०१४ बलासनाशनम् ...{Loading}...
Whitney subject
- Against the balā́sa.
VH anukramaṇī
बलासनाशनम्।
१-३ बभ्रुपिङ्गलः। बलासः। अनुष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Babhrupin̄gala (?).—balāsadevatyatn. ānuṣṭubham.]
Whitney
Comment
Occurs also in Pāipp. xix. Used by Kāuś. (29. 30) in a remedial rite against catarrh (śleṣman), with variously administering prepared water to the patient.
Translations
Translated: Florenz, 265 or 17; Griffith, i. 252; Bloomfield, 8, 463; vs. 1 also by Grohmann, Ind. Stud. ix. 397, with an excursus on the balā́sa.
Griffith
A charm against consumption
०१ अस्थिस्रंसं परुस्रंसमास्थितम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॑स्थिस्रं॒सं प॑रुस्रं॒समास्थि॑तं हृदयाम॒यम्।
ब॒लासं॒ सर्वं॑ नाशयाङ्गे॒ष्ठा यश्च॒ पर्व॑सु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑स्थिस्रं॒सं प॑रुस्रं॒समास्थि॑तं हृदयाम॒यम्।
ब॒लासं॒ सर्वं॑ नाशयाङ्गे॒ष्ठा यश्च॒ पर्व॑सु ॥
०१ अस्थिस्रंसं परुस्रंसमास्थितम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The bone-dissolving, joint-dissolving, settled (ā́sthita) heart
disease, all the balā́sa, cause thou to disappear, that is seated in
the limbs and in the joints.
Notes
SPP. adopts in a the saṁhitā-reading parusraṅsám (p.
paruḥ॰sraṅsám), with nearly all his mss., and with the comm. The
majority also of our mss. ⌊not E.O.⌋ omit the ḥ but the Prāt.
authorizes no such abbreviation, and the point is one in regard to which
the usage of the mss., however seemingly accordant, is not to be
trusted. Ppp. reads,
in c, niṣ kṛdhi for nāśaya. The comm. takes the two words in
a as names of disorders, which is perhaps preferable, and regards
them as occasioned by phlegm (śleṣman); balāsa he defines as
kāsaśvāsātmaka śleṣmaroga. ⌊For ā́sthita, see note to iv. 17. 8.⌋
⌊Delete the accent-sign over -saṁ in c.⌋
Griffith
Remove thou all Decline that lurks within the members and the joints, The firmly-settled heart-disease that racks the bones and rends the limbs.
पदपाठः
अ॒स्थि॒ऽस्रं॒सम्। प॒रुः॒ऽस्रं॒सम्। आऽस्थि॑तम्। हृ॒द॒य॒ऽआ॒म॒यम्। ब॒लास॑म्। सर्व॑म्। ना॒श॒य॒। अ॒ङ्गे॒ऽस्थाः। यः। च॒। पर्व॑ऽसु। १४.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बलासः
- बभ्रुपिङ्गल
- अनुष्टुप्
- बलासनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोग के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे वैद्य !] (अस्थिस्रंसम्) हड्डियाँ गला देनेवाले, (परुस्रंसम्) जोड़ों के ढीला कर देनेवाले (आस्थितम्) स्थिर (हृदयामयम्) हृदयरोग, अर्थात् (सर्वम्) सब (बलासम्) बल गिरा देनेवाले क्षयरोग [खाँसी, कफ़ आदि] को (नाशय) नाश करदे, (यः) जो (अङ्गेष्ठाः) अङ्ग-अङ्ग में बैठा हुआ (च) और (पर्वसु) सब जोड़ों में है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे वैद्य ओषधि द्वारा रोगों का नाश करता है, वैसे ही मनुष्य विद्या द्वारा अविद्या का नाश करें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(अस्थिस्रंसम्) स्रंसु पतने−पचाद्यच्। अस्थ्नां स्रंसः स्रंसनं पतनं यस्मात् तं रोगम् (परुस्रंसम्) परुषां पर्वणां शरीरसन्धीनां पतनं यस्मात् तम् (आस्थितम्) समन्ताद् व्याप्य स्थितम् (हृदयामयम्) हृद्रोगम् (बलासम्) अ० ४।९।८। बलस्य असितारं कासकफादिक्षयरोगम् (सर्वम्) निःशेषम् (नाशय) उन्मूलय (अङ्गेष्ठाः) अङ्गे+ष्ठा−विच्। हस्तपादाद्यङ्गेषु स्थितः (यः) (बलासः) (च) (पर्वसु) शरीरसन्धिषु वर्तते ॥
०२ निर्बलासं बलासिनः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
निर्ब॒लासं॑ बला॒सिनः॑ क्षि॒णोमि॑ मुष्क॒रं य॑था।
छि॒नद्म्य॑स्य॒ बन्ध॑नं॒ मूल॑मुर्वा॒र्वा इ॑व ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
निर्ब॒लासं॑ बला॒सिनः॑ क्षि॒णोमि॑ मुष्क॒रं य॑था।
छि॒नद्म्य॑स्य॒ बन्ध॑नं॒ मूल॑मुर्वा॒र्वा इ॑व ॥
०२ निर्बलासं बलासिनः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The balā́sa of him that has balā́sa I destroy like a muṣkará; I
cut its bond like the root of a gourd.
Notes
The accent urvārvā́s is noted in the commentary to Prāt. iii. 60; Ppp.
reads ulvālvo yathā. The comm. defines urvārū as ’the fruit of the
karkaṭī’ (Cucumis utilissimus) and explains the comparison to be
with the stem of this fruit, which becomes loosened of itself when ripe:
cf. xiv. 1. 17. Ppp. and the comm. read puṣkaram in b. Ppp. also
has kṛṇomi instead of kṣiṇomi, a preferable reading (BR. pronounce
kṣiṇomi “false”; but nu-forms of this root occur in Brāhmaṇa and
Sūtra; akṣṇomi, however, would be better in place). ⌊See BR. v. 1348
and 838.⌋
Griffith
From the consumptive man I pluck Decline as ’twere a severed part. I cut the bond that fetters him, even as a root of cucumber.
पदपाठः
निः। ब॒लास॑म्। ब॒ला॒सिनः॑। क्षि॒णोमि॑। मु॒ष्क॒रम्। य॒था॒। छि॒नद्मि॑। अ॒स्य॒। बन्ध॑नम्। मूल॑म्। उ॒र्वा॒र्वाःऽइ॑व। १४.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बलासः
- बभ्रुपिङ्गल
- अनुष्टुप्
- बलासनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोग के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (बलासिनः) क्षय रोगवाले से (बलासम्) बल घटानेवाले क्षयरोग को (निः क्षिणोमि) उखाड़ कर नाश करता हूँ (यथा) जैसे (मुष्करम्) कतरन को। (अस्य) इस रोग के (बन्धनम्) बन्धन को (छिनद्मि) काटे डालता हूँ, (इव) जैसे (उर्वार्वाः) ककड़ी की (मूलम्) जड़ को ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे सद्वैद्य रोग का कारण समझ कर शीघ्र चिकित्सा करता है, वैसे ही विद्वान् अपने दोषों को समझ कर हटावे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(निः) निःसार्य (बलासम्) म० १। बलनाशकं क्षयादिरोगम् (बलासिनः) क्षयरोगिणः पुरुषात् (क्षिणोमि) नाशयामि (मुष्करम्) पुषः कित्। उ० ४।४। इति मुष छेदने−करन्। छिन्नभागम् (यथा) येन प्रकारेण (छिनद्मि) विश्लेषयामि (अस्य) रोगस्य (बन्धनम्) पीडनम् (मूलम्) (उर्वार्वाः) उरु+आर्वाः। णित् कशिपद्यर्तेः। उ० १।८५। इति ऋ गतौ−ऊ प्रत्ययः। उरु विस्तीर्णम् ऋच्छतीति उर्वारू तस्याः कर्कट्याः (इव) यथा ॥
०३ निर्बलासेतः प्र
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निर्बला॑से॒तः प्र प॑ताशु॒ङ्गः शि॑शु॒को य॑था।
अथो॒ इट॑ इव हाय॒नोऽप॑ द्रा॒ह्यवी॑रहा ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
निर्बला॑से॒तः प्र प॑ताशु॒ङ्गः शि॑शु॒को य॑था।
अथो॒ इट॑ इव हाय॒नोऽप॑ द्रा॒ह्यवी॑रहा ॥
०३ निर्बलासेतः प्र ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Fly out forth from here, O balā́sa, like a young āśuṁgá; then,
like the [last] year’s bulrush, scud away, innocuous to heroes.
Notes
Ppp. has, for b, suparṇo vasater iva ⌊cf. RV. i. 25. 4⌋ ’like a
bird from its nest’: a much easier reading. The comm. explains āśuṁga
as an ordinary adjective, ‘swiftgoing,’ and, instead of śiśuka, reads
śuśuka “a wild animal so called.” For c, d, Ppp. has adhe ’ṭa ivā
’hano ‘padrāhy avāiraha. The comm. reads itas ⌊that is itás⌋, pple
of root i, for íṭas in c. The Anukr. appears to sanction the
contraction iṭe ’va in c.
Griffith
Begone, Consumption, hence away, like a young foal that runs. at speed. Then, not pernicious to our men, flee, yearly visitant like grass!
पदपाठः
निः। ब॒ला॒स॒। इ॒तः। प्र। प॒त॒। आ॒शुं॒गः। शि॒शु॒कः। य॒था॒। अथो॒ इति॑। इटः॑ऽइव। हा॒य॒नः। अप॑। द्रा॒हि॒। अवी॑रऽहा। १४.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बलासः
- बभ्रुपिङ्गल
- अनुष्टुप्
- बलासनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोग के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (बलास) हे बल घटानेवाले क्षयरोग ! (इतः) यहाँ से (निः=निष्क्रम्य) निकल कर (प्रपत) चला जा, (यथा) जैसे (आशुंगः) शीघ्रगामी (शिशुकः) छोटा बछड़ा। (अथो) और भी (अवीरहा) वीरों का न नाश करनेवाला तू (अप=अपेत्य) हटकर (द्राहि) भाग जा, (इव) जैसे (हायनः) प्रति वर्ष होनेवाला (इटः) घास ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को रोग और अज्ञान नाश करने में शीघ्रता करनी चाहिये, जिससे वीरों की सदा जय रहे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(निः) निष्क्रम्य (बलास) हे बलनाशक क्षयरोग (इतः) अस्मात् स्थानात् (प्र) प्रकर्षेण (पत) दूरं गच्छ (आशुंगः) आशु+गमेः−खच्, स च डित्। आशुगामी (शिशुकः) वत्सतरः (यथा) (अथो) अपि च (इटः) इट गतौ−क। घासः (इव) यथा (हायनः) हायन−अर्शआद्यच्। प्रतिवर्षभवः (अप) अपेत्य (द्राहि) द्रा कुत्सायां गतौ। पलायस्व (अवीरहा) वीराणाम् अहन्ता त्वम् ॥