०४० अभयम् ...{Loading}...
Whitney subject
- For freedom from fear.
VH anukramaṇī
अभयम्।
१-३ अथर्वा। १ द्यावापृथिवी, सोमः, सविता, अन्तरिक्षं, सप्तऋषयः, २ सविता इन्द्रः, ३ इन्द्रः। १-२ जगती, ३ अनुष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan (?: 1-2. abhayakāmaḥ; 3. svastyayanakāmaḥ).—1-2. mantroktadevatye. jagatyāu. 3. āindrī. anuṣṭubh.]
Whitney
Comment
The first two verses are found also in Pāipp. i., much altered. Used, according to Kāuś. (59. 26), by one who desires absence of danger, with vi. 48, with worship or offering to the seven seers in as many directions; and Keśava and the comm. regard it as further intended by 16. 8, in a rite for courage in an army; vss. 1, 2 are reckoned (note to 16. 8) to the abhaya gaṇa, and vs. 3 (note to 25. 36) to the svastyayana gaṇa; the comm. notes its application according to 139. 7 in the rite for one beginning Vedic study.
Translations
Translated: Ludwig, p. 373, also 242; Florenz, 300 or 52; Griffith, i. 266.
Griffith
A prayer for peace and security
०१ अभयं द्यावापृथिवी
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अभ॑यं द्यावापृथिवी इ॒हास्तु॒ नोऽभ॑यं॒ सोमः॑ सवि॒ता नः॑ कृणोतु।
अभ॑यं नोऽस्तू॒र्व१॒॑न्तरि॑क्षं सप्तऋषी॒णां च॑ ह॒विषाभ॑यं नो अस्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अभ॑यं द्यावापृथिवी इ॒हास्तु॒ नोऽभ॑यं॒ सोमः॑ सवि॒ता नः॑ कृणोतु।
अभ॑यं नोऽस्तू॒र्व१॒॑न्तरि॑क्षं सप्तऋषी॒णां च॑ ह॒विषाभ॑यं नो अस्तु ॥
०१ अभयं द्यावापृथिवी ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let fearlessness, O heaven-and-earth, be here for us; let Soma,
Savitar, make us fearlessness; be the wide atmosphere fearlessness for
us; and by the oblation of the seven seers be there fearlessness for us.
Notes
In d, saptarṣīṇām is read by one or two mss. Ppp. has only the
first pāda of this verse. Neither vs. 1 nor vs. 2 is a good jagatī;
easy emendations would make both good triṣṭubh.
Griffith
Here may we dwell, O Heaven and Earth, in safety. May Savitar and Soma send us safety. Our safety be the wide air: ours be safety through the oblation of the Seven Rishis.
पदपाठः
अभ॑यम्। द्या॒वा॒पृ॒थि॒वी॒ इति॑। इ॒ह। अ॒स्तु॒। नः॒। अभ॑यम्। सोमः॑। स॒वि॒ता। नः॒। कृ॒णो॒तु॒। अभ॑यम्। नः॒। अ॒स्तु॒। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। स॒प्त॒ऽऋ॒षी॒णाम्। च॒। ह॒विषा॑। अभ॑यम्। नः। अ॒स्तु॒। ४०.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्यावापृथिवी, सोमः, सविता, अन्तरिक्षम्, सप्तर्षिगणः,
- अथर्वा
- जगती
- अभय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रुओं से रक्षा के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (द्यावापृथिवी) हे सूर्य और पृथिवी ! (इह) यहाँ पर (नः) हमारे लिये (अभयम्) अभय (अस्तु) होवे, (सोमः) बड़े ऐश्वर्यवाला (सविता) सब का उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर (नः) हमारे लिये (अभयम्) अभय (कृणोतु) करे। (उरु) बड़ा (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष (नः) हमारे लिये (अभयम्) अभय (अस्तु) होवे, (च) और (सप्तऋषीणाम्) सात व्यापनशीलों वा दर्शनशीलों के [अर्थात् त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक, मन, और बुद्धि, अथवा दो कान, दो नथने, दो आँख, और मुख इन सात छिद्रों के] (हविषा) ठीक-ठीक दान और ग्रहण से (नः) हमारे लिये (अभयम्) अभय (अस्तु) होवे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्न करे कि संसार के सब पदार्थ और अपने शरीर के सब अवयव यथावत् उपकार करके शान्तिप्रद होवें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(अभयम्) भयराहित्यम् (द्यावापृथिवी) हे सूर्यभूलोकौ (इह) अत्र (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् (अभयम्) (सोमः) परमैश्वर्यवान् (सविता) सर्वोत्पादको जगदीश्वरः (नः) (कृणोतु) करोतु (अभयम्) भयरहितम्। शान्तम् (नः) (अस्तु) (उरु) विस्तीर्णम् (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (सप्तऋषीणाम्) अ० ४।११।९। त्वक्चक्षुश्रवणरसनाघ्राणमनोबुद्धीनाम्। अथवा, शीर्षण्यानां सप्तच्छिद्राणाम् (च) (हविषा) यथावद् दानेन ग्रहणेन च (अभयम्) (नः) (अस्तु) ॥
०२ अस्मै ग्रामाय
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒स्मै ग्रामा॑य प्र॒दिश॒श्चत॑स्र॒ ऊर्जं॑ सुभू॒तं स्व॒स्ति स॑वि॒ता नः॑ कृणोतु।
अ॑श॒त्र्विन्द्रो॒ अभ॑यं नः कृणोत्व॒न्यत्र॒ राज्ञा॑म॒भि या॑तु म॒न्युः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒स्मै ग्रामा॑य प्र॒दिश॒श्चत॑स्र॒ ऊर्जं॑ सुभू॒तं स्व॒स्ति स॑वि॒ता नः॑ कृणोतु।
अ॑श॒त्र्विन्द्रो॒ अभ॑यं नः कृणोत्व॒न्यत्र॒ राज्ञा॑म॒भि या॑तु म॒न्युः ॥
०२ अस्मै ग्रामाय ...{Loading}...
Whitney
Translation
- For this village [let] the four directions—let Savitar make for us
sustenance, well-being, welfare; let Indra make for us freedom from
foes, fearlessness; let the fury of kings fall on (abhi-yā) elsewhere.
Notes
Ppp. rectifies the redundancy of b by reading subhūtaṁ savitā
dadhātu; in c, it reads aśatrum and omits nas; for d, it
has madhye ca viṣāṁ sukṛte syāma. The comm. reads aśatrus in c.
Griffith
May the Four Quarters give this hamlet power: Savitar favour us and make us happy! May Indra make us free from foes and danger: may wrath of Kings be turned to other places.
पदपाठः
अ॒स्मै। ग्रामा॑य। प्र॒ऽदिशः॑। चत॑स्रः। ऊर्ज॑म्। सु॒ऽभू॒तम्। स्व॒स्ति। स॒वि॒ता। नः॒। कृ॒णो॒तु॒। अ॒श॒त्रु॒। इन्द्रः॑। अभ॑यम्। नः॒। कृ॒णो॒तु॒। अ॒न्यत्र॑। राज्ञा॑म्। अ॒भि। या॒तु॒। म॒न्युः। ४०.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सविता, इन्द्रः
- अथर्वा
- जगती
- अभय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रुओं से रक्षा के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सविता) सबका चलानेवाला परमेश्वर (अस्मै) इस (ग्रामाय) गाँव के लिये और (नः) हमारे लिये (चतस्रः) चारों (प्रदिशः) दिशाओं में (ऊर्जम्) पराक्रम, (सुभूतम्) बहुत धन और (स्वस्ति) कल्याण (कृणोतु) करे। (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवाला परमात्मा (नः) हमारे लिये (अशत्रु) निर्वैर (अभयम्) अभय (कृणोतु) करे, (राज्ञाम्) राजाओं का (मन्युः) क्रोध (अन्यत्र) औरों पर (अभि यातु) चला जावे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य धर्मपूर्वक उत्तम-उत्तम पदार्थ प्राप्त करके शान्तचित्त रहें और ऐसे शुभ कर्म करें, जिससे राजपुरुष उनसे सदा प्रसन्न रहें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(अस्मै) समीपस्थाय (ग्रामाय) जनसमूहाय (प्रदिशः) अत्यन्तसंयोगे द्वितीया। प्राच्यादिदिशाः प्रति (चतस्रः) चतुःसंख्यकाः (ऊर्जम्) पराक्रमम् (सुभूतम्) अ० १।३१।३। सुभूतिम्। प्रभूतं धनम् (स्वस्ति) क्षेमम् (सविता) सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (नः) अस्मभ्यं च (कृणोतु) करोतु (अशत्रु) शत्रुरहितम् (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (अभयम्) भयराहित्यम्। शान्तिम् (नः) (कृणोतु) (अन्यत्र) अन्येषु शत्रुषु (राज्ञाम्) शासकानाम् (अभि) (यातु) प्राप्नोतु (मन्युः) क्रोधः ॥
०३ अनमित्रं नो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॑नमि॒त्रं नो॑ अध॒राद॑नमि॒त्रं न॑ उत्त॒रात्।
इन्द्रा॑नमि॒त्रं नः॑ प॒श्चाद॑नमि॒त्रं पु॒रस्कृ॑धि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑नमि॒त्रं नो॑ अध॒राद॑नमि॒त्रं न॑ उत्त॒रात्।
इन्द्रा॑नमि॒त्रं नः॑ प॒श्चाद॑नमि॒त्रं पु॒रस्कृ॑धि ॥
०३ अनमित्रं नो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Freedom from enemies for us below, freedom from enemies for us above;
O Indra, make freedom from enemies for us behind, freedom from enemies
in front.
Notes
Or, these four directions admit of being understood (so the comm.) as
from the south, from the north, from the west, in the east. The verse is
found also in the Kāṇva version of the Vājasaneyi-Saṁhitā (iii. 11. 6),
with me adharā́g in a, udák kṛdhi in b, and paścā́n me in
c; further, in K. (xxxvii. 10).
Griffith
Make thou us free from enemies both from below and from above. O Indra, give us perfect peace, peace from behind and from be- fore.
पदपाठः
अ॒न॒मि॒त्रम्। नः॒। अ॒ध॒रात्। अ॒न॒मि॒त्रम्। नः॒। उ॒त्त॒रात्। इन्द्र॑। अ॒न॒मि॒त्रम्। नः॒। प॒श्चात्। अ॒न॒मि॒त्रम्। पु॒रः। कृ॒धि॒। ४०.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- अभय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रुओं से रक्षा के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे महाप्रतापी परमेश्वर ! (नः) हमारे लिये (अधरात्) नाचे से (अनमित्रम्) निर्वैरता, (नः) हमारे लिये (उत्तरात्) ऊपर से (अनमित्रम्) निर्वैरता, (नः) हमारे लिये (पश्चात्) पीछे से (अनमित्रम्) निर्वैरता और (पुरः) आगे से (अनमित्रम्) निर्वैरता (कृधि) तू कर ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सब स्थान और सब काल में शान्तिदायक कर्म करें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(अनमित्रम्) अमेर्द्विषति चित्। उ० ४।१७४। इति अम पीडने−भावे इत्रच्। निर्वैरत्वम् (नः) अस्मभ्यम् (अधरात्) अधस्तात् (उत्तरात्) उपरिदेशात् (इन्द्र) हे महाप्रतापिन् जगदीश्वर (पश्चात्) अ० ४।४०।३। पृष्ठतो देशात् (पुरः) अग्रदेशात् (कृधि) कुरु। अन्यद्गतम् ॥