०२० यक्ष्मनाशनम् ...{Loading}...
Whitney subject
- Against fever (takmán).
VH anukramaṇī
यक्ष्मनाशनम्।
१-३ भृग्वङ्गिराः। यक्ष्मनाशनम्। १ अतिजगती, २ ककुम्मतीप्रस्तारपङ्क्तिः, ३ सतः पङ्क्तिः।
Whitney anukramaṇī
[Bhṛgvan̄giras.—yakṣmanāśanadāivatam. 1. atijagatī; 2. kakummatī prastirāpan̄ktiḥ; 3. sataḥpan̄ktiḥ.]
Whitney
Comment
Only the last verse is found in Pāipp., in book xiii. Appears in Kāuś. (30. 7) in a remedial rite for bilious fever, and is reckoned (note to 26. 1) to the takmanāśana gaṇa.
Translations
Translated: Grohmann, Ind. Stud. ix. 384, 393; Ludwig, p. 511; Zimmer, p. 380; Florenz, 273 or 25; Griffith, i. 255; Bloomfield, 3, 468.
Griffith
A charm against fever
०१ अग्नेरिवास्य दहत
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒ग्नेरि॒वास्य॒ दह॑त एति शु॒ष्मिण॑ उ॒तेव॑ म॒त्तो वि॒लप॒न्नपा॑यति।
अ॒न्यम॒स्मदि॑च्छतु॒ कं चि॑दव्र॒तस्तपु॑र्वधाय॒ नमो॑ अस्तु त॒क्मने॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒ग्नेरि॒वास्य॒ दह॑त एति शु॒ष्मिण॑ उ॒तेव॑ म॒त्तो वि॒लप॒न्नपा॑यति।
अ॒न्यम॒स्मदि॑च्छतु॒ कं चि॑दव्र॒तस्तपु॑र्वधाय॒ नमो॑ अस्तु त॒क्मने॑ ॥
०१ अग्नेरिवास्य दहत ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Of him as of burning fire goeth the vehemence (?); likewise, as it
were, shall he crying out go away from me; some other one than us let
the ill-behaved one seek; homage be to the heat-weaponed fever.
Notes
The translation given implies the easy emendation of śuṣmíṇas to
śúṣmas, which eases the meter,* and helps the sense out of a notable
difficulty. The comm. and the translators understand (perhaps
preferably) mattás in b as pple of mad, instead of
quasi-ablative of the pronoun ma, as here rendered (“he flees, crying
like a madman,” R.). The comm. takes avratas as intended for an
accusative, -tam. The verse is really a jagatī with one redundant
syllable in a. *⌊The metrical difficulty is in the prior part of
a; the cadence of a is equally good with śuṣmíṇas or with
śúṣmas.⌋
Griffith
He goes away as ’twere from this fierce burning fire, inebriated and lamenting he departs. Let him, the lawless, seek another and not us. Worship be paid to Fever armed with fiery heat.
पदपाठः
अ॒ग्नेःऽइ॑व। अ॒स्य॒। दह॑तः। ए॒ति॒। शु॒ष्मिणः॑। उ॒तऽइ॑व। म॒त्तः। वि॒ऽलप॑न्। अप॑। अ॒य॒ति॒। अ॒न्यम्। अ॒स्मत्। इ॒च्छ॒तु। कम्। चि॒त्। अ॒व्र॒तः। तपुः॑ऽवधाय। नमः॑। अ॒स्तु॒। त॒क्मने॑। २०.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- यक्ष्मनाशनम्
- भृग्वङ्गिरा
- अतिजगती
- यक्ष्मानाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोग के नाश के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - वह [ज्वर] (दहतः) दहकती हुई, (शुष्मिणः) बलवान् (अस्य) इस (अग्नेः) अग्नि के [ताप के] (इव) समान (एति) व्यापता है, (उत) और (मत्तः इव) उन्मत्त के समान (विलपन्) विलपता हुआ (अप अयति) भाग जाता है। (अस्मत्) हम से (अन्यम्) दूसरे (कम् चित्) किसी [कुनियमी] को (अव्रतः) वह व्रतहीन (इच्छतु) ढूँढ लेवे, (तपुर्वधाय) तपते हुए अस्त्र रखनेवाले (तक्मने) दुःखित जीवन करनेवाले ज्वर को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जहाँ पर उत्तम वैद्य होते हैं और मनुष्य उचित आहार विहार करते हैं, वहाँ ज्वरादि रोग नहीं होते ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(अग्नेः) पावकस्य ताप इति शेषः (इव) यथा (अस्य) प्रसिद्धस्य (दहतः) दाहकस्य (एति) व्याप्नोति (शुष्मिणः) शोषकबलयुक्तस्य (उत) अपि च (इव) यथा (मत्तः) उन्मत्तः। आत्मविस्मारकः (विलपन्) विविधं प्रलापं कुर्वन् (अप अयति) दूरं गच्छति (अन्यम्) व्रतहीनम् (अस्मत्) अस्मत्तः। व्रतधारकेभ्यः (इच्छतु) अन्विच्छतु (कम् चित्) कमपि पुरुषम् (अव्रतः) भ्रष्टनियमः (तपुर्वधाय) तापायुधाय (नमः) नमस्कारः (अस्तु) (तक्मने) अ० १।२५।१। कृच्छ्रजीवनकारिणे ज्वराय ॥
०२ नमो रुद्राय
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नमो॑ रु॒द्राय॒ नमो॑ अस्तु त॒क्मने॒ नमो॒ राज्ञे॒ वरु॑णाय॒ त्विषी॑मते।
नमो॑ दि॒वे नमः॑ पृथि॒व्यै नम॒ ओष॑धीभ्यः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नमो॑ रु॒द्राय॒ नमो॑ अस्तु त॒क्मने॒ नमो॒ राज्ञे॒ वरु॑णाय॒ त्विषी॑मते।
नमो॑ दि॒वे नमः॑ पृथि॒व्यै नम॒ ओष॑धीभ्यः ॥
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Whitney
Translation
- Homage to Rudra, homage be to the fever, homage to king Varuṇa, the
brilliant (tvíṣīmant), homage to the sky, homage to the earth, homage
to the herbs.
Notes
The Anukr. scans the verse as 12 + 12: 9 + 6 = 39 syllables.
Griffith
To Rudra and to Fever be our worship paid: worship be paid to Varuna the splendid King! Worship to Dyaus, to Earth, worship be paid to Plants!
पदपाठः
नमः॑। रु॒द्राय॑। नमः॑। अ॒स्तु॒। त॒क्मने॑। नमः॑। राज्ञे॑। वरु॑णाय। त्विषि॑ऽमते। नमः॑। दि॒वे। नमः॑। पृ॒थि॒व्यै। नमः॑। ओष॑धीभ्यः। २०.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- यक्ष्मनाशनम्
- भृग्वङ्गिरा
- ककुम्मती प्रस्तारपङ्क्तिः
- यक्ष्मानाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोग के नाश के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (रुद्राय) दुःखनाशक वैद्य को (नमः) नमस्कार, (तक्मने) दुःखित जीवन करनेवाले ज्वर को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे, (त्विषीमते) प्रकाशमान, (राज्ञे) सब के राजा, (वरुणाय) श्रेष्ठ परमेश्वर को (नमः) नमस्कार हो। (दिवे) प्रकाशमान सूर्य को (नमः) नमस्कार, (पृथिव्यै) फैली हुयी पृथिवी को (नमः) नमस्कार, और (ओषधीभ्यः) तापनाशक अन्न आदि पदार्थों को (नमः) नमस्कार हो ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सत्पुरुषों के मेल, ईश्वरविचार और सांसारिक पदार्थों के नियमों के साक्षात् करने से स्वस्थ रहें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(नमः) नमस्कारः (रुद्राय) अ० २।२७।६। दुःखनाशकाय वैद्याय (अस्तु) (तक्मने) म० १। ज्वराय (राज्ञे) सर्वशासकाय (वरुणाय) वरणीयाय परमेश्वराय (त्विषीमते) अ० ४।१९।२। दीप्तियुक्ताय (दिवे) प्रकाशमानाय सूर्याय (पृथिव्यै) विस्तृतायै भूम्यै (ओषधीभ्यः) तापनाशिकाभ्यो व्रीह्यादिभ्यः ॥
०३ अयं यो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒यं यो अ॑भिशोचयि॒ष्णुर्विश्वा॑ रू॒पाणि॒ हरि॑ता कृ॒णोषि॑।
तस्मै॑ तेऽरु॒णाय॑ ब॒भ्रवे॒ नमः॑ कृणोमि॒ वन्या॑य त॒क्मने॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒यं यो अ॑भिशोचयि॒ष्णुर्विश्वा॑ रू॒पाणि॒ हरि॑ता कृ॒णोषि॑।
तस्मै॑ तेऽरु॒णाय॑ ब॒भ्रवे॒ नमः॑ कृणोमि॒ वन्या॑य त॒क्मने॑ ॥
०३ अयं यो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Thou here who, scorching greatly, dost make all forms yellow—to thee
here, the ruddy, the brown, the woody takmán, do I pay homage.
Notes
Ppp. reads, in a, rūras for yas; its c, d are aruṇāya
babhrave tapurmaghavāya namo ‘stu takmane. The comm. understands
ványāya in d as gerundive of root van = saṁsevyāya: perhaps
‘of the forest,’ i.e., having no business in the village. The verse (9 +
11: 9 + 12) is too irregular for the metrical definition given ⌊cf.
viii. 2. 21⌋.
The second anuvāka ends here, having 10 hymns and 32 verses, and the
quotation from the old Anukr. is simply dvitīyāu, which ought to
combine with the prathama of the first anuvāka—only one does not see
how, as the two are not equal in number of verses.
Griffith
Thou who, aglow with heat, makest all bodies green, to thee, red, brown, I bow, the Fever of the wood.
पदपाठः
अ॒यम्। यः। अ॒भि॒ऽशो॒च॒यि॒ष्णुः। विश्वा॑। रू॒पाणि॑। हरि॑ता। कृ॒णोषि॑। तस्मै॑। ते॒। अ॒रु॒णाय॑। ब॒भ्रवे॑। नमः॑। कृ॒णो॒मि॒। वन्या॑य। त॒क्मने॑। २०.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- यक्ष्मनाशनम्
- भृग्वङ्गिरा
- सतःपङ्क्तिः
- यक्ष्मानाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोग के नाश के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह (यः) जो (अभिशोचयिष्णुः) बहुत ही शोक में डालनेवाला तू (विश्वा) सब (रूपाणि) रूपों को (हरिता) हरे वा पीले (कृणोषि) कर देता है। (तस्मै) उस (ते) तुझ (अरुणाय) रक्त, (बभ्रवे) भूरे और (वन्याय) बनैले (तक्मने) दुःखित जीवन करनेवाले ज्वर को (नमः) नमस्कार (कृणोमि) करता हूँ ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सावधान रहकर रुधिर विकार आदि से उत्पन्न दुष्ट ज्वर आदि रोगों से बचकर सदा हृष्ट-पुष्ट रहें ॥३॥ इति द्वितीयोऽनुवाकः ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(अयम्) निर्दिष्टः (य) तक्मा (अभिशोचयिष्णुः) णेश्छन्दसि। पा० ३।२।१३७। इति शुच शोके−इष्णुच्। सर्वत शोकमुत्पादयन् (विश्वा) सर्वाणि (रूपाणि) सौन्दर्याणि (हरिता) हृञ् हरणे−इतच्। रक्तदूषणेन नीलपीतमिश्रितवर्णानि हरिद्रावर्णानि वा (कृणोषि) करोषि। (तस्मै) तादृशाय (ते) तुभ्यम् (अरुणाय) रक्तवर्णाय (बभ्रवे) पिङ्गलवर्णाय (नमः) नमस्कारम् (कृणोमि) करोमि (वन्याय) वने भवाय (तक्मने) म० १। कृच्छजीवनकारिणे ज्वराय ॥