो मिः। उ० ४।४३। इति या प्रापणे−मि, यस्य जः। इन्द्रियाणां जामीनां गतीनाम् (पुत्रः) अ० १।११।५। पुनातीति यः सः। पावकः। शोधकः (असि) (यमस्य) नियमस्य (करणः) करोतेः−ल्यु। कर्ता (अन्तकः) तत्करोतीत्युपसंख्यानम्। वा० पा० ३।१।२६। इति अन्त, णिच्−ण्वुल्। अन्तयतीति अन्तकः। अन्तकरः (असि) (मृत्युः) मरणकर्ता (तम्) तादृशम् (त्वा) त्वाम् (स्वप्न) (तथा) तेन प्रकारेण (सम्) सम्यक् (सः) स त्वम् (नः) अस्मान् (दुःस्वप्न्यात्) अ० ४।९।६। दुःस्वप्न−यत्। दुर् दुष्टेषु स्वप्नेषु भवात् कुविचारात् ॥
०३ यथा कलाम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथा॑ क॒लां यथा॑ श॒फं यथ॒र्णं सं॒नय॑न्ति।
ए॒वा दुः॒ष्वप्न्यं॒ सर्वं॑ द्विष॒ते सं न॑यामसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॑ क॒लां यथा॑ श॒फं यथ॒र्णं सं॒नय॑न्ति।
ए॒वा दुः॒ष्वप्न्यं॒ सर्वं॑ द्विष॒ते सं न॑यामसि ॥
०३ यथा कलाम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As a sixteenth, as an eighth, as a [whole] debt they bring
together, so do we bring together all evil-dreaming for him who hates
us.
Notes
‘Bring together,’ i.e. ‘pay off, discharge.’ This verse is RV. viii. 47.
17 a-d, where, however, is read saṁ-náyāmasi also at end of b
(instead of -yanti), and āptyé for dviṣaté in d; it is also
found again below, with slight differences, as xix. 57. 1. ‘Eighth’ is
literally ‘hoof’ (śaphá), from the eight hoofs of cattle etc. The
sixteenth or eighth is possibly the interest. All the authorities, for
once, agree in reading yátha rṇám (instead of yátha ṛṇám), and it is
accordingly received in both published texts.
Griffith
As men discharge a debt, as they pay up an eighth and half-an- eighth, So the whole evil dream do we pay and assign unto our foe.
पदपाठः
यथा॑। क॒लाम्। यथा॑। श॒फम्। यथा॑। ऋ॒णम्। स॒म्ऽनय॑न्ति। ए॒व। दुः॒ऽस्वप्न्य॑म्। सर्व॑म्। द्वि॒ष॒ते। न॒या॒म॒सि॒। ४६.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- दुःष्वप्ननाशनम्
- यम
- अनुष्टुप्
- दुःष्वप्ननाशन
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
स्वप्न के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा यथा) जैसे जैसे (कलाम्) सोलहवाँ अंश और (यथा) जैसे (शफम्) आठवाँ अंश [देकर] (ऋणम्) ऋण को (संनयन्ति) लोग चुकाते हैं। (एव) वैसे ही (सर्वम्) सब (दुःस्वप्न्यम्) नींद में उठे बुरे विचार को (द्विषते) वैरी के लिये (सम् नयामसि) हम यथावत् छोड़ते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे मनुष्य अपने आय का सोलहवाँ वा आठवाँ अंश देकर ऋण चुकाते हैं, वैसे ही स्वप्न के कुविचारों को वैरी पर छोड़ते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(यथा यथा) येनैव प्रकारेण (कलाम्) आयस्य षोडशांशम् (शफम्) गवादिपादचतुष्टयस्य द्विखुरत्वाद् एकस्य खुरस्याष्टमांशग्रहणम्। अष्टमांशम् (ऋणम्) पुनर्देयत्वेन गृहीतं धनम् (संनयन्ति) सम्प्रदानेन गमयन्ति (एव) एवम् (दुःस्वप्न्यम्) कुनिद्राभवं विचारम् (सर्वम्) (द्विषते) द्वेष्ट्रे जनाय (सम्) सम्यक् (नयामसि) प्रापयामः ॥