०१४ कृत्यापरिहरणम् ...{Loading}...
Whitney subject
- Against witchcraft: with a plant.
VH anukramaṇī
कृत्यापरिहरणम्।
१-१३ शुक्रः। वनस्पतिः, कृत्यापरिहरणम्। अनुष्टुप्, ३,५,१२ भुरिक्, ८ त्रिपदा विराट्, १० निचृद्बृहती, ११ त्रिपदा साम्नी त्रिष्टुप्, १३ स्वराट्।¬
Whitney anukramaṇī
[śukra.—trayodaśakam. vānaspatyam. kṛtyāpratiharaṇam. ānuṣṭubham: 8, 5, 12. bhurij; 8. 3-p. virāj; 10. nicṛd bṛhatī; 11. 3-p. sāmnī triṣṭubh; 13. svarāj.]
Whitney
Comment
⌊Part of verse 8 is prose.⌋ Found also (except vss. 3, 5, which are wanting, and 9, 13, which occur in ii.) in Pāipp. vii. (in the order 1, 2, 8, 12, 4, 10, 11, 7, 6). Quoted in Kāuś. (39. 7) with ii. 11 and several other hymns, in a ceremony against witchcraft; vs. 9 also separately in 39. 11. Not noticed in Vāit.
Translations
Translated: Zimmer, p. 396; Grill, 26, 147; Griffith, i. 210; Bloomfield, 77, 429; Weber, xviii. 216.
Griffith
A charm against witchcraft
०१ सुपर्णस्त्वान्वविन्दत्सूकरस्त्वाखनन्नसा दिप्सौषधे
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
सु॑प॒र्णस्त्वान्व॑विन्दत्सूक॒रस्त्वा॑खनन्न॒सा।
दिप्सौ॑षधे॒ त्वं दिप्स॑न्त॒मव॑ कृत्या॒कृतं॑ जहि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सु॑प॒र्णस्त्वान्व॑विन्दत्सूक॒रस्त्वा॑खनन्न॒सा।
दिप्सौ॑षधे॒ त्वं दिप्स॑न्त॒मव॑ कृत्या॒कृतं॑ जहि ॥
०१ सुपर्णस्त्वान्वविन्दत्सूकरस्त्वाखनन्नसा दिप्सौषधे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- An eagle (suparṇá) discovered thee; a hog dug thee with his snout;
seek thou to injure, O herb, him that seeks to injure; smite down the
witchcraft-maker.
Notes
We have had the first half-verse already, as ii. 27. 2 a, b. Ppp.
has, for d, prati kṛtyākṛto daha.
Griffith
An eagle found thee: with his snout a wild boar dug thee from the earth. Harm thou, O Plant, the mischievous, and drive the sorcerer away.
पदपाठः
सु॒ऽप॒र्णः। त्वा॒। अनु॑। अ॒वि॒न्द॒त्। सू॒क॒रः। त्वा॒। अ॒ख॒न॒त्। न॒सा। दिप्स॑। ओ॒ष॒धे॒। त्वम्। दिप्स॑न्तम्। अव॑। कृ॒त्या॒ऽकृत॑म्। ज॒हि॒। १४.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ओषधिः
- शुक्रः
- अनुष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सुपर्णः) सुन्दर पक्षवाले वा शीघ्रगामी [गरुड़, गिद्ध आदि पक्षी के समान दूरदर्शी पुरुष] ने (त्वा) तुझ को, (अनु=अन्विष्य) ढूँढ़ कर (अविन्दत्) पाया है, (सूकरः) सूकर [सुअर पशु के समान तीव्र बुद्धि और बलवान् पुरुष] ने (त्वा) तुझको (नसा) नासिका से (अखनत्) खोदा है। (ओषधे) हे तापनाशक पुरुष (त्वम्) तू (दिप्सन्तम्) मारने की इच्छा करनेवाले को (दिप्स) मारना चाह, और (कृत्याकृतम्) हिंसाकारी पुरुष को (अव जहि) मार डाल ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - गिद्ध मोर आदि पक्षी बड़े तीव्रदृष्टि होते हैं, और सूअर एक बलवान् तीव्रबुद्धि पशु अपनी नासिका से खाद्य तृण को भूमि से खोद कर खा जाता है। इसी प्रकार दूरदर्शी पुरुषार्थी बलवान् पुरुष अपने शत्रुओं को खोज कर नाश करता है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−अस्य पूर्वार्धो व्याख्यातः−अ० २।२७।२। (सुपर्णः) सुपर्णाः सुपतना आदित्यरश्मयः−निरु० ३।१२। तथा ४।३। सुपतनः। शीघ्रगामी। गरुडः (त्वा) त्वाम् (अनु) अन्विष्य (अविन्दत्) अलभत (सूकरः) सु+कृ विक्षेपे वा कॄञ् विज्ञाने−अप्। वराहः। तद्वत्तीव्रबुद्धिर्बलवान् वा (त्वा) (अखनत्) विदारितवान् (नसा) नासिकया (दिप्स) अ० ४।३६।१। दम्भितुं हिंसितुमिच्छ (ओषधे) हे तापनाशक पुरुष (त्वम्) (दिप्सन्तम्) हिंसितुमिच्छन्तम् (अव) निश्चये। अनादरे (कृत्याकृतम्) अ० ४।१७।४। हिंसाकारिणम् (जहि) नाशय ॥
०२ अव जहि
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अव॑ जहि यातु॒धाना॒नव॑ कृत्या॒कृतं॑ जहि।
अथो॒ यो अ॒स्मान्दिप्स॑ति॒ तमु॒ त्वं ज॑ह्योषधे ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अव॑ जहि यातु॒धाना॒नव॑ कृत्या॒कृतं॑ जहि।
अथो॒ यो अ॒स्मान्दिप्स॑ति॒ तमु॒ त्वं ज॑ह्योषधे ॥
०२ अव जहि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Smite down the sorcerers, smite down the witchcraft-maker; then,
whoever seeks to injure us, him do thou smite, O herb.
Notes
Ppp. omits, probably by oversight, the first half-verse.
Griffith
Beat thou the Yatudhanas back, drive thou away the sorcerer; And chase afar, O Plant, the man who fain would do us injury.
पदपाठः
अव॑। ज॒हि॒। या॒तु॒ऽधाना॑न्। अव॑। कृ॒त्या॒ऽकृत॑म्। ज॒हि॒। अथो॒ इति॑। यः। अ॒स्मान्। दिप्स॑ति। तम्। ऊं॒ इति॑। त्वम्। ज॒हि॒। ओ॒ष॒धे॒। १४.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- ओषधिः
- शुक्रः
- अनुष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यातुधानान्) पीड़ा देनेवालों को (अव जहि) मार डाले, और (कृत्याकृतम्) हिंसा करनेवाले को (अव जहि) नाश करदे। (अथो) और भी (यः) जो (अस्मान्) हमें (दिप्सति) मारना चाहता है (तम् उ) उसे भी (त्वम्) तू (ओषधे) हे अन्न आदि ओषधि के समान तापनाशक ! (जहि) नाश कर ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य शुभ गुण प्राप्त करके दुर्गुणों का नाश करे, जैसे अन्नसेवन से भूख का नाश होता है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(अव जहि) विनाशय (यातुधानान्) अ० १।७।१। यातनाप्रदान् (कृत्याकृतम्) अ० ४।१७।४। हिंसाकारिणम् (अथो) अपि च (यः) शत्रुः (अस्मान्) धार्मिकान् (दिप्सति) दम्भितुं हिंसितुमिच्छति (तम् उ) तमपि (त्वम्) (जहि) (ओषधे) हे अन्नवत्तापनाशक मनुष्य ॥
०३ रिश्यस्येव परीशासम्
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रि॑श्यस्येव परीशा॒सं प॑रि॒कृत्य॒ परि॑ त्व॒चः।
कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृते॑ देवा नि॒ष्कमि॑व॒ प्रति॑ मुञ्चत ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
रि॑श्यस्येव परीशा॒सं प॑रि॒कृत्य॒ परि॑ त्व॒चः।
कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृते॑ देवा नि॒ष्कमि॑व॒ प्रति॑ मुञ्चत ॥
०३ रिश्यस्येव परीशासम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Having cut around out of [his] skin a strip (pariśāsá), as it
were of a stag, fasten, O gods, upon the witchcraft-maker the
witchcraft, like a necklace.
Notes
That is, apparently, with a thong cut out of his own skin, like a
buck-skin thong. As usual, the mss. vary in a between ṛ́śy- and
ríśy-, E. even reading ríṣy-, but the majority have ṛ́śy-, which
is undoubtedly the true text, and should be restored in our edition.
Three times, in this hymn (vss. 3, 5, 12), the Anukr. insists on
regarding iva as dissyllabic, and therefore reckons the verses as
bhurij.
Griffith
As ’twere a strip cut round from skin of a white-footed an- telope, Bind, like a golden chain, O God, his witchcraft on the sorcerer.
पदपाठः
रिश्य॑स्यऽइव। प॒रि॒ऽशा॒सनम्। प॒रि॒ऽकृत्य॑। परि॑। त्व॒चः। कृ॒त्याम्। कृ॒त्या॒ऽकृते॑। दे॒वाः॒। नि॒ष्कम्ऽइ॑व। प्रति॑। मु॒ञ्च॒त॒। १४.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यापरिहरणम्
- शुक्रः
- अनुष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (रिश्यस्य) हिंसक के (परिशासम्) हिंसासामर्थ्य को (इव) अवश्य (त्वचः परि) उसके चर्म वा शरीर से (परिकृत्य) काट डालकर, (देवाः) हे विद्वानों ! (कृत्याकृते) हिंसा करनेवाले के लिये (कृत्याम्) हिंसा को (निष्कम् इव) तलछट के समान (प्रति मुञ्चत) फेंक दो ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य दुष्कर्म को मूलसहित निकम्मी वस्तु के समान त्यागें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(रिश्यस्य) रिश हिंसायाम्−क्यप्। हिंसकस्य (इव) अवधारणे (परिशासम्) शसु हिंसायाम्−घञ्। हिंसासामर्थ्यम् (परिकृत्य) कृती छेदने−ल्यप्। परिच्छिद्य (परि) सर्वतः (त्वचः) चर्मणः। शरीरादित्यर्थः (कृत्याम्) हिंसाम् (कृत्याकृते) हिंसाकारिणे (देवाः) हे विद्वांसः (निष्कम्) नौ सदेर्डि च। उ० ३।४५। इति षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु−कन्, सच डित्। निषदनम्। किट्टम् (इव) यथा (प्रति) प्रतिकूलम् (मुञ्चत) त्यजत ॥
०४ पुनः कृत्याम्
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पुनः॑ कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृते॑ हस्त॒गृह्य॒ परा॑ णय।
स॑म॒क्षम॑स्मा॒ आ धे॑हि॒ यथा॑ कृत्या॒कृतं॒ हन॑त् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पुनः॑ कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृते॑ हस्त॒गृह्य॒ परा॑ णय।
स॑म॒क्षम॑स्मा॒ आ धे॑हि॒ यथा॑ कृत्या॒कृतं॒ हन॑त् ॥
०४ पुनः कृत्याम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Lead thou away the witchcraft back to the witchcraft-maker, grasping
its hand; set it straight before (samakṣám) him, that it may smite the
witchcraft-maker.
Notes
Ppp. has, for b, pratiharaṇaṁ na harāmasi (our 8 c); but in
book ii. it has the whole half-verse just as it stands here.
Griffith
Take thou his sorcery by the hand, and to the sorcerer lead it back. Lay it before him, face to face, that it may kill the sorcerer.
पदपाठः
पुनः॑। कृ॒त्याम्। कृ॒त्या॒ऽकृते॑। ह॒स्त॒ऽगृह्य॑। परा॑। न॒य॒। स॒म्ऽअ॒क्षम्। अ॒स्मै॒। आ। धे॒हि॒। यथा॑। कृ॒त्या॒ऽकृत॑म्। हन॑त्। १४.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यापरिहरणम्
- शुक्रः
- अनुष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कृत्याम्) हिंसा को (कृत्याकृते) हिंसाकारी के लिये (हस्तगृह्य) हाथ में लेकर (पुनः) अवश्य (परा नय) दूर लेजा। (अस्मै) इस पुरुष के लिये (समक्षम्) सामने (आ धेहि) रख दे, (यथा) जिससे [वह पुरुष] (कृत्याकृतम्) हिंसाकारी को (हनत्) मारे ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य हिंसा आदि कर्मों को इस प्रकार त्याग दे, जैसे उपद्रवी को हाथ पकड़ कर निकाल देते हैं ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(पुनः) अवधारणे (कृत्याम्) हिंसाम् (कृत्याकृते) हिंसाकारिणे (हस्तगृह्य) नित्यं हस्ते पाणावुपयमने। पा० १।४।७७। इति हस्तस्य गतित्वे सति ल्यप्। हस्ते गृहीत्वा (परा) दूरे (नय) प्रेरय (समक्षम्) अव्ययीभावे शरत्प्रभृतिभ्यः। पा० ५।४।१०७। इति सम्+अक्षि−टच्। अक्ष्णोः समीपे। सन्मुखे (अस्मै) पुरुषाय (आ धेहि) स्थापय (यथा) यस्मात् (कृत्याकृतम्) हिंसाकारिणम् (हनत्) हन्यात् ॥
०५ कृत्याः सन्तु
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कृ॒त्याः स॑न्तु कृत्या॒कृते॑ श॒पथः॑ शपथीय॒ते।
सु॒खो रथ॑ इव वर्ततां कृ॒त्या कृ॑त्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कृ॒त्याः स॑न्तु कृत्या॒कृते॑ श॒पथः॑ शपथीय॒ते।
सु॒खो रथ॑ इव वर्ततां कृ॒त्या कृ॑त्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥
०५ कृत्याः सन्तु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Be the witchcrafts for the witchcraft-maker, the curse for him that
curses; like an easy chariot let the witchcraft roll back to the
witchcraft-maker.
Notes
Griffith
Back on the wizard fall his craft, upon the curser light his curse! Let witchcraft, like a well-naved car, roll back upon the sorcerer.
पदपाठः
कृ॒त्याः। स॒न्तु॒। कृ॒त्या॒ऽकृते॑। श॒पथः॑। श॒प॒थि॒ऽय॒ते। सु॒खः। रथः॑ऽइव। व॒र्त॒ता॒म्। कृ॒त्या। कृ॒त्या॒ऽकृत॑म्। पुनः॑। १४.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यापरिहरणम्
- शुक्रः
- अनुष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कृत्याः) शत्रुनाशक सेनायें (कृत्याकृते) हिंसाकारी के लिये (सन्तु) होवें, और (शपथः) दुर्वचन (शपथीयते) दुर्वचन बोलनेवाले पुरुष के से आचरणवाले को [होवे], (कृत्या) शत्रुनाशक सेना (कृत्याकृतम्) हिंसाकारी पर (पुनः) अवश्य (वर्तताम्) घूमे, (इव) जैसे (सुखः) अच्छा बना हुआ (रथः) रथ [घूमता है] ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य दोषों के त्यागने का शीघ्र उपाय करे ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(कृत्याः) शत्रुनाशिकाः सेनाः (सन्तु) भवन्तु (कृत्याकृते) हिंसाकारिणे (शपथः) दुर्वचनम् (शपथीयते) कर्तुः क्यङ् सलोपश्च। पा० ३।१।११। इति शपथिन्−क्यङ्, छान्दसं परस्मैपदम्। शपथिवदाचारणं कुर्वते (सुखः) सु+खनु विदारणे−ड। सुखं कस्मात् सु हितं खेभ्यः खं पुनः खनतेः−निरु०। ३।१३। सुख−अर्शआद्यच्। सुनिर्मितः (रथः) यानम् (इव) यथा (वर्तताम्) वर्तनेन गच्छतु (कृत्या) शत्रुनाशिका सेना (कृत्याकृतम्) हिंसाकारिणम् (पुनः) अवश्यम् ॥
०६ यदि स्त्री
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यदि॒ स्त्री यदि॑ वा॒ पुमा॑न्कृ॒त्यां च॒कार॑ पा॒प्मने॑।
तामु॒ तस्मै॑ नयाम॒स्यश्व॑मिवाश्वाभि॒धान्या॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यदि॒ स्त्री यदि॑ वा॒ पुमा॑न्कृ॒त्यां च॒कार॑ पा॒प्मने॑।
तामु॒ तस्मै॑ नयाम॒स्यश्व॑मिवाश्वाभि॒धान्या॑ ॥
०६ यदि स्त्री ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If woman, or if man, hath made witchcraft in order to evil, it we
conduct unto him, like a horse by a horse-halter.
Notes
The Anukr. doubtless scans d as áśvam ivā ’śvābhidhā́nyā, instead
of áśvam ’va ’śvābhidhā́niā, as it should be.
Griffith
Whoso, for other’s harm hath dealt-woman or man-in magic arts, To him we lead the sorcery back, even as a courser with a rope.
पदपाठः
यदि॑। स्त्री। यदि॑। वा॒। पुमा॑न्। कृ॒त्याम्। च॒कार॑। पा॒प्मने॑। ताम्। ऊं॒ इति॑। तस्मै॑। न॒या॒म॒सि॒। अश्व॑म्ऽइव। अ॒श्व॒ऽअ॒भि॒धान्या॑। १४.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यापरिहरणम्
- शुक्रः
- अनुष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) चाहे (स्त्री) स्त्री ने (यदि वा) अथवा (पुमान्) पुरुष ने जो (कृत्याम्) हिंसा (पाप्मने) पाप करने के लिये (चकार) की है। (तत्) उसको (उ) निश्चय करके (तस्मै) उसी पुरुष के लिये (नयामसि) हम लिये चलते हैं, (इव) जैसे (अश्वम्) घोड़े को (अश्वाभिधान्या) घोड़े बाँधने की रस्सी से ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य दुष्ट स्त्री पुरुषों को यथावत् दण्ड देवें ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(यदि) पक्षान्तरे (स्त्री) (यदि वा) अथवा (पुमान्) अ० १।८।१। पा रक्षणे डुमसुन्। पुरुषः (कृत्याम्) हिंसाम् (चकार) कृतवान् (पाप्मने) पा रक्षणे−मनिन् पुक् च। पापकरणाय (ताम्) कृत्याम् (उ) अवश्यम् (तस्मै) जनाय (नयामसि) गमयामः (अश्वम्) तुरङ्गम् (अश्वाभिधान्या) अभि+धा−ल्युट् ङीप्। अश्वबन्धनरज्ज्वा ॥
०७ यदि वासि
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यदि॒ वासि॑ दे॒वकृ॑ता॒ यदि॑ वा॒ पुरु॑षैः कृ॒ता।
तां त्वा॒ पुन॑र्णयाम॒सीन्द्रे॑ण स॒युजा॑ व॒यम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यदि॒ वासि॑ दे॒वकृ॑ता॒ यदि॑ वा॒ पुरु॑षैः कृ॒ता।
तां त्वा॒ पुन॑र्णयाम॒सीन्द्रे॑ण स॒युजा॑ व॒यम् ॥
०७ यदि वासि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If either thou art god-made, or if made by man, thee, being such, do
we lead back, with Indra as ally.
Notes
Ppp. has a very different version of this verse: yā kṛtye devakṛtā yā
vā manuṣyajā ’si: tāṁ tvā pratyan̄ prahiṇmasi pratīcī nayana brahmaṇā.
The ṇ in púnar ṇayāmasi is prescribed by Prāt. iii. 81. Táṁ at
beginning of c is a misprint for tā́ṁ.
Griffith
Now whether thou hast been prepared by Gods or been pre- pared by men, We, with our Indra at our side to aid us, lead thee back again.
पदपाठः
यदि॑। वा॒। असि॑। दे॒वऽकृ॑ता। यदि॑। वा॒। पुरु॑षैः। कृ॒ता। ताम्। त्वा॒। पुनः॑। न॒या॒म॒सि॒। इन्द्रे॑ण। स॒ऽयुजा॑। व॒यम्। १४.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यापरिहरणम्
- शुक्रः
- अनुष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यदि वा) चाहे (देवकृता) गतिशील सूर्य आदि लोकों द्वारा की गयी (यदि वा) चाहे (पुरुषैः) पुरुषों से (कृता) की गयी (असि) तू है। (ताम् त्वा) उस तुझ को (पुनः) फिर (वयम्) हम (इन्द्रेण) ऐश्वर्य के साथ (सयुजा) समान संयोग से (नयामसि) लिये चलते हैं ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य पुरुषार्थपूर्वक आधिदैविक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक विपत्तियों का प्रतिकार करें ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(यदि) (वा) (असि) (देवकृता) दिवु गतौ−पचाद्यच्। गतिशीलैः सूर्यादिलोकैः कृता (यदि वा) (पुरुषैः) मनुष्यैः (कृता) निष्पादिता (ताम्) (त्वा) (पुनः) (नयामसि) गमयामः (इन्द्रेण) ऐश्वर्येण (सयुजा) सम्पदादित्वात् क्विप्। समानसंयोगेन सह (वयम्) पुरुषार्थिनः ॥
०८ अग्ने पृतनाषाट्पृतनाः
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अग्ने॑ पृतनाषा॒ट्पृत॑नाः सहस्व।
पुनः॑ कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृते॑ प्रति॒हर॑णेन हरामसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अग्ने॑ पृतनाषा॒ट्पृत॑नाः सहस्व।
पुनः॑ कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृते॑ प्रति॒हर॑णेन हरामसि ॥
०८ अग्ने पृतनाषाट्पृतनाः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O Agni, overpowerer of fighters, overpower the fighters; we take the
witchcraft back to the witchcraft-maker by a returner.
Notes
Ppp. reads in b prati instead of punar, thus making a better
correspondence with pratiharaṇa in c. The Anukr’s definition of
the “verse” is purely artificial; the first pāda is distinctly
unmetrical, and the third hardly metrical.
Griffith
Agni, victorious in fight, subdue the armies of our foes! Back on the sorcerer we cast his sorcery, and beat it home.
पदपाठः
अग्ने॑। पृ॒त॒ना॒षा॒ट्। पृत॑नाः। स॒ह॒स्व॒। पुनः॑। कृ॒त्याम्। कृ॒त्या॒ऽकृते॑। प्र॒ति॒ऽहर॑णेन। ह॒रा॒म॒सि॒। १४.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यापरिहरणम्
- शुक्रः
- त्रिपदा विराडनुष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे विद्वान् सेनापति ! (पृतनाषाट्) संग्राम जीतनेवाला तू (पृतनाः) संग्रामों को (सहस्व) जीत। (पुनः) निश्चय करके (कृत्याम्) हिंसा को (कृत्याकृते) हिंसा करनेवाले पुरुष की ओर (प्रतिहरणेन) लौटा देने से (हरामसि) हम नाश करते हैं ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य शूर सेनापति के साथ शत्रुसेना को नाश करें ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(अग्ने) हे विद्वन् सेनापते (पृतनाषाट्) छन्दसि षहः। पा० ३।२।६३। इति पृतना+षह अभिभवे−ण्वि। सहेः साडः सः। पा० ८।३।५६। इति सस्य षः। संग्रामजेता (पृतनाः) अ० ३।२१।३। संग्रामान् (सहस्व) अभिभव (पुनः) अवश्यम् (कृत्याम्) हिंसाम् (कृत्याकृते) हिंसाकारिणे (प्रतिहरणेन) प्रतिकूलनयनेन। निरोधेन (हरामसि) नाशयामः ॥
०९ कृतव्यधनि विद्य
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कृत॑व्यधनि॒ विद्य॒ तं यश्च॒कार॒ तमिज्ज॑हि।
न त्वामच॑क्रुषे व॒यं व॒धाय॒ सं शि॑शीमहि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कृत॑व्यधनि॒ विद्य॒ तं यश्च॒कार॒ तमिज्ज॑हि।
न त्वामच॑क्रुषे व॒यं व॒धाय॒ सं शि॑शीमहि ॥
०९ कृतव्यधनि विद्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O practiced piercer (?), pierce him; whoever made [it], him do thou
smite; we do not sharpen thee up to slay (vadhá) him who has not made
[it].
Notes
This verse is found in Ppp. in book ii., much corrupted, with, for
d, vadhāya śaṁsamīmahe. Kṛtavyadhanī may possibly be the proper
name of the herb addressed: cf. kṛtavedhana or -dhaka, “name of a
sort of fennel or anise” (Pet. Lex.).
Griffith
Thou who hast piercing weapons, pierce him who hath wrought it; conquer him. We do not sharpen thee to slay the man who hath not practised it.
पदपाठः
कृत॑ऽव्यधनि। विध्य॑। तम्। यः। च॒कार॑। तम्। इत्। ज॒हि॒। न। त्वाम्। अच॑क्रुषे। व॒यम्। व॒धाय॑। सम्। शि॒शी॒म॒हि॒। १४.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यापरिहरणम्
- शुक्रः
- त्रिपदा विराडनुष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कृतव्यधनि) हे छेदनेवाली शस्त्रयुक्त सेना ! (तम्) चोर को (विध्य) छेद ले। (यः) जिसने (चकार) हिंसा की है, (तम्) उसको (इत्) अवश्य (जहि) नाश कर। (अचक्रुषे) हिंसा न करनेवाले पुरुष को (वधाय) मारने के लिये (वयम्) हम लोग (त्वाम्) तुझे (न) नहीं (सम् शिशीमहि) तीक्ष्ण करें ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सेनापति लोग दुष्कर्मियों पर ही सेना चढ़ावें और सत्पुरुषों पर कभी नहीं ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(कृतव्यधनि) व्यध ताडने−ल्युट्, ङीप्। कृतानि उद्यतानि व्यधनानि छेदनसाधनानि आयुधानि यया सा कृतव्यधनी, सेना तत्सम्बुद्धौ (विध्य) छिन्धि (तम्) तर्द हिंसायाम्−ड। चोरम् (यः) शत्रुः (चकार) कृञ् हिंसायाम्−लिट्। हिंसितवान् (तम्) (इत्) एव (जहि) नाशय (न) निषेधे (त्वाम्) सेनाम् (अचक्रुषे) कृञ् हिंसायाम्−क्वसु। अहिंसां कृतवते पुरुषाय (वयम्) सेनापतयः (वधाय) हननाय (सम्) सम्यक् (शिशीमहि) शो तनूकरणे। श्यनः श्लुः। विधौ लिङि छान्दसं रूपम्। श्येम तीक्ष्णीकुर्याम ॥
१० पुत्र इव
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पु॒त्र इ॑व पि॒तरं॑ गच्छ स्व॒ज इ॑वा॒भिष्ठि॑तो दश।
ब॒न्धमि॑वावक्रा॒मी ग॑च्छ॒ कृत्ये॑ कृत्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पु॒त्र इ॑व पि॒तरं॑ गच्छ स्व॒ज इ॑वा॒भिष्ठि॑तो दश।
ब॒न्धमि॑वावक्रा॒मी ग॑च्छ॒ कृत्ये॑ कृत्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥
१० पुत्र इव ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Go as a son to a father; like a constrictor trampled on, bite; go, O
witchcraft, back to the witchcraft-maker, as it were treading down
[thy] bond.
Notes
That is, apparently, escaping and treading on what has restrained thee.
Ppp. combines in b svajāiva, and reads for c, d, tantur
ivāvyayaṁnide kṛtye kṛtyākṛtaṁ kṛtāḥ. Though the verse is a perfectly
good anuṣṭubh, the Anukr., reading iva three times as dissyllabic,
turns it into a defective bṛhatī.
Griffith
Go as a son goes to his sire: bite as a trampled viper bites. As one who flies from bonds, go back, O Witchcraft, to the sorcerer.
पदपाठः
पु॒त्रःऽइ॑व। पि॒तर॑म्। ग॒च्छ॒। स्व॒जःऽइ॑व। अ॒भिऽस्थि॑तः। द॒श॒। ब॒न्धम्ऽइ॑व। अ॒व॒ऽक्रा॒मी। ग॒च्छ॒। कृत्ये॑। कृ॒त्या॒ऽकृत॑म्। पुनः॑। १४.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यापरिहरणम्
- शुक्रः
- निचृद्बृहती
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पुत्रः इव) पुत्र के समान (पितरम्) अपने पिता के पास (गच्छ) पहुँच, (अभिष्ठितः) ठोकर खाये हुए (स्वजः इव) लिपटनेवाले साँप के समान [शत्रु को] (दश) डस ले। (कृत्ये) हे हिंसाशक्ति ! (बन्धम्) बन्ध (अवक्रामी इव) छोड़ कर भागनेवाले के समान, (कृत्याकृतम्) हिंसाकारी को (पुनः) अवश्य (गच्छ) पहुँच ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सेना के लोग सेनापति से अनायास मिलते रहें और शत्रुओं का शीघ्र नाश करें ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(पुत्रः) कुलशोधकः सन्तानः (इव) यथा (पितरम्) पालकम् जनकम्, (गच्छ) प्राप्नुहि (स्वजः) ष्वञ्ज परिष्वङ्गे−पचाद्यच्, पृषोदरादित्वान्नलोपः। सर्पः (इव) (अभिष्ठितः) पादैरभिभूतः (दश) दंशय (बन्धम्) (इव) यथा (अवक्रामी) उल्लङ्घ्य प्रतिगामी (गच्छ) (कृत्ये) हिंसाशक्ते (कृत्याकृतम्) हिंसाकारिणम् ॥१०॥
११ उदेणीव वारण्यभिस्कन्धम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
उदे॒णीव॑ वार॒ण्य॑भि॒स्कन्धं॑ मृ॒गीव॑।
कृ॒त्या क॒र्तार॑मृच्छतु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उदे॒णीव॑ वार॒ण्य॑भि॒स्कन्धं॑ मृ॒गीव॑।
कृ॒त्या क॒र्तार॑मृच्छतु ॥
११ उदेणीव वारण्यभिस्कन्धम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Up, like a she-antelope (eṇī́), a she-elephant (? vāraṇī́), with
leaping on, like a hind, let the witchcraft go to its maker.
Notes
A verse of doubtful interpretation; but it is altogether probable that
the animal-names are coördinate in construction with
kṛtyā́
in
c
; and they are feminine doubtless because this is feminine; the
kṛtyā
is to overtake its perpetrator with their swiftness and force. But the
Pet. Lex. takes
vāraṇī́
as ‘shy, wild,’ qualifying
eṇī́
. Ppp. combines
enāi ’va
and
mṛgāi ’va
, and reads
vāruṇī
, and
-krandaṁ
for
-skandaṁ;
-krandam
seems rather preferable. The unaltered
s
of
abhisk-
in
b
falls under Prāt. ii. 104, and the example is quoted there. Though the
verse is a fairly regular
gāyatrī
, the Anukr. stupidly accounts it a
sāmnī triṣṭubh
, as if it were prose, and contained only 22 syllables.
Griffith
Even as the timid antelope or hind from her assailant flees, So swiftly let the sorcery o’ertake and reach the sorcerer.
पदपाठः
उत्। ए॒णीऽइ॑व। वा॒र॒णी। अ॒भि॒ऽस्कन्द॑म्। मृ॒गीऽइ॑व। कृ॒त्या। क॒र्तार॑म्। ऋ॒च्छ॒तु॒। १४.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यापरिहरणम्
- शुक्रः
- त्रिपदासाम्नी त्रिष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वारणी) हथिनी, अथवा (एणी इव) कृष्णमृगी के समान (मृगी इव) और मृगी के समान (अभिस्कन्दम्) धावा करनेवाले पुरुष पर, (कृत्या) शत्रुनाशक सेना (कर्तारम्) हिंसक को (उद्) उछल कर (ऋच्छतु) प्राप्त होवे ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - हमारी सेना शत्रुओं पर इस प्रकार शीघ्र धावा करे, जैसे घेरा हुआ पशु अपने आखेटक पर दौड़ता है ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−(उत्) उद्गत्य (एणी) इण् गतौ−ण, णस्य नेत्वम्, ङीप्। कृष्णमृगी (इव) यथा (वारणी) वृञ् आवरणे−णिच्, ल्युट्, ङीष्। गजी (अभिस्कन्दम्) अभि+स्कन्दिर् गतिशोषणयोः−पचाद्यच्। प्रतिकूलगन्तारम् (मृगी) हरिणी (इव) यथा (कृत्या) शत्रुनाशिका सेना (कर्तारम्) कृञ् हिंसायाम्−तृच्। हिंसकम् (ऋच्छ) गच्छतु ॥
१२ इष्वा ऋजीयः
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इष्वा॒ ऋजी॑यः पततु॒ द्यावा॑पृथिवी॒ तं प्रति॑।
सा तं मृ॒गमि॑व गृह्णातु कृ॒त्या कृ॑त्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इष्वा॒ ऋजी॑यः पततु॒ द्यावा॑पृथिवी॒ तं प्रति॑।
सा तं मृ॒गमि॑व गृह्णातु कृ॒त्या कृ॑त्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥
१२ इष्वा ऋजीयः ...{Loading}...
Whitney
इष्वा॒ ऋजी॑यः पततु॒ द्यावा॑पृथिवी॒ तं प्रति॑ ।
सा तं मृ॒गमि॑व गृह्णतु कृ॒त्या कृ॑त्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥१२॥
Griffith
Straighter than any arrow let it fly against him, Heaven and Earth. So let that witchcraft seize again the wizard like a beast of chase.
पदपाठः
इष्वाः॑। ऋजी॑यः। प॒त॒तु॒। द्यावा॑पृथिवी॒ इति॑। तम्। प्रति॑। सा। तम्। मृ॒गम्ऽइ॑व। गृ॒ह्णा॒तु॒। कृ॒त्या। कृ॒त्या॒ऽकृत॑म्। पुनः॑। १४.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यापरिहरणम्
- शुक्रः
- अनुष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (द्यावापृथिवी) हे सूर्य और पृथिवी ! (सा) वह (कृत्या) शत्रुनाशक सेना (तम्) चोर (प्रति) पर (इष्वाः) बाण से (ऋजीयः) अधिक सीधी (पततु) गिरे और (पुनः) फिर (तम्) उस (कृत्याकृतम्) हिंसाकारी को (मृगम् इव) आखेट पशु के समान (गृह्णातु) पकड़ लेवे ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य आकाश और पृथिवी मार्ग से प्रबल सेना द्वारा शत्रुओं को मारें ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १२−(इष्वाः) बाणात् (ऋजीयः) ऋजु−ईयसुन्। ऋजुतरम्। अधिकसरलम् (पततु) अधः पततु (द्यावापृथिवी) हे द्यावापृथिव्योः पदार्थाः (तम्) तर्दकं चोरम् (प्रति) (सा) (तम्) पूर्वोक्तम् (मृगम्) आखेटपशुम् (इव) यथा (गृह्णातु) आदत्ताम् (कृत्या) शत्रुनाशिका सेना (कृत्याकृतम्) हिंसाकारिणम् (पुनः) पश्चात्। अवश्यम् ॥
१३ अग्निरिवैतु प्रतिकूलमनुकूलमिवोदकम्
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अ॒ग्निरि॑वैतु प्रति॒कूल॑मनु॒कूल॑मिवोद॒कम्।
सु॒खो रथ॑ इव वर्ततां कृ॒त्या कृ॑त्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒ग्निरि॑वैतु प्रति॒कूल॑मनु॒कूल॑मिवोद॒कम्।
सु॒खो रथ॑ इव वर्ततां कृ॒त्या कृ॑त्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥
१३ अग्निरिवैतु प्रतिकूलमनुकूलमिवोदकम् ...{Loading}...
Whitney
अ॒ग्निरि॑वैतु प्रति॒कूल॑मनु॒कूल॑मिवोद॒कम्।
सु॒खो रथ॑ इव वर्ततां कृ॒त्या कृ॑त्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥१३॥
Griffith
Let it go contrary like flame, like water following its course. Let witchcraft, like a well-naved car, roll back upon the sorcerer.
पदपाठः
अ॒ग्निःऽइ॑व। ए॒तु॒। प्र॒ति॒ऽकूल॑म्। अ॒नु॒कूल॑म्ऽइव। उ॒द॒कम्। सु॒खः। रथः॑ऽइव। व॒र्त॒ता॒म्। कृ॒त्या। कृ॒त्या॒ऽकृत॑म्। पुनः॑। १४.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यापरिहरणम्
- शुक्रः
- स्वराडनुष्टुप्
- कृत्यापरिहरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - वह [सेना] (अग्निः इव) अग्नि के समान (प्रतिकूलम्) विरुद्ध गति से, और (अनुकूलम्) तट-तट से चलनेवाले (उदकम् इव) जल के समान [शीघ्र] (एतु) चले। (कृत्या) शत्रुनाशक सेना (कृत्याकृतम्) हिंसाकारी पर (पुनः) अवश्य (वर्तताम्) घूमे, (इव) जैसे (सुखः) अच्छा बना हुआ (रथः) रथ [घूमता है] ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - हमारी सेना शत्रुओं पर इस प्रकार शीघ्र धावा करे, जैसे दावाग्नि वन में, तट के भीतर-भीतर चलनेवाला जल नदी में और अच्छा बना हुआ रथ मार्ग में चलता है ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १३−(अग्निरिव) अग्निर्यथा (एतु) गच्छतु, अस्माकं सेना (प्रतिकूलम्) यथा तथा विरुद्धपक्षम् (अनुकूलम्) तीरद्वयमनुसृत्य गमनशीलम् (उदकम्) जलम्। अन्यद् व्याख्यातम् म० ५ ॥