०३४ शत्रुनाशनम्

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Whitney subject
  1. Praise and prayer to Agni.
VH anukramaṇī

शत्रुनाशनम्।
१-५ चातनः। अग्निः। गायत्री।

Whitney anukramaṇī

[Cātana.—⌊pañcarcam.⌋ agnidāivatam. gāyatram.]

Whitney

Comment

Only vss. 1, 3, 4 found in Pāipp. xix. It is also a RV. hymn, x. 187 (with exchange of place between vss. 2 and 3); in other texts is found only the last verse. As in the case of certain previous hymns with a refrain, one may conjecture that, with omission of the refrain, and combination of the remaining parts of verses, it was made into or viewed as three verses; but the case is a much less probable one than those we have had above. ⌊Cf. Oldenberg, Die Hymnen des RV., i. 245.⌋ The hymn is employed by Kāuś. (31. 4), with vii. 114. 2, in a remedial rite against demons; and it is added (note to 8. 25) to the cātana gaṇa.

Translations

Translated: by the RV. translators; and Florenz, 294 or 46; Griffith, i. 263.

Griffith

To Agni for protection from enemies

०१ प्राग्नये वाचमीरय

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

प्राग्नये॒ वाच॑मीरय वृष॒भाय॑ क्षिती॒नाम्।
स नः॑ पर्ष॒दति॒ द्विषः॑ ॥

०१ प्राग्नये वाचमीरय ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Send thou forth the voice for Agni, bull of people (kṣití): may he
    pass us over our haters.
Notes
Griffith

Send forth thy voice to Agni, to the manly hero of our homes, So may he bear us past our foes.

पदपाठः

प्र। अ॒ग्नये॑। वाच॑म्। ई॒र॒य॒। वृ॒ष॒भाय॑। क्षि॒ती॒नाम्। सः। नः॒। प॒र्ष॒त्। अति॑। द्विषः॑। ३४.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • चातन
  • गायत्री
  • शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शत्रुओं के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे विद्वान् !] (क्षितीनाम्) पृथिवी आदि लोकों के बीच (वृषभाय) महाबली (अग्नये) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर के लिये (वाचम्) वाणी (प्र ईरय) अच्छे प्रकार उच्चारण कर, (सः) वह (द्विषः) वैरियों को (अति=अतीत्य) उलाँघ कर (नः) हमें (पर्षत्) पाले ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की स्तुतिपूर्वक पुरुषार्थ करके दरिद्रता आदि दुःखों को हटावें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(अग्नये) ज्ञानस्वरूपाय परमेश्वराय (वाचम्) वाणीम्। स्तुतिम् (प्र ईरय) उच्चारय (वृषभाय) अ० ४।५।१। बलिष्ठाय (क्षितीनाम्) वसेस्तिः। उ० ४।१८०। क्षि निवासगत्योः−ति। क्षितिः। पृथिवीनाम−निघ० १।१। पृथिव्यादिलोकानां मध्ये (सः) अग्निः (नः) अस्मान् (पर्षत्) पॄ पालनपूरणयोः−लेटि अडागमः। सिब् बहुलं लेटि। पा० ३।१।३४। इति सिप्। पालयेत्। पूर्णान् कुर्य्यात् ॥

०२ यो रक्षांसि

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यो रक्षां॑सि नि॒जूर्व॑त्य॒ग्निस्ति॒ग्मेन॑ शो॒चिषा॑।
स नः॑ पर्ष॒दति॒ द्विषः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. He who burns down the demons, Agni, with sharp heat (śocís): may
    he etc. etc.
Notes

RV. has vṛ́ṣā śukréṇa at beginning of b.

Griffith

That Agni who with sharpened flame of fire consumes the Rakshasas, So may he bear us past our foes.

पदपाठः

यः। रक्षां॑सि। नि॒ऽजूर्व॑ति। अ॒ग्निः। ति॒ग्मेन॑। शो॒चिषा॑। सः। नः॒। प॒र्ष॒त्। अति॑। द्विषः॑। ३४.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • चातन
  • गायत्री
  • शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शत्रुओं के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (अग्निः) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर (तिग्मेन) तीव्र (शोचिषा) तेज से (रक्षांसि) राक्षसों को (निजूर्वति) मार गिराता है। (स) वह (द्विषः) वैरियों को (अति) उलाँघ कर (नः) हमें (पर्षत्) भरपूर करे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे अग्नि के प्रकाश से अन्धकार नष्ट होता है, वैसे ही मनुष्य परमेश्वर के ज्ञान से अज्ञान मिटावें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(रक्षांसि) राक्षसान्। दारिद्र्यादिदोषान् (निजूर्वति) जुर्व वधे। निहन्ति (तिग्मेन) तीक्ष्णेन (शोचिषा) तेजसा। अन्यद् गतम् ॥

०३ यः परस्याः

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यः पर॑स्याः परा॒वत॑स्ति॒रो धन्वा॑ति॒रोच॑ते।
स नः॑ पर्ष॒दति॒ द्विषः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. He who from distant distance shines over across the wastes: may he
    etc. etc.
Notes

Ppp. reads, for c, tiro viśvā ’dhirocate.

Griffith

He who from distance far remote shineth across the tracts of land, May he transport us past our foes.

पदपाठः

यः। पर॑स्याः। प॒रा॒ऽवतः॑। ति॒रः। धन्व॑। अ॒ति॒ऽरोच॑ते। सः। नः॒। प॒र्ष॒त्। अति॑। द्विषः॑। ३४.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • चातन
  • गायत्री
  • शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शत्रुओं के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो परमेश्वर (परस्याः) दूर दिशा के भी (परावतः) दूर स्थान से (धन्व) अन्तरिक्ष को (तिरः=तिरस्कृत्य) पार करके (अतिरोचते) अत्यन्त चमकता है। (सः) वह (द्विषः) वैरियों को (अति) उलाँघ कर (नः) हमें (पर्षत्) भरपूर करे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर दूर और समीप सब स्थान में हमारी रक्षा करता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यः) परमेश्वरः (परस्या) दूरदिशायाः (परावतः) अ० ३।४।५। दूरगतात् स्थानात् (तिरः) तिरस्कृत्य, अन्तर्धाय (धन्व) अ० ४।४।७। अन्तरिक्षम्−निघ० १।३। (अतिरोचते) अतिशयेन दीप्यते। अन्यद् गतम् ॥

०४ यो विश्वाभि

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यो विश्वा॒भि वि॒पश्य॑ति॒ भुव॑ना॒ सं च॒ पश्य॑ति।
स नः॑ पर्ष॒दति॒ द्विषः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Who looks forth upon and beholds together all beings: may he etc.
    etc.
Notes

Ppp. reads nipaśyati in a.

Griffith

He who beholds all creatures, who observes them with a careful eye, May he transport us past our foes.

पदपाठः

यः। विश्वा॑। अ॒भि। वि॒ऽपश्य॑ति। भुव॑ना। सम्। च॒। पश्य॑ति। सः। नः॒। प॒र्ष॒त्। अति॑। द्विषः॑। ३४.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • चातन
  • गायत्री
  • शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शत्रुओं के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो परमेश्वर (विश्वा) सब (भुवना) भुवनों को (अभि) चारों ओर से (विपश्यति) अलग-अलग देखता है (च) और (सम् पश्यति) मिले हुए देखता है। (सः) वह (द्विषः) वैरियों को (अति) उलाँघ कर (नः) हमें (पर्षत्) भरपूर करे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर सब लोकों और पदार्थों को व्यस्त और समस्त रूप से देखकर उनकी सुधि रखता है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(यः) परमेश्वरः (विश्वा) सर्वाणि (अभि) सर्वतः (विपश्यति) पृथक् पृथगवलोकयति (भुवना) भुवनानि (च) (सम् पश्यति) संगतानि निरीक्षते ॥

०५ यो अस्य

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यो अ॒स्य पा॒रे रज॑सः शु॒क्रो अ॒ग्निरजा॑यत।
स नः॑ पर्ष॒दति॒ द्विषः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Who, the bright Agni, was born on the further shore of this firmament
    (rájas): may he etc. etc.
Notes

Nearly all our mss. (all save O.D.K.), and the great majority of SPP’s,
read ajāyata, without accent, at end of b; both editions give
áj-. RV. has asya, unaccented, in a. The verse is also found in
TS. (iv. 2. 52), TB. (iii. 7. 8¹), and MS. (ii. 7. 12*), all beginning
a with yát and c with tát, and having, instead of śukró
agnír
, śukráṁ jyótir (but MS. maháś citráṁ jyótir); all accent
ájāyata, and TB.MS. accent asyá with our text. *⌊Also at iii. 2. 4,
with the same reading, save pariṣad.⌋

Griffith

That brilliant Agni who was born beyond this region of the air, May he transport us past our foes!

पदपाठः

यः। अ॒स्य। पा॒रे। रज॑सः। शु॒क्रः। अ॒ग्निः। अजा॑यत। सः। नः॒। प॒र्ष॒त्। अति॑। द्विषः॑। ३४.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • चातन
  • गायत्री
  • शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शत्रुओं के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (शुक्रः) शुद्ध स्वभाव (अग्निः) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर (अस्य) इस (रजसः) अन्तरिक्ष के (पारे) पार (अजायत) प्रकट हुआ है। (सः) वह (द्विषः) वैरियों को (अति) उलाँघ कर (नः) हमें (पर्षत्) भरपूर करे ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर प्रत्येक स्थान में व्यापक रहकर हमारी रक्षा करता है ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(यः) परमेश्वरः (अस्य) प्रत्यक्षस्य (पारे) अन्ते (रजसः) अन्तरिक्षलोकस्य−निघ० १।७। (शुक्रः) शुद्धस्वभावः (अजायत) प्रादुरभवत्। अन्यत्पूर्ववत् ॥