००८ कामात्मा ...{Loading}...
Whitney subject
- To win a woman’s love.
VH anukramaṇī
कामात्मा
१-३ जमदग्निः। कामात्मा, २ सुपर्णः, ३ द्यावापृथिवी, सूर्यः। पथ्यापङ्क्तिः।
Whitney anukramaṇī
[Jamadagni.—kāmātmadāivatam. pathyāpan̄kti.]
Whitney
Comment
Not found in Pāipp. Used by Kāuś. (35. 21), in the rites concerning women, with vi. 9 and 102 and ii. 30, for bringing a woman under one’s control.
Translations
Translated: Weber, Ind. Stud. (1862) v. 261; Florenz, 257 or 9; Grill, 54, 158; Griffith, i. 248; Bloomfield, 100, 459.
Griffith
A man’s love-charm
०१ यथा वृक्षम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथा॑ वृ॒क्षं लिबु॑जा सम॒न्तं प॑रिषस्व॒जे।
ए॒वा परि॑ ष्वजस्व॒ मां यथा॒ मां का॒मिन्यसो॒ यथा॒ मन्नाप॑गा॒ असः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॑ वृ॒क्षं लिबु॑जा सम॒न्तं प॑रिषस्व॒जे।
ए॒वा परि॑ ष्वजस्व॒ मां यथा॒ मां का॒मिन्यसो॒ यथा॒ मन्नाप॑गा॒ असः॑ ॥
०१ यथा वृक्षम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As the creeper (líbujā) has completely embraced the tree, so do
thou embrace me—that thou mayest be one loving me, that thou mayest be
one not going away from me.
Notes
The refrain of the hymn is found twice above, at the end of i. 34. 5;
ii. 30. 1. SPP. here again, in opposition to his mss., gives the
pada-reading ápa॰gāḥ in e. The Anukr. takes no notice of the
metrical deficiency of a ⌊but see note to 7. 1⌋.
Griffith
Like as the creeper throws, her arms on every side around the tree, So hold thou me in thine embrace that thou mayst be in love with me, my darling, never to depart.
पदपाठः
यथा॑। वृ॒क्षम्। लिबु॑जा। स॒म॒न्तम्। प॒रि॒ऽस॒स्व॒जे। ए॒व। परि॑। स्व॒ज॒स्व॒। माम्। यथा॑। माम्। का॒मिनी॑। असः॑। यथा॑। मत्। न। अप॑ऽगाः। असः॑। ८.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामात्मा
- जमदग्नि
- पथ्यापङ्क्तिः
- कामात्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
विद्या की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (लिबुजा) बढ़ानेवाले आश्रय के साथ उत्पन्न होनेवाली, बेल (वृक्षम्) वृक्ष को (समन्तम्) सब ओर से (परिषस्वजे=परिष्वजते) लिपट जाती है। (एव) वैसे ही [हे विद्या] (माम्) मुझ से (परिष्वजस्व) तू लिपट जा, (यथा) जिस से तू (माम् कामिनी) मेरी कामना करनेवाली (असः) होवे, और (यथा) जिस से तू (मत्) मुझ से (अपगाः) विछुरनेवाली (न) न (असः) होवे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ब्रह्मचारी पूरा तपश्चरण करके विद्या को इस प्रकार प्राप्त करे, जिस से वह सदा स्मरण करके उससे उपकार लेता रहे ॥१॥ इस मन्त्र का (यथा माम्−मन्नापगा असः) यह भाग−अ० १।३४।५। और २।३०।१। में आया है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(यथा) येन प्रकारेण (वृक्षम्) स्वीकरणीयं द्रुमम् (लिबुजा) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। इति लिप वृद्धौ−कु, पस्य बः। जनी प्रादुर्भावे−ड, टाप्। लिबुना वर्धकेन आश्रयेण सह जायते सा। लता, वल्ली। लिबुजा व्रततिर्भवति लीयते विभजन्तीति−निरु० ६।२८। (समन्तम्) सर्वतः (परिषस्वजे) ष्वञ्ज परिष्वङ्गे, लडर्थे लिट्। परिष्वजते। आश्लिष्यति (एव) तथा (परि स्वजस्व) आश्लिष्य (माम्) ब्रह्मचारिणम्। अन्यद् यथा−अ० १।३४।५। (यथा) यस्मात्कारणात् (माम्) (कामिनी) कामयमाना (असः) त्वं भवेः (यथा) (मत्) मत्तः (नः) निषेधे (अपगाः) अपगन्त्री। वियोगिनी (असः) ॥
०२ यथा सुपर्णः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथा॑ सुप॒र्णः प्र॒पत॑न्प॒क्षौ नि॒हन्ति॒ भूम्या॑म्।
ए॒वा नि ह॑न्मि ते॒ मनो॒ यथा॒ मां का॒मिन्यसो॒ यथा॒ मन्नाप॑गा॒ असः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॑ सुप॒र्णः प्र॒पत॑न्प॒क्षौ नि॒हन्ति॒ भूम्या॑म्।
ए॒वा नि ह॑न्मि ते॒ मनो॒ यथा॒ मां का॒मिन्यसो॒ यथा॒ मन्नाप॑गा॒ असः॑ ॥
०२ यथा सुपर्णः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As the eagle, flying forth, beats down his wings upon the earth, so
do I beat down thy mind—that thou etc. etc.
Notes
The comparison here is a strikingly ineffective one, and the attempts of
the translators to give it aptness are to no purpose.
Griffith
As, when he mounts, the eagle strikes his pinions downward on the earth, So do I strike thy spirit down that thou mayst be in love with me, my darling, never to depart.
पदपाठः
यथा॑। सु॒ऽप॒र्णः। प्र॒ऽपत॑न्। प॒क्षौ। नि॒ऽहन्ति॑। भूम्या॑म्। ए॒व। नि। ह॒न्मि॒। ते॒। मनः॑। यथा॑। माम्। का॒मिनी॑। असः॑। यथा॑। मत्। न। अप॑ऽगाः। असः॑। ८.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सुपर्णः
- जमदग्नि
- पथ्यापङ्क्तिः
- कामात्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
विद्या की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (प्रपतन्) उड़ता हुआ (सुपर्णः) शीघ्रगामी पक्षी (पक्षौ) दोनों पंखों को (भूम्याम्) भूमि पर (निहन्ति) जमा देता है। (एव) वैसे ही (ते) तेरे लिये (मनः) अपना मन (नि हन्मि) मैं जमाता हूँ, (यथा) जिस से तू (माम् कामिनी) मेरी कामना करनेवाली म० १ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्यार्थी पूरा मन लगा कर विद्या प्राप्त करके उसकी सफलता करे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(यथा) येन प्रकारेण (सुपर्णः) सुपर्णाः सुपतनाः−निरु० ४।३। शीघ्रगामी पक्षी (प्रपतन्) उड्डीयमानः (पक्षौ) खगानां पतत्रौ (निहन्ति) नितरां प्राप्नोति स्थापयति (भूम्याम्) पृथिव्याम् (एव) तथा (नि हन्मि) स्थापयामि (ते) तुभ्यम् (मनः) स्वहृदयम्। अन्यत् पूर्ववत्−म० १ ॥
०३ यथेमे द्यावापृथिवी
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथे॒मे द्यावा॑पृथि॒वी स॒द्यः प॒र्येति॒ सूर्यः॑।
ए॒वा पर्ये॑मि ते॒ मनो॒ यथा॒ मां का॒मिन्यसो॒ यथा॒ मन्नाप॑गा॒ असः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथे॒मे द्यावा॑पृथि॒वी स॒द्यः प॒र्येति॒ सूर्यः॑।
ए॒वा पर्ये॑मि ते॒ मनो॒ यथा॒ मां का॒मिन्यसो॒ यथा॒ मन्नाप॑गा॒ असः॑ ॥
०३ यथेमे द्यावापृथिवी ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As the sun goeth at once about heaven-and-earth here, so do I go
about thy mind—that thou etc. etc.
Notes
Part of SPP’s mss. read paryāíti in b. The comm. gives śīghram
‘swiftly’ as the meaning of sadyas.
Griffith
As in his rapid course the Sun encompasses the heaven and: earth, So do I compass round thy mind that thou mayst be in love with. me, my darling, never to depart.
पदपाठः
यथा॑। इ॒मे इति॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। स॒द्यः। प॒रि॒ऽएति॑। सूर्यः॑। ए॒व। परि॑। ए॒मि॒। ते॒। मनः॑। यथा॑। माम्। का॒मिनी॑। असः॑। यथा॑। मत्। न। अप॑ऽगाः। असः॑। ८.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्यावापथिवी, सूर्यः
- जमदग्नि
- पथ्यापङ्क्तिः
- कामात्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
विद्या की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (इमे) इस (द्यावापृथिवी) आकाश और भूमि में (सूर्यः) लोकों का चलानेवाला सूर्य (सद्यः) शीघ्र (पर्येति) व्याप जाता है। (एव) वैसे ही (ते) तेरे लिये (मनः) अपना मन (परि एमि) मैं व्यापक करता हूँ, (यथा) जिस से तू (माम् कामिनी) मेरी कामना करनेवाली (असः) होवे, और (यथा) जिस से तू (मत्) मुझ से (अपगाः) बिछुरनेवाली (न) न (असः) होवे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सूर्य के समान नियम से परिश्रम करके विद्या प्राप्त करते हैं, वे परोपकारी होकर सुखी रहते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(यथा) (इमे) परिदृश्यमाने (द्यावापृथिवी) आकाशं भूमिं च (परि एति) परितो व्याप्नोति (सूर्यः) लोकप्रेरको भास्करः (एव) एवम् (परि एमि) परितः प्राप्नोमि। अन्यत् पूर्ववत् ॥