०३० दीघायुष्यम्

०३० दीघायुष्यम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. To lengthen out some one’s life.
VH anukramaṇī

दीघायुष्यम्।
१-१७ उन्मोचनः (आयुष्कामः)। आयुष्यम्। अनुष्टुप्, १ पथ्यापङ्क्तिः, ९ भुरिक्, १२ चतुष्पदा विराड्-जगती, १४ विराट-प्रस्तारपङ्क्तिः। १७ त्र्यवसाना षट्-पदा जगती।

Whitney anukramaṇī

[Unmocana (āyuṣyakāmaḥ).—saptadaśakam. ānuṣṭubham: 1. pathyāpan̄kti; 9. bhurij; 12. 4-p.virāḍ jagatī; 14. virāṭ prastārapan̄kti; 17. 3-av. 6-p. jagatī.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. ix. Used twice by Kāuś (58. 3, 11), with a number of other hymns, in a ceremony for length of life; and reckoned (54. 11, note) as belonging to an āyuṣya gaṇa.

Translations

Translated: Muir, v. 441; Ludwig, p. 494; Griffith, i. 238; Bloomfield, 59, 455; Weber, xviii. 281; in part also by Grohmann, Ind. Stud. (1865) ix. 390, 410-411.

Griffith

A charm to restore life and health

०१ आवतस्त आवतः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

आ॒वत॑स्त आ॒वतः॑ परा॒वत॑स्त आ॒वतः॑।
इ॒हैव भ॑व॒ मा नु गा॒ मा पूर्वा॒ननु॑ गाः पि॒तॄनसुं॑ बध्नामि ते दृ॒ढम् ॥

०१ आवतस्त आवतः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thy nearnesses [are] nearnesses, thy distances nearnesses; be just
    here; go not now; go not after the former Fathers; thy life (ásu) I
    bind fast.
Notes

The first two pādas are obscure; the two nouns in each can also be both
or either ablatives (so Muir) or genitives sing. Ppp. reads parāvatas
instead of the second āvatas, thus rectifying the meter of a; as
it stands, we need to resolve a-āvátas ⌊or read táva for te.⌋ Ppp.
also has gatān for pitṝn in d.

Griffith

From thy vicinity I call, from near, from far, from night at hand. Stay here: depart not: follow not the Fathers of the olden time. I bind thy vital spirit fast.

पदपाठः

आ॒ऽवतः॑। ते॒। आ॒ऽवतः॑। प॒रा॒ऽवतः॑। ते॒। आ॒ उ॒न्मो॒च॒न॒प्र॒मो॒च॒ने इत्यु॑न्मोचनऽप्रमोच॒ने। उ॒भे इति॑। वा॒चा। व॒दा॒मि॒। ते॒ वतः॑। इ॒ह। ए॒व। भ॒व॒। मा। नु। गाः॒। मा। पूर्वा॑न्। अनु॑। गाः॒। पि॒तृन्। असु॑म्। ब॒ध्ना॒मि॒। ते॒। दृ॒ढम्। ३०.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) तेरे (आवतः) समीप स्थान से, (आवतः) समीप से (ते) तेरे (परावतः) दूर देश से और (आवतः) अति समीप से [मैं प्रार्थना करता हूँ]। (इह एव) यहाँ ही (भव) रह, (नु) निश्चय करके (मा मा गाः) कभी भी मत जा, (पूर्वान्) पहिले (पितॄन्) पिता आदि लोगों के (अनु) पीछे (गाः=गच्छ) चल। (ते) तेरे (असुम्) प्राण को (दृढम्) दृढ़ (बध्नामि) मैं बाँधता हूँ ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विचारपूर्वक उत्साही पुरुषों में रहकर माननीय माता पिता गुरु आदि का अनुकरण करके बल और कीर्ति बढ़ावें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(आवतः) उपसर्गाच्छन्दसि धात्वर्थे। पा० ५।१।११८। इति उपसर्गाद् धात्वर्थे वर्त्तमानात् स्वार्थे वतिः। आगतात् समीपात् स्थानात् (ते) तव (आवतः) समीपात् (परावतः) परा-वति। दूरगतात् स्थानात् (ते) (आवतः) अतिसमीपात् (इह) उत्साहिनां मध्ये (एव) अवधारणे (भव) तिष्ठ। कीर्तिं प्राप्नुहि (नु) निश्चये (मा मा गाः) अ० ५।१९।९। कदापि मा गच्छ (पूर्वान्) पूर्वजान् (अनु) अनुसृत्य (गाः) लोडर्थे लुङ्। गच्छ (पितॄन्) पितृवत् सत्करणीयान् (असुम्) प्राणम् (बध्नामि) स्थापयामि (ते) तव (दृढम्) दृह वृद्धौ−क्त। प्रगाढम् ॥

०२ यत्त्वाभिचेरुः पुरुषः

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यत्त्वा॑भिचे॒रुः पुरु॑षः॒ स्वो यदर॑णो॒ जनः॑।
उ॑न्मोचनप्रमोच॒ने उ॒भे वा॒चा व॑दामि ते ॥

०२ यत्त्वाभिचेरुः पुरुषः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. In that men have bewitched thee, one of thine own people [or] a
    strange person—deliverance and release, both I speak for thee with my
    voice.
Notes

The translation implies emendation to púruṣās in a; all the mss.
have -ṣas. ⌊SPP’s texts have -ṣas without note of variant. We may
construe it with the second yát: ‘If they (subject indef.) have
bewitched thee, if a man of thine own’ etc.—supply abhicacā́ra⌋.

Griffith

If any man, a stranger or akin, hath cast a spell on thee, I with my voice to thee declare thy freedom and release there- from.

पदपाठः

यत्। त्वा॒। अ॒भि॒ऽचे॒रुः। पुरु॑षः। स्वः। यत्। अर॑णः। जनः॑। उ॒न्मो॒च॒न॒प्र॒मो॒च॒ने इत्यु॑न्मोचनऽप्रमोच॒ने। उ॒भे इति॑। वा॒चा। व॒दा॒मि॒। ते॒। ३०.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) चाहे (स्वः) अपनी ज्ञातिवाले (पुरुषः) पुरुष ने और (यत्) चाहे (अरणः) न बात करने योग्य, अबोध (जनः) जन ने (त्वा) तुझसे (अभिचेरुः) दुष्कर्म किया है। (उभे) दोनों (उन्मोचनप्रमोचने) अलग रहना और छुटकारा (ते) तुझको (वाचा) वेदवाणी से (वदामि) मैं बतलाता हूँ ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य दुष्टों के फंदों से अलग रहे, और फँस जाने पर उपाय करके निकल आवे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(यत्) यदा (त्वा) त्वाम् (अभिचेरुः) अभि+चर गतौ भक्षणे च−लिट्। अत एकहल्मध्येऽनादेशादेर्लिटि। पा० ६।४।१२०। इति एकारः। अभिचरितवन्तः। दुष्कृतवन्तः (पुरुषः) (स्वः) स्वकीयः (यत्) यदि वा (अरणः) अ० १।१९।३। अ+रण शब्दे−अप्। अरणीयः। असंभाष्यः। अबोधः (जनः) (उन्मोचनप्रमोचने) उन्मोचनं पृथक्त्वं प्रमोचनं विमोक्षं च (उभे) द्वे (वाचा) वेदवाण्या (वदामि) कथयामि (ते) तुभ्यम् ॥

०३ यद्दुद्रोहिथ शेपिषे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यद्दु॒द्रोहि॑थ शेपि॒षे स्त्रि॒यै पुं॒से अचि॑त्त्या।
उ॑न्मोचनप्रमोच॒ने उ॒भे वा॒चा व॑दामि ते ॥

०३ यद्दुद्रोहिथ शेपिषे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. In that thou hast shown malice (druh), hast cursed at woman [or]
    at man through thoughtlessness, deliverance and etc. etc.
Notes
Griffith

If in thy folly thou hast lied or cursed a woman or a man, I with my voice declare to thee thy freedom and release there- from.

पदपाठः

यत्। दु॒द्रोहि॑थ। शे॒पि॒षे। स्त्रि॒यै। पु॒से। अचि॑त्त्या। उ॒न्मो॒च॒न॒प्र॒मो॒च॒ने इत्यु॑न्मोचनऽप्रमोच॒ने। उ॒भे इति॑। वा॒चा। व॒दा॒मि॒। ते॒। ३०.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (स्त्रियै) स्त्री के लिये वा (पुंसे) पुरुष के लिये (अचित्त्या) अचेतना से (दुद्रोहिथ) तूने अनिष्ट चीता है वा (शेपिषे) शाप दिया है। (उभे) दोनों…. म० २ ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परद्रोह और पर निन्दा से पृथक् रहे और किसी प्रकार से होजाने पर प्रायश्चित्त करे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यत्) यदि (दुद्रोहिथ) द्रुह−लिट्। अनिष्टं चिन्तितवानसि (शेपिषे) शपितवानसि (स्त्रियै) (पुंसे) पुरुषाय (अचित्त्या) अचेतनया। अन्यद् गतम् ॥

०४ यदेनसो मातृकृताच्छेषे

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यदेन॑सो मा॒तृकृ॑ता॒च्छेषे॑ पि॒तृकृ॑ताच्च॒ यत्।
उ॑न्मोचनप्रमोच॒ने उ॒भे वा॒चा व॑दामि ते ॥

०४ यदेनसो मातृकृताच्छेषे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. In that thou art prostrate (śī) from sin that is mother-committed
    and that is father-committed, deliverance and etc. etc.
Notes

Grohmann and Zimmer (p. 395) understand here ‘sin committed against
mother or father’: doubtless wrong.

Griffith

If thou art lying there because of mother’s or of father’s sin, I with my voice declare to thee thy freedom and release there- from.

पदपाठः

यत्। एन॑सः। मा॒तृकृ॑तात्। शेषे॑। पि॒तृऽकृ॑तात्। च॒। यत्। उ॒न्मो॒च॒न॒प्र॒मो॒च॒ने इत्यु॑न्मोचनऽप्रमोच॒ने। उ॒भे इति॑। वा॒चा। व॒दा॒मि॒। ते॒। ३०.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यदि (मातृकृतात्) माता के किये हुए (च) और (यत्) यदि (पितृकृतात्) पिता के किये हुए (एनसः) अपराध से (शेषे) तू सोता है। (उभे) दोनों (उन्मोचनप्रमोचने) अलग रहना और छुटकारा (ते) तुझ को (वाचा) वेदवाणी से (वदामि) मैं बताता हूँ ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - माता पिता आदि के दोष से जो मनुष्य निरुद्यमी होता हो, तो वह उस दोष को त्याग दे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(यत्) यदि (एनसः) अ० २।१०।८। अपराधात् (मातृकृतात्) मात्रा निष्पादितात् (शेषे) स्वपिषि। आलस्यं करोषि (पितृकृतात्) जनकेन कृतात्। अन्यद् यथा म० २ ॥

०५ यत्ते माता

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यत्ते॑ मा॒ता यत्ते॑ पि॒ता जा॒मिर्भ्राता॑ च॒ सर्ज॑तः।
प्र॒त्यक्से॑वस्व भेष॒जं ज॒रद॑ष्टिं कृणोमि त्वा ॥

०५ यत्ते माता ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What thy mother, what thy father, sister (jāmí), and brother shall
    infuse (? sárjatas)—heed (sev) thou the opposing remedy; I make thee
    one who reaches old age.
Notes

Sárjatas is a puzzle, as regards both form and sense; ‘give ’ (Ludwig)
and ‘offer’ (Muir) are wholly unsatisfactory; ‘weave witchcraft’ (Pet.
Lex.) is quite too pregnant. Ppp. gives no help; it reads in c
chevasya after pratyak. The translation takes the word as a
root-aorist subj. from sṛj.

Griffith

Accept the healing medicine, the balm thy mother and thy sire, Thy sister and thy brother bring. I make thee live through lengthened years.

पदपाठः

यत्। ते॒। मा॒ता। यत्। ते॒। पि॒ता। जा॒मिः। भ्राता॑। च॒। सर्ज॑तः। प्र॒त्यक्। से॒व॒स्व॒। भे॒ष॒जम्। ज॒रत्ऽअ॑ष्टिम्। कृ॒णो॒मि॒। त्वा॒। ३०.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो [औषध] (ते) तेरे (माता) माता (पिता) पिता (च) और (यत्) जो (ते) तेरे (जामिः) मिलकर भोजन करनेवाली बहिन और (भ्राता) पोषक वा पोषणीय भाई (सर्जतः) लाते हैं। (भेषजम्) उस औषध को (प्रत्यक्) प्रत्यक्ष (सेवस्व) सेवन कर, (त्वा) तुझ को (जरदष्टिम्) स्तुति के साथ व्याप्ति वा भोजनवाला (कृणोमि) मैं करता हूँ ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य माता पिता, बहिन भाइयों से उत्तम शिक्षा पाकर उत्तम जीवन बनावें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(यत्) भेषजम् (ते) तव (माता) जननी (यत्) (ते) (पिता) जनकः (जामिः) अ० १।४।१। संगत्य भोजनशीला। भगिनी (भ्राता) अ० ४।४।५। भरणशीलो भरणीये वा। सहोदरः। (च) (सर्जतः) सर्ज अर्जने−लट्। अर्जयतः। प्रापयतः (प्रत्यक्) प्रत्यक्षम् (सेवस्व) संभज (भेषजम्) अ० १।४।४। औषधम् (जरदष्टिम्) अ० २।२८।५। जरता स्तुत्या सह अष्टिः कार्यव्याप्तिर्भोजनं वा यस्य तम्। तथाविधम् (कृणोमि) करोमि (त्वा) त्वाम् ॥

०६ इहैधि पुरुष

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इ॒हैधि॑ पुरुष॒ सर्वे॑ण॒ मन॑सा स॒ह।
दू॒तौ य॒मस्य॒ मानु॑ गा॒ अधि॑ जीवपु॒रा इ॑हि ॥

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Whitney
Translation
  1. Be thou here, O man, together with thy whole mind; go not after
    Yama’s (two) messengers; go unto the strongholds of the living.
Notes

The Anukr. takes no notice of the defective first pāda; the addition of
evá (cf. 1 c) after ihá would be an easy and natural
filling-out. Ppp. has for a ehi ehi punar ehi, and reads hi for
ihi in d.

Griffith

O man, stay here among us; stay with all thy spirit: follow not Yama’s two messengers. Approach the castles where the living dwell.

पदपाठः

इ॒ह। ए॒धि॒। पु॒रु॒ष॒। सर्वे॑ण। मन॑सा। स॒ह। दू॒तौ। य॒मस्य॑। मा। अनु॑। गाः॒। अधि॑। जी॒व॒ऽपु॒राः। इ॒हि॒। ३०.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुष) हे पुरुष ! (सर्वेण) संपूर्ण (मनसा सह) मन [साहस] के साथ (इह) यहाँ पर (एधि) रह। (यमस्य) मृत्यु के (दूतौ अनु) तपानेवाले प्राण और अपान वायु [उलटे श्वास] के पीछे (मा गाः) मत जा। (जीवपुराः) जीवित प्राणियों के नगरों में (अधि इहि) पहुँच ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य उत्साह करके आलस्य आदि मृत्यु के कारणों को छोड़कर जीते हुए अर्थात् पुरुषार्थी शूर वीर महात्माओं में अपना नाम करें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(इह) अत्र पुरुषार्थिसमाजे (एधि) भव (पुरुष) अ० १।१६।४। हे पौरुषयुक्त (सर्वेण) समस्तेन (मनसा) मनोबलेन (सह) सहितः (दूतौ) अ० १।७।६। संतापकौ प्राणापानौ (यमस्य) मृत्युकालस्य (मा गाः) म० १। मा गच्छ (अनु) अनुसृत्य (अधि इहि) प्राप्नुहि (जीवपुराः) अ० २।९।३। जीवितानां नगरीः ॥

०७ अनुहूतः पुनरेहि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अनु॑हूतः॒ पुन॒रेहि॑ वि॒द्वानु॒दय॑नं प॒थः।
आ॒रोह॑णमा॒क्रम॑णं॒ जीव॑तोजीव॒तोऽय॑नम् ॥

०७ अनुहूतः पुनरेहि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Being called after, come thou again, knowing the up-going of the
    road, the ascent, the climb (ākrámaṇa), the course (áyana) of every
    living man.
Notes
Griffith

Come back as thou art called to come, knowing the outlet of the path, And the Approach and its ascent, the way of every living man.

पदपाठः

अनु॑ऽहूतः। पुनः॑। आ। इ॒हि॒। वि॒द्वान्। उ॒त्ऽअय॑नम्। प॒थः। आ॒ऽरोह॑णम्। आ॒ऽक्रम॑णम्। जीव॑तःऽजीवतः। अय॑नम्। ३०.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पथः) मार्ग के (उदयनम्) चढ़ाव को (विद्वान्) जानता हुआ, (अनुहूतः) प्रीति से बुलाया गया तू (पुनः) फिर (आ इहि) आ। (आरोहणम्) चढ़ना और (आक्रमणम्) आगे बढ़ना (जीवतोजीवतः) प्रत्येक जीव का (अयनम्) मार्ग है ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य उन्नति के उपायों को जानकर सदा बढ़ता रहे जैसे कि चिउंटी आदि छोटे जीव भी ऊँचे चढ़ने में लगे रहते हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(अनुहूतः) पुरुषार्थित्वात् प्रीत्या हूतः (पुनः) उत्साहं कृत्वा−इत्यर्थः (आ इहि) आगच्छ (विद्वान्) जानन् (उदयनम्) उद्गमनम् (पथः) मार्गस्य (आरोहणम्) ऊर्ध्वगमनम् (आक्रमणम्) अधिगमनन्। अतिक्रमः (जीवतोजीवतः) जीव प्राणधारणे−शतृ। सर्वस्य प्राणिनः (अयनम्) गतिः। मार्गः ॥

०८ मा बिभेर्न

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मा बि॑भे॒र्न म॑रिष्यसि ज॒रद॑ष्टिं कृणोमि त्वा।
निर॑वोचम॒हं यक्ष्म॒मङ्गे॑भ्यो अङ्गज्व॒रं तव॑ ॥

०८ मा बिभेर्न ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Be not afraid; thou shalt not die; I make thee one who reaches old
    age; I have exorcised (nir-vac) the yákṣma, the waster of limbs,
    from thy limbs.
Notes

Ppp. reads for b jaradaṣṭir bhaviṣyasi.

Griffith

Be not alarmed: thou wilt not die. I give thee lengthened years of life. Forth from thy members have I charmed Decline that caused the fever there.

पदपाठः

मा। बि॒भेः॒। न। म॒रि॒ष्य॒सि॒। ज॒रत्ऽअ॑ष्टिम्। कृ॒णो॒मि॒। त्वा॒। निः। अ॒वो॒च॒म्। अ॒हम्। यक्ष्म॑म्। अङ्गे॑भ्यः। अ॒ङ्ग॒ऽज्व॒रम्। तव॑। ३०.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मा बिभेः) तू मत डरे, (न मरिष्यसि) तू नहीं मरेगा। (त्वा) तुझे (जरदष्टिम्) स्तुति के साथ व्याप्ति का भोजनवाला (कृणोमि) मैं करता हूँ। (तव) तेरे (अङ्गेभ्यः) अङ्गों से (अङ्गज्वरम्) अङ्ग-अङ्ग में ज्वर करनेवाले (यक्ष्मम्) राजरोग वा क्षयरोग को (निः=निःसार्य) निकाल कर (अहम्) मैंने (अवोचम्) वचन कहा है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य निर्भय होकर धर्म करता है, वह मृत्यु अर्थात् अपकीर्ति से बचकर नाम करता है, जैसे सद्वैद्य महारोग को निकाल कर यश पाता है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(मा बिभेः) अ० २।१५।१। शङ्कां मा कुरु (न) निषेधे (मरिष्यसि) प्राणान् मोक्ष्यसि (जरदष्टिम्) म० ५। जरता स्तुत्या सह व्याप्तिमन्तं भोजनवन्तं वा (कृणोमि) करोमि (त्वा) पुरुषार्थिनम् (निः) निःसार्य (अवोचम्) उक्तवानस्मि (अहम्) (यक्ष्मम्) अ० २।१०।५। राजरोगम् क्षयम् (अङ्गेभ्यः) अवयवेभ्यः (अङ्गज्वरम्) अङ्गेषु तापकरम् (तव) ॥

०९ अङ्गभेदो अङ्गज्वरो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॑ङ्गभे॒दो अ॑ङ्गज्व॒रो यश्च॑ ते हृदयाम॒यः।
यक्ष्मः॑ श्ये॒न इ॑व॒ प्राप॑प्तद्व॒चा सा॒ढः प॑रस्त॒राम् ॥

०९ अङ्गभेदो अङ्गज्वरो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The splitter of limbs, the waster of limbs, and the heart-ache that
    is thine, the yákṣma hath flown forth like a falcon, forced (sah)
    very far away by [my] voice.
Notes

The form sāḍhá is noted in Prāt. iii. 7. Ppp. has for a
śīrṣarogam an̄garogam, combines śyenāi ’va in c, and reads
nuttas for sāḍhas in d ⌊and vācā?⌋. The Anukr. ignores the
abbreviation of iva to ’va in c.

Griffith

Gone is the pain that racked thee, gone thy fever, gone thy heart’s disease. Consumption, conquered by my voice, hath, like a hawk, fled far away.

पदपाठः

अ॒ङ्ग॒ऽभे॒दः। अ॒ङ्ग॒ऽज्व॒रः। यः। च॒। ते॒। हृ॒द॒य॒ऽआ॒म॒यः। यक्ष्मः॑। श्ये॒नःऽइ॑व। प्र। अ॒प॒प्त॒त्। वा॒चा। सा॒ढः। प॒रः॒ऽत॒राम्। ३०.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • भुरिगनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) तेरी (अङ्गभेदः) हड़फूटन, (अङ्गज्वरः) शरीर का ज्वर, (च) और (यः) जो (हृदयामयः) हृदय का रोग है वह और (यक्ष्मः) राजरोग, (वाचा) वेदवाणी से (साढः) हारा हुआ [वह सब रोग] (श्येनः इव) श्येन पक्षी के समान (परस्तराम्) बहुत दूर (प्र अपप्तत्) भाग गया है ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सद्वैद्य महाकठिन रोगों को अच्छा करता है, वैसे ही मनुष्य वेद द्वारा आत्मदोष त्यागकर सुखी होवे ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(अङ्गभेदः) शरीरावयवविकारः (अङ्गज्वरः) सर्वाङ्गतापः (यः) (च) (ते) तव (हृदयामयः) वृह्रोः षुग्दुकौ च। उ० ४।१००। इति हृञ् हरणे−कयन्, दुगागमः। इति हृदयम्। वलिमलितनिभ्यः कयन्। उ० ४।९९। इति अम पीडने चुरा०−कयन्। इति आमयो रोगः। मनोरोगः (यक्ष्मः) राजरोगः (श्येनः) शीघ्रगामी पक्षिविशेषः (इव) यथा) (प्र) (अपप्तत्) पत्लृ गतौ लुङि लृदित्वात् च्लेरङादेशः। पतः पुम्। पा० ७।१।१९। इति पुमागमः। प्रागमत् (वाचा) वेदवाण्या (साढः) षह−क्त। अभिभूतः (परस्तराम्) दूरतराम् ॥

१० ऋषी बोधप्रतीबोधावस्वप्नो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ऋषी॑ बोधप्रतीबो॒धाव॑स्व॒प्नो यश्च॒ जागृ॑विः।
तौ ते॑ प्रा॒णस्य॑ गो॒प्तारौ॒ दिवा॒ नक्तं॑ च जागृताम् ॥

१० ऋषी बोधप्रतीबोधावस्वप्नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The two seers, Wakeful-and- Vigilant, sleepless and he that is
    watchful—let them, the guardians of thy breath, watch by day and by
    night.
Notes

Ppp. reads, for c, d, te te prāṇasya goptaro divā svapnaṁ ca
jāgratu
. Pada-text bodha॰pratībodhā́u, by Prāt. iv. 96. ⌊Cf. viii.
i. 13; MGS. ii. 15. 1 and p. 153, s.v. bodha-.⌋

Griffith

Two sages, Sense and Vigilance, the sleepless and the watchful one, These, the protectors of thy life, shall be awake both day and night.

पदपाठः

ऋषी॒ इति॑। बो॒ध॒ऽप्र॒ती॒बो॒धौ। अ॒स्व॒प्नः। यः। च॒। जागृ॑विः। तौ। ते॒। प्रा॒णस्य॑। गो॒प्तारौ॑। दिवा॑। नक्त॑म्। च॒। जा॒गृ॒ता॒म्। ३०.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋषी) दो देखनेवाले (बोधप्रतीबोधौ) बोध और प्रतिबोध [अर्थात् विवेक और चेतनता] हैं, (यः) जो एक-एक (अस्वप्नः) न सोनेवाला (च) और (जागृविः) जागनेवाला है। (ते) तेरे (प्राणस्य) प्राण के (गोप्तारौ) रखवाले (तौ) वह दोनों (दिवा) दिन (च) और (नक्तम्) रात (जागृताम्) जागते रहें ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विवेक और चेतनापूर्वक नित्य सावधान रहकर रक्षा करे ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(ऋषी) अ० २।६।१। ऋषिर्दर्शनात्−निरु० २।१। दर्शकौ (बोधप्रतीबोधौ) विवेकचेतने (अस्वप्नः) निद्राहीनः (यः) यः प्रत्येकः (च) (जागृविः) जॄशॄजागृभ्यः क्विन्। उ–० ४।५४। इति जागृ निद्राक्षये−क्विन्। जागरूकः। नृपतिः (तौ) (ते) तव (प्राणस्य) जीवस्य (गोप्तारौ) रक्षकौ (दिवा) दिने (नक्तम्) रात्रौ (च) (जागृताम्) जागृतौ भवताम् ॥

११ अयमग्निरुपसद्य इह

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒यम॒ग्निरु॑प॒सद्य॑ इ॒ह सूर्य॒ उदे॑तु ते।
उ॒देहि॑ मृ॒त्योर्ग॑म्भी॒रात्कृ॒ष्णाच्चि॒त्तम॑स॒स्परि॑ ॥

११ अयमग्निरुपसद्य इह ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This Agni [is] to be waited on; here let the sun arise for thee;
    come up out of death’s profound black darkness.
Notes

In c, údehi is a mis-reading for udéhi, which is found in all
the mss. except Bp.²

Griffith

This Agni must be waited on. Here let the Sun mount up for thee. Rise from deep death and come away, yea, from black darkness rise thou up!

पदपाठः

अ॒यम्। अ॒ग्निः। उ॒प॒ऽसद्यः॑। इ॒ह। सूर्यः॑। उत्। ए॒तु॒। ते॒। उ॒त्ऽएहि॑। मृ॒त्योः। ग॒म्भी॒रात्। कृ॒ष्णात्। चि॒त्। तम॑सः। परि॑। ३०.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह (अग्निः) सर्वव्यापक परमेश्वर (उपसद्यः) सेवा योग्य है। (इह) इस में (ते) तेरे लिये (सूर्यः) सूर्य (उदेतु) उदय होवे। (गम्भीरात्) गहरे (मृत्योः) मृत्यु से (चित्) और (कृष्णात्) काले (तमसः) अन्धकार से (परि) अलग होकर (उदेहि) तू ऊपर आ ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमात्मा की आज्ञा मानकर और आलस्यरूपी मृत्यु और अज्ञानरूपी अन्धकार मिटा कर उन्नति का सूर्य चमकावे ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(अयम्) प्रत्यक्षः (अग्निः) सर्वव्यापकः परमेश्वरः (उपसद्यः) सेवनीयः (इह) अत्र। ईश्वरोपासनायाम् (सूर्यः) उन्नतिरूपः सूर्यः (उदेतु) उद्गच्छतु (ते) तुभ्यम् (उदेहि) उदागच्छ (मृत्योः) मरणात्। आलस्यात् (गम्भीरात्) अ० ४।२६।३। गहनात् (कृष्णात्) कालवर्णात् (चित्) अपि (तमसः) अन्धकारात्। अज्ञानात् (परि) पृथग् भूत्वा ॥

१२ नमो यमाय

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नमो॑ य॒माय॒ नमो॑ अस्तु मृ॒त्यवे॒ नमः॑ पि॒तृभ्य॑ उ॒त ये नय॑न्ति।
उ॒त्पार॑णस्य॒ यो वेद॒ तम॒ग्निं पु॒रो द॑धे॒ऽस्मा अ॑रि॒ष्टता॑तये ॥

१२ नमो यमाय ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Homage to Yama, homage be to Death; homage to the Fathers, and [to
    them] who conduct [away]; that Agni who understands (vid)
    deliverance (utpáraṇa) do I put forward (puro-dhā), in order to this
    man’s being unharmed.
Notes

With b compare viii. i. 8 b, which appears to give the clew to
the meaning; utpāraṇa is the action-noun to ut-pāray (viii. 1.
17-19; 2. 9). The verse, though by number of syllables a virāḍ jagatī
(46 syll.), has plainly five pādas ⌊12 + 11: 8 + 7 + 8; in d, read
táṁ-tam for tám as at iv. 30. 3?⌋. Ppp. omits the last pāda.

Griffith

Homage be paid to Yama, to Mrityu, and to the Fathers, and to those who guide us! I honour first, for this man’s preservation, that Agni who well knoweth how to save him.

पदपाठः

नमः॑। य॒माय॑। नमः॑। अ॒स्तु॒। मृ॒त्यवे॑। नमः॑। पि॒तृऽभ्यः॑। उ॒त। ये। नय॑न्ति। उ॒त्ऽपार॑णस्य। यः। वेद॑। तम्। अ॒ग्निम्। पु॒रः। द॒धे॒। अ॒स्मै। अ॒रि॒ष्टऽता॑तये। ३०.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • चतुष्पदा विराड्जगती
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यमाय) न्यायकारी परमात्मा को (मृत्यवे) मृत्यु नाश करने के लिये (नमः) (नमः) वारंवार नमस्कार (अस्तु) होवे, (उत) और (पितृभ्यः) उन रक्षक महापुरुषों को (नमः) नमस्कार हो (ये) जो [हमें] (नयन्ति) ले चलते हैं। (यः) जो परमेश्वर (उत्पारणस्य) पार लगाना (वेद) जानता है, (तम्) उस (अग्निम्) ज्ञानवान् परमेश्वर को (अस्मै) इस जीव के लिये (अरिष्टतातये) कल्याण करने को (पुरः) आगे (दधे) रखता हूँ [पूजता हूँ] ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमात्मा की महिमा जानकर और विद्वान् परोपकारी महात्माओं का आदर करके सुखी रहें ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(नमः) (नमः) वारंवारं सत्कारः (यमाय) न्यायकारिणे परमात्मने (अस्तु) (मृत्यवे) क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः। पा० २।३।१४। इत्यप्रयुज्यमानस्य धातोः कर्मणि चतुर्थी। मृत्युं नाशयितुम् (नमः) (पितृभ्यः) रक्षकेभ्यो महापुरुषेभ्यः (उत) अपि (ये) पितरः (नयन्ति) प्रेरयन्ति (उत्पारणस्य) पार कर्मसमाप्तौ−ल्युट्। उत्कर्षेण पारकरणस्य (यः) परमेश्वरः (वेद) वेत्तास्ति (तम्) (अग्निम्) ज्ञानवन्तं परमेश्वरम् (पुरः दधे) अग्रे धरामि। पूजयामि (अस्मै) पुरुषाय (अरिष्टतातये) अ० ३।५।५। क्षेमकरणाय ॥

१३ ऐतु प्राण

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ऐतु॑ प्रा॒ण ऐतु॒ मन॒ ऐतु॒ चक्षु॒रथो॒ बल॑म्।
शरी॑रमस्य॒ सम्वि॑दां॒ तत्प॒द्भ्यां प्रति॑ तिष्ठतु ॥

१३ ऐतु प्राण ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let breath come, let mind come, let sight come, then strength; let
    his body assemble (? sam-vid); let that stand firm with its (two)
    feet.
Notes

⌊In a, b, the order of the items of the return to life is (if
inverted) in noteworthy accord with that of the items of the process of
death, both in fact and also as set forth in the Upanishads—e.g. ChU.
vi. 15.⌋

Griffith

Let breath and mind return to him, let sight and vigour come again Let all his body be restored and firmly stand upon its feet.

पदपाठः

आ। ए॒तु॒। प्रा॒णः। आ। ए॒तु॒। मनः॑। आ। ए॒तु॒। चक्षुः॑। अथो॒ इति॑। बल॑म्। शरी॑रम्। अ॒स्य॒। सम्। वि॒दा॒म्। तत्। प॒त्ऽभ्याम्। प्रति॑। ति॒ष्ठ॒तु॒। ३०.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणः) प्राण, पुरुषार्थ [इसमें] (आ एतु) आवे, (मनः) मन (आ एतु) आवे, (अथो) और भी (चक्षुः) दृष्टि और (बलम्) बल (आ एतु) आवे। (तत्) उससे (अस्य) इस पुरुष का (शरीरम्) शरीर (विदां प्रति) बुद्धि की ओर (पद्भ्याम्) दोनों पैरों से (सम्) ठीक-ठीक (तिष्ठतु) खड़ा होवे ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य आत्मिक और शारीरिक बल प्राप्त करके और चेतन्य रहकर पुरुषार्थ करे ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(आ एतु) आगच्छतु (प्राणः) जीवनसामर्थ्यम् (मनः) मनोबलम् (आ एतु) (चक्षुः) दृष्टिः (अथो) अपि च (बलम्) शक्तिः (शरीरम्) देहः (अस्य) पुरुषस्य (सम्) सम्यक् (विदाम्) षिद्भिदादिभ्योऽङ्। पा० ३।३।१०४। इति विद ज्ञाने−अङ्, टाप्। बुद्धिम् (तत्) ततः पुरुषार्थात् (पद्भ्याम्) (प्रति) व्याप्य (तिष्ठतु) स्थितं समर्थं भवतु ॥

१४ प्राणेनाग्ने चक्षुषा

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प्रा॒णेना॑ग्ने॒ चक्षु॑षा॒ सं सृ॑जे॒मं समी॑रय त॒न्वा॒३॒॑ सं बले॑न।
वेत्था॒मृत॑स्य॒ मा नु गा॒न्मा नु भूमि॑गृहो भुवत् ॥

१४ प्राणेनाग्ने चक्षुषा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. With breath, O Agni, with sight unite him; associate (sam-īray)
    him with body, with strength; thou understandest immortality (amṛ́ta):
    let him not now go; let him not now become one housing in the earth.
Notes

Most of our mss. (not B.I.T.K.) appear to read instead of in
d. Instead of nu gāt in c, Ppp. gives mṛta, and it has mo
ṣu
for mā nu in d: both are better readings.

Griffith

Provide this man with breath and sight, O Agni, and with his body and his strength unite him. Thou knowest Amrit: let him not go hence, nor dwell in house of clay.

पदपाठः

प्रा॒णेन॑। अ॒ग्ने॒। चक्षु॑षा। सम्। सृ॒ज॒। इ॒मम्। सम्। ई॒र॒य॒। त॒न्वा᳡। सम्। बले॑न। वेत्थ॑। अ॒मृत॑स्य। मा। नु। गा॒त्। मा। नु। भूमि॑ऽगृहः। भु॒व॒त्। ३०.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे ज्ञानमय परमात्मन् ! (इमम्) इस पुरुष को (प्राणेन) प्राण [जीवनसामर्थ्य] से और (चक्षुषा) दृष्टि से (सं सृज) संयुक्त कर, और [उसे] (तन्वा) शरीर से और (बलेन) बल से (सम् सम् ईरय) अच्छे प्रकार आगे बढ़ा। तू (अमृतस्य) अमरपन का (वेत्थ) जाननेवाला है। वह [पुरुष] (नु) अव (मा गात्) न चला जावे, और (मा नु) न कभी (भूमिगृहः) भूमि में घरवाला [अर्थात् गुप्त निवासवाला] (भुवत्) होवे ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर से प्रार्थना करता हुआ मनुष्य सब प्रकार पुरुषार्थ करके कीर्तिमान् होवे, और ऐसा काम न करे जिस से समाज में उसे नीचा देखना पड़े ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(प्राणेन) जीवनसामर्थ्येन (अग्ने) ज्ञानमय परमात्मन् (चक्षुषा) दर्शनशक्त्या (सं सृज) संयोजय (इमम्) पुरुषम् (सम् ईरय) सम्यक् प्रेरय (तन्वा) शरीरेण (सम्) (बलेन) (वेत्थ) वेत्सि। ज्ञातासि (अमृतस्य) अमरणस्य। कीर्त्तिमत्त्वस्य (नु) इदानीम् (मा गात्) न गच्छेत् स पुरुषः (मा) न (नु) (भूमिगृहः) भूमौ गुप्तस्थाने गृहं निवासो अपकीर्त्त्या यस्य सह सः (भुवत्) भवेत् ॥

१५ मा ते

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मा ते॑ प्रा॒ण उप॑ दस॒न्मो अ॑पा॒नोऽपि॑ धायि ते।
सूर्य॒स्त्वाधि॑पतिर्मृ॒त्योरु॒दाय॑च्छतु र॒श्मिभिः॑ ॥

१५ मा ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let not thy breath give out, nor let thine expiration be shut up;
    let the sun, the over-lord, hold thee up out of death by his rays.
Notes

Ppp. reads mā ’pāno in b, and -yachati in d.

Griffith

Let not thine inward breathing fail, let not thine outward breath be lost. Let Surya who is Lord Supreme raise thee from death with beams of light.

पदपाठः

मा। ते॒। प्रा॒णः। उप॑। द॒स॒त्। मो इति॑। अ॒पा॒नः। अपि॑। धा॒यि॒। ते॒। सूर्यः॑। त्वा॒। अधि॑ऽपति। मृ॒त्योः। उ॒त्ऽआय॑च्छतु। र॒श्मिऽभिः॑। ३०.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) तेरा (प्राणः) प्राण [भीतर जानेवाला श्वास] (मा उप दसत्) नष्ट न होवे, और (ते) तेरा (अपानः) अपान [बाहिर जानेवाला श्वास] (मो अपि धायि) न ढक जावे। (अधिपतिः) प्रभु (सूर्यः) सर्वप्रेरक परमेश्वर (त्वा) तुझको (मृत्योः) मृत्यु से (रश्मिभिः) अपनी व्याप्तियों द्वारा (उदायच्छतु) उठावे ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अपनी शक्तियों को यथावत् काम में लाकर परमेश्वर के आश्रय से आलस्य, दरिद्रता आदि दुःखों को मिटा कर ऊपर उठे ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(मा) निषेधे (ते) तव (प्राणः) नासाप्रवर्त्ती पूरको वायुः (उप दसत्) दसु उपक्षये। नश्येत् (मो) निषेधे (अपानः) रेचको वायुः (अपि धायि) अपि वा आच्छादने। आच्छादितो भवतु (ते) (सूर्यः) अ० १।३।५। षू प्रेरणे−क्यप्, रुट् च। सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (त्वा) (अधिपतिः) प्रभुः (मृत्योः) आलस्यदरिद्रतादिरूपात् मरणात् (उदायच्छतु) यमु उपरमे। उन्नयतु (रश्मिभिः) अ० २।३२।१। अशू व्याप्तौ−मि, रशादेशः। स्वव्याप्तिभिः ॥

१६ इयमन्तर्वदति जिह्वा

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इ॒यम॒न्तर्व॑दति जि॒ह्वा ब॒द्धा प॑निष्प॒दा।
त्वया॒ यक्ष्मं निर॑वोचं श॒तं रोपी॑श्च त॒क्मनः॑ ॥

१६ इयमन्तर्वदति जिह्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This much-quivering tongue, bound, speaks within; by it I have
    exorcised the yákṣma and the hundred pangs of the fever.
Notes

Ppp. reads for b, c ugrajihvā paṇiṣpadā tayā romaṁ nir ayāsaḥ:.
Our edition reads tváyā, with all the mss., at the beginning of c,
but it must of course be emended to táyā, as translated. The Anukr.
takes no notice of the lacking syllable in a, which no resolution
can supply. Paniṣpadā in b is prescribed by Prāt. iv. 96.

Griffith

Tied, tremulously moving, here the tongue is speaking in the mouth. With thee I charmed Decline away and Fever’s hundred ago- nies.

पदपाठः

इ॒यम्। अ॒न्तः। व॒द॒ति॒। जि॒ह्वा। ब॒ध्दा। प॒नि॒ष्प॒दा। त्वया॑। यक्ष्म॑म्। निः। अ॒वो॒च॒म्। श॒तम्। रोपीः॑। च॒। त॒क्मनः॑। ३०.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • अनुष्टुप्
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अन्तः) [मुख के] भीतर (बद्धा) बँधी हुई, (पनिष्पदा) थरथराकर चलती हुई (इयम्) यह (जिह्वा) जीभ (वदति) बोलती रहती है। (त्वया) तेरे साथ वर्त्तमान (यक्ष्मम्) राजरोग (च) और (तक्मनः) ज्वर की (शतम्) सौ (रोपीः) पीड़ाओं को (निः=निःसार्य) निकाल कर (अवोचम्) मैंने वचन कहा है ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस प्रकार जीभ को मुख में दबाकर वेदमन्त्र आदि पवित्र वचन बोलते हैं, उसी प्रकार मनुष्य इन्द्रियों को वश में करके अपने सब मलों को धोकर स्वस्थचित्त होवे ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(इयम्) प्रसिद्धा (अन्तः) मुखमध्ये (वदति) उच्चारयति (जिह्वा) रसना (बद्धा) संयता (पनिष्पदा) अप+निः+पदा। अलोपः। अपगत्य विकृत्य नितरां गतिमती (त्वया) त्वया सह वर्तमानम् (यक्ष्मम्) राजरोगम् (निः) निःसार्य (अवोचम्) उक्तवानस्मि (शतम्) बह्वीः (रोपीः) रुप विमोहने−इन्, ङीप्। विमोहनानि। यातनाः (च) (तक्मनः) ज्वरस्य ॥

१७ अयं लोकः

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अ॒यं लो॒कः प्रि॒यत॑मो दे॒वाना॒मप॑राजितः।
यस्मै॒ त्वमि॒ह मृ॒त्यवे॑ दि॒ष्टः पु॑रुष जज्ञि॒षे।
स च॒ त्वानु॑ ह्वयामसि॒ मा पु॒रा ज॒रसो॑ मृथाः ॥

१७ अयं लोकः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This [is] the dearest world of the gods, unconquered. Unto what
    death appointed, O man, thou wast born here, we and it call after thee:
    do not die before old age.
Notes

By one of the most absurd of the many blunders of the pada-text, we
find puruṣa॰jajñiṣé in d treated by it as a compound. Ppp. reads,
for c-e, tasmāi tvam iha jajñiṣé adṛṣṭaṣ puruṣa mṛtyave: tasmāi tvā
ni hvayāmasi
.

Griffith

This living world, unconquered of the Gods, is most beloved of all. To whatsoever death thou wast destined when thou wast born,. O man, This death and we call after thee. Die not before decrepit age!

पदपाठः

अ॒यम्। लो॒कः। प्रि॒यऽत॑मः। दे॒वाना॑म्। अप॑राऽजितः। यस्मै॑। त्वम्। इ॒ह। मृ॒त्यवे॑। दि॒ष्टः। पु॒रु॒ष॒। ज॒ज्ञि॒षे। सः। च॒। त्वा॒। अनु॑। ह्व॒या॒म॒सि॒। मा। पु॒रा। ज॒रसः॑। मृ॒थाः॒। ३०.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आयुः
  • चातनः
  • त्र्यवसाना षट्पदा जगती
  • दीर्घायुष्य सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आत्मा के उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह (लोकः) संसार, (देवानाम्) विद्वानों का (अपराजितः) न जीता हुआ, (प्रियतमः) अति प्रिय है। (यस्मै) जिस [लोक] के लिये (इह) यहाँ पर (मृत्यवे) मृत्यु नाश करने को (दिष्टः) ठहराया हुआ (त्वम्) तू, (पुरुष) हे पुरुष ! (जज्ञिषे) प्रकट हुआ है। (सः) वह [लोक] (च) और हम (त्वा) तुझको (अनु ह्वयामसि) बुला रहे हैं। (जरसः) बुढ़ापे से (पुरा) पहिले (मा मृथाः) मत मर ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - इस अनन्त संसार को विद्वान् सदा खोजते रहे हैं। मनुष्य आलस्य आदि छोड़ कर सदा परोपकार में लगा रहे, और स्वस्थ और सावधान रहकर पूर्ण आयु तक आनन्द भोगे ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(अयम्) दृश्यमानः (लोकः) संसारः (प्रियतमः) अतिहितकरः (देवानाम्) विदुषाम् (अपराजितः) अनभिभूता। सर्वदैवान्वेषणीयः (यस्मै) लोकप्राप्तये (त्वम्) हे मनुष्य (इह) अस्मिन् जन्मनि (मृत्यवे) म० १२। मृत्युं नाशयितुम् (दिष्टः) आदिष्टः। नियतः (पुरुष) हे पुरुषार्थिन् (जज्ञिषे) प्रादुर्बभूविथ (सः) लोकः (च) वयं च (त्वा) पुरुषम् (अनु) अनुक्रमेण (ह्वयामसि) आह्वामः (मा) निषेधे (पुरा) अग्रे (जरसः) जरायाः (मृथाः) माङि लुङि अडभावः। प्राणान् त्यज ॥