०४१ दीर्घायुःप्राप्तिः

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Whitney subject
  1. To various divinities.
VH anukramaṇī

दीर्घायुःप्राप्तिः।
१-३ ब्रह्म।१ चन्द्रमाः, २ सरस्वती, ३ दैव्या ऋषयः। १ भुरिक्, २ अनुष्टुप्, ३ त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Brahman.—bahudāivatam uta cāndramasam. ānuṣṭubham: 1. bhurij; 3. triṣṭubh.]

Whitney

Comment

Not found in Pāipp., nor, so far as observed, in any other text. Used by Kāuś. (54. 11), with ii. 15, in the godāna ceremony, as the youth is made to eat a properly cooked dish of big rice (mahāvrīhi).

Translations

Translated: Florenz, 301 or 53; Griffith, i. 266.

Griffith

A prayer for protection, long life, and various blessings

०१ मनसे चेतसे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

मन॑से॒ चेत॑से धि॒य आकू॑तय उ॒त चित्त॑ये।
म॒त्यै श्रु॒ताय॒ चक्ष॑से वि॒धेम॑ ह॒विषा॑ व॒यम् ॥

०१ मनसे चेतसे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. To mind, to thought, to device (dhī́), to design, and to intention,
    to opinion (matí), to instruction (śrutá), to sight, would we pay
    worship with oblation.
Notes

The meter in b would be rectified by reading ā́kūtyāi. ⌊In his note
to i. 1. 1, W. took śruta here as ‘sense of hearing.’⌋

Griffith

For mind, for intellect, for thought, for purpose, for intelligence,. For sense, for hearing, and for sight, let us adore with sacrifice.

पदपाठः

मन॑से। चेत॑से। धि॒ये। आऽकू॑तये। उ॒त। चित्त॑ये। म॒त्यै। श्रु॒ताय॑। चक्ष॑से। वि॒धेम॑। ह॒विषा॑। व॒यम्। ४१.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः
  • ब्रह्मा
  • भुरिगनुष्टुप्
  • दीर्घायुप्राप्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा की उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मनसे) उत्तम मननसाधन मन के लिये, (चेतसे) ज्ञान के साधन चित्त के लिये, (धिये) धारणावती बुद्धि के लिये, (आकूतये) अच्छे सङ्कल्प वा उत्साह के लिये (उत) और (चित्तये) स्मृति के हेतु विवेक के लिये, (मत्यै) समझ के लिये, (श्रुताय) श्रवण के लिये और (चक्षसे) दर्शन के लिये (वयम्) हम लोग (हविषा) भक्ति से [परमेश्वर को] (विधेम) पूजें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य ईश्वरज्ञान द्वारा आत्मिक शक्तियों को बढ़ा कर सदा पुरुषार्थ करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(मनसे) मननसाधनाय हृदयाय (चेतसे) चिती संज्ञाने−असुन्। ज्ञानसाधनाय चित्ताय (धिये) धारणावत्यै प्रज्ञायै (आकूतये) सङ्कल्पाय। उत्साहाय (उत) अपिच (चित्तये) स्मृतिहेतवे विवेकाय (मत्यै) ज्ञानजनन्यै शक्त्यै (श्रुताय) श्रवणाय (चक्षसे) दर्शनाय (विधेम) परिचरेम इन्द्रम्, इति शेषः (हविषा) आत्मदानेन। भक्त्या (वयम्) धार्मिकाः ॥

०२ अपानाय व्यानाय

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॑पा॒नाय॑ व्या॒नाय॑ प्रा॒णाय॒ भूरि॑धायसे।
सर॑स्वत्या उरु॒व्यचे॑ वि॒धेम॑ ह॒विषा॑ व॒यम् ॥

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Whitney
Translation
  1. To expiration, to perspiration (vyāná), to breath the much
    nourishing, to Sarasvatī the wide extending, would we pay worship with
    oblation.
Notes
Griffith

For expiration, vital air, and breath that amply nourishes, Let us with sacrifice adore Sarasvati whose reach is wide.

पदपाठः

अ॒पा॒नाय॑। वि॒ऽआ॒नाय॑। प्रा॒णाय॑। भूरि॑ऽधायसे। सर॑स्वत्यै। उ॒रु॒ऽव्यचे॑। वि॒धेम॑। ह॒विषा॑। व॒यम्। ४१.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • सरस्वती
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुप्राप्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा की उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अपानाय) बाहिर निकलनेवाले अपानवायु के लिये, (व्यानाय) शरीर में व्यापक व्यान वायु के लिये, (भूरिधायसे) अनेक प्रकार से धारण करनेवाले (प्राणाय) जीवनवायु प्राण के लिये और (उरुव्यचे) दूर-दूर तक फैलनेवाले (सरस्वत्यै) विज्ञानवती सरस्वती [विद्या] के लिये (वयम्) हम लोग (हविषा) भक्ति से [परमेश्वर को (विधेम) पूजें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर को आत्मसमर्पण करके आत्मा और शरीर से स्वस्थ रहकर अनेक प्रकार से विज्ञान प्राप्त करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(अपानाय) शरीराद्बहिर्गन्त्रे वायवे (व्यानाय) शरीरव्यापकाय पवनाय (प्राणाय) जीवनसाधनाय समीराय (भूरिधायसे) अ० १।२।१। बहुपोषकाय (सरस्वत्यै) विज्ञानवत्यै विद्यायै (उरुव्यचे) अ० ५।३।८। उरु+वि+अच गतौ−विच्। बहुलं व्याप्नुवत्यै। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०३ मा नो

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मा नो॑ हासिषु॒रृष॑यो॒ दैव्या॒ ये त॑नू॒पा ये न॑स्त॒न्व᳡स्तनू॒जाः।
अम॑र्त्या॒ मर्त्यां॑ अ॒भि नः॑ सचध्व॒मायु॑र्धत्त प्रत॒रं जी॒वसे॑ नः ॥

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Whitney
Translation
  1. Let not the seers who are of the gods leave us, who are self
    (tanū́) protecting, self-born of our self; O immortal ones, attach
    yourselves to us mortals; grant life-time (ā́yus) in order to our
    further living.
Notes

With the first line is to be compared AB. ii. 27. 7: ṛṣayo dāivyāsas
tanūpāvānas tanvas tapojāḥ
(Florenz). Tanū (lit. ‘body’) ‘self’
apparently refers throughout to ourselves. This verse is translated by
Muir, OST. v. 296. ⌊Mā́ hāsiṣur ṛ́ṣayo dāíviā naḥ would make good
meter.⌋

The fourth anuvāka ends here, having 10 hymns and 33 verses; and the
old Anukr. says of it and its predecessor together tṛtīyacaturthāu
trayastriṅśakāu
(tṛtīya- given above, not here).

Griffith

Let not the Rishis, the divine, forsake us, our own, our very selves, our lives’ protectors. Do ye, immortal, still attend us mortals, and give us vital power to live the longer.

पदपाठः

मा। नः॒। हा॒सि॒षुः॒। ऋष॑यः। दैव्याः॑। ये। त॒नू॒ऽपाः। ये। नः॒। त॒न्वः᳡। त॒नू॒ऽजाः। अम॑र्त्याः। मर्त्या॑न्। अ॒भि। नः॒। स॒च॒ध्व॒म्। आयुः॑। ध॒त्त॒। प्र॒ऽत॒रम्। जी॒वसे॑। नः॒। ४१.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • दैव्या ऋषयः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • दीर्घायुप्राप्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा की उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (दैव्याः) दिव्यगुणवाले (ऋषयः) व्यापनशील वा दर्शनशील [अर्थात् त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक, मन और बुद्धि, अथवा दो कान दो नथने, दो आँख और मुख] (नः) हमें (मा हासिषुः) न त्यागें, (ये) जो (तनूपाः) शरीर की रक्षा करने हारे और (ये) जो (नः) हमारे (तन्वः) शरीर के (तनूजाः) विस्तार के साथ उत्पन्न हुए हैं। (अमर्त्याः) हे अमर ! [नित्य उत्साहियो] (मर्त्यान्) मरते हुए [निरुत्साही] मनुष्यों के हित करनेवाले (नः) हम से (अभि) सब ओर से (सचध्वम्) मिले रहो, और (नः) हमें (प्रतरम्) अधिक श्रेष्ठ (आयुः) आयु (जीवसे) जीवन के लिये (धत्त) दान करो ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य ब्रह्मचर्य, योगाभ्यास, विद्याप्राप्ति आदि कर्मों से हृष्ट-पुष्ट रह कर संसार का उपकार करके कीर्ति पावें ॥३॥ यह मन्त्र स्वामी दयानन्द कृतसंस्कारविधि, जातकर्म में आशीर्वाद का है ॥ इति चतुर्थोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(मा हासिषुः) ओहाक् त्यागे−लुङ्। मा त्यजन्तु (नः) अस्मान् (ऋषयः) अ० ४।११।९। व्यापनशीलाः। दर्शनशीलाः। त्वक्चक्षुःश्रवणरसनाघ्राणमनोबुद्धयः। अथवा। शीर्षण्यानि सप्तच्छिद्राणि (दैव्याः) अ० २।२।२। दिव्यगुणयुक्ताः (ये) ऋषयः (तनूपाः) तन्वाः शरीरस्य पातारः (ये) (नः) अस्माकम् (तन्वः) शरीरस्य (तनूजाः) तन्वा विस्तृत्या सह जाताः (अमर्त्याः) अ० ४।३७।१२। अमराः। नित्योत्साहिनः (मर्त्यान्) अ० ४।३७।१२। मर्तेभ्यो मनुष्येभ्यो हितान् (अभि) अभितः (नः) अस्मान् (सचध्वम्) समवेत (आयुः) जीवनम् (धत्त) डुधाञ् धारणपोषणदानेषु। दत्त (प्रतरम्) प्रकृष्टतरम् (जीवसे) जीवनाय (नः) अस्मभ्यम् ॥