०११ पुंसवनम्

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Whitney subject
  1. For birth of sons.
VH anukramaṇī

पुंसवनम्।
१-३ प्रजापतिः। रेतः, ३ प्रजापतिः, अनुमतिः, सिनीवाली। अनुष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Prajāpatiḥ.—retodevatyam uta mantroktadevatyam. ānuṣṭubham.]

Whitney

Comment

The hymn is found also in Pāipp. xix. Accompanies in Kāuś. (35. 8) a rite for conception of a male child (puṁsavana); fire is generated between śamī and aśvattha, and is variously applied to the woman.

Translations

Translated: Weber, v. 264; Ludwig, p. 477; Zimmer, p. 319; Florenz, 260 or 12; Griffith, i. 250; Bloomfield, 97, 460.

Griffith

An epithalamian charm to ensure the birth of a boy

०१ समीमश्वत्थ आरूढस्तत्र

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

समीम॑श्व॒त्थ आरू॑ढ॒स्तत्र॑ पुं॒सुव॑नं कृ॒तम्।
तद्वै पु॒त्रस्य॒ वेद॑नं॒ तत्स्त्री॒ष्वा भ॑रामसि ॥

०१ समीमश्वत्थ आरूढस्तत्र ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The aśvatthá [has] mounted upon the śamī́; there is made the
    generation of a male; that verily is the obtainment of a son; that we
    bring into women.
Notes

Some of SPP’s mss. read, with the comm., puṁsávanam in b. Ppp.
combines aśvatthā ”rū- in a, and for c, d has tad eva tasya
bheṣajaṁ yat strīṣv āharanti tam
, ’that is the remedy of this—-namely,
that they put this into women.'

Griffith

Asvattha on the Sami-tree. There a male birth is certified. There is the finding of a son: this bring we to the women-folk.

पदपाठः

श॒मीम्। अ॒श्व॒त्थः। आऽरू॑ढः। तत्र॑। पु॒म्ऽसुव॑नम्। कृ॒तम्। तत्। वै। पुत्रस्य॑। वेद॑नम्। तत्। स्त्री॒षु। आ। भ॒रा॒म॒सि॒। ११.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रेतः
  • प्रजापति
  • अनुष्टुप्
  • पुंसवन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गर्भाधान का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वत्थः) बलवानों में ठहरनेवाला पुरुष (शमीम्) शान्तस्वभाव स्त्री के प्रति (आरूढः) आरूढ हो चुकता है, (तत्र) उस काल में (पुंसुवनम्) सन्तान का उत्पत्तिकर्म (कृतम्) किया जाता है। (तत्) वह कर्म (वै) हा (पुत्रस्य) कुलशोधक संतान की (वेदनम्) प्राप्ति का कारण है, (तत्) उस कर्म को (स्त्रीषु) स्त्रियों में (आभरामसि) हम पहुँचाते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वीर्यवान् पति और शान्तस्वभाव पत्नी यथाविधि परस्पर संयोग करके सन्तान उत्पन्न करें ॥१॥ इस सूक्त का विधान पुंसवनसंस्कार में भी दयानन्दकृत संस्कारविधि में है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(शमीम्) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। इति शम उपशमे−इन्, ङीप्। शमी कर्मनाम−निरु० २।१। शान्तस्वभावां स्त्रियम् (अश्वत्थः) अ० ३।६।१। अश्वेषु बलवत्सु तिष्ठतीति सः। अतिवीरपुरुषः (आरूढः) अधिगतः (तत्र) तस्मिन् काले (पुम् सुवनम्) भूसूधू०। उ० २।८०। इति षूङ् प्रसवे−क्युन्। पुंसो रक्षकस्य सन्तानस्योत्पादनम् (कृतम्) विहितम् (तत्) पुंसवनम् (पुत्रस्य) कुलशोधकस्य सन्तानस्य (वेदनम्) विद्लृ लाभे−ल्युट्। लाभकारणम् (तत्) कर्म (स्त्रीषु) पत्नीषु (आभरामसि) आ हरामः। प्रापयामः ॥

०२ पुंसि वै

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पुं॒सि वै रेतो॑ भवति॒ तत्स्त्रि॒यामनु॑ षिच्यते।
तद्वै पु॒त्रस्य॒ वेद॑नं॒ तत्प्र॒जाप॑तिरब्रवीत् ॥

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Whitney
Translation
  1. In the male, indeed, grows (bhū) the seed; that is poured along
    into the woman; that verily is the obtainment of a son; that Prajāpati
    said.
Notes

Several of our mss. (Bp.P.M.W.E.H.) read pūṁsí at the beginning. śGS.
has (i. 19) a nearly corresponding verse: puṁsi vāi puruṣe retas tat
striyām anu ṣiñcatu: tathā tad abravīd dhātā tat prajāpatir abravīt
.

Griffith

The father sows the genial seed, the woman tends and fosters it. This is the finding of a son: thus hath Prajapati declared.

पदपाठः

पुं॒सि। वै। रेतः॑। भ॒व॒ति॒। तत्। स्त्रि॒याम्। अनु॑। सि॒च्य॒ते॒। तत्। वै। पु॒त्रस्य॑। वेद॑नम्। तत्। प्र॒जाऽप॑तिः। अ॒ब्र॒वी॒त्। ११.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रेतः
  • प्रजापति
  • अनुष्टुप्
  • पुंसवन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गर्भाधान का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पुंसि) रक्षा स्वभाव पुरुष में (वै) ही (रेतः) वीर्य (भवति) होता है, (तत्) वह वीर्य (स्त्रियाम्) स्त्री में (अनु) अनुकूल विधि से (सिच्यते) सींचा जाता है। (तत्) वह कर्म (वै) ही (पुत्रस्य) कुलशोधक संतान की (वेदनम्) प्राप्ति का कारण है, (तत्) वही (प्रजापतिः) प्रजाओं के रक्षक ईश्वर ने (अब्रवीत्) बताया है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - युवा अवस्था में ही मनुष्य पूर्ण बलवान् और वीर्यवान् होकर उत्तम बलवान् संतान उत्पन्न करे, यह ईश्वरनियम है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(पुंसि) अ० ३।६।१। रक्षणस्वभावे बलवति पुरुषे (वै) एव (रेतः) अ० २।२८।५। वीर्यम् (भवति) (तत्) रेतः (स्त्रियाम्) पत्न्याम् (अनु) आनुकूल्येन। यथाविधि (सिच्यते) सेचनं क्रियते (तत्) रेतःसेचनम् (वै) (पुत्रस्य) (वेदनम्) प्राप्तिकारणम् (प्रजापतिः) प्रजानां पालकः परमेश्वरः (अब्रवीत्) अकथयत् ॥

०३ प्रजापतिरनुमतिः सिनीवाल्यचीक्लृपत्

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प्र॒जाप॑ति॒रनु॑मतिः सिनीवा॒ल्य॑चीक्लृपत्।
स्त्रैषू॑यम॒न्यत्र॒ दध॒त्पुमां॑समु दधदि॒ह ॥

०३ प्रजापतिरनुमतिः सिनीवाल्यचीक्लृपत् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Prajāpati, Anumati, Sinīvālī hath shaped; may he put elsewhere
    woman-birth; but may he put here a male.
Notes

Ppp. has in c triṣūyam ’triple birth’ (or for strīṣūyam?). Two
of the Prāt. rules (ii. 88, iv. 83) mention strāísūyam (p.
strāísūyam). śGS. has for this verse also a correspondent (i. 19):
prajāpatir vy adadhāt savitā vy akalpayat: strīṣūyam anyānt sv
(anyāsv?) ā dadhat pumāṅsam ā dadhād iha.

Griffith

Prajapati, Anumati, Sinivali have ordered it. Elsewhere may he effect the birth of maids, but here prepare a boy.

पदपाठः

प्र॒जाऽप॑तिः। अनु॑ऽमतिः। सि॒नी॒वा॒ली। अ॒ची॒क्लृ॒प॒त्। स्रैसू॑यम्। अ॒न्यत्र॑। दध॑त्। पुमां॑सम्। ऊं॒ इति॑। द॒ध॒त्। इ॒ह। ११.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापत्यनुमतिः, सिनीवाली
  • प्रजापति
  • अनुष्टुप्
  • पुंसवन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गर्भाधान का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अनुमतिः) अनुकूल बुद्धिवाली, (सिनीवाली) अन्नवाली (प्रजापतिः) प्रजापालक शक्ति परमेश्वर ने (अचीक्लृपत्) यह शक्ति दी है। (अन्यत्र) दूसरे प्रकार में [स्त्री का रज अधिक होने में] (स्त्रैषूयम्) स्त्रीजन्मसंबन्धी क्रिया (दधत्=दधते) वह [ईश्वर] धारण करता है और (इह) इसमें [पुरुष का वीर्य अधिक होने पर] (उ) निश्चय करके (पुमांसम्) बलवान् संतान को (दधत्) वह स्थापित करता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य उत्तम बुद्धिवाला, अन्नवान् और प्रजापालक होकर ईश्वरनियम से गृहस्थ आश्रम के योग्य होता है और स्त्री का रज अधिक होने पर कन्या और पुरुष का वीर्य अधिक होने पर पुरुषसन्तान उत्पन्न होता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(प्रजापतिः) प्रजापालिका शक्तिः परमेश्वरः (अनुमतिः) अनुकूलबुद्धियुक्ता (सिनीवाली) अ० २।२६।२। अन्नधर्त्री। अन्नवती (अचीक्लृपत्) कृपू सामर्थ्ये ण्यन्ताल्लुङि चङि रूपम्। समर्थमकरोत् (स्त्रैषूयम्) राजसूयसूर्य० पा० ३।१।११४। इति स्त्री+षूङ् प्रसवे−क्यप्। स्त्रीसूय−अण् सम्बन्धे। कन्याजन्मसम्बन्धि कर्म (अन्यत्र) अन्यप्रकारे। स्त्रीरजआधिक्ये (दधत्) दध धारणे−लडर्थे लेट् परस्मैपदं च छान्दसम्। ईश्वरो दधते स्थापयति (पुमांसम्) पुरुषसन्तानम् (उ) अवश्यम् (दधत्) (इह) अस्मिन्विधौ। पुरुषवीर्याधिक्ये ॥