०१० संप्रोक्षणम्

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Whitney subject
  1. Greeting to divinities etc. of the three spheres.
VH anukramaṇī

संप्रोक्षणम्।
१-३ शन्तातिः। १ पृथिवि, श्रोत्रं, वनस्पतिः, अग्निः, २ प्राणः, अन्तरिक्षं, वयः, वायुः, ३ द्यौः, चक्षुः, नक्षत्राणि, सूर्यः। द्वैपदम्, १ साम्नी त्रिष्टुप्, २ प्राजापत्या बृहती, ३ साम्नी बृहती।

Whitney anukramaṇī

[śaṁtāti.—nānādevatyam: 1. āgneyī, 2. vāyavyā, 3. sāuryā. 1. sāmnī triṣṭubh, 2. prājāpatyā bṛhatī, 3. sāmnī bṛhatī.]

Whitney

Comment

This prose hymn is not found in Pāipp. In Kāuś. (9. 3, 5), it is quoted after each śānti gaṇa, to accompany a pouring out of water three times (iti triḥ pratyāsiñcati; the comm. does not notice this use); and again (12. 3), it is prescribed in all rites for success; being further (note to 8. 23) reclconed to the vāstu gaṇa.

Translations

Translated: Florenz, 258 or 10; Griffith, i. 249.

Griffith

A thanksgiving for life, hearing, and sight

०१ पृथिव्यै श्रोत्राय

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पृ॑थि॒व्यै श्रोत्रा॑य॒ वन॒स्पति॑भ्यो॒ऽग्नयेऽधि॑पतये॒ स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. To earth, to hearing, to the forest-trees—to Agni [their] overlord,
    hail!
Notes

It is not easy to read 22 syllables in the verse.

Griffith

All hail for hearing to the Earth, to Trees, to Agni, sovran Lord!

पदपाठः

पृ॒थि॒व्यै। श्रोत्रा॑य। वन॒स्पति॑ऽभ्यः। अ॒ग्नये॑। अधि॑ऽपतये। स्वाहा॑। १०.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • शन्ताति
  • साम्नी त्रिष्टुप्
  • संप्रोक्षण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

स्वास्थ्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (क्षोत्राय) श्रवणशक्ति के लिये (पृथिव्यै) पृथिवी को, और (वनस्पतिभ्यः) सेवा करनेवालों के रक्षकों वृक्ष आदिकों के लिये (अधिपतये) [पृथिवी के] बड़े रक्षक (अग्नये) अग्नि को (स्वाहा) सुन्दर स्तुति है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पृथिवी तत्त्व, और उस से अग्नि द्वारा उत्पन्न पदार्थों के विवेक से श्रवणशक्ति बढ़ावें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(पृथिव्यै) भूलोकाय (श्रोत्राय) श्रवणहिताय (वनस्पतिभ्यः) अ० १।३५।३। सेवकपालकेभ्यो वृक्षादिभ्यः। तेषां हितायेत्यर्थः (अग्नये) पृर्थिवीस्थतेजसे (अधिपतये) पृथिव्या रक्षकाय (स्वाहा) अ० २।१६।१। सुवाणी सुन्दरस्तुतिः ॥

०२ प्राणायान्तरिक्षाय वयोभ्यो

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प्रा॒णाया॒न्तरि॑क्षाय॒ वयो॑भ्यो वा॒यवेऽधि॑पतये॒ स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. To breath, to the atmosphere, to the birds—to Vāyu [their]
    overlord, hail!
Notes

It is strange that in this verse the sphere is placed after the human
faculty.

Griffith

All hail for breath to Air, for power to life to Vayu, sovran Lord!

पदपाठः

प्रा॒णाय॑। अ॒न्तरि॑क्षाय। वयः॑ऽभ्यः। वा॒यवे॑। अधि॑ऽपतये। स्वाहा॑। १०.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वायुः
  • शन्ताति
  • प्राजापत्या बृहती
  • संप्रोक्षण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

स्वास्थ्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणाय) प्राण के लिये (अन्तरिक्षाय) अन्तरिक्ष लोक को, और (वयोभ्यः) अन्न आदि पदार्थों के लिये (अधिपतये) [अन्तरिक्ष के] बड़े रक्षक (वायवे) वायु को (स्वाहा) सुन्दर स्तुति है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अन्तरिक्ष और वायु से उपकार लेकर प्राण और अन्न आदि पदार्थों को पुष्ट करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(प्राणाय) प्राणहिताय (अन्तरिक्षाय) मध्यलोकाय (वयोभ्यः) अ० २।१०।३। अन्नादिपदार्थेभ्यः (वायवे) गमनशीलाय पवनाय (अधिपतये) अन्तरिक्षस्य पालकाय (स्वाहा) सुन्दरस्तुतिः ॥

०३ दिवे चक्षुषे

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दि॒वे चक्षु॑षे॒ नक्ष॑त्रेभ्यः॒ सूर्या॒याधि॑पतये॒ स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. To the sky, to sight, to the asterisms—to Sūrya [their] overlord,
    hail!
Notes

The first anuvāka, of 10 hymns and 30 verses, ends here. The quotation
is simply prathama (or -mā): see under the next anuvāka.

Griffith

All hail for vision to the Stars, to Heaven, to Surya, sovran Lord!

पदपाठः

दि॒वे। चक्षु॑षे। नक्ष॑त्रेभ्यः। सूर्या॑य। अधि॑ऽपतये। स्वाहा॑। १०.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • सूर्यः
  • शन्ताति
  • साम्नी बृहती
  • संप्रोक्षण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

स्वास्थ्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (चक्षुषे) दृष्टिशक्ति के लिये (दिवे) प्रकाश को, और (नक्षत्रेभ्यः) नक्षत्रों के लिये (अधिपतये) [प्रकाश के] बड़े रक्षक (सूर्याय) सूर्य को (स्वाहा) सुन्दर स्तुति है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रकाश और सूर्य के आकर्षण आदि गुणों को जानकर दृष्टि ओर नक्षत्र विद्या प्राप्त करें ॥३॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(दिवे) प्रकाशाय (चक्षुषे) दर्शनशक्तये (नक्षत्रेभ्यः) नक्षत्रज्ञानेभ्यः (सूर्याय) अ० १।३।५। लोकप्रेरकाय दिवाकराय (अधिपतये) प्रकाशस्य महारक्षकाय ॥