००९ आत्मा

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Whitney subject
  1. For protection: to various gods.
VH anukramaṇī

आत्मा
१-८ ब्रह्म। वास्तोष्पतिः, आत्मा। १,५ दैवी बृहती, २, ६ दैवी त्रिष्टुप्, ३, ४ दैवी जगती, ७ विराडुष्णिग्बृहतीगर्भा पञ्चपदा जगती, ८ पुरस्कृतित्रिष्टुब्बृहतीगर्भा चतुष्पदा त्र्यवसाना जगती।

Whitney anukramaṇī

[Brahman.—aṣṭakam. vāstoṣpatyam. 1, 5. dāivī bṛhatī; 2, 6. dāivī triṣṭubh; 3, 4. dāivī jagatī; 7. virāḍuṣṇigbṛhatīgarbhā 5-p. jagatī; 8. puraskṛtitriṣṭubbṛhatīgarbhā 4-p. 3-av. jagatī.]

Whitney

Comment

⌊This piece is prose.⌋ Neither this piece nor the next is found in Pāipp. This one is quoted in Kāuś. (28. 17) in a remedial ceremony, together with vi. 91; and it is reckoned (8. 23, note) to the vāstu gaṇa and (26. 1, note) the takmaṇāśana gaṇa.

Translations

Translated: Griffith, i. 201; Weber, xviii. 197.

Griffith

A prayer to Heaven and Earth for protection and assistance

०१ दिवे स्वाहा

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दिवे॒ स्वाहा॑ ॥१॥

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Whitney
Translation
  1. To heaven hail!
Notes
Griffith

All hail to Heaven!

पदपाठः

दि॒वे। स्वाहा॑। ९.१।

पदपाठः

दि॒वे। स्वाहा॑। ९.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वास्तोष्पतिः
  • ब्रह्मा
  • दैवी बृहती
  • आत्मा सूक्त

०२ पृथिव्यै स्वाहा

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पृ॒थि॒व्यै स्वाहा॑ ॥२॥

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Whitney
Translation
  1. To earth hail!
Notes
Griffith

All hail to Earth!

पदपाठः

पृ॒थि॒व्यै। स्वाहा॑। ९.२।

पदपाठः

पृ॒थि॒व्यै। स्वाहा॑। ९.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वास्तोष्पतिः
  • ब्रह्मा
  • दैवी त्रिष्टुप्
  • आत्मा सूक्त

०३ अन्तरिक्षाय स्वाहा

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अ॒न्तरि॑क्षाय॒ स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. To atmosphere hail!
Notes
Griffith

All hail to Air!

पदपाठः

अ॒न्तरि॑क्षाय। स्वाहा॑। ९.३।

पदपाठः

अ॒न्तरि॑क्षाय। स्वाहा॑। ९.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वास्तोष्पतिः
  • ब्रह्मा
  • दैवी जगती
  • आत्मा सूक्त

०४ अन्तरिक्षाय स्वाहा

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अ॒न्तरि॑क्षाय॒ स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. To atmosphere hail!
Notes
Griffith

All hail to Air!

पदपाठः

अ॒न्तरि॑क्षाय। स्वाहा॑। ९.४।

पदपाठः

अ॒न्तरि॑क्षाय। स्वाहा॑। ९.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वास्तोष्पतिः
  • ब्रह्मा
  • दैवी जगती
  • आत्मा सूक्त

०५ दिवे स्वाहा

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दि॒वे स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. To heaven hail!
Notes
Griffith

All hail to Heaven!

पदपाठः

दि॒वे। स्वाहा॑। ९.५।

पदपाठः

दि॒वे। स्वाहा॑। ९.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वास्तोष्पतिः
  • ब्रह्मा
  • दैवी बृहती
  • आत्मा सूक्त

०६ पृथिव्यै स्वाहा

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पृ॒थि॒व्यै स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. To earth hail!
Notes

⌊The invocations of vss. 4-6 are those of 1-3 with changed order.⌋

Griffith

All hail to Eartht!

पदपाठः

पृ॒थि॒व्यै। स्वाहा॑। ९.६।

पदपाठः

पृ॒थि॒व्यै। स्वाहा॑। ९.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वास्तोष्पतिः
  • ब्रह्मा
  • दैवी त्रिष्टुप्
  • आत्मा सूक्त

०७ सूर्यो मे

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सूर्यो॑ मे॒ चक्षु॒र्वातः॑ प्रा॒णो॒३॒॑न्तरि॑क्षमा॒त्मा पृ॑थि॒वी शरी॑रम्।
अ॒स्तृ॒तो नामा॒हम॒यम॑स्मि॒ स आ॒त्मानं॒ नि द॑धे॒ द्यावा॑पृथि॒वीभ्यां॑ गोपी॒थाय॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. The sun my eye, wind my breath, atmosphere my soul (ātmán), earth
    my body; unquelled (astṛtá) by name am I here; [as] such I deposit
    myself for heaven and earth to guard (gopīthá).
Notes
Griffith

Mine eye is Siirya and my breath is Vata, Air is my soul and Prithivi my body. I verily who never have been conquered give up my life toe Heaven and Earth for keeping.

पदपाठः

सूर्यः॑। मे॒। चक्षुः॑। वातः॑। प्रा॒णः। अ॒न्तरि॑क्षम्। आ॒त्मा। पृ॒थि॒वी। शरी॑रम्। अ॒स्तृ॒तः। नाम॑। अ॒हम्। अ॒यम्। अ॒स्मि॒। सः। आ॒त्मान॑म्। नि। द॒धे॒। द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म्। गो॒पी॒थाय॑। ९.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वास्तोष्पतिः
  • ब्रह्मा
  • विराडुष्णिग्बृहतीगर्भा पञ्चपदा जगती
  • आत्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

N/A

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (चक्षुः) नेत्र (सूर्यः) सूर्य [के सदृश प्रकाशमान], (प्राणः) प्राण (वातः) वायु [के समान चलनेवाला], (आत्मा) आत्मा (अन्तरिक्षम्) मध्य लोक [के समान मध्यवर्ती], (शरीरम्) शरीर (पृथिवी) पृथिवी [के समान सहनशील] है। (अयम्) यह (अहम्) मैं (अस्तृतः) विना ढका हुआ (नाम) प्रसिद्ध (अस्मि) हूँ। (सः अहम्) वह मैं (आत्मानम्) अपना आत्मा (द्यावा-पृथिवीभ्याम्) सूर्य और पृथिवी को (गोपीथाय) रक्षा [अथवा पृथिवी, इन्द्रिय आदि की रक्षा] के लिये (नि) नित्य (दधे) देता रहता हूँ ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - योगी जन विद्याभ्यास और तपोबल से संसार के सब तत्त्वों से उपकार लेकर संसार की रक्षा करते हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(सूर्यः) सूर्यवत् प्रकाशनमस्ति (मे) मम (चक्षुः) नेत्रम् (वातः) वायुः। वायुसदृशप्रगमनः (प्राणः) (अन्तरिक्षम्) द्यावापृथिव्योर्मध्ये वर्तमानोऽवकाशतुल्यः (पृथिवी) भूमिवत् सहनशीलम् (शरीरम्) देहः (अस्तृतः) स्तृञ् आच्छादने-क्त। अनाच्छादितः (नाम) प्रसिद्धौ (अयम्) (अस्मि) (सः) सोऽहम् (आत्मानम्) आत्मसामर्थ्यम् (नि) नित्यम् (दधे) ददामि (द्यावापृथिवीभ्याम्) सूर्यभूमिभ्याम्। तदुपलक्षितसर्वलोकाय (गोपीथाय) निशीथगोपीथावगथाः। उ० २।९। इति गुपू रक्षणे-थक् निपातनात् साधुः। रक्षणाय। यद्वा गो+पा रक्षणे-थक्, निपातनादीत्वम्। पृथिवीन्द्रियादीनां रक्षणाय-इति दयानदभाष्ये, ऋ० १।१९।१ ॥

०८ उदायुरुद्बलमुत्कृतमुत्कृत्यामुन्मनीषामुदिन्द्रियम्

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उदायु॒रुद्बल॒मुत्कृ॒तमुत्कृ॒त्यामुन्म॑नी॒षामुदि॑न्द्रि॒यम्।
आयु॑ष्कृ॒दायु॑ष्पत्नी॒ स्वधा॑वन्तौ गो॒पा मे॑ स्तं गोपा॒यतं॑ मा।
आ॒त्म॒सदौ॑ मे स्तं॒ मा मा॑ हिंसिष्टम् ॥

०८ उदायुरुद्बलमुत्कृतमुत्कृत्यामुन्मनीषामुदिन्द्रियम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Up life-time, up strength, up act (kṛtá), up action (kṛtyā́), up
    skill (manīṣā́), up sense (indriyá); O life- (ā́yus-) maker, O ye
    (two) mistresses of life, rich in svadhā́m.⌋, be ye my guardians,
    guard me; be my soulsitters; do not harm me.
Notes

The nouns with ‘up’ are accusatives, but what verb should be supplied
for the construction it is not easy to see. Perhaps ā́yuṣkṛt (p.
ā́yuḥ-kṛt) should be -kṛtā, as dual; at any rate, all that follows it
is dual. Apparently the Anukr. would divide vs. 7 as 9 + 12: 10 + 7 + 10
= 48; and vs. 8 as 9 + 11: 20: 11 = 51; but the descriptions are blind
and inaccurate. ⌊Weber discusses the peculiarities of gender.⌋

A passage corresponding to this hymn is found in K. xxxvii. 15.

Griffith

Exalt my life, my strength, my deed and action; increase my understanding and my vigour. Be ye my powerful keepers, watch and guard me, ye mistresses of life and life’s creators! Dwell ye within me, and forbear to harm me.

पदपाठः

उत्। आयुः॑। उत्। बल॑म्। उत्। कृ॒तम्। उत्। कृ॒त्याम्। उत्। म॒नी॒षाम्। उत्। इ॒न्द्रि॒यम्। आयुः॑ऽकृत्। आयु॑ष्पत्नी॒त्यायुः॑ऽपत्नी। स्वधा॑ऽवन्तौ। गो॒पा। मे॒। रत॒म्। गो॒पा॒यत॑म्। मा॒। आ॒त्म॒ऽसदौ॑। मे॒। स्त॒म्। मा। मा॒। हिं॒सि॒ष्ट॒म्। ९.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वास्तोष्पतिः
  • ब्रह्मा
  • पुरस्कृतित्रिष्टुब्बृहतीगर्भा पञ्चपदातिजगती
  • आत्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

N/A

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आयुः) मेरा जीवन (उत्) उत्तम, (बलम्) बल (उत्) उत्तम, (कृतम्) किया हुआ काम (उत्) उत्तम, (कृत्याम्) कर्तव्य कर्म (उत्) उत्तम, (मनीषाम्) बुद्धि (उत्) उत्तम, (इन्द्रियम्) इन्द्रपन अर्थात् परम ऐश्वर्य (उत्=उत्कर्षतमम्) उत्तम बनाओ। (आयुष्पत्नी) जीवन पालनेवाली माता और (आयुष्कृत्) जीवन करनेवाले पिता तुम दोनों ((स्वधावन्तौ) अन्नवाले होकर (मे) मेरे (गोपा=गोपौ) रक्षक (स्तम्) होओ। (मा) मुझको (गोपायतम्) बचाओ। (मे) मेरे (आत्मसदौ) आत्मा में रहनेवाले (स्तम्) होओ। (मा) मुझे (मा हिंसिष्टम्) दुःखी मत होने दो ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य उत्तम माता-पिता से उत्तम विद्या, पुरुषार्थ आदि प्राप्त करकेसंसार में सुखी रहते हैं ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(उत्) उत्कर्षतमम् (आयुः) जीवनम् (बलम्) सामर्थ्यम् (कृत्याम्) अ० ४।९।५। डुकृञ् करणे-क्यप्, तुक्, टाप्। कर्तव्यम् (मनीषाम्) कॄतॄभ्यामीषन्। उ० ४।२६। इति। मनु अवबोधने-ईषन्, टाप्। यद्वा मनस्=ईष गतौ-क, टाप्। शकन्ध्वादित्वात् पररूपम्। मनीषया मनस ईषया स्तुत्या प्रज्ञया वा-निरु० २।२५। तथा ९।१०। मनस ईषां गतिम्। प्रज्ञाम् (इन्द्रियम्) इन्द्रियमिन्द्रलिङ्गमिन्द्रदृष्ट० । पा० ५।३।९३। इति इन्द्र-घ। धननाम-निघ० २।१०। परमैश्वर्यम्। (आयुष्कृत्) जीवनकर्ता (आयुष्पत्नी) जीवनपालयित्री (स्वधावन्तौ) स्वधा=अन्नम्-निघ० २।७। अन्नवन्तौ सन्तौ (गोपा) गोपायतीति गोपाः, गुपू-क्विप्, अतो लोपः, यलोपः। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति आकारः। गोपौ। गोप्तारौ। रक्षकौ (मे) मम (स्तम्) भवतम् (गोपायतम्) रक्षतम् (मा) माम् (आत्मसदौ) आत्मनि तिष्ठन्तौ (मे) (स्तम्) (मा) माम् (मा हिंसिष्टम्) मा वधीष्टम् ॥