०१७ ब्रह्मजाया ...{Loading}...
Whitney subject
- The Brahman’s wife.
VH anukramaṇī
ब्रह्मजाया।
१-१८ मयोभूः। ब्रह्मजाया। अनुष्टुप्, १-६ त्रिष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Mayobhū.—aṣṭādaśakam. brahmajāyādevatyam. ānuṣṭubham: 1-6. triṣṭubh.]
Whitney
Comment
Found in part (vss. 1-7, 9-11 in ix., also 18, in another part of ix.) in Pāipp. The hymn contains (in vss. 1-3, 6, 5, 10, 11) the seven verses of RV. x. 109, none of which occur elsewhere than in these two texts. Vāit. takes no notice of it, but it is used in Kāuś. (48. 11), next after hymn 13, in a witchcraft ceremony; while vs. 4 is quoted also in 126. 9, on occasion of the fall of a meteor.
Griffith
The abduction and restoration of a Brahman’s wife
०१ तेऽवदन्प्रथमा ब्रह्मकिल्बिषेऽकूपारः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तेऽव॒दन्प्र॑थ॒मा ब्र॑ह्मकिल्बि॒षेऽकू॑पारः सलि॒लो मा॑तरिश्वा।
वी॒डुह॑रा॒स्तप॑ उ॒ग्रं म॑यो॒भूरापो॑ दे॒वीः प्र॑थम॒जा ऋ॒तस्य॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तेऽव॒दन्प्र॑थ॒मा ब्र॑ह्मकिल्बि॒षेऽकू॑पारः सलि॒लो मा॑तरिश्वा।
वी॒डुह॑रा॒स्तप॑ उ॒ग्रं म॑यो॒भूरापो॑ दे॒वीः प्र॑थम॒जा ऋ॒तस्य॑ ॥
०१ तेऽवदन्प्रथमा ब्रह्मकिल्बिषेऽकूपारः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- These spoke first at the offense against the Brahman (bráhman-):
the boundless sea, Mātariśvan, he of stout rage (-háras), formidable
fervor, the kindly one, the heavenly waters, first-born of right
(ṛtá).
Notes
RV. reads ugrás in c, and ṛténa at the end. Ppp. reads -haras
and -bhuvas in c, and apas in d. The first pāda is properly
jagatī, though the Anukr. takes no notice of the fact.
Griffith
These first, the boundless Sea, and Matarisvan, fierce glowing Fire, the Strong, the Bliss-bestower, And heavenly Floods, first-born by holy Order, exclaimed against the outrage on a Brahman.
पदपाठः
ते। अ॒व॒दन्। प्र॒थ॒माः। ब्र॒ह्म॒ऽकि॒ल्बि॒षे। अकू॑पारः। स॒लि॒लः। मा॒त॒रिश्वा॑। वी॒डुऽह॑राः। तपः॑। उ॒ग्रम्। म॒यः॒ऽभूः। आपः॑। दे॒वीः। प्र॒थ॒म॒ऽजाः। ऋ॒तस्य॑। १७.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- त्रिष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतस्य) सत्यस्वरूप परमात्मा से (प्रथमजाः) प्रथम उत्पन्न हुए, (ते) उन (प्रथमाः) मुख्य देवताओं अर्थात् (वीडुहराः) बड़े तेजवाले, (मयोभूः) सुख देनेवाले, (अकूपारः) अकुत्सित वा बड़े पारवाले सूर्य, (सलिलः) जलवाले समुद्र, (मातरिश्वा) आकाश में चलनेवाले वायु, (उग्रम्) उग्र (तपः) अग्नि, (देवीः) दिव्यगुणवाली (आपः) व्यापनशील प्रजाओं ने (ब्रह्मकिल्बिषे) ब्रह्मवादी के अपराध के विषय में (अवदन्) बातचीत की ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ब्रह्मवादी लोग सृष्टि के पदार्थों से ब्रह्मविद्या प्राप्त करके सुख भोगें। और पूर्वज ऋषियों के समान परस्पर शङ्का समाधान करके ब्रह्मनिष्ठा हों ॥१॥ इस सूक्त के सात मन्त्र १, २, ३, ५, ६, १०, ११, ऋग्वेद के मण्डल १० का सात मन्त्रवाला सूक्त १०९ है। वहाँ शाकलसंहिता और अजमेर वैदिक यन्त्रालय की ऋक्संहिता के अनुसार जुहू नाम ब्रह्मजाया अथवा ब्रह्मपुत्र ऊर्ध्वनाभा नाम ऋषि और विश्वे देवा देवता हैं, ऋग्वेद सायणभाष्य में जुहू नाम ब्रह्मवादिनी है। इससे यह सूक्त ब्रह्मविद्यापरक है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(ते) प्रसिद्धा देवाः (अवदन्) अकथयन् (प्रथमाः) मुख्याः (ब्रह्मकिल्विषे) किलेर्बुक् च। उ० १।५०। इति किल श्वैत्यक्रीडनयोः−टिषच्, बुक् च। किल्विषं किल्भिदं सुकृतकर्मणो भयं कीर्तिमस्य भिनत्तीति वा−निरु० ११।२४। ब्रह्मणो ब्रह्मवादिनः पुरुषस्य अपराधविषये (अकूपारः) अ+कु+पॄ पालनपूरणयोः−घञ्। पारः पालनं पूरणं वा। आदित्योऽप्यकूपार उच्यतेऽकूपारो भवति दूरपारः समुद्रगोऽप्यकूपार उच्यतेऽकूपारो भवति महापारः−निरु० ४।१८। अकुत्सितपारो महागतिरादित्यः (सलिलः) सलिलम् उदकनाम−निघ० १।१२। अर्शआद्यच्। जलवान् समुद्रः (मातरिश्वा) अ० ५।१०।८। आकाशे गमनशीलो वायुः (विडुहराः) वीलयति संस्तम्भकर्मा−निरु० ५।१६। भृमृशीङ्०। उ० १।७। इति वील−उ। वीलु बलनाम−निघ० २।९। हृञ् हरणे−असुन्। हरो हरतेर्ज्योतिः−निरु० ४।१९। दृढतेजस्कः (तपः) तप−असुन्। अग्निः (उग्रम्) प्रचण्डम् (मयोभूः) मयसः सुखस्य भावयिता (आपः) आप् आप्नोतेः−निरु० ९।२४। व्यापिकाः सृष्ट्यः (देवीः) देव्यः। दिव्यगुणाः (प्रथमजाः) प्रथमोत्पन्ना (ऋतस्य) सत्यस्वरूपस्य परमात्मनः ॥
०२ सोमो राजा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
सोमो॒ राजा॑ प्रथ॒मो ब्र॑ह्मजा॒यां पुनः॒ प्राय॑च्छ॒दहृ॑णीयमानः।
अ॑न्वर्ति॒ता वरु॑णो मि॒त्र आ॑सीद॒ग्निर्होता॑ हस्त॒गृह्या नि॑नाय ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सोमो॒ राजा॑ प्रथ॒मो ब्र॑ह्मजा॒यां पुनः॒ प्राय॑च्छ॒दहृ॑णीयमानः।
अ॑न्वर्ति॒ता वरु॑णो मि॒त्र आ॑सीद॒ग्निर्होता॑ हस्त॒गृह्या नि॑नाय ॥
०२ सोमो राजा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- King Soma first gave (pra-yam) back the Brahman’s wife, not bearing
enmity; he who went after [her] was Varuṇa, Mitra; Agni, invoker,
conducted [her] hither, seizing her hand.
Notes
Ppp. reads mitro ā- in c. Anvartitár ⌊Gram. §233 a⌋ is
doubtful; perhaps ‘one who disputes possession’: cf. MS. iii. 7. 3 (p.
78. 1).
Griffith
King Soma first of all, without reluctance, made restitution of the Brahman’s consort. Mitra and Varuna were the inviters: Agni as Hotar took her hand and led her.
पदपाठः
सोमः॑। राजा॑। प्र॒थ॒मः। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒याम्। पुनः॑। प्र। अ॒य॒च्छ॒त्। अहृ॑णीयमानः। अ॒नु॒ऽअ॒र्ति॒ता। वरु॑णः। मि॒त्रः। आ॒सी॒त्। अ॒ग्निः। होता॑। ह॒स्त॒ऽगुह्य॑। आ। नि॒ना॒य॒। १७.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- त्रिष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अहृणीयमानः) क्रोध नहीं करते हुए, (प्रथमः) मुख्य (राजा) राजा (सोमः) बड़े ऐश्वर्यवान् परमात्मा ने (पुनः) अवश्य (ब्रह्मजायाम्) ब्रह्मविद्या को (प्रायच्छत्) दान किया है। (वरुणः) श्रेष्ठ, (मित्रः) सर्वप्रेरक (अग्निः) ज्ञानवान् पुरुष (अन्वर्तिता) अनुकूलगामी और (होता) ग्रहीता (आसीत्) था और (हस्तगृह्य) हाथ में लेकर [वही उसे] (आ निनाय) लाया ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परम कुपालु परमात्मा ने वेदविद्या प्रदान की है, जिसको बुद्धिमान् पुरुष आदरपूर्वक ग्रहण करते हैं ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(सोमः) परमैश्वर्यवान् परमात्मा (राजा) शासकः (प्रथमः) मुख्यः (ब्रह्मजायाम्) जनेर्यक्। उ० ५।१११। इति जन जनने−यक् आत्वम्, टाप् च। यद्वा। जायतिर्गतिकर्मा−निघ० २।१४। जै गतौ−घञ्, टाप्। ये धातवो गत्यर्थास्ते ज्ञानार्थाः। जनयति उत्पादयति सुखानि या, यद्वा, जायति जानाति यया सा जाया विद्या। ब्रह्मणः परमेश्वरस्य जायां वेदविद्याम् (पुनः) अवश्यम् (प्र) प्रकर्षेण (अयच्छत्) अदात् (अहृणीयमानः) हृणीङ् रोषे लज्जायां च−शानच्। अक्रुध्यन् (अन्वर्तिता) ऋत गतौ−तृच्। अनुकूलं गन्ता (वरुणः) श्रेष्ठः (मित्रः) प्रेरकः (आसीत्) अभवत् (अग्निः) ज्ञानवान् पुरुषः (होता) आदाता (हस्तगृह्य) नित्यं हस्ते पाणावुपयमने। पा० १।४।७७। इति हस्ते शब्दस्य गतिसंज्ञायां ग्रह−ल्यप्, एकारलोपश्छान्दसः। हस्ते गृहीत्वा (आ निनाय) आनीतवान् ॥
०३ हस्तेनैव ग्राह्य
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
हस्ते॑नै॒व ग्रा॒ह्य॑ आ॒धिर॑स्या ब्रह्मजा॒येति॒ चेदवो॑चत्।
न दू॒ताय॑ प्र॒हेया॑ तस्थ ए॒षा तथा॑ रा॒ष्ट्रं गु॑पि॒तं क्ष॒त्रिय॑स्य ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
हस्ते॑नै॒व ग्रा॒ह्य॑ आ॒धिर॑स्या ब्रह्मजा॒येति॒ चेदवो॑चत्।
न दू॒ताय॑ प्र॒हेया॑ तस्थ ए॒षा तथा॑ रा॒ष्ट्रं गु॑पि॒तं क्ष॒त्रिय॑स्य ॥
०३ हस्तेनैव ग्राह्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To be seized by the hand indeed is the pledge (? ādhí) of her, if
one has said “[she is] the Brahman’s wife”; she stood not to be sent
forth for a messenger: so is made safe (gupitá) the kingdom of the
Kshatriya.}}
Notes
The sense of a and c is obscure; perhaps we ought to read
háste (or -tena) nāí ’vá in a, ’nothing of hers is to be
meddled with, when once she is declared the Brahman’s.’ The mss. vary
between grāhyás (B.), grā́hyas (E.), and grāhyàs (the rest). RV.
reads ávocan in b, and adds iyám before íti, by omitting which
our text damages the meter (but the Anukr. does not notice it). RV. also
has in c prahyè for prahéyā; the two readings are of virtually
identicjil meaning; emendation to dūtyā̀ya is desirable. Ppp. reads
ādir in a.
Griffith
The man, her pledge, must by the hand be taken when he hath cried, She is a Brahman’s consort. She stayed not for a herald to conduct her: thus is the kingdom of a ruler guarded.
पदपाठः
हस्ते॑न। ए॒व। ग्रा॒ह्यः᳡। आ॒ऽधिः। अ॒स्याः॒। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या। इति॑। च॒। इत्। अवो॑चत्। न। दू॒ताय॑। प्र॒ऽहेया॑। त॒स्थे॒। ए॒षा। तथा॑। रा॒ष्ट्रम्। गु॒पि॒तम्। क्ष॒त्रिय॑स्य। १७.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- त्रिष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (च) और [उस विद्वान् ने] (इत्) ही (इति) इस प्रकार से (अवोचत्) कहा है। (ब्रह्मजाया) यह ब्रह्मविद्या है, (अस्याः) इसका (आधिः) आधार वा आश्रय (हस्तेन एव) हाथ से ही (ग्राह्यः) पकड़ना चाहिये। (एषा) यह (दूताय) सतानेवाले को (प्रहेया) देने योग्य (न तस्थे) नहीं स्थित हुई है, (तथा) उसी से (क्षत्रियस्य) क्षत्रिय का (राष्ट्रम्) राज्य (गुपितम्) रक्षा किया गया [रहता है] ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग ब्रह्मविद्या का दृढ़ता से आदर करके आनन्द करते हैं, इसी से राज्य की रक्षा रहती है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(हस्तेन) पाणिना दृढतया, इत्यर्थः (एव) अवश्यम् (ग्राह्यः) ग्रह-ण्यत्। ग्रहीतव्यः (आधिः) उपसर्गे घोः किः। पा० ३।३।९२। इति आङ्+डुधाञ् धारणपोषणयोः−कि। आधारः। आश्रयः (अस्याः) ब्रह्मविद्यायाः (ब्रह्मजाया) म० २ ब्रह्मविद्या। वेदविद्या (इति) एवं प्रकारेण (च) (इत्) एव (अवोचत्) अवर्ण्यत् (न) निषेधे (दूताय) अ० १।७।६। टुदु उपतापे−कर्त्तरि क्त। उपतापकाय मनुष्याय (प्रहेया) ओहाक् त्यागे−यत् प्रकर्षेण त्याज्या दातव्या (तस्थे) तिष्ठतेर्लिटि। स्थिता बभूव (एषा) ब्रह्मविद्या (तथा) तस्मात्कारणात् (राष्ट्रम्) स० १।२९।१। राज्यम् (गुपितम्) रक्षितम् (क्षत्रियस्य) राज्ञः ॥
०४ यामाहुस्तारकैषा विकेशीति
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यामा॒हुस्तार॑कै॒षा वि॑के॒शीति॑ दु॒च्छुनां॒ ग्राम॑मव॒पद्य॑मानाम्।
सा ब्र॑ह्मजा॒या वि दु॑नोति रा॒ष्ट्रं यत्र॒ प्रापा॑दि श॒श उ॑ल्कु॒षीमा॑न् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यामा॒हुस्तार॑कै॒षा वि॑के॒शीति॑ दु॒च्छुनां॒ ग्राम॑मव॒पद्य॑मानाम्।
सा ब्र॑ह्मजा॒या वि दु॑नोति रा॒ष्ट्रं यत्र॒ प्रापा॑दि श॒श उ॑ल्कु॒षीमा॑न् ॥
०४ यामाहुस्तारकैषा विकेशीति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The misfortune, descending (ava-pad) upon the village, of which
they say “this is a star with disheveled hair”—as such, the Brahman’s
wife burns up the kingdom, where hath gone forth a hare (? śaśá)
accompanied with meteors (ulkuṣī́-).
Notes
That is, such apparent portents are really the woman, that has been
misused. A very awkwardly constructed verse. Ppp. reads in a
tārakāṁ vik-, and, in c, tinotu for dunoti. It is, of course,
the reference to meteoric portents that causes the verse to be quoted in
Kāuś. 126.
Griffith
She whom they call the star with loosened tresses, descending as. misfortune on the village, The Brahman’s consort, she disturbs the kingdom where hath appeared the hare with fiery flashing.
पदपाठः
याम्। आ॒हुः। तार॑का। ए॒षा। वि॒ऽके॒शी। इति॑। दु॒च्छु॒ना॑म्। ग्राम॑म्। अ॒व॒ऽपद्य॑मानाम्। सा। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या। वि। दु॒नो॒ति॒। रा॒ष्ट्रम्। यत्र॑। प्र॒ऽअपा॑दि। श॒शः। उ॒ल्कु॒षीऽमा॑न्। १७.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- त्रिष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ग्रामम्) गाँव पर (अवपद्यमानाम्) गिरती हुई (याम्) जिस (दुच्छुनाम्) दुष्ट गति अविद्या को (आहुः) वे लोग बताते हैं कि (एषा) यह (विकेशी) विरुद्ध प्रकाशवाला (तारका इति) तारा है। (सा) वह (ब्रह्मजाया) ब्रह्मविद्या (राष्ट्रम्) उस राज्य को (वि दुनोति) उलट-पलट कर देती है (यत्र) जिसमें (उल्कुषीमान्) उल्काओं का कोष वा संग्रहवाला (शशः) गतिशील तारा (प्र अपादि) गिरा हो ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस राज्य में अविद्या प्रबल होती है, वह अत्याचारी राज्य ऐसे नष्ट हो जाता है, जैसे आकाश से तारा गिरने से नष्ट हो गया हो ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(याम्) (आहुः) ब्रुवन्ति (तारका) तॄ तरणे−ण्वुल्, टाप्। नक्षत्रम् (एषा) समीपस्था (विकेशी) वि+काशृ दीप्तौ−अच्, ङीप्, आकारस्य एकारः। केशी केशा रश्मयस्तैस्तद्वान् भवति काशनाद्वा प्रकाशनाद्वा−निरु० १२।२५। विरुद्धप्रकाशयुक्ता (इति) प्रकरणसमाप्तौ (दुच्छुनाम्) टुदु उपतापे−क्विप्। शुन गतौ−क, टाप्। दुष्टां गतिम्। अविद्याम् (ग्रामम्) वसतिम् (अवपद्यमानाम्) अधोगच्छन्तीम् (सा) (ब्रह्मजाया) म० २। वेदविद्या (वि) विरोधे (दुनोति) उपतापयति (राष्ट्रम्) राज्यम् (यत्र) यस्मिन् राज्ये (प्र) प्रकर्षेण (अपादि) प्राप्तः (शशः) शश प्लुतगतौ−अच्। गतिशीलमुल्कारूपं नक्षत्रम्। विरुद्धज्ञानमित्यर्थः (उल्कुषीमान्) उल दाहे−क्विप्, कुष निष्कर्षे−क, ङीप्, मतुप्। कुषी कोषः। उलां उल्कानां कुष्या कोषेण संग्रहेण युक्तः ॥
०५ ब्रह्मचारी चरति
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ब्र॑ह्मचा॒री च॑रति॒ वेवि॑ष॒द्विषः॒ स दे॒वानां॑ भव॒त्येक॒मङ्ग॑म्।
तेन॑ जा॒यामन्व॑विन्द॒द्बृह॒स्पतिः॒ सोमे॑न नी॒तां जु॒ह्वं१॒॑ न दे॑वाः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ब्र॑ह्मचा॒री च॑रति॒ वेवि॑ष॒द्विषः॒ स दे॒वानां॑ भव॒त्येक॒मङ्ग॑म्।
तेन॑ जा॒यामन्व॑विन्द॒द्बृह॒स्पतिः॒ सोमे॑न नी॒तां जु॒ह्वं१॒॑ न दे॑वाः ॥
०५ ब्रह्मचारी चरति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The Vedic student (brahmacārin) goes about serving (viṣ) much
service; he becomes one limb of the gods; by him Brihaspati discovered
the wife, conducted by Soma, like the sacrificial spoon, O gods.
Notes
In d RV. has the doubtless better reading devā́s, ‘as the gods
[discovered] the sacrificial spoon.’ For nītā́m Ppp. reads nihatām.
Though called a triṣṭubh, the verse has two jagatī pādas.
Griffith
Active in duty serves the Brahmachari: he is a member of the Gods’ own body. Through him Brihaspati obtained his consort, as the Gods gained the ladle brought by Soma.
पदपाठः
ब्र॒ह्म॒ऽचा॒री। च॒र॒ति॒। वेवि॑षत्। विषः॑। सः। दे॒वाना॑म्। भ॒व॒ति॒। एक॑म्। अङ्ग॑म्। तेन॑। जा॒याम्। अनु॑। अ॒वि॒न्द॒त्। बृह॒स्पतिः॑। सोमे॑न। नी॒ताम्। जु॒ह्व᳡म्। न। दे॒वाः॒। १७.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- त्रिष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विषः) व्याप्तव्य कर्म में (वेविषत्) प्रवेश करता हुआ (ब्रह्मचारी) ब्रह्मचारी अर्थात् वेद के लिये अवश्य आचरण करनेवाला पुरुष (चरति) विचरता है, (सः) वह (देवानाम्) विद्वानों का (एकम्) मुख्य (अङ्गम्) अङ्ग (भवति) होता है। (देवाः) हे विद्वान् लोगो ! (तेन) उसी कारण से (बृहस्पतिः) बड़ी-बड़ी विद्याओं के रक्षक, बृहस्पति [उस ब्रह्मचारी ने] (सोमेन) परमेश्वर करके (नीताम्) लायी गयी (जुह्वम्) दानशीला (जायाम्) सुख उत्पन्न करनेहारी विद्या को (न) अव (अनु अविन्दत्) पा लिया है ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य तपश्चरण द्वारा ब्रह्मविद्या प्राप्त करके विद्वानों में प्रतिष्ठा पाता और सुख भोगता है ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(ब्रह्मचारी) ब्रह्म+चर−आवश्यके णिनिः। ब्रह्मणे वेदाय तद्ग्रहणाय चरणशीलः पुरुषः (चरति) विचरति (वेविषत्) विष्लृ व्याप्तौ−शतृ। व्याप्नुवन् (विषः) श्रयतेः स्वाङ्गेः शिरः किच्च। उ० ४।१९४। इति विष्लृ−असुन्, स च कित्। व्याप्तव्यं कर्म (सः) (देवानाम्) विदुषाम् (भवति) (एकम्) मुख्यम् (अङ्गम्) अवयवः (तेन) कारणेन (जायाम्) म० २। सुखजनयित्रीं विद्याम् (अनु) अनुगम्य (अविन्दत्) अलभत (बृहस्पतिः) बृहतीनां वाचां पतिः। पालकः। ब्रह्मचारी (सोमेन) परमेश्वरेण (नीताम्) प्रापिताम् (जुह्वम्) जुहोतिर्दानकर्मा−निघ० १०।१२। हुवः श्लुवच्च। उ० २।६०। इति हु−क्विप्, द्वित्वं दीर्घश्च। जुहूम्। दानशीलाम् (न) सम्प्रत्यर्थे−निरु० ७।३१। (देवाः) हे विद्वांसः ॥
०६ देवा वा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
दे॒वा वा ए॒तस्या॑मवदन्त॒ पूर्वे॑ सप्तऋ॒षय॒स्तप॑सा॒ ये नि॑षे॒दुः।
भी॒मा जा॒या ब्रा॑ह्म॒णस्योप॑नीता दु॒र्धां द॑धाति पर॒मे व्यो॑मन् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दे॒वा वा ए॒तस्या॑मवदन्त॒ पूर्वे॑ सप्तऋ॒षय॒स्तप॑सा॒ ये नि॑षे॒दुः।
भी॒मा जा॒या ब्रा॑ह्म॒णस्योप॑नीता दु॒र्धां द॑धाति पर॒मे व्यो॑मन् ॥
०६ देवा वा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The gods of old verily spoke about her, the seven seers who sat down
with penance (tápas); fearful [is] the wife of the Brahman when led
away; she makes (dhā) discomfort (durdhā́) in the highest firmament
(vyòman).
Notes
Our mss. (except P.M.W., which often agree in a misreading) give
ápanītā (instead of úp-) in c and this is to be regarded as the
proper AV. text, and is implied in the translation; our edition reads
úpan-, with RV. RV. differs also in having tápase, an easier
reading, in b; and it has no vāí in a, the intrusion of which
defaces the meter, though unnoticed by the Anukr. Ppp. has ajayanta
(for avad-) in a, combines saptarṣ- in b, and gives
brāhmaṇasyā ’pinihitā in c.
Griffith
Thus spake of her those Gods of old, Seven Rishis, who sate them down to their austere devotion: Dire is a Brahman’s wife led home by others: in the supremest heaven she plants confusion.
पदपाठः
दे॒वाः। वै। ए॒तस्या॑म्। अ॒व॒द॒न्त॒। पूर्वे॑। स॒प्त॒ऽऋ॒षयः॑। तप॑सा। ये। नि॒ऽसे॒दुः। भी॒मा। जा॒या। ब्रा॒ह्म॒णस्य॑। अप॑ऽनीता। दुः॒ऽधाम्। द॒धा॒ति॒। प॒र॒मे। विऽओ॑मन्। १७.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- त्रिष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पूर्वे) पूर्व काल में (देवाः) वे दिव्य गुणवाले महात्मा (वै) निश्चय करके (एतस्याम्) इस [ब्रह्मविद्या] के विषय में (अवदन्त) बोले, (ये) जो (सप्त ऋषयः) सात [त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक, मन और बुद्धि] के द्वारा देखनेवाले (तपसा) तपके साथ (निषेदुः) बैठे थे। (अपनीता) कुनीति वा खण्डन को प्राप्त हुई (ब्राह्मणस्य) वेदाधिपति परमेश्वर की (जाया) विद्या (भीमा) भयङ्कर होकर (परमे) सब से श्रेष्ठ (ज्योमन्) रक्षणीय स्थान में (दुर्धाम्) दुष्टव्यवस्था (दधाति) जमाती है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - महात्माओं ने पूर्ण शक्ति से परीक्षा करके साक्षात् किया है, कि जहाँ पर वेदविद्या को निरादर और कुव्यवहार का आदर होता है, वहाँ अवश्य ही विपत्ति पड़ती है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(देवाः) दिव्यगुणा विद्वांसः (वै) निश्चयेन (एतस्याम्) ब्रह्मविद्यायाम् (अवदन्त) अवदन्। अवोचन् (पूर्वे) पूर्वस्मिन् काले (सप्त ऋषयः) अ० ४।११।९। सप्त ऋषयः पडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी−निरु०। १२।३७। ऋषिर्दर्शनात्−१।२०। सप्तभिस्त्वक्चक्षुःश्रवणरसनाघ्राणमनोबुद्धिभिः दर्शकाः (तपसा) तपश्चरणेन (ये) देवाः (निषेदुः) निषण्णा बभूव (भीमाः) भयङ्करा सती (जाया) म० २। जायतिर्गतिकर्मा−निघ० २।१४। जायति जानाति यया सा। विद्या (ब्राह्मणस्य) ब्रह्मन्−अण्। वेदाधिपतेः परमेश्वरस्य (अपनीता) अपनीतिं कुनीतिं खण्डनं वा गता (दुर्धाम्) दुर्+डुधाञ् धारणपोषणयोः−अङ्, टाप्। कष्टेन धरणीयाम्। दुर्व्यवस्थाम् (दधाति) धरति। स्थापयति (परमे) उत्तमे (व्योमन्) वि+अव−मनिन्। सप्तमीलोपः। व्यवने−निरु० ११।४०। विविधं रक्षणीये स्थाने ॥
०७ ये गर्भा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ये गर्भा॑ अव॒पद्य॑न्ते॒ जग॒द्यच्चा॑पलु॒प्यते॑।
वी॒रा ये तृ॒ह्यन्ते॑ मि॒थो ब्र॑ह्मजा॒या हि॑नस्ति॒ तान् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ये गर्भा॑ अव॒पद्य॑न्ते॒ जग॒द्यच्चा॑पलु॒प्यते॑।
वी॒रा ये तृ॒ह्यन्ते॑ मि॒थो ब्र॑ह्मजा॒या हि॑नस्ति॒ तान् ॥
०७ ये गर्भा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What embryos are aborted (ava-pad), what living creatures (jágat)
are torn away (apa-lup), what heroes are mutually shattered—them the
Brahman’s wife injures.
Notes
B. reads nṛtyánte in c, P.M. tṛhyáte, D. nūhyante. That is,
all this mischief is the consequence of her ill-treatment. Ppp. combines
garbhā ’vap- in a, and reads abhilupyate in b, and
hanyante in c.
Griffith
When infants die, untimely born, when herds of cattle waste away, When heroes strike each other dead, the Brahman’s wife destroyeth them.
पदपाठः
ये। गर्भाः॑। अ॒व॒ऽपद्य॑न्ते। जग॑त्। यत्। च॒। अ॒प॒ऽलु॒प्यते॑। वी॒राः। ये। तृ॒ह्यन्ते॑। मि॒थः। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या। हि॒न॒स्ति॒। तान्। १७.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (गर्भाः) गर्भ (अवपद्यन्ते) गिर पड़ते हैं, (च) और (यत्) जो (जगत्) जगत् पशु आदि वृन्द (अपलुप्यते) नष्ट हो जाता है। और (ये) जो (वीराः) वीर लोग (मिथः) आपस में (तृह्यन्ते) कट मरते हैं, [कुनीति वा खण्डन को प्राप्त हुयी−म० ६] (ब्रह्मजाया) ब्रह्मविद्या (तान्) उन्हें (हिनस्ति) मार डालती है ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वेदविद्या के लोप से संसार में रोग, घरेलू विपत्ति और राजविद्रोह आदि फैलते हैं ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(ये) (गर्भाः) भ्रूणाः (अवपद्यन्ते) अधः पतन्ति (जगत्) जङ्गमं पश्वादिवृन्दम् (यत्) (च) (अपलुप्यते) अव छिद्यते (वीराः) शूराः (ये) (तृह्यन्ते) हिंस्यन्ते (मिथः) परस्परम् (ब्रह्मजाया) म० २। सा अपनीता ब्रह्मविद्या (हिनस्ति) नाशयति (तान्) पूर्वोक्तान् ॥
०८ उत यत्पतयो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
उ॒त यत्पत॑यो॒ दश॑ स्त्रि॒याः पूर्वे॒ अब्रा॑ह्मणाः।
ब्र॒ह्मा चे॒द्धस्त॒मग्र॑ही॒त्स ए॒व पति॑रेक॒धा ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒त यत्पत॑यो॒ दश॑ स्त्रि॒याः पूर्वे॒ अब्रा॑ह्मणाः।
ब्र॒ह्मा चे॒द्धस्त॒मग्र॑ही॒त्स ए॒व पति॑रेक॒धा ॥
०८ उत यत्पतयो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- And if [there were] ten former husbands of a woman, not
Brahmans—provided a Brahman has seized her hand, he is alone her
husband.
Notes
This verse is wanting in Ppp.
Griffith
Even if ten former husbands–none a Brahman–had espoused a dame, And then a Brahman took her hand, he is her husband, only he,
पदपाठः
उ॒त। यत्। पत॑यः। दश॑। स्त्रि॒याः। पूर्वे॑। अब्रा॑ह्मणाः। ब्र॒ह्मा। च॒। इत्। हस्त॑म्। अग्र॑हीत्। सः। ए॒व। पतिः॑। ए॒क॒ऽधा। १७.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उत्) और (यत्) जो (स्त्रियाः) शब्दकारिणी विद्या के (दश) दस (पतयः) रक्षक (पूर्वे) सब (अब्राह्मणाः) ब्राह्मण से भिन्न होवें (च) और [जो] (ब्रह्मा) ब्रह्मा, ब्रह्मज्ञानी ने (इत्) ही (हस्तम्) हाथ (अग्रहीत्) पकड़ा, (सः एव) वही (एकधा) मुख्य प्रकार से (पतिः) रक्षक है ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - अविद्वान् लोग दस वा अधिक मिलकर वेदविद्या की रक्षा नहीं कर सकते, ब्रह्मज्ञानी अकेला ही उसकी रक्षा कर सकता है ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(उत्) अपि च (यत्) (पतयः) रक्षकाः (दश) दशसंख्याकाः (स्त्रियाः) स्त्यायतेर्ड्रट्। उ० ४।१६६। इति ष्ट्यै स्त्यै शब्दसंघातयोः−ड्रट्, ङीप् यलोपः। स्त्यायति शब्दयति सा स्त्री तस्याः विद्यायाः (पूर्वे) समस्ताः (अब्राह्मणाः) ब्राह्मणेन वेदज्ञेन भिन्नाः (ब्रह्मा) वृद्धिशीलो ब्रह्मवेत्ता (च) (इत्) एव (हस्तम्) वशम् (अग्रहीत्) आनीतवान् (सः) ब्रह्मा (एव) अवधारणे (पतिः) रक्षकः (एकधा) मुख्य प्रकारेण ॥
०९ ब्राह्मण एव
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ब्रा॑ह्म॒ण ए॒व पति॒र्न रा॑ज॒न्यो॒३॒॑ न वैश्यः॑।
तत्सूर्यः॑ प्रब्रु॒वन्ने॑ति प॒ञ्चभ्यो॑ मान॒वेभ्यः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ब्रा॑ह्म॒ण ए॒व पति॒र्न रा॑ज॒न्यो॒३॒॑ न वैश्यः॑।
तत्सूर्यः॑ प्रब्रु॒वन्ने॑ति प॒ञ्चभ्यो॑ मान॒वेभ्यः॑ ॥
०९ ब्राह्मण एव ...{Loading}...
Whitney
Translation
- A Brahman [is] indeed her husband, not a noble (rājanyà), not a
Vāiśya: this the sun goes proclaiming to the five races of men
(mānavá).
Notes
The Anukr. does not notice the deficient syllable in a (unless we
are to syllabize bṛ-āh-, which is very harsh). Ppp. combines brāhmaṇe
’va in a, and puts the verse at the end of the hymn.
Griffith
Not Vaisya, not Rajanya, no, the Brahman is indeed her lord: This Surya in his course proclaims to the Five Races of man- kind.
पदपाठः
ब्रा॒ह्म॒णः। ए॒व। पतिः॑। न। रा॒ज॒न्यः᳡। न। वैश्यः॑। तत्। सूर्यः॑। प्र॒ऽब्रु॒वन्। ए॒ति॒। प॒ञ्चऽभ्यः॑। मा॒न॒वेभ्यः॑। १७.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ब्राह्मणः) वेदवेत्ता ब्राह्मण (एव) ही (पतिः) रक्षक है, (न) न (राजन्यः) क्षत्रिय और (न) न (वैश्यः) वैश्य है। (तत्) यह बात (सूर्यः) सर्वप्रेरक परमेश्वर (पञ्चभ्यः) विस्तृत (मानवेभ्यः) मननशील मनुष्यों को (प्रब्रुवन्) कहता हुआ (एति) चलता है ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ब्रह्मज्ञानी ही अपनी मानसिक शक्ति से वेद की रक्षा कर सकता है, दूसरे नहीं कर सकते, यह परमेश्वर का वचन है। इसलिये सब मनुष्य मुख्य वेद बल के साथ दूसरे गौण बलों को बढ़ावें ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(ब्राह्मणः) वेदवेत्ता (एव) निश्चयेन (पतिः) रक्षकः (न) निषेधे (राजन्यः) राजेरन्यः। उ० ३।१००। इति राजृ दीप्तौ ऐश्ये च−अन्य। ऐश्वर्यवान्। क्षत्रियः (न) (वैश्यः) विश्-ष्यञ्। विड्भ्यः प्रजाभ्यो मनुष्येभ्यो वा हितः। वणिक्। व्यवहर्ता (तत्) वचनम् (सूर्यः) सविता सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (प्रब्रुवन्) प्रकथयन् (एति) गच्छति (पञ्चभ्यः) सप्यशूभ्यां तुट् च। उ० १।१४७। इति पचि विस्तारे व्यक्तीकारे च−कनिन्। विस्तृतेभ्यः (मानवेभ्यः) मननशीलेभ्यो मनुष्येभ्यः ॥
१० पुनर्वै देवा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
पुन॒र्वै दे॒वा अ॑ददुः॒ पुन॑र्मनु॒ष्या॑ अददुः।
राजा॑नः स॒त्यं गृ॑ह्णा॒ना ब्र॑ह्मजा॒यां पुन॑र्ददुः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पुन॒र्वै दे॒वा अ॑ददुः॒ पुन॑र्मनु॒ष्या॑ अददुः।
राजा॑नः स॒त्यं गृ॑ह्णा॒ना ब्र॑ह्मजा॒यां पुन॑र्ददुः ॥
१० पुनर्वै देवा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The gods verily gave back; men (manuṣyà) gave back; kings,
apprehending (grah) truth, gave back the Brahman’s wife.
Notes
RV. has utá instead of the repeated adadus in b; and it gives
the better reading kṛṇvānā́s in c. And in both points Ppp. agrees
with it ⌊but with -no for -nās⌋.
Griffith
So then the Gods restored her, so men gave the woman back again. Princes who kept their promises restored the Brahman’s wedded wife.
पदपाठः
पुनः॑। वै। दे॒वाः। अ॒द॒दुः॒। पुनः॑। म॒नु॒ष्याः᳡। अ॒द॒दुः॒। राजा॑नः। स॒त्यम्। गृ॒ह्णा॒नाः। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒याम्। पुनः॑। द॒दुः॒। १७.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) सूर्यादि देवताओं ने (पुनः) निश्चय करके (वै) ही (अददुः) दान किया है और (मनुष्याः) मनुष्यों ने (पुनः) निश्चय करके (अददुः) दान किया है। (सत्यम्) सत्य (गृह्णानाः) ग्रहण करते हुए (राजानः) राजा लोगों ने (ब्रह्मजायाम्) ब्रह्मविद्या को (पुनः) अवश्य (ददुः) दिया है ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परस्पर सत्संग, राजनियम, और सूर्य आदि पदार्थों के विवेक से ब्रह्मविद्या का दान करते आये हैं, इसी प्रकार सब को करना चाहिये ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(पुनः वै) अवश्यमेव (देवाः) सूर्यादयो लोकाः (अददुः) अदुः। दत्तवन्तः (पुनः) (मनुष्याः) (अददुः) (राजानः) ऐश्वर्यवन्तः (सत्यम्) याथातथ्यम् (गृह्णानाः) स्वीकुर्वाणाः (ब्रह्मजायाम्) म० २। वेदविद्याम् (पुनः) अवश्यम् (ददुः) दत्तवन्तः ॥
११ पुनर्दाय ब्रह्मजायाम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
पु॑न॒र्दाय॑ ब्रह्मजा॒यां कृ॒त्वा दे॒वैर्नि॑किल्बि॒षम्।
ऊर्जं॑ पृथि॒व्या भ॒क्त्वोरु॑गा॒यमुपा॑सते ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पु॑न॒र्दाय॑ ब्रह्मजा॒यां कृ॒त्वा दे॒वैर्नि॑किल्बि॒षम्।
ऊर्जं॑ पृथि॒व्या भ॒क्त्वोरु॑गा॒यमुपा॑सते ॥
११ पुनर्दाय ब्रह्मजायाम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Having given back the Brahman’s wife, having brought about (kṛ)
freedom of offense with the gods, sharing (bhaj) the refreshment
(ū́rj) of the earth, they occupy (upa-ās) broad space (urugyá).
Notes
RV. has the more antique forms kṛtvī́ and bhaktvā́ya in b and
c. P.M.W. read nakilb- in b.
Griffith
Having restored the Brahman’s wife, and freed them, with Gods’ aid, from sin, They shared the fulness of the earth and worn themselves ex- tended sway.
पदपाठः
पु॒नः॒ऽदाय॑। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒याम्। कृ॒त्वा। दे॒वैः। नि॒ऽकि॒ल्बि॒षम्। ऊर्ज॑म्। पृ॒थि॒व्याः। भ॒क्त्वा। उ॒रु॒ऽगा॒यम्। उप॑। आ॒स॒ते॒। १७.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [मनुष्य] (ब्रह्मजायाम्) वेदविद्या को (पुनर्दाय) अवश्य देकर और (देवैः) उत्तम गुणों के कारण (निकिल्विषम्) पाप से छुटकारा (कृत्वा) करके [पृथिव्याः] पृथिवी के (ऊर्जम्) बलदायक अन्न को (भक्त्वा) बाँट कर (उरुगायम्) बड़ी कीर्तिवाले परमात्मा को (उपासते) भजते हैं ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदविद्या द्वारा शुद्धचित्त होकर सब पदार्थों से उपकार करके परमात्मा की आज्ञा पालते रहते हैं ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−(पुनर्दाय) अवश्यं दत्वा (ब्रह्मजायाम्) म० २। वेदविद्याम् (कृत्वा) विधाय (देवैः) दिव्यगुणैः (निकिल्विषम्) म० २। पापराहित्यम् (ऊर्जम्) बलकरमन्नम् (पृथिव्याः) भूमेः (भक्त्वा) भज भागे सेवायां च। विभज्य (उरुगायम्) अ० २।१२।१। उरु+गै गाने−घञ् बहुगीयमानं परमात्मानम् (उपासते) सेवन्ते ॥
१२ नास्य जाया
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
नास्य॑ जा॒या श॑तवा॒ही क॑ल्या॒णी तल्प॒मा श॑ये।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नास्य॑ जा॒या श॑तवा॒ही क॑ल्या॒णी तल्प॒मा श॑ये।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
१२ नास्य जाया ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Not on his couch lies a beautiful hundred-bringing (-vāhī́) wife,
in whose kingdom the Brahman’s wife is obstructed through ignorance.
Notes
Literally, ‘in what kingdom’; ‘obstructed,’ i.e. ‘kept from him.’
‘Hundred,’ i.e., probably, ‘a rich dowry’ (so the Pet. Lex.). The mss.
have, as is usual in such cases, ácityā.
Griffith
No lovely wife who brings her dower in hundreds rests upon his bed, Within whose kingdom is detained, through want of sense, a Brahman’s dame.
पदपाठः
न। अ॒स्य॒। जा॒या। श॒त॒ऽवा॒ही। क॒ल्या॒णी। तल्प॑म्। आ। श॒ये॒। यस्मि॑न्। रा॒ष्ट्रे। नि॒ऽरु॒ध्यते॑। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या। अचि॑त्त्या। १७.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) उसकी (जाया) विद्या (शतवाही) सैकड़ों कार्य निबाहनेवाली (कल्याणी) कल्याणी होकर (तल्पम्) प्रतिष्ठा (न) नहीं (आ शये=शेते) पाती है। (यस्मिन्) जिस (राष्ट्रे) राज्य में (ब्रह्मजाया) वेदविद्या (अचित्या) अचेतपन से (निरुध्यते) रोकी जाती है ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - अविद्या के प्रचार और वेदविद्या की रोक से किसी राज्य में कल्याण नहीं होता ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १२−(न) निषेधे (अस्य) राष्ट्रस्य (जाया) म० ६। विद्या (शतवाही) शत+वह प्रापणे−अण्, ङीप्। बहुपदार्थप्रापयित्री (कल्याणी) कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते। कल्य+अण शब्दे जीवने च−घञ्, ङीप्। मङ्गलप्रदा (तल्पम्) खष्पशिल्प०। उ० ३।२८। इति तल प्रतिष्ठायाम्−प। प्रतिष्ठाम् स्थिरताम् (आ शये) तलोपः। आशेते। प्राप्नोति (यस्मिन्) (राष्ट्रे) राज्ये (निरुध्यते) निवार्यते (ब्रह्मजाया) म० २। ब्रह्मविद्या (अचित्या) चिती क्तिन्। अचेतनया। अज्ञानेन ॥
१३ न विकर्णः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
न वि॑क॒र्णः पृ॒थुशि॑रा॒स्तस्मि॒न्वेश्म॑नि जायते।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
न वि॑क॒र्णः पृ॒थुशि॑रा॒स्तस्मि॒न्वेश्म॑नि जायते।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
१३ न विकर्णः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- A wide-eared, broad-headed [ox?] is not born in that dwelling, in
whose etc. etc.
Notes
Muir understands a “son” of such description.
Griffith
No broad-browed calf with wide-set ears is ever in his homestead born. Within whose kingdom is detained, through want of sense, a Brahman’s dame.
पदपाठः
न। वि॒ऽक॒र्णः। पृ॒थु॒ऽशि॑राः। तस्मि॑न्। वेश्म॑नि। जा॒य॒ते॒। यस्मि॑न्। रा॒ष्ट्रे। नि॒ऽरु॒ध्यते॑। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या। अचि॑त्त्या। १७.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विकर्णः) विशेष श्रवण शक्तिवाला और (पृथुशिराः) विस्तीर्ण मस्तक शक्तिवाला पुरुष (तस्मिन्) उस (वेश्मनि) घर में (न) नहीं (जायते) होता है (यस्मिन्) जिस (राष्ट्रे) राज्य में…. ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदविद्या से ही बहुश्रुत और विज्ञानी होते हैं ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १३−(न) निषेधे (विकर्णः) कर्ण भेदने−अच्। विशेषश्रवणः। बहुश्रतः (पृथुशिराः) विस्तीर्णमस्तकशक्तियुक्तः। बहुप्रज्ञः (तस्मिन्) (वेश्मनि) गृहे (जायते) उत्पद्यते ॥
१४ नास्य क्षत्ता
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
नास्य॑ क्ष॒त्ता नि॒ष्कग्री॑वः सू॒नाना॑मेत्यग्र॒तः।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नास्य॑ क्ष॒त्ता नि॒ष्कग्री॑वः सू॒नाना॑मेत्यग्र॒तः।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
१४ नास्य क्षत्ता ...{Loading}...
Whitney
Translation
- A distributer (kṣattár) with necklaced neck goes not at the head
of his crates (? sūnā́) [of food], in whose etc. etc.
Notes
The meaning is not undisputed: Muir renders “charioteer” and “hosts”
(emending to sénā); Ludwig, “kṣattar” and “slaughter-bench.”
Griffith
No steward, golden-necklaced, goes before the meat-trays of the man. Within whose kingdom is detained, through want of sense, a Brahman’s dame.
पदपाठः
न। अ॒स्य॒। क्ष॒त्ता। नि॒ष्कऽग्री॑वः। सू॒नाना॑म्। ए॒ति॒। अ॒ग्र॒तः। यस्मि॑न्। रा॒ष्ट्रे। नि॒ऽरु॒ध्यते॑। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या। अचि॑त्त्या। १७.१४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) उसका (निष्कग्रीवः) सोने के कण्ठेवाला (क्षत्ता) द्वारपाल (सूनानाम्) ऐश्वर्यवाले पुरुषों के (अग्रतः) सन्मुख (न) नहीं (एति) जाता है। (यस्मिन् राष्ट्रे) जिस राज्य में…. ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वेदविद्या के नाश होने से मनुष्य निर्धन होकर उत्तम सेवक नहीं रख सकते ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १४−(न) निषेधे (अस्य) राज्ञः (क्षत्ता) तृन्तृचौ शंसिक्षदादिभ्यः०। उ० २।९४। इति क्षद संवृतौ−तृच्। द्वारपालः (निष्कग्रीवः) निष्क माने−घञ्। सुवर्णालङ्कारः कण्ठे यस्य सः (सूनानाम्) षुञो दीर्घश्च। उ० ३।१३। इति षु प्रसवैश्यर्ययोः−न। ऐश्वर्यवतां पुरुषाणाम् (एति) गच्छति (अग्रतः) अभिमुखम् ॥
१५ नास्य श्वेतः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
नास्य॑ श्वे॒तः कृ॑ष्ण॒कर्णो॑ धु॒रि यु॒क्तो म॑हीयते।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नास्य॑ श्वे॒तः कृ॑ष्ण॒कर्णो॑ धु॒रि यु॒क्तो म॑हीयते।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
१५ नास्य श्वेतः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- A white, black-eared [horse] does not make a show (mahīy),
harnessed to his [chariot-] pole, in whose etc. etc.
Notes
Griffith
No black-eared courser, white of hue, moves proudly, harnessed to his car, In whose dominion is detained, through want of sense, a Brahman’s dame.
पदपाठः
न। अ॒स्य॒। श्वे॒तः। कृ॒ष्ण॒ऽकर्णः॑। धु॒रि। यु॒क्तः। म॒ही॒य॒ते॒। यस्मि॑न्। रा॒ष्ट्रे। नि॒ऽरु॒ध्यते॑। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या। अचि॑त्त्या। १७.१५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) उसका (श्वेतः) श्वेत, (कृष्णकर्णः) श्यामकर्ण घोड़ा (धुरि) रथ के जूये में (युक्तः) जुता हुआ (न) नहीं (महीयते) बड़ाई पाता है। (यस्मिन् राष्ट्रे) जिस राज्य में…. ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वेदविद्याहीन पुरुषों के पास उत्तम घोड़े आदि नहीं होते ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १५−(न) निषेधे (अस्य) (श्वेतः) शुक्लवर्णः (कृष्णकर्णः) श्यामकर्णोऽश्वः (धुरि) धुर्व हिंसायाम्−क्विप्। यानमुखे (युक्तः) युगं गतः (महीयते) महीङ् पूजायाम्। पूज्यते स्तूयते ॥
१६ नास्य क्षेत्रे
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
नास्य॒ क्षेत्रे॑ पुष्क॒रिणी॑ ना॒ण्डीकं॑ जायते॒ बिस॑म्।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नास्य॒ क्षेत्रे॑ पुष्क॒रिणी॑ ना॒ण्डीकं॑ जायते॒ बिस॑म्।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
१६ नास्य क्षेत्रे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Not in his field [is] a lotus-pond, the bulb (? bísa) of the
bulb-bearing lotus is not produced (jan), in whose etc. etc.
Notes
Compare iv. 34. 5, and note; āṇḍī́ka and bísa are perhaps rather to
be rendered independently.
Griffith
No lily grows with oval bulbs, no lotus-pool is in his field, In whose dominion is detained, through senseless love, a Brahman’s dame.
पदपाठः
न। अ॒स्य॒। क्षेत्रे॑। पु॒ष्क॒रिणी॑। न। आ॒ण्डीक॑म्। जा॒य॒ते॒। बिस॑म्। यस्मि॑न्। रा॒ष्ट्रे। नि॒ऽरु॒ध्यते॑। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या। अचि॑त्त्या। १७.१६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) उसके (क्षेत्रे) खेत में (न) न (पुष्करिणी) पोषणवती शक्ति, और (न) न (आण्डीकम्) प्राप्ति योग्य और (बिसम्) बलदायक वस्तु (जायते) होती है (यस्मिन् राष्ट्रे) जिस राज्य में…. ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वेदविद्या के विना न खेती विद्या और न व्यापार विद्या प्रवृत्त होती है ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १६−(न) (अस्य) (क्षेत्रे) शस्योत्पत्तिस्थाने (पुष्करिणी) अ० ४।३४।५। पुष पुष्टौ−करन्। पुष्करं पोषणमस्त्यत्र, पुष्कर−इनि। पोषणवती शक्तिः (न) निषेधे (आण्डीकम्) ञमन्ताड् डः। उ० १।११४। इति अम गतौ−ड। अण्ड−ईकञ्। प्राप्तियोग्यम्। (जायते) उत्पद्यते (बिसम्) अ० ४।३४।५। बलकरं वस्तु ॥
१७ नास्मै पृश्निम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
नास्मै॒ पृश्निं॒ वि दु॑हन्ति॒ येऽस्या॒ दोह॑मु॒पास॑ते।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नास्मै॒ पृश्निं॒ वि दु॑हन्ति॒ येऽस्या॒ दोह॑मु॒पास॑ते।
यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
१७ नास्मै पृश्निम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Not for him do they who attend to (upa-ās) her milking milk out
the spotted [cow], in whose etc. etc.
Notes
In b, P. begins yò ‘syā, I.H. yé ‘syā.
Griffith
The men whose task it is to milk drain not the brindled cow for him, In whose dominion is detained, through senseless love, a Brahman’s dame.
पदपाठः
न। अ॒स्मै॒। पृश्नि॑म्। वि। दु॒ह॒न्ति॒। ये। अ॒स्याः॒। दोह॑म्। उ॒प॒ऽआस॑ते। यस्मि॑न्। रा॒ष्ट्रे। नि॒ऽरु॒ध्यते॑। ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या। अचि॑त्त्या। १७.१७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अस्मै) उस [राजा] के लिये (पृश्निम्) स्पर्शवती पृथिवी को [वे लोग] (वि) विशेष करके (न) नहीं (दुहन्ति) दुहते हैं (ये) जो (अस्याः) इस [भूमि] के (दोहम्) रस को (उपासते) सेवन करते हैं। (यस्मिन् राष्ट्रे) जिस राज्य में (ब्रह्मजाया) वेदविद्या (अचित्त्या) अचेतपन से (निरुध्यते) रोकी जाती है ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस राज्य में अधिकारी लोग वेदज्ञाता नहीं होते, वहाँ उस राज्य से राजा को लाभ नहीं पहुँचता ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १७−(न) निषेधे (अस्मै) राज्ञे (पृश्निम्) स्पर्शवतीं भूमिम् (वि) विशेषेण (दुहन्ति) प्रपूरयन्ति (ये) पुरुषाः (अस्याः) पृश्नेः (दोहम्) रसम् (उपासते) सेवन्ते। अन्यद् यथा म० १२ ॥
१८ नास्य धेनुः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
नास्य॑ धे॒नुः क॑ल्या॒णी नान॒ड्वान्त्स॑हते॒ धुर॑म्।
विजा॑नि॒र्यत्र॑ ब्राह्म॒णो रात्रिं॒ वस॑ति पा॒पया॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नास्य॑ धे॒नुः क॑ल्या॒णी नान॒ड्वान्त्स॑हते॒ धुर॑म्।
विजा॑नि॒र्यत्र॑ ब्राह्म॒णो रात्रिं॒ वस॑ति पा॒पया॑ ॥
१८ नास्य धेनुः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Not his [is] a beautiful milch-cow, [his] draft-ox endures not
the pole, where a Brahman stays a night miserably (pāpáyā) without a
wife (-jāni).
Notes
Ppp. reads for a na tatra dhenur dohena. ⌊See BR. vi. 1023.⌋
Griffith
His milch-cow doth not profit one, his draught-ox masters not the yoke, Wherever, severed from his wife, a Brahman spends the mourn- ful night.
पदपाठः
न। अ॒स्य॒। धे॒नुः। क॒ल्या॒णी। न। अ॒न॒ड्वान्। स॒ह॒ते॒। धुर॑म्। विऽजा॑निः। यत्र॑। ब्रा॒ह्म॒णः। रात्रि॑म्। वस॑ति। पा॒पया॑। १७.१८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ब्रह्मजाया
- मयोभूः
- अनुष्टुप्
- ब्रह्मजाया सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (न) न तो (अस्य) उसकी (धेनुः) दुधैल गौ (कल्याणी) कल्याणी [होती है] और (न) (अनड्वान्) छकड़ा ले चलनेवाला बैल (धुरम्) धुर वा जूये को (सहते) सहता है। (यत्र) यहाँ (विजानिः) विद्याभ्यास बिना (ब्राह्मणः) ब्राह्मण (रात्रिम्) रात को (पापया) कष्ट से (वसति) वसता है ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस राज्य में ब्राह्मण विद्याभ्यास नहीं करता, वहाँ दुधैल गौयें और बलवान् बैल आदि उपकारी पशु नहीं होते हैं ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १८−(न) निषेधे (अस्य) राज्ञः (धेनुः) दुग्धवती गौः (कल्याणी) मङ्गलवती (न) निषेधे (अनड्वान्) अ० ४।११।१। शकटवाही वृषभः (सहते) वहति (धुरम्) युगम्। भारम् (विजानिः) जाया−म० २। जायाया निङ्। पा० ५।४।१३४। वि+जायाशब्दस्य निङ्। विगता जाया विद्या यस्य सः। विगतविद्याभ्यासः (यत्र) यस्मिन् राष्ट्रे (ब्राह्मणः) वेदवेत्ता (रात्रिम्) निशाम् (वसति) वासं करोति (पापया) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति विभक्तेर्या। पापेन कष्टेन ॥