०२३ क्रिमिघ्नम् ...{Loading}...
Whitney subject
- Against worms.
VH anukramaṇī
क्रिमिघ्नम्।
१-१३ कण्वः। इन्द्रः। अनुष्टुप्, १३ विराट्।
Whitney anukramaṇī
[Kāṇva.—trayodaśakam. āindram (krimijambhanāya devān aprārthayat). ānuṣṭubham: 13. virāj.]
Whitney
Comment
Found, except vss. 10-12, in Pāipp. vii. (vs. 9 coming before vs. 6). Used by Kāuś. (29. 20) in a healing ceremony against worms; part of the last verse (13 c) is specially quoted (29. 24) with the direction “do as prescribed in the text.” ⌊Cf. hymns 31 and 32 of book ii.⌋
Translations
Translated: Kuhn, KZ. xiii. 140; Ludwig, p. 501; Griffith, i. 226; Bloomfield, 23, 452; Weber, xviii. 257.—See Bergaigne-Henry, Manuel, p. 148.
Griffith
A charm against parasitic worms
०१ ओते मे
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ओते॑ मे॒ द्यावा॑पृथि॒वी ओता॑ दे॒वी सर॑स्वती।
ओतौ॑ म॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॒ क्रिमिं॑ जम्भयता॒मिति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ओते॑ मे॒ द्यावा॑पृथि॒वी ओता॑ दे॒वी सर॑स्वती।
ओतौ॑ म॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॒ क्रिमिं॑ जम्भयता॒मिति॑ ॥
०१ ओते मे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Worked in (óta) for me [are] heaven-and-earth; worked in [is]
divine Sarasvatī; worked in for me [are] both Indra and Agni: to the
effect “let them (dual) grind up the worm.”
Notes
Here, as everywhere else, the mss. vary with the utmost diversity
between krimi and kṛmi; no attempt will be made to report their
variations. The first three pādas of the verse are repeated below as vi.
94. 3 a, b, c. The pple. óta (p. ā́॰uta) ⌊‘woven on, worked in’
(ā + vā)⌋ seems to mean ‘brought in for my aid’; a root u is
insufficiently supported ⌊see Whitney, Roots etc.⌋. For its forms Ppp.
reads in a oṣate, in b okatā, in c okato; Ppp. also
has at the end imam for iti.
Griffith
I have called Heaven and Earth to aid, have called divine Sarasvati, Indra and Agni have I called: Let these destroy the worm, I prayed.
पदपाठः
ओते॒ इत्याऽउ॑ते। मे॒। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। आऽउ॑ता। दे॒वी। सर॑स्वती। आऽउ॑तौ। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। अ॒ग्निः। च॒। क्रिमि॑म्। ज॒म्भ॒य॒ता॒म्। इति॑। २३.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (द्यावापृथिवी) सूर्य और भूलोक (ओते) बुने हुए हैं, (देवी) दिव्य गुणवाली (सरस्वती) विज्ञानवती विद्या (ओता) परस्पर बुनी हुई है। (ओतौ) परस्पर बुने हुए (इन्द्रः) मेघ (च) और (अग्निः) अग्नि (च) भी (मे) मेरे लिये (क्रिमिम्) कीड़े को (जम्भयताम्) नाश करें, (इति) यह प्रार्थना है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे अशुद्धि आदि से उत्पन्न क्षुद्र जन्तुओं को हटाते हैं, वैसे ही पदार्थों के विवेक से छोटे-छोटे भी कुसंस्कार मिटाये जावें ॥१॥ इस सूक्त का मिलान अ० का० २ सू० ३१ तथा ३२ से करो ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(ओते) आ+वेञ् तन्तुसंताने−क्त। परस्परं स्यूते। अन्तर्व्याप्ते (मे) मह्यम् (द्यावापृथिवी) सूर्यभूलोकौ (ओता) अन्तर्व्याप्ता (देवी) दिव्या (सरस्वती) विज्ञानवती विद्या (ओतौ) (इन्द्रः) मेघः (च) (अग्निः) भौतिकपावकः (च) (क्रिमिम्) अ० २।३१।१। कीटवत् कुसंस्कारम् (जम्भयताम्) नाशयताम् (इति) हेतौ ॥
०२ अस्येन्द्र कुमारस्य
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒स्येन्द्र॑ कुमा॒रस्य॒ क्रिमी॑न्धनपते जहि।
ह॒ता विश्वा॒ अरा॑तय उ॒ग्रेण॒ वच॑सा॒ मम॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒स्येन्द्र॑ कुमा॒रस्य॒ क्रिमी॑न्धनपते जहि।
ह॒ता विश्वा॒ अरा॑तय उ॒ग्रेण॒ वच॑सा॒ मम॑ ॥
०२ अस्येन्द्र कुमारस्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O Indra, lord of riches, smite thou the worms of this boy; smitten
are all the niggards by my formidable spell (vácas).
Notes
Ppp. reads in b kṛmim, and in c, d viśvā ’rātayo ’greṇa
vacasā mimā.
Griffith
O Indra, Lord of Treasures, kill the worms that prey upon this boy. All the malignant spirits have been smitten by my potent spell. We utterly destroy the worm, the worm that creeps around the eyes. The worm that crawls about the nose, the worm that gets bet- ween the teeth.
पदपाठः
अ॒स्य। इ॒न्द्र॒। कु॒मा॒रस्य॑। क्रिमी॑न्। ध॒न॒ऽप॒ते॒। ज॒हि॒। ह॒ताः। विश्वाः॑। अरा॑तयः। उ॒ग्रेण॑। वच॑सा। मम॑। २३.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (धनपते) हे धन के स्वामी (इन्द्र) बड़े ऐश्वर्यवाले वैद्य ! (अस्य) इस (कुमारस्य) कमनीय बालक के (क्रिमीन्) कीड़ों को (जहि) मिटा दे। (मम) मेरे (उग्रेण) प्रचण्ड (वचसा) [वैदिक] वचन से (विश्वाः) सब (अरातयः) वैरी (हताः) मारे गये ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसै वैद्य बालक के उदर के कृमिरोग को नाश करता है, वैसे ही मनुष्य ज्ञान के अभ्यास से अज्ञान आदि दोष हटावे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(अस्य) निर्दिष्टस्य (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् वैद्य (कुमारस्य) अ० ३।१२।३। कमनीयस्य बालकस्य (क्रिमीन्) कीटान् (धनपते) हे धनस्य स्वामिन् (जहि) नाशय (हताः) नाशिताः (विश्वाः) सर्वे (अरातयः) शत्रवः (उग्रेण) प्रचण्डेन (वचसा) विज्ञानवचनेन (मम) मदीयेन ॥
०३ यो अक्ष्यौ
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यो अ॒क्ष्यौ॑ परि॒सर्प॑ति॒ यो नासे॑ परि॒सर्प॑ति।
द॒तां यो मद्यं॒ गच्छ॑ति॒ तं क्रिमिं॑ जम्भयामसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यो अ॒क्ष्यौ॑ परि॒सर्प॑ति॒ यो नासे॑ परि॒सर्प॑ति।
द॒तां यो मद्यं॒ गच्छ॑ति॒ तं क्रिमिं॑ जम्भयामसि ॥
०३ यो अक्ष्यौ ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What one creeps about his eyes, what one creeps about his nostrils,
what one goes to the midst of his teeth—that worm do we grind up.
Notes
Read in c, d in our text gáchati táṁ (an accent-sign slipped out
of place). Ppp. has in a, b ‘kṣāu and nāsāu ⌊and in c
apparently gachasi⌋.
Griffith
Two of like colour, two unlike, two coloured black, two coloured red. The tawny and the tawny-eared, Vulture and Wolf, all these are killed.
पदपाठः
यः। अ॒क्ष्यौ᳡। प॒रि॒ऽसर्प॑ति। यः। नासे॒ इति॑। प॒रि॒ऽसर्प॑ति। द॒ताम्। यः। मध्य॑म्। गच्छ॑ति। तम्। क्रिमि॑म्। ज॒म्भ॒या॒म॒सि॒। २३.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [कीड़ा] (अक्ष्यौ) दोनों आँखों में (परिसर्पति) रेंग जाता है, (यः) जो (नासे) दोनों नथनों में (परिसर्पति) रेंग जाता है, और (यः) जो (दताम्) दाँतों के (मध्यम्) बीच में (गच्छति) चलता है, (तम्) उस (क्रिमिम्) कीड़े को (जम्भयामसि) हम नाश करते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विज्ञानी पुरुष आत्मविघ्नों का इस प्रकार नाश करे, जैसे वैद्य कृमि रोग को ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(यः) क्रिमिः (अक्ष्यौ) अ० १।२७।१। अक्षिणी। नेत्रे (परिसर्पति) परितो गच्छति (यः) (नासे) द्वे नासिकाछिद्रे (दताम्) पद्दन्नोमास्०। पा० ६।१।६३। इति दन्तस्य दत्। दन्तानाम् (यः) (मध्यम्) अन्तर्वर्त्ति देशम् (गच्छति) प्राप्नोति (तम्) (क्रिमिम्) कीटम् (जम्भयामसि) नाशयामः ॥
०४ सरूपौ द्वौ
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
सरू॑पौ॒ द्वौ विरू॑पौ॒ द्वौ कृ॒ष्णौ द्वौ रोहि॑तौ॒ द्वौ।
ब॒भ्रुश्च॑ ब॒भ्रुक॑र्णश्च॒ गृध्रः॒ कोक॑श्च॒ ते ह॒ताः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सरू॑पौ॒ द्वौ विरू॑पौ॒ द्वौ कृ॒ष्णौ द्वौ रोहि॑तौ॒ द्वौ।
ब॒भ्रुश्च॑ ब॒भ्रुक॑र्णश्च॒ गृध्रः॒ कोक॑श्च॒ ते ह॒ताः ॥
०४ सरूपौ द्वौ ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Of like form two, of various form two, black two, red two; both the
brown and the brown-eared, the vulture and the cuckoo (kóka)—they are
slain.
Notes
In d, the mss. are divided between te (B.I.H.s.m.T.?K.) and té
(P.M.W.H.p.m.O.R.), and either reading is acceptable enough. Our text
gives te; the translation above implies té. Ppp. makes sarūpāu and
virūpāu exchange places, and has in d kokās.
Griffith
Worms that are white about the sides, those that are black with black-hued arms, All that show various tints and hues, these worms we utterly destroy.
पदपाठः
सऽरू॑पौ। द्वौ। विऽरू॑पौ। द्वौ। कृ॒ष्णौ। द्वौ। रोहि॑तौ। द्वौ। ब॒भ्रुः। च॒। ब॒भ्रुऽक॑र्णः। च॒। गृध्र॑। कोकः॑। च॒। ते। ह॒ताः। २३.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्व
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (द्वौ) दो (सरूपौ) एक से रूपवाले, (द्वौ) दो (विरूपौ) विरुद्ध रूपवाले, (द्वौ) दो (कृष्णौ) काले, (द्वौ) दो (रोहितौ) लाल (च) और (बभ्रुः) भूरा (च) और (बभ्रुकर्णः) भूरे कानवाला और (गृध्रः) गिद्ध, (च) और (कोकः) भेड़िया, (ते) वे सब (हताः) मारे गये ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य नाना आकारवाले कृमियों के समान नाना प्रकार की कुवासनाओं का नाश करें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(सरूपौ) समानाकारौ (द्वौ) क्रिमी (विरूपौ) विरुद्धरूपौ (द्वौ) (कृष्णौ) कृषेर्वर्णे। उ० ३।४। इति कृष विलेखने−नक्। श्यामवर्णौ (द्वौ) (रोहितौ) रक्तवर्णौ (बभ्रुः) पिङ्गलवर्णः (बभ्रुकर्णः) पिङ्गलश्रोत्रः (गृध्रः) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। इति गृधु अभिकाङ्क्षायाम्−क्रन्। गृध्र आदित्यो भवति गृध्यतेः स्थानकर्मणः… गृध्राणीन्द्रियाणि गृध्यतेर्ज्ञानकर्मणः−निरु० १४।१३। गृधाकारः क्रिमिः (कोकः) कुक आदाने−पचाद्यच्। वृकाकारः क्रिमिः (च) (ते) क्रिमयः (हताः) नाशिताः ॥
०५ ये क्रिमयः
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ये क्रिम॑यः शिति॒कक्षा॒ ये कृ॒ष्णाः शि॑ति॒बाह॑वः।
ये के च॑ वि॒श्वरू॑पा॒स्तान्क्रिमी॑न् जम्भयामसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ये क्रिम॑यः शिति॒कक्षा॒ ये कृ॒ष्णाः शि॑ति॒बाह॑वः।
ये के च॑ वि॒श्वरू॑पा॒स्तान्क्रिमी॑न् जम्भयामसि ॥
०५ ये क्रिमयः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The worms that are white-sided, that are black with white arms, and
whatever ones are of all forms—those worms we grind up.
Notes
The Anukr. does not notice the deficient syllable of c. Ppp. reads
in a sitavakṣās, and in b sitabāhavas.
Griffith
Eastward the Sun is mounting, seen of all, destroying thing unseen, Crushing and killing all the worms invisible and visible.
पदपाठः
ये। क्रिम॑यः। शि॒ति॒ऽकक्षाः॑। ये। कृ॒ष्णाः। शि॒ति॒ऽबाह॑वः। ये। के। च॒। वि॒श्वऽरू॑पाः। तान्। क्रिमी॑न्। ज॒म्भ॒या॒म॒सि॒। २३.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (क्रिमयः) कीड़े (शितिकक्षाः) काली काँखवाले, (ये) जो (कृष्णाः) काले वर्णवाले और (कृष्णबाहवः) काली भुजाओंवाले, (च) और (ये के) जो कोई (विश्वरूपाः) सब वर्णवाले हैं, (तान्) उन (क्रिमीन्) कीड़ों को (जम्भयामसि) हम नष्ट करते हैं ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ४ के समान ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(ये) (क्रिमयः) कीटाः (शितिकक्षाः) कृष्णकक्षावन्तः (कृष्णाः) श्यामवर्णाः (शितिबाहवः) कृष्णभुजाः (के) केचित् (च) (विश्वरूपाः) सर्ववर्णाः (तान्) पूर्वोक्तान् (क्रिमीन्) कीटान् (जम्भयामसि) नाशयामः ॥
०६ उत्पुरस्तात्सूर्य एति
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उत्पु॒रस्ता॒त्सूर्य॑ एति वि॒श्वदृ॑ष्टो अदृष्ट॒हा।
दृ॒ष्टांश्च॒ घ्नन्न॒दृष्टां॑श्च॒ सर्वां॑श्च प्रमृ॒णन्क्रिमी॑न् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उत्पु॒रस्ता॒त्सूर्य॑ एति वि॒श्वदृ॑ष्टो अदृष्ट॒हा।
दृ॒ष्टांश्च॒ घ्नन्न॒दृष्टां॑श्च॒ सर्वां॑श्च प्रमृ॒णन्क्रिमी॑न् ॥
०६ उत्पुरस्तात्सूर्य एति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Up in the east goes the sun, seen of all, slayer of the unseen,
slaying both those seen and those unseen, and slaughtering all worms.
Notes
The first half-verse is RV. i. 191. 8 a, b, without variant. Ppp.
reads for a ud asāu sūryo agād, and in b adṛṅhā ⌊the ṅ is
written with the anunāsika-sign or candrabindu inverted⌋.
Griffith
Let the Yevashas, Kaskashas, Ejatkas, Sipavitnukas, Let both the worm that we can see, and that we see not, be destroyed.
पदपाठः
उत्। पु॒रस्ता॑त्। सूर्यः॑। ए॒ति॒। वि॒श्वऽदृ॑ष्टः। अ॒दृ॒ष्ट॒ऽहा। दृ॒ष्टान्। च॒। घ्नन्। अ॒दृष्टा॑न्। च॒। सर्वा॑न्। च॒। प्र॒ऽमृ॒णन्। क्रिमी॑न्। २३.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वदृष्टः) सबों करके देखा गया, (अदृष्टहा) अगोचर पदार्थों में गतिवाला (सूर्यः) सूर्य (दृष्टान्) दीखते हुए (च) और (अदृष्टान्) न दीखते हुए (सर्वान्) सब (क्रिमीन्) कीड़ों को (च) अवश्य (घ्नन्) मारता हुआ (च) और (प्रमृणन्) मिटाता हुआ (पुरस्तात्) पूर्व दिशा में (उत् एति) उदय होता है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे सूर्य अपने प्रकाश से अन्धकार आदि नाश करता है, वैसे ही वैद्य ओषधि द्वारा रोगों को नाश करे ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(उत् एति) उदितो भवति (पुरस्तात्) पूर्व−अस्ताति, पुर् आदेशः। अग्रतः। पूर्वस्यां दिशि (विश्वदृष्टः) सर्वैर्दृष्टः (अदृष्टहा) हन गतौ−क्विप्। अगोचरपदार्थेषु व्यापकः (दृष्टान्) गोचरान् (च) समुच्चये (घ्नन्) नाशयन् (अदृष्टान्) अगोचरान् (च) (सर्वान्) सकलान् (च) अवश्यम् (प्रमृणन्) प्रकर्षेण नाशयन् (क्रिमीन्) कीटान् ॥
०७ येवाषासः कष्कषास
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येवा॑षासः॒ कष्क॑षास एज॒त्काः शि॑पवित्नु॒काः।
दृ॒ष्टश्च॑ ह॒न्यतां॒ क्रिमि॑रु॒तादृष्ट॑श्च हन्यताम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
येवा॑षासः॒ कष्क॑षास एज॒त्काः शि॑पवित्नु॒काः।
दृ॒ष्टश्च॑ ह॒न्यतां॒ क्रिमि॑रु॒तादृष्ट॑श्च हन्यताम् ॥
०७ येवाषासः कष्कषास ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The yévāshas, the káshkashas, the stirrers, the
śipavitnukás—both let the seen worm be slain, and let the unseen be
slain.
Notes
The pada-text divides ejat॰kā́ḥ, but not śipavitnukā́ḥ, both
according to Prāt. iv. 25. ⌊For ejat-ká, cf. avat-ká, ii. 3. 1 and
note; also bhinna-ka, note to ii. 32. 6, and the frequent Pāli forms
like ni-panna-ka, Jātaka, ii. p. 7²⁰. Ppp. has, for a, b,
yavāyavā khāsaṣkaṣki śyāmo dhūkṣāmaś ca parivṛkṇavaḥ: and, for d,
adṛṣṭaś co ’ta hanyatām.
Griffith
Slain the Yevasha of the worms, slain too is the Nadaniman. I have reduced them all to dust like vetches with the pounding- stone.
पदपाठः
येवा॑षासः। कष्क॑षासः। ए॒ज॒त्ऽकाः। शि॒प॒वि॒त्नु॒काः। दृ॒ष्टः। च॒। ह॒न्यता॑म्। क्रिमिः॑। उ॒त। अ॒दृष्टः॑। च॒। ह॒न्य॒ता॒म्। २३.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (येवाषासः=एवाषाः) शीघ्र गतिवाले, (कष्कषासः=कष्कषाः) अत्यन्त पीड़ा देनेवाले, (एजत्काः) चमकने वा थरथरानेवाले और (शिपवित्नुकाः) तीक्ष्ण स्वभाववाले हैं। (दृष्टः) दीखता हुआ (क्रिमिः) कीड़ा (च) अवश्य (हन्यताम्) मारा जावे, (उत) और (अदृष्टः) न दीखता हुआ (च) भी (हन्यताम्) मारा जावे ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ४ के समान ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(येवाषासः) इण्शीभ्यां वन्। उ० १।१५२। इति इण् गतौ−वन्+अष गतौ−दीप्तौ च−अच्। आदौ छान्दसो यकारः। एवश्चासौ अषश्च एवाषः। जसि असुक्। शीघ्रगामिनः (कष्कषासः) कष हिंसायम्−क्विप्+कष−अच्, असुक् च। कट् चासौ कषश्चेति समासः। अतिशयेन हिंसकः (एजत्काः) वर्तमाने पृषद्बृहन्०। उ० २।८४। इति एजृ दीप्तौ कम्पने च−अति, स्वार्थे कन्। दीप्यमानाः। कम्पनशीलाः (शिपवित्नुकाः) च्युवः किच्च। उ० ३।२४। इति शिञ् निशाने−प। स्तनिहृषिपुषि०। उ० ३।२९। इति वा गतौ−इत्नुच्, स्वार्थे−कन्। तीक्ष्णस्वभावाः (दृष्टः) गोचरः (च) अवश्य (हन्यताम्) नाश्यताम् (क्रिमिः) कीटः (उत) अपि (अदृष्टः) अगोचरः (च) ॥
०८ हतो येवाषः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ह॒तो येवा॑षः॒ क्रिमी॑णां ह॒तो न॑दनि॒मोत।
सर्वा॒न्नि म॑ष्म॒षाक॑रं दृ॒षदा॒ खल्वाँ॑ इव ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ह॒तो येवा॑षः॒ क्रिमी॑णां ह॒तो न॑दनि॒मोत।
सर्वा॒न्नि म॑ष्म॒षाक॑रं दृ॒षदा॒ खल्वाँ॑ इव ॥
०८ हतो येवाषः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Slain is the yévāsha of the worms, slain also the nadanimán; I
have put them all down, smash (? maṣmaṣā́) like khálva-grains with a
millstone.
Notes
Nadanimán might possibly mean something like ‘a buzzing,’ coming from
a nadana, root nad. The last pāda is identical with ii. 31. 1 d.
Ppp- has instead: hato yavākho hataś ca pavir hato ṣaṁ gaṇavāṅ uta:
hatā viśvā ’rātaya anena vacasā mama (cf. 2 c, d).
Griffith
The worm Saranga, white of hue, three-headed, with a triple hump, I split and tear his ribs away, I wrench off every head he has.
पदपाठः
ह॒तः। येवा॑षः। क्रिमी॑णाम्। ह॒तः। न॒द॒नि॒मा। उ॒त। सर्वा॑न्। नि। म॒ष्म॒षा। अ॒क॒र॒म्। दृ॒षदा॑। खल्वा॑न्ऽइव। २३.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (क्रिमीणाम्) कीड़ों में से (येवाषः=एवाषः) शीघ्रगामी (हतः) मारा गया, (उत) और (नदनिमा) नाद करनेवाला (हतः) मारा गया। (सर्वान्) सब (कीड़ों) को (मष्मषा) मसल-मसल कर (नि अकरम्) मैंने नष्ट कर दिया है, (खल्वान् इव) जैसे चनों को (दृषदा) शिला से [दल डालते हैं] ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य अपने सब कुसंस्कारों का नाश करे, जैसे वैद्य रोगजन्तुओं को नष्ट करता है ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(हतः) नाशितः (येवाषः) एव+अषः−म० ७। शीघ्रगामी (क्रिमीणाम्) कीटानां मध्ये (नदनिमा) नदनं करोति नदनयिता। तत्करोति तदाचष्टे। वा० पा० ३।१।२६। इति नदन−णिच्। हृभृघृसृ०। उ० ४।१४८। इति इमनिच्, णिलोपः। नादकर्ता (उत) अपिच (सर्वान्) सकलान् क्रिमीन् (मष्मषा) मष वधे−सम्पदादित्वात् क्विप्। आबाधे च। पा० ८।१।१०। इति द्वित्वम्। अत्यन्तहननेन (नि अकरम्) अहं निराकृतवान् नाशितवान् (दृषदा) अ० २।३१।१। शिलया (खल्वान्) अ० २।३१।१। चणकान् (इव) यथा ॥
०९ त्रिशीर्षाणं त्रिककुदम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
त्रि॑शी॒र्षाणं॑ त्रिक॒कुदं॒ क्रिमिं॑ सा॒रङ्ग॒मर्जु॑नम्।
शृ॒णाम्य॑स्य पृ॒ष्टीरपि॑ वृश्चामि॒ यच्छिरः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्रि॑शी॒र्षाणं॑ त्रिक॒कुदं॒ क्रिमिं॑ सा॒रङ्ग॒मर्जु॑नम्।
शृ॒णाम्य॑स्य पृ॒ष्टीरपि॑ वृश्चामि॒ यच्छिरः॑ ॥
०९ त्रिशीर्षाणं त्रिककुदम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The three-headed, the three-humped (-kakúd), the variegated, the
whitish worm—I crush the ribs of it; I hew at what is its head.
Notes
The last three pādas are identical with ii. 32. 2 b-d, above. Some
of the mss. (P.M.W.H.p.m.) read in a trāikak-. Ppp. has for a,
b yo dviśīrṣaś caturakṣaṣ krimiś carn̄go arjunaḥ (cf. the Ppp.
version of ii. 32. 2), and in d apa for api. The deficiency of a
syllable (unless we read asia) in c is noticed by the Anukr.
neither there nor here. The three following verses are the same with ii.
32. 3-5.
Griffith
I kill you, worms, as Atri, as Kanva and Jamadagni killed. I crush the worms to pieces with a spell that erst Agastya used.
पदपाठः
त्रि॒ऽशी॒र्षाण॑म्। त्रि॒ऽक॒कुद॑म्। क्रिमि॑म्। सा॒रङ्ग॑म्। अर्जु॑नम्। शृ॒णामि॑। अ॒स्य॒। पृ॒ष्टीः। अपि॑। वृ॒श्चा॒मि॒। यत्। शिरः॑। २३.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (त्रिशीर्षाणम्) तीन, ऊँचे-नीचे और मध्य स्थानों में आश्रयवाले, (त्रिककुदम्) तीन [कायिक, वाचिक, मानसिक] सुखों की भूमि काटनेवाले, (सारङ्गम्) रेंगनेवाले [वा चितकबरे] और (अर्जुनम्) संचय करनेवाले [वा श्वेतवर्ण] (क्रिमिम्) कीड़ों को (शृणामि) मैं मारता हूँ, (अस्य) इसकी (पृष्टीः) पसलियों को (अपि) भी, और (तत्) जो (शिरः) शिर है [उसको भी] (वृश्चामि) तोड़े डालता हूँ ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार रोगजनक जन्तुओं को शुद्धि आदि द्वारा नाश करने से शारीरिक स्वास्थ्य बढ़ता है, इसी प्रकार आत्मिक दोषों को हटाने से आत्मिक शान्ति होती है ॥९॥ इस मन्त्र का मिलान अथर्व० २।३२।२। से करो ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(त्रिशीर्षाणम्) श्रयतेः स्वाङ्गे शिरः किच्च। उ० ४।१९४। इति श्रिञ् सेवायाम्−असुन्। शीर्षंश्छन्दसि। पा० ६।१।६०। इति शिरः शब्दस्य शीर्षन्। त्रिषु ऊर्ध्वाधोमध्यस्थानेषु शिर आश्रयो यस्य तम् (त्रिककुदम्) त्रि+क+कु+दम्। आतोऽनुपसर्गे कः। पा० ३।२।३। इति त्रिककु+दाप् छेदने क। त्रयाणां कानां कायिकवाचिकमानसिकसुखानां कुं भूमिं दाति छिनत्ति यस्तम्। अन्यद् यथा−अ० २।३२।२। (क्रिमिम्) कीटम् (सारङ्गम्) सृ गतौ−अङ्गच्, वृद्धिश्च। सरणशीलम्। शबलवर्णम् (अर्जुनम्) संचयशीलम्। श्वेतवर्णम्। (शृणामि) हन्मि (पृष्टीः) पार्श्वस्थानि (अपि) (वृश्चामि) छिनद्मि (यत्) (शिरः) मस्तकम् ॥
१० अत्रिवद्वः क्रिमयो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॑त्रि॒वद्वः॑ क्रिमयो हन्मि कण्व॒वज्ज॑मदग्नि॒वत्।
अ॒गस्त्य॑स्य॒ ब्रह्म॑णा॒ सं पि॑नष्म्य॒हं क्रिमी॑न् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑त्रि॒वद्वः॑ क्रिमयो हन्मि कण्व॒वज्ज॑मदग्नि॒वत्।
अ॒गस्त्य॑स्य॒ ब्रह्म॑णा॒ सं पि॑नष्म्य॒हं क्रिमी॑न् ॥
१० अत्रिवद्वः क्रिमयो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Like Atri I slay you, O worms, like Kaṇva, like Jamadagni; with the
incantation of Agastya I mash together the worms.
Notes
Griffith
The King of worms hath been destroyed, he who was lord of these is slain. Slain is the worm whose mother, whose brother and sister have been slain.
पदपाठः
अ॒त्त्रि॒ऽवत्। वः॒। क्रि॒म॒यः॒। ह॒न्मि॒। क॒ण्व॒ऽवत्। ज॒म॒द॒ग्नि॒ऽवत्। अ॒गस्त्य॑स्य। ब्रह्म॑णा। सम्। पि॒न॒ष्मि॒। अ॒हम्। क्रिमी॑न्। २३.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (क्रिमयः) हे कीड़ो ! (वः) तुमको (अत्त्रिवत्) दोषभक्षक वा गतिशील, मुनि के समान, (कण्ववत्) स्तुतियोग्य मेधावी पुरुष के समान, (जमदग्निवत्) आहुति खानेवाले अथवा प्रज्वलित अग्नि के सदृश तेजस्वी पुरुष के समान, (हन्मि) मैं मारता हूँ। (अगस्त्यस्य) कुटिल गतिवाले पाप के छेदने में समर्थ परमेश्वर के (ब्रह्मणा) वेदज्ञान से (अहम्) मैं (क्रिमीन्) कीड़ों को (सम् पिनष्मि) पीसे डालता हूँ ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को ऋषि, मुनि, धर्मात्माओं के अनुकरण से वेदज्ञान द्वारा पाप का नाश करना चाहिये ॥१०॥ मन्त्र १०-१२ अथर्ववेद का० २ सू० ३२ मन्त्र ३-५ में आ चुके हैं ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−व्याख्यातं यथा−अ० २।३२।३। (अत्त्रिवत्) दोषभक्षको गतिशीलो वा मुनिर्यथा (वः) युष्मान् (क्रिमयः) हे क्षुद्रजन्तवः (हन्मि) नाशयामि (कण्ववत्) स्तुत्यो मेधावी तथा (जमदग्निवत्) हुताशनः प्रज्वलितोऽग्निरिव तेजो येषां ते जमदग्नयः। तत्सदृशः पुरुषः (अगस्त्यस्य) अगस्य कुटिलगतेः पापस्य असने उत्पाटने समर्थस्य परमेश्वरस्य (ब्रह्मणा) वेदज्ञानेन (सम् पिनष्मि) संचूर्णयामि (अहम्) (क्रिमीन्) क्षुद्रजन्तून् ॥
११ हतो राजा
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ह॒तो राजा॒ क्रिमी॑णामु॒तैषां॑ स्थ॒पति॑र्ह॒तः।
ह॒तो ह॒तमा॑ता॒ क्रिमि॑र्ह॒तभ्रा॑ता ह॒तस्व॑सा ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ह॒तो राजा॒ क्रिमी॑णामु॒तैषां॑ स्थ॒पति॑र्ह॒तः।
ह॒तो ह॒तमा॑ता॒ क्रिमि॑र्ह॒तभ्रा॑ता ह॒तस्व॑सा ॥
११ हतो राजा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Slain is the king of the worms, also the chief of them is slain;
slain is the worm, having its mother slain, its brother slain, its
sister slain.
Notes
Griffith
Destroyed are his dependants, who those dwell around him are destroyed, And all the worms that seem to be the little ones are done to death
पदपाठः
ह॒तः। राजा॑। क्रिमी॑णाम्। उ॒त। ए॒षा॒म्। स्थ॒पतिः॑। ह॒तः। ह॒तः। ह॒तमा॑ता। क्रिमिः॑। ह॒तऽभ्रा॑ता। ह॒तऽस्व॑सा। २३.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एषाम्) इन (क्रिमीणाम्) कीड़ों का (राजा) राजा (हतः) नष्ट होवे, (उत) और (स्थपतिः) द्वारपाल (हतः) नष्ट होवे। (हतमाता) जिसकी माता नष्ट हो चुकी है, (हतभ्राता) जिसका भ्राता नष्ट हो चुका है, और (हतस्वसा) जिसकी बहिन नष्ट हो चुकी है, (क्रिमिः) वह चढ़ाई करनेवाला कीड़ा (हतः) मार डाला जावे ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य अपने दोषों और उनके कारणों को उचित प्रकार से समझ कर नष्ट करे, जैसे वैद्य रोगों के प्रधान और गौण कारणों को जानकर उन्हें निवृत्त करता है ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−तथा−अ० २।३२।४। (हतः) नाशितो भवतु (राजा) अधिपतिः (क्रिमीणाम्) कीटानाम् (उत) अपि च (एषाम्) उपस्थितानाम् (स्थपतिः) द्वारपालः (हतः) (हतमाता) नष्टमातृकः (क्रिमिः) (हतभ्राता) नष्टमातृकः (हतस्वसा) नष्टभगिनीकः ॥
१२ हतासो अस्य
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ह॒तासो॑ अस्य वे॒शसो॑ ह॒तासः॒ परि॑वेशसः।
अथो॒ ये क्षु॑ल्ल॒का इ॑व॒ सर्वे॒ ते क्रिम॑यो ह॒ताः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ह॒तासो॑ अस्य वे॒शसो॑ ह॒तासः॒ परि॑वेशसः।
अथो॒ ये क्षु॑ल्ल॒का इ॑व॒ सर्वे॒ ते क्रिम॑यो ह॒ताः ॥
१२ हतासो अस्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Slain are its neighbors, slain its further neighbors, also those
that are petty, as it were—all those worms are slain.
Notes
Griffith
Of every worm and insect, of the female and the male alike, I crush the head to pieces with a stone and burn the face with fire.
पदपाठः
ह॒तासः॑। अ॒स्य॒। वेशसः॑। ह॒तासः॑। परि॑ऽवेशसः। अथो॒ इति॑। ये। क्षु॒ल्ल॒काःऽइ॑व। सर्वे॑। ते। क्रिम॑यः। ह॒ताः। २३.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- अनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) इस [क्रिमी] के (वेशासः) मुख्य सेवक (हतासः=हताः) नष्ट हों, और (परिवेशसः) साथी भी (हतासः) नष्ट हों। (अथो=अथ−उ) और भी (ये) जो (क्षुल्लकाः इव) बहुत सूक्ष्म आकारवाले से हैं, (ते) वे (सर्वे) सब (क्रिमयः) कीड़े (हताः) नष्ट हों ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य अपनी स्थूल और सूक्ष्म कुवासनाओं का और उन की सामग्री का सर्वनाश कर दे, जैसे रोगजनक जन्तुओं को औषध आदि से नष्ट करते हैं ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १२−यथा−अ० २।३२।५। (हतासः) हताः (वेशसः) प्रवेशकाः। मुख्यसेवकाः (परिवेशसः) परितः स्थिताः। अनुचरा (अथो) अपि च (क्षुल्लकाः) क्षुदिर् सम्पेषणे−क्विप्+लक प्राप्तौ−अच्। सूक्ष्माकाराः क्षुद्रजन्तवः ॥
१३ सर्वेषां च
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
सर्वे॑षां च॒ क्रिमी॑णां॒ सर्वा॑सां च क्रि॒मीना॑म्।
भि॒नद्म्यश्म॑ना॒ शिरो॒ दहा॑म्य॒ग्निना॒ मुख॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सर्वे॑षां च॒ क्रिमी॑णां॒ सर्वा॑सां च क्रि॒मीना॑म्।
भि॒नद्म्यश्म॑ना॒ शिरो॒ दहा॑म्य॒ग्निना॒ मुख॑म् ॥
१३ सर्वेषां च ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Both of all worms and of all she-worms I split the head with a
stone, I burn the mouth with fire.
Notes
Ppp. reads aśminā in c.
Griffith
सर्वे॑षां च॒ क्रिमी॑णां॒ सर्वा॑सां च क्रि॒मीना॑म्।
भि॒नद्म्यश्म॑ना॒ शिरो॒ दहा॑म्य॒ग्निना॒ मुख॑म्॥१३॥
पदपाठः
सर्वे॑षाम्। च॒। क्रिमी॑णाम्। सर्वा॑साम्। च॒। क्रि॒मीणा॑म्। भि॒नद्मि॑। अश्म॑ना। शिरः॑। दहा॑मि। अ॒ग्निना॑। मुख॑म्। २३.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- कण्वः
- विराडनुष्टुप्
- कृमिघ्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (च) और (सर्वेषाम्) सब (क्रिमीणाम्) कीड़ों का (च) और (सर्वासाम्) सब (क्रिमीणम्) कीड़ों की स्त्रियों का (शरः) शिर (अश्मना) पत्थर से (भिनद्मि) मैं फोड़ता हूँ और (मुखम्) मुख (अग्निना) अग्नि से (दहामि) जलाता हूँ ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे किसी वस्तु को अग्नि में जलाकर अथवा पत्थर पर तोड़ कर नष्ट कर देते हैं, वैसे ही मनुष्य अपने बाहिरी और भीतरी दोषों का नाश करे ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १३−(सर्वेषाम्) समस्तानाम् (च) (क्रिमीणाम्) क्रमणशीलानां क्षुद्रजन्तूनाम् (सर्वासाम्) सकलानाम् (च) (क्रिमीणाम्) क्रिमिस्त्रीणाम् (भिनद्मि) विदारयामि (अश्मना) प्रस्तरेण (शिरः) मस्तकम् (दहामि) भस्मीकरोमि (अग्निना) पावकेन (मुखम्) अ० २।३५।५। खनति अन्नादिकमनेन। आननम् ॥