०१६ वृषरोगशमनम्

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Whitney subject
  1. Exorcism.
VH anukramaṇī

वृषरोगशमनम्।
१-११ विश्वामित्रः। एकवृषः। एकावसानं द्वैपदम्, १, ४, ५, ७-१० साम्नी उष्णिक्, २, ३ ,६, आसुरी अनुष्टुप्, ११ आसुरी गायत्री।

Whitney anukramaṇī

[Viśvāmitra.—ekādaśakam. ekavṛṣadevatyam. ⌊ekāvasānam.⌋ dvāipadam: 1, 4, 5, 7-10. sāmny uṣṇih; 2, 3, 6. āsury anuṣṭubh; 11. āsurī gāyatrī.]

Whitney

Comment

⌊Not metrical.⌋ Found also in Pāipp. viii. Referred to only in Kāuś. 29. 15, in company with the preceding hymn, as above reported.

Translations

Translated: Griffith, i. 212; Weber, xviii. 222.

Griffith

A charm for the increase of cattle

०१ यद्येकवृषोऽसि सृजारसोऽसि

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यद्ये॑कवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

०१ यद्येकवृषोऽसि सृजारसोऽसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. If thou art sole chief, let go; sapless art thou.
Notes

We have ekavṛṣá, lit. ‘one bull,’ in other passages (iv. 22; vi. 86),
but dvivṛṣá etc. only here, and they are plainly nothing but schematic
variations of it, not admitting of real translation. Perhaps the hymn is
directed against insect pests, through their leaders, whether few or
many. The definition of the Anukr. implies fourteen syllables: perhaps
as yádi ekavṛṣó ási sṛjá arasò ‘si (or sṛjā́ ’rasó asi). Ppp. has
yas for yadi in all the verses. ⌊See Weber’s note.⌋

Griffith

Bull! if thou art the single bull, beget. Thou hast no vital sap.

पदपाठः

यदि॑। ए॒क॒ऽवृ॒षः। असि॑। सृ॒ज। अ॒र॒सः। अ॒सि॒। १६.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • एकवृषः
  • विश्वामित्रः
  • साम्न्युष्णिक्
  • वृषरोगनाशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तू (एकवृषः) एक [परमेश्वर] के साथ ऐश्वर्यवान् (असि) है, [सुख] (सृज) उत्पन्न कर, [नहीं तो] तू (अरसः) निर्बल (असि) है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - एक परमात्मा के ज्ञान से मनुष्य संसार का उपकार कर सकता है, ईश्वरज्ञान के विना मनुष्यजन्म व्यर्थ है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(यदि) पक्षान्तरे (एकवृषः) वृषु प्रजननैश्ययोः−क। एकेन परमेश्वरेण सहैश्वर्य्यवान् (असि) (सृज) उत्पादय सुखम् [नोचेत्] इति शेषः (अरसः) असमर्थः (असि) ॥

०२ यदि द्विवृषोऽसि

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यदि॑ द्विवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

०२ यदि द्विवृषोऽसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. If thou art twice chief etc. etc.
Notes

Or perhaps rather ‘double chief,’ ’triple chief,’ etc., or ‘one of two,’
’ one of three,’ etc.

Griffith

यदि॑ द्विवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि ॥२॥

पदपाठः

यदि॑। द्वि॒ऽवृ॒षः। असि॑। सृ॒ज। अ॒र॒सः। अ॒सि॒। १६.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • एकवृषः
  • विश्वामित्रः
  • आसुर्यनुष्टुप्
  • वृषरोगनाशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तू (द्विवृषः) दो [परमात्मा और आत्मा] के साथ ऐश्वर्यवान् है…. म० ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य ईश्वर और आत्मा के ज्ञान से अपना बल बढ़ावे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(द्विवृषः) द्वाभ्यां परमात्मात्मभ्यां वृषो वृषा, ऐश्वर्यवान् ॥

०३ यदि त्रिवृषोऽसि

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यदि॑ त्रिवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. If thou art thrice chief etc. etc.
Notes
Griffith

यदि॑ त्रिवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि ॥३॥

पदपाठः

यदि॑। त्रि॒ऽवृ॒षः। असि॑। सृ॒ज। अ॒र॒सः। अ॒सि॒। १६.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • एकवृषः
  • विश्वामित्रः
  • आसुर्यनुष्टुप्
  • वृषरोगनाशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तू (त्रिवृषः) तीन [सत्त्व, रज, और तम गुणों] पर ऐश्वर्यवान् (असि) है…. म० १ ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सत्त्व, रज, तम तीनों गुणों के विज्ञान से उन्नति करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(त्रिवृषः) त्रिगुणसत्त्वरजस्तमोविज्ञाने समर्थः ॥

०४ यदि चतुर्वृषोऽसि

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यदि॑ चतुर्वृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

०४ यदि चतुर्वृषोऽसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. If thou art four times chief etc. etc.
Notes
Griffith

यदि॑ चतुर्वृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि ॥४॥

पदपाठः

यदि॑। च॒तुः॒ऽवृ॒षः। असि॑। सृ॒ज। अ॒र॒सः। अ॒सि॒। १६.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • एकवृषः
  • विश्वामित्रः
  • साम्न्युष्णिक्
  • वृषरोगनाशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तू (चतुर्वृषः) चार (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) के द्वारा समर्थ (असि) है…. म० १ ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य धर्म आदि चार प्रकार के पुरुषार्थों से वृद्धि करें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(चतुर्वृषः) चतुर्वर्गेण धर्मार्थकाममोक्षैः पुरुषार्थैः समर्थः ॥

०५ यदि पञ्चवृषोऽसि

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यदि॑ पञ्चवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

०५ यदि पञ्चवृषोऽसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. If thou art five times chief etc. etc.
Notes
Griffith

यदि॑ पञ्चवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि ॥५॥

पदपाठः

यदि॑। प॒ञ्च॒ऽवृ॒षः। असि॑। सृ॒ज। अ॒र॒सः। अ॒सि॒। १६.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • एकवृषः
  • विश्वामित्रः
  • साम्न्युष्णिक्
  • वृषरोगनाशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तू (पञ्चवृषः) पाँच [भूतों, पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश] पर ऐश्वर्यवान् (असि) है… म० ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पञ्च भूतों से यथावत् उपकार लेकर सुखी होवें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(पञ्चवृषः) पञ्चभूते क्षित्यप्तेजोवायुव्योमात्मकेषु समर्थः ॥

०६ यदि षड्वृषोऽसि

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यदि॑ षड्-वृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥६॥

०६ यदि षड्वृषोऽसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. If thou art six times chief etc. etc.
Notes
Griffith

यदि॑ षड्-वृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि ॥६॥

पदपाठः

यदि॑। ष॒ट्ऽवृ॒षः। असि॑। सृ॒ज। अ॒र॒सः। अ॒सि॒। १६.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • एकवृषः
  • विश्वामित्रः
  • आसुर्यनुष्टुप्
  • वृषरोगनाशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तू (षड्वृषः) छह [काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहङ्कार] पर समर्थ (असि) है… म० १ ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य काम क्रोध आदि षड् वर्ग को वश में रख कर उन्नति करें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(षड्वृषः) षड्वर्गे कामक्रोधलोभमोहमदमात्सर्येषु समर्थः ॥

०७ यदि सप्तवृषोऽसि

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यदि॑ सप्तवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

०७ यदि सप्तवृषोऽसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. If thou art seven times chief etc. etc.
Notes
Griffith

यदि॑ सप्तवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि ॥७॥

पदपाठः

यदि॑। स॒प्त॒ऽवृ॒षः। असि॑। सृ॒ज। अ॒र॒सः। अ॒सि॒। १६.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • एकवृषः
  • विश्वामित्रः
  • साम्न्युष्णिक्
  • वृषरोगनाशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तू (सप्तवृषः) सात [ऋषियों, पाँच ज्ञानेन्द्रिय मन और बुद्धि] पर समर्थ (असि) है… म० ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य जितेन्द्रिय होकर आनन्द प्राप्त करें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(सप्तवृषः) सप्त ऋषयः षडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी−निरु० १२।३७। सप्त ऋषिषु पञ्चज्ञानेन्द्रियमनोबुद्धिषु समर्थः ॥

०८ यद्यष्टवृषोऽसि सृजारसोऽसि

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यद्य॑ष्टवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

०८ यद्यष्टवृषोऽसि सृजारसोऽसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. If thou art eight times chief etc. etc.
Notes
Griffith

यद्य॑ष्टवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि ॥८॥

पदपाठः

यदि॑। अ॒ष्ट॒ऽवृ॒षः। असि॑। सृ॒ज। अ॒र॒सः। अ॒सि॒। १६.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • एकवृषः
  • विश्वामित्रः
  • साम्न्युष्णिक्
  • वृषरोगनाशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तू (अष्टवृषः) आठ [योग के अङ्गों, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि] में समर्थ (असि) है…. म० १ ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य योग के आठों अङ्गों में अभ्यास करने से अशुद्धि का नाश और ज्ञान का प्रकाश करके विवेक प्राप्त करें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(अष्टवृषः) यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि−योगदर्शने २।२९। इत्युक्तेषु अष्टयोगाङ्गेषु समर्थः ॥

०९ यदि नववृषोऽसि

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यदि॑ नववृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. If thou art nine times chief etc. etc.
Notes
Griffith

यदि॑ नववृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि ॥९॥

पदपाठः

यदि॑। न॒व॒ऽवृ॒षः। असि॑। सृ॒ज। अ॒र॒सः। अ॒सि॒। १६.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • एकवृषः
  • विश्वामित्रः
  • साम्न्युष्णिक्
  • वृषरोगनाशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तू (नववृषः) नव [अर्थात् नव द्वारवाले शरीर] से ऐश्वर्यवान् (असि) है…. म० १ ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शरीर में दो कान, दो आँखें, दो नथने, एक मुख, एक पायु, एक उपस्थेन्द्रिय नव छिद्र वा द्वार हैं, यथा, नवद्वारपुरे देही−गीता अ० ५ श्लो० १३। मनुष्य शरीर की शुद्धि रखने और उससे कष्ट सहने से ऐश्वर्यवान् हों ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(नववृषः) नवद्वारपुरेण शरीरेण ऐश्वर्यवान्। नवद्वारपुरे देही−गीता, अ० ५ श्लो० १३। द्वे श्रोत्रे, चक्षुषी नासिके च मुखमेकमिति ऊर्ध्वस्थानि सप्त, द्वे पायूपस्थेऽधः, इति नव छिद्ररूपाणि शरीरद्वाराणि ॥

१० यदि दशवृषोऽसि

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यदि॑ दशवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

१० यदि दशवृषोऽसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. If thou art ten times chief etc. etc.
Notes
Griffith

यदि॑ दशवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि ॥१०॥

पदपाठः

यदि॑। द॒श॒ऽवृ॒षः। असि॑। सृ॒ज। अ॒र॒सः। अ॒सि॒। १६.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • एकवृषः
  • विश्वामित्रः
  • साम्न्युष्णिक्
  • वृषरोगनाशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तू (दशवृषः) दस [दस बल अर्थात् दान, शील, क्षमा, वीर्य, ध्यान, प्रज्ञा, सेनायें, उपाय, दूत और ज्ञान] से ऐश्वर्यवान् (असि) है, (सृज) [सुख] उत्पन्न कर, [नहीं तो] तू (अरसः) निर्बल (असि) है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्वोक्त दस प्रकार के बलों के अनुष्ठान से ऐश्वर्यवान् होवें ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(दशवृषः) दशभिर्बलैरैश्वर्यवान्। दानशीलक्षमावीर्यध्यानप्रज्ञा बलानि च। उपायः प्रणिधिर्ज्ञानं दशबुद्धिबलानि च−इति दश बलानि ॥

११ यद्येकादशोऽसि सोऽपोदकोऽसि

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यद्ये॑काद॒शोऽसि॒ सोऽपो॑दकोऽसि ॥

११ यद्येकादशोऽसि सोऽपोदकोऽसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. If thou art eleven-fold, then thou art waterless.
Notes

All the elided a’s must be restored in this verse to make out the
fifteen syllables called for by the Anukr. Ppp. has yūpodako ‘si sṛjā
’raso ‘si
.

Griffith

यद्ये॑काद॒शोऽसि॒ सोऽपो॑दको ऽसि ॥११॥

पदपाठः

यदि॑। ए॒का॒द॒शः। असि॑। सः। अप॑ऽउदकः। अ॒सि॒। १६.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • एकवृषः
  • विश्वामित्रः
  • आसुरी
  • वृषरोगनाशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तू (एकादशः) ग्यारहवाँ [पूर्वोक्त दस से भिन्न पुरुषार्थहीन] (असि) है, (सः) वह तू (अपोदकः) वृद्धि सामर्थ्य रहित (असि) है ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पूर्वोक्त दस मन्त्रों में कहे पुरुषार्थों को नहीं करता, वह पुरुषार्थहीन अपनी और दूसरों की वृद्धि नहीं कर सकता ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(एकादशः) तस्य पूरणे डट्। पा० ५।२।४८। इति एकादशन्−डट्। एकादशानां पूरणः। पूर्वमन्त्रोक्तेभ्यो दशभ्यो भिन्नः पुरुषार्थहीनः (असि) (सः) स त्वम् (अपोदकः) अपगतमुदकं सेचनसामर्थ्यं यस्मात् सः। अरसः। निर्वीर्यः ॥