०१५ रोगोपशमनम्

०१५ रोगोपशमनम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. For exorcism: to a plant.
VH anukramaṇī

रोगोपशमनम्।
१-११ विश्वामित्रः। मधुला वनस्पतिः। अनुष्टुप्, ४ पुरस्ताद्बृबती, ५,७,९ भुरिक्।

Whitney anukramaṇī

[Viśvāmitra.—ekādaśakam. vānasfatyam. ānuṣṭubham: 4. purastādbṛhatī; 5, 7, 8, 9. bhurij.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. viii. Used by Kāuś. (19. 1), with several other hymns, for the healing of distempered cattle; and its verses and those of hymn 16 are referred to as madhulāvṛṣalin̄gāḥ again in 29. 15, following the use of hymn 13.

Translations

Translated: Griffith, i. 211; Weber, xviii. 220.

Griffith

A charm for general prosperity

०१ एका च

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

एका॑ च मे॒ दश॑ च मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

०१ एका च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both one of me and ten of me [are] the exorcisers (apavaktár), O
    herb; thou born of right (ṛtá), thou rich in right, mayest thou,
    honeyed (madhulā́), make honey for me.
Notes

Ppp. omits throughout the second me in a, and reads for d
madhu tvā madhulā karat. The Anukr. says madhulām oṣadhīm astāut.

Griffith

Plant! I have those who shall avert the threatened danger, ten and one. O sacred Plant, produced aright! make sweetness, sweet thy self, for me.

पदपाठः

‍एका॑। च॒। मे॒। दश॑। च॒। मे॒। अ॒प॒ऽव॒क्तारः॑। ओ॒ष॒धे॒। ऋत॑ऽजाते। ऋत॑ऽवारि। मधु॑। मे॒। म॒धु॒ला। क॒रः॒। १५.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मधुलौषधिः
  • विश्वामित्रः
  • अनुष्टुप्
  • रोगोपशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विघ्नों के हटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (एका) एक [संख्या] (च च) और (मे) मेरे लिये (दश) दस (अपवक्तारः) निन्दा करनेवाले व्यवहार हैं, (ऋतजाते) हे सत्य में उत्पन्न हुयी, (ऋतावरि) हे सत्यशील, (ओषधे) हे तापनाशक शक्ति परमेश्वर ! (मधुला) ज्ञान वा मिठास देनेवाली तू (मे) मेरे लिये (मधु) ज्ञान वा मिठास (करः) कर ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १–० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

०२ द्वे च

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

द्वे च॑ मे विंश॒तिश्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

०२ द्वे च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both two of me and twenty of me [are] etc. etc.
Notes
Griffith

Twenty and two, O Plant, have I who shall avert the threatened ill. O sacred Plant, produced aright! make sweetness, sweet thyself, for me.

पदपाठः

द्वे। इति॑। च॒। मे॒। विं॒श॒तिः। च॒। मे॒। । अ॒प॒ऽव॒क्तारः॑। ओ॒ष॒धे॒। ऋत॑ऽजाते। ऋत॑ऽवारि। मधु॑। मे॒। म॒धु॒ला। क॒रः॒। १५.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मधुलौषधिः
  • विश्वामित्रः
  • अनुष्टुप्
  • रोगोपशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विघ्नों के हटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (द्वे) दो (च च) और (मे) मेरे लिये (विंशतिः) बीस… म० १ ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १–० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

०३ तिस्रश्च मे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ति॒स्रश्च॑ मे त्रिं॒शच्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

०३ तिस्रश्च मे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both three of me and thirty of me [are] etc. etc.
Notes
Griffith

ति॒स्रश्च॑ मे त्रिं॒शच्च॑ मे ऽपव॒क्तार॑ ओषधे ।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥३॥

पदपाठः

ति॒स्रः। च॒। मे॒। त्रिं॒शत्। च॒। मे॒। च॒। मे॒। अ॒प॒ऽव॒क्तारः॑। ओ॒ष॒धे॒। ऋत॑ऽजाते। ऋत॑ऽवारि। मधु॑। मे॒। म॒धु॒ला। क॒रः॒। १५.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मधुलौषधिः
  • विश्वामित्रः
  • अनुष्टुप्
  • रोगोपशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विघ्नों के हटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (तिस्रः) तीन (च च) और (मे) मेरे लिये (त्रिंशत्) तीस… मं० १ ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १–० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

०४ चतस्रश्च मे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

चत॑स्रश्च मे चत्वारिं॒शच्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

०४ चतस्रश्च मे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both four of me and forty of me [are] etc. etc.
Notes
Griffith

चत॑स्रश्च मे चत्वारिं॒शच्च॑ मे ऽपव॒क्तार॑ ओषधे ।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥४॥

पदपाठः

चत॑स्रः। च॒। मे॒। च॒त्वा॒रिं॒शत्। च॒। मे॒। अ॒प॒ऽव॒क्तारः॑। ओ॒ष॒धे॒। ऋत॑ऽजाते। ऋत॑ऽवारि। मधु॑। मे॒। म॒धु॒ला। क॒रः॒। १५.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मधुलौषधिः
  • विश्वामित्रः
  • पुरस्ताद्बृहती
  • रोगोपशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विघ्नों के हटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (चतस्रः) चार (च च) और (मे) मेरे लिये (चत्वारिंशत्) चालीस… म० १ ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १–० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

०५ पञ्च च

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

पञ्च॑ च मे पञ्चा॒शच्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

०५ पञ्च च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both five of me and fifty of me [are] etc. etc.
Notes

O.D. accent páñca; the rest, against the usual way, pañcá, and our
edition follows the latter.

Griffith

प॒ञ्च च॑ मे पञ्चा॒शच्च॑ मे ऽपव॒क्तार॑ ओषधे ।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥५॥

पदपाठः

पञ्च॑। च॒। मे॒। प॒ञ्चा॒शत्। च॒। मे॒। अ॒प॒ऽव॒क्तारः॑। ओ॒ष॒धे॒। ऋत॑ऽजाते। ऋत॑ऽवारि। मधु॑। मे॒। म॒धु॒ला। क॒रः॒। १५.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मधुलौषधिः
  • विश्वामित्रः
  • भुरिगनुष्टुप्
  • रोगोपशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विघ्नों के हटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (पञ्च) पाँच (च च) और (मे) मेरे लिये (पञ्चाशत्) पचास… म० १ ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १–० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

०६ षट्च मे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

षट्च॑ मे ष॒ष्टिश्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

०६ षट्च मे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both six of me and sixty of me [are] etc. etc.
Notes

This verse ought to be reckoned by the Anukr. as nicṛt, not less than
5 etc. as bhurij.

Griffith

षट् च॑ मे ष॒ष्टिश्च॑ मे ऽपव॒क्तार॑ ओषधे ।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥६॥

पदपाठः

षट्। च॒। मे॒। ष॒ष्टिः। च॒। मे॒। अ॒प॒ऽव॒क्तारः॑। ओ॒ष॒धे॒। ऋत॑ऽजाते। ऋत॑ऽवारि। मधु॑। मे॒। म॒धु॒ला। क॒रः॒। १५.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मधुलौषधिः
  • विश्वामित्रः
  • अनुष्टुप्
  • रोगोपशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विघ्नों के हटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (षट्) छह (च च) और (मे) मेरे लिये (षष्टिः) साठ… म० १ ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १–० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

०७ सप्त च

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स॒प्त च॑ मे सप्त॒तिश्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

०७ सप्त च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both seven of me and seventy of me [are] etc. etc.
Notes
Griffith

स॒प्त च॑ मे सप्त॒तिश्च॑ मे ऽपव॒क्तार॑ ओषधे ।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥७॥

पदपाठः

स॒प्त। च॒। मे॒। स॒प्त॒तिः। च। मे॒। अ॒प॒ऽव॒क्तारः॑। ओ॒ष॒धे॒। ऋत॑ऽजाते। ऋत॑ऽवारि। मधु॑। मे॒। म॒धु॒ला। क॒रः॒। १५.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मधुलौषधिः
  • विश्वामित्रः
  • भुरिगनुष्टुप्
  • रोगोपशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विघ्नों के हटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (सप्त) सात (च च) और (मे) मेरे लिये (सप्ततिः) सत्तर… म० १ ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १–० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

०८ अष्ट च

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒ष्ट च॑ मेऽशी॒तिश्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

०८ अष्ट च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both eight of me and eighty of me [are] etc. etc.
Notes

The reckoning of this verse as bhurij implies the (improper)
restoration of the elided a of aśītís.

Griffith

अ॒ष्ट च॑ मेऽशी॒तिश्च॑ मे ऽपव॒क्तार॑ ओषधे ।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥८॥

पदपाठः

अ॒ष्ट। च॒। मे॒। अ॒शी॒तिः। च॒। मे॒। अ॒प॒ऽव॒क्तारः॑। ओ॒ष॒धे॒। ऋत॑ऽजाते। ऋत॑ऽवारि। मधु॑। मे॒। म॒धु॒ला। क॒रः॒। १५.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मधुलौषधिः
  • विश्वामित्रः
  • अनुष्टुप्
  • रोगोपशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विघ्नों के हटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (अष्ट) आठ (च च) और (मे) मेरे लिये (अशीतिः) अस्सी… म० १ ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १–० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

०९ नव च

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

नव॑ च मे नव॒तिश्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

०९ नव च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both nine of me and ninety of me [are] etc. etc.
Notes
Griffith

नव॑ च मे नव॒तिश्च॑ मे ऽपव॒क्तार॑ ओषधे ।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥९॥

पदपाठः

नव॑। च॒। मे॒। न॒व॒तिः। च। मे॒। अ॒प॒ऽव॒क्तारः॑। ओ॒ष॒धे॒। ऋत॑ऽजाते। ऋत॑ऽवारि। मधु॑। मे॒। म॒धु॒ला। क॒रः॒। १५.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मधुलौषधिः
  • विश्वामित्रः
  • भुरिगनुष्टुप्
  • रोगोपशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विघ्नों के हटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (नव) नौ (च च) और (मे) मेरे लिये (नवतिः) नब्बे… म० १ ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १–० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

१० दश च

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

दश॑ च मे श॒तं च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

१० दश च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both ten of me and a hundred of me [are] etc. etc.
Notes
Griffith

दश॑ च मे श॒तं च मे॑ ऽपव॒क्तार॑ ओषधे ।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥१०॥

पदपाठः

दश॑। च॒। मे॒। श॒तम्। च॒। मे॒। अ॒प॒ऽव॒क्तारः॑। ओ॒ष॒धे॒। ऋत॑ऽजाते। ऋत॑ऽवारि। मधु॑। मे॒। म॒धु॒ला। क॒रः॒। १५.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मधुलौषधिः
  • विश्वामित्रः
  • अनुष्टुप्
  • रोगोपशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विघ्नों के हटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (दश) दस (च च) और (मे) मेरे लिये (शतम्) सौ… म० १ ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १–० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

११ शतं च

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

श॒तं च॑ मे स॒हस्रं॑ चापव॒क्तार॑ ओषधे।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

११ शतं च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both a hundred of me and a thousand [are] the exorcisers, O herb;
    etc. etc.
Notes

Without any regard to the connection between this hymn and the next, the
third anuvāka is made to end here, containing 5 hymns and 57 verses;
the quoted Anukr. says accordingly tisṛbhis tṛtīyaḥ.

Here ends also the eleventh prapāṭhaka.

Griffith

श॒तं च॑ मे स॒हस्रं॑ चापव॒क्तार॑ ओषधे ।
ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥११॥

पदपाठः

श॒तम्। च॒। मे॒। स॒हस्र॑म्। च॒। अ॒प॒ऽव॒क्तारः॑। ओ॒ष॒धे॒। ऋत॑ऽजाते। ऋत॑ऽवरि। मधु॑। मे॒। म॒धु॒ला। क॒रः॒। १५.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मधुलौषधिः
  • विश्वामित्रः
  • अनुष्टुप्
  • रोगोपशमन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विघ्नों के हटाने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे लिये (शतम्) सौ (च च) और (सहस्रम्) सहस्र (अपवक्तारः) निन्दक व्यवहार हैं, (ऋतजाते) हे सत्य में उत्पन्न हुई (ऋतावरी) हे सत्यशील, (ओषधे) हे तापनाशक शक्ति परमेश्वर ! (मधुला) ज्ञान वा मिठास देनेवाली तू (मे) मेरे लिये (मधु) ज्ञान वा मिठास (करः) कर ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान ॥११॥ इति तृतियोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−शब्दार्थः प्रथममन्त्रेण समानः सुगमश्च ॥