००८ शत्रुनाशनम् ...{Loading}...
Whitney subject
- Against enemies: to Indra and other gods.
VH anukramaṇī
शत्रुनाशनम्।
१-९ अथर्वा। नानादैवत्यं, १,२ अग्निः, ३ विश्वे देवाः, ४-९ इन्द्रः। अनुष्टुप्, २ त्र्यवसाना षट्-पदा जगती, ३-४ भुरिक्पथ्यापङ्क्तिः, ६ आस्तारपङ्क्तिः, ७ द्व्युष्णिग्गर्भा पथ्यापङ्क्तिः, ९ त्र्यवसाना षट्-पदा युष्णिग्गर्भा जगती।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan (?).—navakam. nānādevatyam: 1, 2. āgneye; 3. vāiśvadevī; 4-9. āindryas. ānuṣṭubham: 2. 3-av. 6-p. jagatī; 3, 4. bhurikpathyāpan̄kti; 6. prastārapan̄kti; 7. dvyuṣṇiggarbhā pathyāpan̄kti; 9. 3-av. 6-p. dvyuṣṇiggarbhā jagatī.]
Whitney
Comment
Found also (except vs. 7) in Pāipp. vii. Not quoted in Vāit., and in Kāuś. only once, in a witchcraft ceremony (48. 8), after iv. 16, with the direction “do as specified in the text.”
Translations
Translated: Ludwig, p. 439; Grifiith, i. 200; Weber, xviii. 194.
Griffith
A charm for the discomfiture and destruction of hostile priests
०१ वैकङ्कतेनेध्मेन देवेभ्य
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
वै॑कङ्क॒तेने॒ध्मेन॑ दे॒वेभ्य॒ आज्यं॑ वह।
अग्ने॒ ताँ इ॒ह मा॑दय॒ सर्व॒ आ य॑न्तु मे॒ हव॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
वै॑कङ्क॒तेने॒ध्मेन॑ दे॒वेभ्य॒ आज्यं॑ वह।
अग्ने॒ ताँ इ॒ह मा॑दय॒ सर्व॒ आ य॑न्तु मे॒ हव॑म् ॥
०१ वैकङ्कतेनेध्मेन देवेभ्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- With fuel of víkan̄kata do thou carry the sacrificial butter to the
gods; O Agni, make them revel here; let all come to my call.
Notes
The víkan̄kata is identified as Flacourtia sapida, a thorny plant.
Ppp. reads sādaya, which is better, in c, and combines sarvā
”yantu in d.
Griffith
With fuel of Vikankata bring molten butter to the Gods. O Agni, make them joyful here: let them all come unto my call.
पदपाठः
वै॒क॒ङ्क॒तेन॑। इ॒ध्मेन॑। दे॒वेभ्यः॑। आज्य॑म्। व॒ह॒। अग्ने॑। तान्। इ॒ह। मा॒द॒य॒। सर्वे॑। आ। य॒न्तु॒। मे॒। हव॑म्। ८.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वैकङ्कतेन) विज्ञानसम्बन्धी (इध्मेन) प्रकाश के साथ (देवेभ्यः) व्यवहारकुशल पुरुषों को (आज्यम्) पाने योग्य वस्तु (वह) पहुँचा। (अग्ने) हे अग्निसमान तेजस्वी राजन् ! (तान्) उन लोगों को (इह) यहाँ पर (मादय) प्रसन्न कर। (सर्वे) वे सब (मे) मेरी (हवम्) पुकार को (आ यन्तु) आकर प्राप्त हों ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा अनेक विद्याओं का प्रचार करके विद्वानों का सत्कार करे, जिस से प्रजा में दुःख लेशमात्र न रहे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(वैकङ्कतेन) भृमृदृशि०। उ० ३।१०१। इति विपूर्वात् ककि गतौ−अतच्, ततः अण्। विज्ञानेन सम्बन्धिना। वैज्ञानिकेन (इध्मेन) इषियुधीन्धि०। उ० १।१४५। इति ञिइन्धी दीप्तौ−मक्। प्रकाशेन (देवेभ्यः) व्यवहारकुशलेभ्यः (आज्यम्) आङ् पूर्वादञ्जेः संज्ञायामुपसंख्यानम्। वा० पा० ३।१।१०९। इति आङ्+अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु−क्यप्। अनिदितां हल०। पा० ६।१।२४। इति नस्य लोपः। व्यक्तीकरणीयं प्रकाशनीयम्। गम्यं प्राप्यं वस्तु (वह) प्रापय (अग्ने) हे अग्निवत्तेजस्विन् राजन् (तान्) देवान् (इह) अस्मिन् देशे (मादय) हर्षय (सर्वे) देवाः (आ यन्तु) आगच्छन्तु (मे) मम (हवम्) आह्वानम् ॥
०२ इन्द्रा याहि
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
इ॒न्द्रा या॑हि मे॒ हव॑मि॒दं क॑रिष्यामि॒ तच्छृ॑णु।
इ॒म ऐ॒न्द्रा अ॑तिस॒रा आकू॑तिं॒ सं न॑मन्तु मे।
तेभिः॑ शकेम वी॒र्यं१॒॑ जात॑वेद॒स्तनू॑वशिन् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इ॒न्द्रा या॑हि मे॒ हव॑मि॒दं क॑रिष्यामि॒ तच्छृ॑णु।
इ॒म ऐ॒न्द्रा अ॑तिस॒रा आकू॑तिं॒ सं न॑मन्तु मे।
तेभिः॑ शकेम वी॒र्यं१॒॑ जात॑वेद॒स्तनू॑वशिन् ॥
०२ इन्द्रा याहि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O Indra, come to my call; this will I do; that hear thou; let these
over-runners (? atisará) of Indra’s bring to pass (sam-nam) my
design; by them may we be equal to (śak) heroism, O Jātavedas,
self-controller.
Notes
The obscure atisará is rendered etymologically, being found nowhere
else; the Pet. Lex. conjectures “start, effort.” For idáṁ kariṣyāmi in
b is probably substituted in practical use a statement of the act
performed. The Anukr. takes no notice of the redundant syllable in the
pāda.
Griffith
O Indra, come unto my call, This will I do. So hear it thou. Let these exertions for the sake of Indra guide my wish aright. Therewith, O Jatavedas, Lord of Bodies! may we win us strength.
पदपाठः
इन्द्र॑। आ। या॒हि॒। मे॒। हव॑म्। इ॒दम्। क॒रि॒ष्या॒मि॒। तत्। शृ॒णु॒। इ॒मे। ऐ॒न्द्राः। अ॒ति॒ऽस॒राः। आऽकू॑तिम्। सम्। न॒म॒न्तु॒। मे॒। तेभिः॑। श॒के॒म॒। वी॒र्य᳡म्। जात॑ऽवेदः। तनू॑ऽवशिन्। ८.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- अथर्वा
- त्र्यवसाना षट्पदा जगती
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परम ऐश्वर्यवाले राजन् ! (मे हवम्) मेरी पुकार को (आ याहि) तू पहुँच। (इदम्) ऐश्वर्यसम्बन्धी कर्म (करिष्यामि) मैं करूँगा। (तत्) सो (शृणु) तू सुन। (इमे) यह (ऐन्द्राः) ऐश्वर्यवान् राजा के (अतिसराः) प्रयत्न (मे) मेरे (आकूतिम्) संकल्प को (सम् नमन्तु) सिद्ध करें। (जातवेदः) हे बहुत धनवाले (तनूवशिन्) हे शरीरों को वश में रखनेवाले राजन् ! (तेभिः) उन [प्रयत्नों] से (वीर्यम्) वीरपन (शकेम) पा सकें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा प्रजागण की पुकार सुन कर प्रयत्नपूर्वक उनकी उन्नति करे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (आ याहि) आगच्छ (मे) मम (हवम्) आह्वानम् (इदम्) इन्देः कमिन्नलोपश्च। उ० ४।१७७। इति इदि परमैश्वर्ये−कमिन्। परमैश्वर्यहेतु कर्म (करिष्यामि) अनुष्ठास्यामि (तत्) तस्मात् (शृणु) आकर्णय (इमे) (ऐन्द्राः) इन्द्र−अण्। इन्द्रसम्बन्धिनः। राजसम्बन्धिनः (अतिसराः) सृ गतौ−पचाद्यच्। प्रयत्नाः (आकूतिम्) संकल्पम् (सम्) सम्यक् (नमन्तु) प्रह्वीकुर्वन्तु। साधयन्तु (मे) मम (तेभिः) तैः। अतिसरैः (शकेम) प्राप्तुं शक्नुयाम (वीर्यम्) वीर्याय वीरकर्मणे−निरु० १०।१९। वीरकर्म (जातवेदः) अ० १।७।२। हे जातधन (तनूवशिन्) अ० १।७।२। हे शरीराणां वशयितः ॥
०३ यदसावमुतो देवा
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यद॒साव॒मुतो॑ देवा अदे॒वः संश्चिकी॑र्षति।
मा तस्या॒ग्निर्ह॒व्यं वा॑क्षी॒द्धवं॑ दे॒वा अ॑स्य॒ मोप॒ गुर्ममै॒व हव॒मेत॑न ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यद॒साव॒मुतो॑ देवा अदे॒वः संश्चिकी॑र्षति।
मा तस्या॒ग्निर्ह॒व्यं वा॑क्षी॒द्धवं॑ दे॒वा अ॑स्य॒ मोप॒ गुर्ममै॒व हव॒मेत॑न ॥
०३ यदसावमुतो देवा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What he there yonder, O gods, being godless, desires to do—let not
Agni carry his oblation; let not the gods go to his call; come ye only
(evá) unto my call.
Notes
Some of the mss. (Bp².p.m.Bp.I.D.) read cíkīriṣati in b. We may
make the contraction devā ’sya in d, though the Anukr. does not
sanction it.
Griffith
Whatever plot from yonder, O ye Gods, that godless man would frame, Let not the Gods come to his call, nor Agni bear his offering up. Come, ye, come hither to my call.
पदपाठः
यत्। अ॒सौ। अ॒मुतः॑। दे॒वाः॒। अ॒दे॒वः। सन्। चिकी॑र्षति। मा। तस्य॑। अ॒ग्निः। ह॒व्यम्। वा॒क्षी॒त्। हव॑म्। दे॒वाः। अ॒स्य॒। मा। उप॑। गुः॒। मम॑। ए॒व। हव॑म्। आ। इ॒त॒न॒। ८.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विश्वे देवाः
- अथर्वा
- भुरिक्पथ्यापङ्क्तिः
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) हे विजयी पुरुषो ! (असौ) वह (अदेवः सन्) राजद्रोही होकर (अमुतः) उस स्थान से (यत्) जो कुछ [कुमन्त्र] (चिकीर्षति) करना चाहता है। (अग्निः) अग्निसमान तेजस्वी राजा (तस्य=तस्मै) उसको (हव्यम्) अन्न (मा वाक्षीत्) न पहुँचाये। (देवाः) व्यवहारकुशल लोग (अस्य) इस की (हवम्) पुकार को (मा उप गुः) न प्राप्त करें। (मम एव) मेरी ही (हवम्) पुकार को (आ−इतन) तुम आकर प्राप्त होवो ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा और सब विद्वान् लोग राजविद्रोही पुरुष को यथावत् दण्ड देकर प्रजा में शान्ति फैलावें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(यत्) यत्किञ्चित्कुमन्त्रम् (असौ) (अमुतः) अमुष्यात्। तस्माद्देशात् (देवाः) हे विजिगीषवः (अदेवः) देवविरोधी। राजविद्रोही (सन्) वर्तमानः सन् (चिकीर्षति) कर्तुमिच्छति (तस्य) चतुर्थ्यां षष्ठी। तस्मै। अदेवाय (अग्निः) अग्निवत्तेजस्वी राजा (हव्यम्) हु अदने−यत्। अन्नम् (मा वाक्षीत्) वह−लुङ्। न प्रापयेत् (हवम्) आह्वानम् (देवाः) व्यवहारिणः (मा उप गुः) नैव प्राप्नुवन्तु (मम) (एव) ही (हवम्) (आ इतन) आ गच्छत ॥
०४ अति धावतातिसरा
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अति॑ धावतातिसरा॒ इन्द्र॑स्य॒ वच॑सा हत।
अविं॒ वृक॑ इव मथ्नीत॒ स वो॒ जीव॒न्मा मो॑चि प्रा॒णम॒स्यापि॑ नह्यत ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अति॑ धावतातिसरा॒ इन्द्र॑स्य॒ वच॑सा हत।
अविं॒ वृक॑ इव मथ्नीत॒ स वो॒ जीव॒न्मा मो॑चि प्रा॒णम॒स्यापि॑ नह्यत ॥
०४ अति धावतातिसरा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Overrun (ati-dhāv), ye over-runners; slay by Indra’s spell
(vácas); shake (math) ye as a wolf [shakes] a sheep; let him not
be released from you alive; shut up his breath.
Notes
The end of the verse is different, but without sense, in Ppp. An
accent-mark has dropped out under the ta of mathnīta in our text
⌊and under hata there is one which should be deleted⌋. The Anukr.
apparently forbids us to make the familiar contraction vṛke ’va in
c, and then overlooks the deficiency of a syllable in d. ⌊Cf.
Bergaigne, Rel. véd. iii. 7-8.⌋
Griffith
Run, ye Fxertions, farther on By Indra’s order smite and slay. As a wolf worrieth a sheep, so let not him escape from you while life remains. Stop fast his breath.
पदपाठः
अति॑। धा॒व॒त॒। अ॒ति॒ऽस॒राः॒। इन्द्र॑स्य। वच॑सा। ह॒त॒। अवि॑म्। वृकः॑ऽइव। म॒थ्नी॒त॒। सः। वः॒। जीव॑न्। मा। मो॒चि॒। प्रा॒णम्। अ॒स्य। अपि॑। न॒ह्य॒त॒। ८.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- अथर्वा
- भुरिक्पथ्यापङ्क्तिः
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अतिसराः) हे उद्योगी शूरो ! (अति धावत) अत्यन्त करके धावा करो। (इन्द्रस्य) परम ऐश्वर्यवाले राजा के (वचसा) वचन से (हत) मारो। [उसे] (मथ्नीत) मथ डालो, (वृक इव) जैसे भेड़िया (अविम्) भेड़ को। (सः) वो (जीवन्) जीता हुआ (वः) तुम्हारी (मा मोचि) मुक्ति न पावे। (अस्य) इसके (प्राणम्) प्राण को (अपि) भी (नह्यत) बाँध लो ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - शूरवीर पुरुष राजा की आज्ञा से चढ़ाई करके शत्रुओं का सर्वथा नाश करें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(अति) अत्यन्त (धावत) धावु गतिशुद्ध्योः। शीघ्रं गच्छत (अतिसराः) म० २। अर्शआद्यच्। हे अतिसरोपेताः। हे उद्योगिनः पुरुषाः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतो राज्ञः (वचसा) वचनेन (हत) नाशयत (अविम्) रक्षणीयं मेषम् (वृकः) आदाने−क। आदानशीलो घातकजन्तुविशेषः (इव) यथा (मथ्नीत) विलोडयत। (सः) शत्रुः (वः) युष्माकम् (जीवन्) प्राणान् धारयन् (मा मोचि) मुक्तिं न प्राप्नुयात् (प्राणम्) जीवनम् (अस्य) शत्रोः (अपि) (नह्यत) बध्नीत ॥
०५ यममी पुरोदधिरे
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यम॒मी पु॑रोदधि॒रे ब्र॒ह्माण॒मप॑भूतये।
इन्द्र॒ स ते॑ अधस्प॒दं तं प्रत्य॑स्यामि मृ॒त्यवे॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यम॒मी पु॑रोदधि॒रे ब्र॒ह्माण॒मप॑भूतये।
इन्द्र॒ स ते॑ अधस्प॒दं तं प्रत्य॑स्यामि मृ॒त्यवे॑ ॥
०५ यममी पुरोदधिरे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What brahmán they yonder have put forward for failure (åpabhūti),
[be] he beneath thy feet, O Indra; him I cast unto death.
Notes
Brahmán: probably performer of an incantation. Ppp. reads
abhibhūtaye in b.
Griffith
The Brahman whom those yonder have appointed priest, for injury, He, Indra! is beneath thy feet. I cast him to the God of Death.
पदपाठः
यम्। अ॒मी इति॑। पु॒रः॒ऽद॒धि॒रे। ब्र॒ह्माण॑म्। अप॑ऽभूतये। इन्द्र॑। सः। ते॒। अ॒धः॒ऽप॒दम्। तम्। प्रति॑। अ॒स्या॒मि॒। मृ॒त्यवे॑। । ८.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अमी) इन [शत्रुओं] ने (यम्) जिस (ब्रह्माणम्) वृद्धिशील पुरुष को (अपभूतये) हमारी हार के लिये (पुरोदधिरे) उच्च पद पर रक्खा है। (इन्द्र) हे बड़े ऐश्वर्यवाले राजन् ! (सः) वह मैं (ते) तेरे (अधस्पदम्) पाँव के नीचे (तम्) उसको (मृत्यवे) मृत्यु के लिये (प्रति) प्रतिकूलता से (अस्यामि) फेंकता हूँ ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - शत्रु लोग जिस विद्वान् पुरुष को बहकाकर बड़ा पद देकर हमारी हानि करावें, हमारे राजपुरुष उसको पकड़कर प्राणान्त तक दण्ड देवे ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(यम्) (अमी) शत्रवः (पुरोदधिरे) अग्रे धृतवन्तः। प्रधानपदे स्थापितवन्तः (ब्रह्माणम्) ब्रह्मा परिवृढः श्रुततो ब्रह्म परिवृढं सर्वतः−निरु० १।८। वृद्धिशीलं विद्वांसम् (अपभूतये) अस्माकं पराजयाय (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (सः) सोऽहम् (ते) तव (अधस्पदम्) अ० २।७।२। अधोभागे पादतले (तम्) शत्रुम् (प्रति) प्रतिकूलतया (अस्यामि) प्रक्षिपामि (मृत्यवे) मरणाय ॥
०६ यदि प्रेयुर्देवपुरा
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यदि॑ प्रे॒युर्दे॑वपु॒रा ब्रह्म॒ वर्मा॑णि चक्रि॒रे।
त॑नू॒पानं॑ परि॒पाणं॑ कृण्वा॒ना यदु॑पोचि॒रे सर्वं॒ तद॑र॒सं कृ॑धि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यदि॑ प्रे॒युर्दे॑वपु॒रा ब्रह्म॒ वर्मा॑णि चक्रि॒रे।
त॑नू॒पानं॑ परि॒पाणं॑ कृण्वा॒ना यदु॑पोचि॒रे सर्वं॒ तद॑र॒सं कृ॑धि ॥
०६ यदि प्रेयुर्देवपुरा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If they have gone forward to the gods’ strongholds (-purā), have
made incantation (bráhman) their defenses—if (? yát) making a
body-protection, a complete protection, they have encouraged themselves
(upa-vac): all that do thou make sapless.
Notes
The verse is found again below, as xi. 10. 17,* but without commentary.
Bráhman may have here one of its higher senses; possibly upa-vac is
to be understood as = upa-vad ‘reproach, impute.’ For kṛṇvānā́ yád
upociré, Ppp. reads simply cakrire, with paripāṇāni before it. The
verse is plainly a pathyāpan̄kti, but the pada-mss. support the
misconception of the Anukr. by putting the pāda-division after
kṛṇvānā́s. The Anukr. ought to say āstārapan̄kti, but it not very
rarely makes this confusion. *⌊Vol. iii. p. 195, of SPP’s ed.⌋
Griffith
If they have issued forth, strongholds of Gods, and made their shield of prayer, Gaining protection for their lives, protection round about, make all their instigation powerless.
पदपाठः
यदि॑। प्र॒ऽई॒युः। दे॒व॒ऽपु॒राः। ब्रह्म॑। वर्मा॑णि। च॒क्रि॒रे। त॒नू॒ऽपान॑म्। प॒रि॒ऽपान॑म्। कृ॒ण्वा॒नाः। यत्। उ॒प॒ऽऊ॒चि॒रे। सर्व॑म्। तत्। अ॒र॒सम्। कृ॒धि॒। ८.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- अथर्वा
- आस्तारपङ्क्तिः
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो [शत्रुओं ने] (देवपुराः) राजा के नगरों पर (प्रेयुः) चढ़ाई की है, और (ब्रह्म) हमारे धन को (वर्माणि) अपने रक्षासाधन (चक्रिरे) बनाया है। (तनूपानम्) हमारे शरीर रक्षासाधन को (परिपाणम्) अपना रक्षासाधन (कृण्वानाः) बनाते हुए उन लोगों ने (यत्) जो कुछ (उपोचिरे) डींग मारी है, (तत् सर्वम्) उस सब को (अरसम्) नीरस वा फींका (कृधि) कर दे ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा उपद्रवी शत्रुओं को जीतकर प्रजा की सदा रक्षा करे ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(यदि) सम्भावनायाम् (प्रेयुः) इण्−लिट्। प्रजग्मुः (देवपुराः) ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा० ५।४।७४। इति देव+पुर्−अ प्रत्ययः, टाप्। राजनगरीः (ब्रह्म) अस्माकं धनम्−निघ० २।१०। (वर्माणि) स्वकीयानि रक्षासाधनानि (चक्रिरे) आत्मसात्कृतवन्तः (तनूपानम्) अस्माकं शरीरं रक्षासाधनम् (परिपाणम्) स्वकीयं परित्राणम् (कृण्वानाः) आत्मसात्कृतवन्तः (यत्) वचनम् (उपोचिरे) उप हीने। वच−लिट्। कुत्सितमुक्तवन्तः (सर्वम्) सकलम् (तत्) कर्म (अरसम्) असमर्थम् (कृधि) कुरु ॥
०७ यानसावतिसरांश्चकार कृणवच्च
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यान॒साव॑तिस॒रांश्च॒कार॑ कृ॒णव॑च्च॒ यान्।
त्वं तानि॑न्द्र वृत्रहन्प्र॒तीचः॒ पुन॒रा कृ॑धि॒ यथा॒मुं तृ॒णहा॒ञ्जन॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यान॒साव॑तिस॒रांश्च॒कार॑ कृ॒णव॑च्च॒ यान्।
त्वं तानि॑न्द्र वृत्रहन्प्र॒तीचः॒ पुन॒रा कृ॑धि॒ यथा॒मुं तृ॒णहा॒ञ्जन॑म् ॥
०७ यानसावतिसरांश्चकार कृणवच्च ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What over-runners he yonder has made, and what he shall make, do
thou, O Indra, Vṛtra-slayer, turn (ā-kṛ) them back again, that they
may shatter (tṛh) yon person (jána).
Notes
Wanting (as noted above) in Ppp. ⌊for tṛṇáhān, see Gram. §687.⌋
Griffith
Exertions which that man hath made, Exertions which he yet will make Turn them, O Indra, back again, O Vritra-slayer, back again on him that they may kill that man.
पदपाठः
यान्। अ॒सौ। अ॒ति॒ऽस॒रान्। च॒कार॑। कृ॒णव॑त्। च॒। यान्। त्वम्। तान्। इ॒न्द्र॒। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। प्र॒तीचः॑। पुनः॑। आ। कृ॒धि॒। यथा॑। अ॒मुम्। तृ॒णहा॑न्। जन॑म्। ८.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- अथर्वा
- द्व्युष्णिग्गर्भा पथ्यापङ्क्तिः
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (असौ) उसने (यान्) जिन (अतिसरान्) प्रयत्नों को (चकार) किया है, (च) और (यान्) जिनको (कृणवत्) करे, (वृत्रहन्) हे अन्धकारनाशक (इन्द्र) बड़े ऐश्वर्यवाले राजन् ! (त्वम्) तू (तान्) उन [प्रयत्नों] को (प्रतीचः) ओंधे मुख करके (पुनः) अवश्य (आकृधि) तुच्छ करदे, (यथा) जिस से (अमुम् जनम्) उस जनसमूह को वे [हमारे लोग] (तृणहान्) मार डालें ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा सेना आदि द्वारा शत्रुओं का नाश करता रहे ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(यान्) (असौ) शत्रुः (अतिसरान्) म० २। प्रयत्नान् (चकार) कृतवान् (कृणवत्) कुर्यात् (च) (यान्) (त्वम्) (तान्) अतिसरान् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (वृत्रहन्) अन्धकारनाशक (प्रतीचः) प्रतिकूलमुखान् अधोमुखान् (पुनः) अवधारणे (आ) ईषदर्थे (आकृधि) तुच्छान् कुरु (यथा) येन प्रकारेण (अमुम्) (तृणहान्) तृह हिंसायाम्−लेट्। हिंस्युः (जनम्) शत्रुसमूहम् ॥
०८ यथेन्द्र उद्वाचनम्
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यथेन्द्र॑ उ॒द्वाच॑नं ल॒ब्ध्वा च॒क्रे अ॑धस्प॒दम्।
कृ॒ण्वे॒३॒॑हमध॑रा॒न्तथा॒मूञ्छ॑श्व॒तीभ्यः॒ समा॑भ्यः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथेन्द्र॑ उ॒द्वाच॑नं ल॒ब्ध्वा च॒क्रे अ॑धस्प॒दम्।
कृ॒ण्वे॒३॒॑हमध॑रा॒न्तथा॒मूञ्छ॑श्व॒तीभ्यः॒ समा॑भ्यः ॥
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Whitney
Translation
- As Indra, taking Udvācana, put [him] underneath his feet, so do I
put down them yonder, through everlasting (śáśvat) years (sámā).
Notes
Udvā́cana is heard of nowhere else, and the name looks so improbable
that the Pet. Lexx. conjecture udváñcana; Ppp. has instead udvātana;
it puts this verse at the end of the hymn. The redundancy of d is
passed without notice by the Anukr.
Griffith
As Indra, having seized him, set his foot upon Udvachana, Even so for all the coming years I cast those men beneath my feet.
पदपाठः
यथा॑। इन्द्रः॑। उ॒त्ऽवाच॑नम्। ल॒ब्ध्वा। च॒क्रे। अ॒धः॒ऽप॒दम्। कृ॒ण्वे। अ॒हम्। अध॑रान्। तथा॑। अ॒मून्। श॒श्व॒तीभ्यः॑। समा॑भ्यः। ८.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- अथर्वा
- त्र्यवसाना षट्पदा द्व्युष्णिग्गर्भा जगती
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवाले पुरुष ने (उद्वाचनम्) ऊँचे बोलनेवाले, बड़बड़िया शत्रु को (लब्ध्वा) पाकर (अधस्पददम्) पाँव तले (चक्रे) किया है। (तथा) वैसे ही (अहम्) मैं (शश्वतीभ्यः) सनातन (समाभ्यः) प्रजाओं के लिये (अमून्) उन [शत्रुओं] को (अधरान्) नीचे (कृण्वे) करता हूँ ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्वज शूरवीरों के समान संसार के हित के लिये काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करे ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(यथा) येन प्रकारेण (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (उद्वाचनम्) वच परिभाषणे, णिच्−ल्युट्। उच्चैर्बहुभाषिणम्। वाचालम् (लब्ध्वा) प्राप्य (चक्रे) कृतवान् (अधस्पदम्) पादतले (कृण्वे) करोमि (अहम्) (अधरान्) नीचान् (तथा) तेन प्रकारेण (अमून्) शत्रून् (शश्वतीभ्यः) सनातनीभ्यः (समाभ्यः) प्रजाभ्यः−यथा दयानन्दभाष्ये यजु० ४०।८ ॥
०९ अत्रैनानिन्द्र वृत्रहन्नुग्रो
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अत्रै॑नानिन्द्र वृत्रहन्नु॒ग्रो मर्म॑णि विध्य।
अत्रै॒वैना॑न॒भि ति॒ष्ठेन्द्र॑ मे॒द्य१॒॑हं तव॑।
अनु॑ त्वे॒न्द्रा र॑भामहे॒ स्याम॑ सुम॒तौ तव॑ ॥
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मूलम् (VS)
अत्रै॑नानिन्द्र वृत्रहन्नु॒ग्रो मर्म॑णि विध्य।
अत्रै॒वैना॑न॒भि ति॒ष्ठेन्द्र॑ मे॒द्य१॒॑हं तव॑।
अनु॑ त्वे॒न्द्रा र॑भामहे॒ स्याम॑ सुम॒तौ तव॑ ॥
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Whitney
Translation
- Here, O Indra, Vṛtra-slayer, do thou, formidable, pierce them in the
vitals; just here do thou trample upon them; O Indra, thine ally am I;
we take hold on thee, O Indra; may we be in thy favor.
Notes
Some of the mss. (H.I.O.K.) read atrāi ’ṇān in a; and some
(P.M.W.O.) reckon the last two pādas as a tenth ⌊or separate⌋ verse.
Mármāṇi in b in our text is a misprint for mármaṇi. The Anukr.
appears to count, without good reason, only 7 syllables in d as well
as in b.
Griffith
Here, Indra Vritra-slayer, in thy strength pierce thou their vital. parts. Here, even here, attack them, O Indra. Thine own dear friend am I. Indra, we closely cling to thee. May we be in thy favouring grace.
पदपाठः
अत्र॑। ए॒ना॒न्। इ॒न्द्र॒। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। उ॒ग्रः। मर्म॑णि। वि॒ध्य॒। अत्र॑। ए॒व। ए॒ना॒न्। अ॒भि। ति॒ष्ठ॒। इन्द्र॑। मे॒दी। अ॒हम्। तव॑। अनु॑। त्वा॒। इ॒न्द्र॒। आ। र॒भा॒म॒हे॒। स्याम॑। सु॒ऽम॒तौ। तव॑। ८.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- अथर्वा
- षट्पदा द्व्यनुष्टुब्गर्भा जगती
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अत्र) यहाँ (वृत्रहन्) हे अन्धकारनाशक (इन्द्र) हे बड़े ऐश्वर्यवाले राजन् ! (उग्रः) तेजस्वी तू (एनान्) इन लोगों को (मर्मणि) मर्मस्थान में (विध्य) छेद। (इन्द्र) हे परम ऐश्वर्यवाले राजन् ! (अत्र एव) यहाँ पर ही (एनान्) इन को (अभितिष्ठ) दबा ले। (अहम्) मैं (तव) तेरा (मेदी) स्नेही हूँ। (इन्द्र) हे परम ऐश्वर्यवान् राजन् ! (त्वा अनु) तेरे पीछे-पीछे (आरभामहे) हम आरम्भ करते हैं। (तव) तेरी (सुमतौ) सुमति में (स्याम) हम रहें ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा दुष्टों का सर्वथा नाश करके प्रजापालन करे ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(अत्र) अस्मिन् स्थाने (एनान्) शत्रून् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् ! (वृत्रहन्) अन्धकारनाशक (उग्रः) तेजस्वी (मर्मणि) मृङ् प्राणत्यागे-मनिन्। सन्धिस्थाने। जीवस्थाने (विध्य) ताडय (अत्र) (एव) (एनान्) (अभि तिष्ठ) अभिभव। पराजय (इन्द्र) (मेदी) स्नेही (अहम्) प्रजागणः (तव) (अनु) अनुलक्ष्य (इन्द्र) (आरभामहे) रभ औत्सुक्ये। उत्सुका भवामः (स्याम) भवेम। निवासाम (सुमतौ) दयाबुद्धौ (तव) ॥