०२९ अरिष्टक्षयणम् ...{Loading}...
Whitney subject
- Against birds of ill omen.
VH anukramaṇī
अरिष्टक्षयणम्।
१-३ भृगुः। यमः, निर्ऋतिः। (बृहती) १-२ विराण्नाम गायत्री, ३ त्र्यवसाना सप्तपदा विराडष्टिः।
Whitney anukramaṇī
[Bhṛgu.—yāmyam uta nāirṛtam. bārhatam: 1, 2. virāṇnāmagāyatrī; 3. 3-av. 7-p. virāḍaṣṭi.]
Whitney
Comment
Not found in Pāipp. Used by Kāuś. (46. 7) with the two preceding hymns.
Translations
Translated: Florenz, 287 or 39; Griffith, i. 260; Bloomfield, 166, 475.
Griffith
A charm to avert misfortune foreshown by the coming of a dove and an owl
०१ अमून्हेतिः पतत्रिणी
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒मून्हे॒तिः प॑त॒त्रिणी॒ न्ये᳡तु॒ यदुलू॑को॒ वद॑ति मो॒घमे॒तत्।
यद्वा॑ क॒पोतः॑ प॒दम॒ग्नौ कृ॒णोति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒मून्हे॒तिः प॑त॒त्रिणी॒ न्ये᳡तु॒ यदुलू॑को॒ वद॑ति मो॒घमे॒तत्।
यद्वा॑ क॒पोतः॑ प॒दम॒ग्नौ कृ॒णोति॑ ॥
०१ अमून्हेतिः पतत्रिणी ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Them yonder let the winged missile come upon; what the owl utters,
[be] that to no purpose, or that the dove makes its track (padá) at
the fire.
Notes
The second and third pādas are RV. x. 165. 4 a, b (we had d in
the last verse of the preceding hymn); RV. omits vā in c; its
addition damages the meter of the pāda, but the Anukr. overlooks this.
⌊Pādas b, c also occur at MGS. ii. 17. 1 d—cf. under h. 27.⌋
Griffith
On these men yonder fall the winged missile: the screeching of the Owl is ineffective, And that the Dove beside the fire hath settled.
पदपाठः
अ॒मून्। हे॒तिः। प॒त॒त्रिणी॑। नि। ए॒तु॒। यत्। उलू॑कः। वद॑ति। मो॒घम्। ए॒तत्। यत्। वा॒। क॒पोतः॑। प॒दम्। अ॒ग्नौ। कृ॒णोति॑। २९.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- यमः, निर्ऋतिः
- भृगु
- विराड्गायत्री
- अरिष्टक्षयण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शुभ गुण ग्रहण करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पतत्रिणी) नीचे गिरनेवाली (हेतिः) चोट (अमून्) उन [शत्रुओं] को (नि) नीचे (एतु) ले जावे। (उलूकः) अज्ञान से ढकनेवाला उल्लू के समान मूर्ख पुरुष (यत्) जो कुछ (वदति) बोलता है, (एतत्) वह (मोघम्) निरर्थक होवे। (यत्) क्योंकि (कपोतः) स्तुति योग्य अथवा कबूतर के समान तीव्र बुद्धि पुरुष (अग्नौ) विद्वानों के समूह में (वा) निश्चय करके (पदम्) अधिकार (कृणोति) करता है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जहाँ पर विद्वान् मनुष्य अधिकारी होते हैं, वहाँ पर मूर्ख शत्रुओं के वचन और कर्म निष्फल होते हैं ॥१॥ इस मन्त्र का दूसरा और तीसरा पाद ऋग्वेद में है−म० १०।१६५ ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(अमून्) धर्माद् दूरे वर्तमानान् शत्रून् (हेतिः) हवनशक्तिः (पतत्रिणी) अधोगामिनी (नि) नीचैः (एतु) अन्तर्गतण्यर्थः। गमयतु (यत्) यत्किञ्चित् (उलूकः) उलूकादयश्च। उ० ४।४१। इति वल संवरणे, ऊक। अज्ञानेनाच्छादकघूकवद् मूर्खः शत्रुः (वदति) कथयति (मोघम्) मुह अविवेके−घञ्, कुत्वम्। अनर्थकम् (एतत्) वचनम् (यत्) यस्मात् (वा) अवधारणे (कपोतः) सू० २७।१। स्तुत्यः पुरुषः। यद्वा कपोतवत् तीव्रबुद्धिः (पदम्) अधिकारम् (अग्नौ) विद्वत्समूहे (कृणोति) करोति ॥
०२ यौ ते
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यौ ते॑ दू॒तौ नि॑रृत इ॒दमे॒तोऽप्र॑हितौ॒ प्रहि॑तौ वा गृ॒हं नः॑।
क॑पोतोलू॒काभ्या॒मप॑दं॒ तद॑स्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यौ ते॑ दू॒तौ नि॑रृत इ॒दमे॒तोऽप्र॑हितौ॒ प्रहि॑तौ वा गृ॒हं नः॑।
क॑पोतोलू॒काभ्या॒मप॑दं॒ तद॑स्तु ॥
०२ यौ ते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Thy two messengers, O perdition, that come hither, not sent forth or
sent forth, to our house—for the dove and owl be this no place.
Notes
The comm. reads etāu for etás in a; he renders ápadam by
anāśrayabhūtam.
Griffith
Thine envoys who came hither, O Destruction, sent or not sent by thee unto our dwelling, The Dove and Owl, effectless be their visit!
पदपाठः
यौ। ते॒। दू॒तौ। निः॒ऽऋ॒ते॒। इ॒दम्। आ॒ऽइ॒तः। अप्र॑ऽहितौ। प्रऽहि॑तौ। वा॒। गृ॒हम्। नः॒। क॒पो॒त॒ऽउ॒लू॒काभ्या॑म्। अप॑दम्। तत्। अ॒स्तु॒। । २९.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- यमः, निर्ऋतिः
- भृगु
- विराड्गायत्री
- अरिष्टक्षयण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शुभ गुण ग्रहण करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (निर्ऋते) हे नित्य मङ्गल देनेवाले परमेश्वर ! (यौ) जो (अप्रहितौ) अहित करनेवाले (वा) और (प्रहितौ) हित करनेवाले (ते) तेरे (दूतौ) विज्ञान करानेवाले दोनों गुण (नः) हमारे (इदम्) इस (गृहम्) घर में (आ−इतः) आते हैं। (कपोतोलूकाभ्याम्) उन विज्ञान से स्तुति के योग्य और अज्ञान से ढकनेवाले गुणों द्वारा (तत्) विस्तृत ब्रह्म (अपदम्) न प्राप्ति योग्य दुःख को (अस्तु=अस्यतु) गिरा देवे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् पुरुष परमेश्वर की व्यवस्था से सुख और दुःख दोनों का अनुभव करके सुख के मूल सुकर्म का ग्रहण, और दुःख के कारण कुकर्म का त्याग करें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(यौ) (ते) त्वदीयौ (दूतौ) दूतो विज्ञापकः−दयानन्दभाष्ये, ऋग्० १।७२।७। विज्ञापकौ गुणौ (निर्ऋते) ऋ गतौ−क्तिन्। नितरां ऋतिर्मङ्गलं कल्याणं यस्मात्सः। हे नित्यसुखप्रद परमेश्वर ! निर्ऋतिः पृथिवीनाम्−निघ० १।१। (इदम्) (एतः) आगच्छतः (अप्रहितौ) अप्रीतिकरौ (प्रहितौ) हितकारकौ (वा) समुच्चये (गृहम्) निवासम् (नः) अस्माकम् (कपोतोलूकाभ्याम्) कपोतो विज्ञानेन स्तुत्या गुणः−सू० २७।१। उलूकः, अज्ञानेनाच्छादको गुणः−म० १। ताभ्यां द्वाभ्याम् (अपदम्) अप्रापणीयं दुःखम् (तत्) त्यजितनि। उ० १।१३२। इति तनु−अदि, स च डित्। विस्तृतं ब्रह्म (अस्तु) अदादित्वं छान्दसम्। अस्यतु क्षिपतु ॥
०३ अवैरहत्यायेदमा पपत्यात्सुवीरताया
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॑वैरह॒त्याये॒दमा प॑पत्यात्सुवी॒रता॑या इ॒दमा स॑सद्यात्।
परा॑ङे॒व परा॑ वद॒ परा॑ची॒मनु॑ सं॒वत॑म्।
यथा॑ य॒मस्य॑ त्वा गृ॒हेऽर॒सं प्र॑ति॒चाक॑शाना॒भूकं॑ प्रति॒चाक॑शान् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑वैरह॒त्याये॒दमा प॑पत्यात्सुवी॒रता॑या इ॒दमा स॑सद्यात्।
परा॑ङे॒व परा॑ वद॒ परा॑ची॒मनु॑ सं॒वत॑म्।
यथा॑ य॒मस्य॑ त्वा गृ॒हेऽर॒सं प्र॑ति॒चाक॑शाना॒भूकं॑ प्रति॒चाक॑शान् ॥
०३ अवैरहत्यायेदमा पपत्यात्सुवीरताया ...{Loading}...
Whitney
Translation
- May it fly hither in order to non-destruction of heroes; may it
settle (ā-sad) here in order to abundance of heroes; turned away, do
thou speak away, toward a distant stretch (? saṁvát); so that in
Yama’s house they may look upon thee [as] sapless, may look upon
[thee as] empty (ābhū́ka).
Notes
The sense would favor the accent ávāirahatya in a; and
avīrahatyāyāi, which the comm. reads, would be a further improvement.
The comm. also has papadyāt at end of a, and, for c, parām
eva parāvatam. He explains ābhū́kam by āgatavantam. At the end of
e, gṛhé ought, of course, to be gṛhè; but most of the mss. (all
of ours that are noted) have gṛhé, and SPP. also has admitted it into
his text. ⌊As to Yama’s house, cf. Hillebrandt, Ved. Mythol., i. 512.
For cā́kaśān, see Gram. §1008 b.⌋
Griffith
Oft may it fly to us to save our heroes from slaughter, oft perch here to bring fair offspring, Turn thee and send thy voice afar: cry to the region far away; That I may see thee in the home of Yama reft of all thy power, that I may see thee impotent.
पदपाठः
अ॒वै॒र॒ऽह॒त्याय॑। इ॒दम्। आ। प॒प॒त्या॒त्। सु॒ऽवी॒रता॑यै। इ॒दम्। आ। स॒स॒द्या॒त्। परा॑ङ्। ए॒व। परा॑। व॒द॒। परा॑चीम्। अनु॑। स॒म्ऽवत॑म्। यथा॑। य॒मस्य॑। त्वा॒। गृ॒हे। अ॒र॒सम्। प्र॒ति॒ऽचाक॑शान्। आ॒भूक॑म्। प्र॒ति॒ऽचाक॑शान्। २९.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- यमः, निर्ऋतिः
- भृगु
- त्र्यवसाना सप्तदा विराडष्टिः
- अरिष्टक्षयण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शुभ गुण ग्रहण करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [स्तुति के योग्य कपोत विद्वान्] (अवैरहत्याय) वीरों के न मारने के लिये (इदम्) इस स्थान पर (आ=आगत्य) आकर (पपत्यात्) समर्थ होवे और (सुवीरतायै) बड़े वीरों के हित के लिये (इदम्) इस स्थान पर (आ) आकर (ससद्यात्) बैठे। [हे उल्लू के समान मूर्ख शत्रु !] (पराङ्) औंधे मुख होकर (पराचीम्) अधोगत (संवतम्) संगति की (अनु=अनुलक्ष्य) ओर (परा) दूर होकर (एव) ही (वद) बात कर। (यथा) क्योंकि (यमस्य) न्यायकारी पुरुष के (गृहे) घर में। (त्वा) तुझ को (अरसम्) निर्बल (प्रतिचाकशान्) लोग देखें, और (आभूकम्) असमर्थ (प्रतिचाकशान्) वे देखें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वान् पुरुषार्थी जन का सहाय लेकर न्यायपूर्वक श्रेष्ठ वीरों की रक्षा और मूर्ख दुराचारियों का नाश करके सुखी रहें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(अवैरहत्याय) वीर−अण् समूहार्थे+हन क्यप्। वीराणाम् अहननाय रक्षणाय (इदम्) अस्माकं गृहम् (आ) आगत्य (पपत्यात्) पत ऐश्वर्ये। पत्यताम्। समर्थो भवतु (सुवीरतायै) समूहार्थे तल्। श्रेष्ठवीराणां हिताय (आ) आगत्य (ससद्यात्) सीदतु स कपोतः (पराङ्) अधोमुखः सन् (एव) अवधारणे (परा) दूरे (वेद) कथय, हे उलूक शत्रो (पराचीम्) परा+अञ्चु गतौ−क्विन्, ङीप्। अधोगताम् (अनु) अनुलक्ष्य (संवतम्) उपसर्गाच्छन्दसि०। पा० ५।१।११८। इति गत्यर्थे वतिः। संगतिम् (यथा) यस्मात्कारणात् (यमस्य) न्यायिनः पुरुषस्य (त्वा) त्वाम्। उलूकम् (गृहे) न्यायालये (अरसम्) निर्बलम् (प्रतिचाकशान्) काशृ दीप्तौ, यङ्लुकि−लेट्। अवचाकशत् पश्यतिकर्मा−निघ० ३।११। जनाः प्रतिपश्येयुः (आभूकम्) सृवृभू०। उ० ३।४१। इति आङ् ईषदर्थे+भू−कक्। असमर्थम् (प्रतिचाकशान्) प्रत्यक्षं पश्येयुः ॥