००९ कामात्मा

००९ कामात्मा ...{Loading}...

Whitney subject
  1. To win a woman’s love.
VH anukramaṇī

कामात्मा
१-३ जमदग्निः। कामात्मा, ३ गावः। अनुष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Jamadagni.—kāmātmadāivatam. ānuṣṭubham.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp., but in ii. (not in xix., like the hymns that precede and follow). Used by Kāuś. (35. 21) with the preceding hymn, for the same purpose.

Translations

Translated: Weber, Ind. Stud. v. 264; Florenz, 258 or 10; Griffith, i. 249; Bloomfield, 101, 459.

Griffith

A man’s love-charm

०१ वाञ्छ मे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

वाञ्छ॑ मे त॒न्वं१॒॑ पादौ॒ वाञ्छा॒क्ष्यौ॒३॒॑ वाञ्छ॑ स॒क्थ्यौ॑।
अ॒क्ष्यौ॑ वृष॒ण्यन्त्याः॒ केशा॒ मां ते॒ कामे॑न शुष्यन्तु ॥

०१ वाञ्छ मे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Want (vāñch) thou the body of me, the feet; want the eyes; want the
    thighs; let the eyes, the hair of thee, lusting after me, dry up with
    love.
Notes

Ppp. puts tanvām (not -am) after pādāu in a, reads vāccha in
b, begins c with akṣo, adds oṣṭhāu after keśās, and ends
with āṣyatām. Read akṣyāù in c in our text (an accent-sign
omitted over the āu). ⌊Delbrück, Vergleichende Syntax, i.386, joins
mā́m with kā́mena: so Grégoire, KZ. xxxv. 83.⌋

Griffith

Desire my body, love my feet, love thou mine eyes, and love my legs. Let both thine eyes and hair, fond girl! be dried and parched. through love of me.

पदपाठः

वाञ्छ॑। मे॒। त॒न्व᳡म्। पादौ॑। वाञ्छ॑। अ॒क्ष्यौ᳡। वाञ्छ॑। स॒क्थ्यौ᳡। अ॒क्ष्यौ᳡। वृ॒ष॒ण्यन्त्याः॑। केशाः॑। माम्। ते॒। कामे॑न। शु॒ष्य॒न्तु॒। ९.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कामात्मा
  • जमदग्नि
  • अनुष्टुप्
  • कामात्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गृहस्थ आश्रम का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे (तन्वम्) शरीर की और (पादौ) दोनों पैरों की (वाञ्छ) कामना कर, (अक्ष्यौ) दोनों नेत्रों की (वाञ्छ) कामना कर (सक्थ्यौ) दोनों जङ्घाओं की (वाञ्छ) कामना कर। (वृषण्यन्त्याः) ऐश्वर्यवान् पुरुष की इच्छा करती हुयी (ते) तेरी (अक्ष्यौ) दोनों आँखें और (केशाः) केश (कामेन) सुन्दर कामना से (माम्) मुझ को (शुष्यन्तु) सुखावें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - स्त्री पुरुष सब अङ्गों से हृष्ट-पुष्ट और पुरुषार्थी होकर पूर्ण युवा अवस्था में गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने की इच्छा करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(वाञ्छ) कामयस्व। इच्छ (मे) मम (तन्वम्) शरीरम् (पादौ) (अक्ष्यौ) अ० १।२७।१। अक्षिणी (सक्थ्यौ) सक्थिनी जङ्घे। ई च द्विवचने। पा० ७।१।७७। इति ईकारः (वृषण्यन्त्याः) अ० ५।५।१। वृषाणमिन्द्रम् ऐश्वर्यवन्तम् आत्मन इच्छन्त्याः (केशाः) (माम्) पुरुषम् (ते) तव (कामेन) इष्टमनोरथेन (शुष्यन्तु) शोषयन्तु ॥

०२ मम त्वा

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मम॒ त्वा दो॑षणि॒श्रिषं॑ कृ॒णोमि॑ हृदय॒श्रिष॑म्।
यथा॒ मम॒ क्रता॒वसो॒ मम॑ चि॒त्तमु॒पाय॑सि ॥

०२ मम त्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I make thee cling to my arm, cling to my heart; that thou mayest be
    in my power, mayest come unto my intent.
Notes

The second half-verse is the same with iii. 25. 5 c, d, and nearly
so with i. 34. 2 c, d ⌊cf. vi. 42. 3, note⌋. Ppp. reads, for a,
b
, māi tvā dūṣaṇimṛgaṁ kṛṇomi hṛdayaspṛgam; and begins c with
mame ’d apa kr-.

Griffith

I make thee hang upon mine arm, I make thee lie upon my heart. Thou yieldest to my wish, that thou mayst be submissive to my will.

पदपाठः

मम॑। त्वा॒। दो॒ष॒णि॒ऽश्रिष॑म्। कृ॒णोमि॑। हृ॒द॒य॒ऽश्रिष॑म्। यथा॑। मम॑। क्रतौ॑। असः॑। मम॑। चि॒त्तम्। उ॒प॒ऽआय॑सि। ९.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • कामात्मा
  • जमदग्नि
  • अनुष्टुप्
  • कामात्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गृहस्थ आश्रम का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वा) तुझको (मम) अपने (दोषणिश्रिषम्) भुजा पर आश्रयवाली और (हृदयश्रिषम्) हृदय में आश्रयवाली (कृणोमि) मैं करता हूँ। (यथा) जिससे (मम) मेरे (कृतौ) कर्म वा बुद्धि में (असः) तू रहे, (मम) मेरे (चित्तम्) चित्त में (उपायसि) तू पहुँचती है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पति और पत्नी परस्पर पुरुषार्थ और प्रीतिपूर्वक गृहस्थ आश्रम को यथावत् सिद्ध करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(मम) (त्वा) त्वाम् (दोषणिश्रिषम्) श्रिषु दाहे, श्रिष आलिङ्गने इति सायण−क्विप्। पद्दन्नोमास्०। पा० ६।१।६३। इति दोः शब्दस्य दोषन्। सप्तम्या अलुक्। बाहौ पुरुषार्थे आश्रिताम् (कृणोमि) करोमि (हृदयश्रिषम्) हृदयाश्रिताम् (यथा) यस्मात्कारणात्। अन्यद् व्याख्यातम्। अ० १।३४।२। (मम) (कृतौ) कर्मणि बुद्धौ वा (असः) त्वं भूयाः (मम) (चित्तम्) अन्तःकरणम् (उपायसि) उप+आङ्+अय गतौ। उपागच्छसि। आदरेण प्राप्नोषि ॥

०३ यासां नाभिरारेहणम्

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यासां॒ नाभि॑रा॒रेह॑णं हृ॒दि सं॒वन॑नं कृ॒तम्।
गावो॑ घृ॒तस्य॑ मा॒तरो॒ऽमूं सं वा॑नयन्तु मे ॥

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Whitney
Translation
  1. They whose navel is a licking, in [whose] heart is made
    conciliation—let the kine, mothers of ghee, conciliate her yonder to me.
Notes

The comm. reads amū́s in d, and so is able to understand yā́sām at
the beginning as relating to “women” understood, and not a gā́vas; and
he explains āréhaṇam by āsvādanīyam ‘something to be enjoyed by
tasting.’ The obscure and difficult first pāda is perhaps corrupt.

Griffith

May they whose kisses are a bond, a love-charm laid within the heart, Mothers of butter, may the cows incline that maid to love of me.

पदपाठः

यासा॑म्। नाभिः॑। आ॒ऽरेह॑णम्। हृ॒दि। स॒म्ऽवन॑नम्। कृ॒तम्। गावः॑। घृ॒तस्य॑। मा॒तरः॑। अ॒भूम्। सम्। व॒न॒य॒न्तु॒। मे॒। ९.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • गोसमूहः
  • जमदग्नि
  • अनुष्टुप्
  • कामात्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गृहस्थ आश्रम का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यासाम्) जिन [स्त्रियों] के (हृदि) हृदय में (नाभिः) स्नेह, (आरेहणम्) प्रशंसा और (संवननम्) भक्ति (कृतम्) की गयी है, (घृतस्य) घृत की (मातरः) बनानेवाली (गावः) गौएँ (अमूम्) उस [पत्नी] को (मे) मेरे लिये (सम्) यथावत् (वनयन्तु) सेवन करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जहाँ पर पति-पत्नी प्रीतिपूर्वक रहते हैं, वहाँ घृत दुग्ध आदि पदार्थों की बहुतायत होती है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यासाम्) आदरार्थं बहुवचनम्। स्त्रीणाम् (नाभिः) बन्धनम्। स्नेहः (आरेहणम्) रिह कत्थने−ल्युट्। प्रशंसनम् (हृदि) हृदये (संवननम्) संभक्तिः (कृतम्) निष्पादितम् (गावः) धेनवः (घृतस्य) आज्यादिपदार्थस्य (मातरः) निर्मात्र्यः (अमूम्) पत्नीम् (सम्) सम्यक् (वानयन्तु) दीर्घश्छान्दसः। संभजन्ताम्। सेवन्ताम् (मे) मदर्थम् ॥