००७ अरातिनाशनम्

००७ अरातिनाशनम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. Against niggardliness and its effects.
VH anukramaṇī

अरातिनाशनम्।
१-१० अथर्वा। बहुदैवत्यम्, १-३, ६-१० अरातयः, ४-५ सरस्वती। अनुष्टुप्, १ विराड्गर्भा प्रस्तारपङ्क्तिः, ४ पथ्याबृहती, ६ प्रस्तारपङ्क्तिः।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan (?).—daśakam. bahudevatyam (1-3, 6-10. arātīyās; 4, 5. sārasvatyāu). ānuṣṭubham: 1. virāḍgarbhā prastārapan̄kti; 4. pathyābṛhatī; 6. prastārapan̄kti.]

Whitney

Comment

Not found in Pāipp. Used by Kāuś. in the nirṛtikarman (18. 14), with an offering of rice-grains; and, with iii. 20 and vii. 1, in a rite for good-fortune (41. 8); while the schol. also adds it to vi. 7 (46. 4, note), in removing obstacles to sacrifice; of separate verses, vs. 5 (schol., vss. 5-10) appears, with vii. 57, in a ceremony (46. 6) for the success of requests. Vāit. has the hymn (or vs. 1) in the agnicayana (28. 19), with the vanivāhana rite; further, vs. 6 in the parvan sacrifices (3. 2), with an oblation to Indra and Agni; and vs. 7 at the agniṣṭoma (12. 10) in expiation of a forbidden utterance. The hymn in general seems to be a euphemistic offering of reverence to the spirit of avarice or stinginess.

Translations

Translated: Ludwig, p. 305; Grill, 39, 145; Griffith, i. 198; Bloomfield, 172, 423; Weber, xviii. 190.

Griffith

A charm to deprecate Arati or Malignity

०१ आ नो

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आ नो॑ भर॒ मा परि॑ ष्ठा अराते॒ मा नो॑ रक्षी॒र्दक्षि॑णां नी॒यमा॑नाम्।
नमो॑ वी॒र्त्साया॒ अस॑मृद्धये॒ नमो॑ अ॒स्त्वरा॑तये ॥

०१ आ नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Bring to us, stand not about, O niggard; do not prevent (? rakṣ)
    our sacrificial gift as led [away]; homage be to baffling (vīrtsā́),
    to ill-success; homage be to the niggard.
Notes

P.M.W. omit mā́ in a. One sees, without approving, the ground of
the metrical definition of the Anukr.

Griffith

Bring thou to us, bar not the way, Arati! Stay not the guerdon that is being brought us. Homage be paid to Failure, to Misfortune, and Malignity.

पदपाठः

आ। नः॒। भ॒र॒। मा। परि॑। स्थाः॒। अ॒रा॒ते॒। मा। नः॒। र॒क्षीः॒। दक्षि॑णाम्। नी॒यमा॑नाम्। नमः॑। वि॒ऽई॒र्त्सायै॑। अस॑म्ऽऋध्दये। नमः॑। अ॒स्तु॒। अरा॑तये। ७.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अरातिसमूहः
  • अथर्वा
  • विराड्गर्भा प्रस्तारपङ्क्तिः
  • अरातिनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अराते) हे अदान शक्ति ! (नः) हमें (आ) आकर (भर) पुष्ट कर, (मा परि स्थाः) अलग मत खड़ी हो, (नः) हमारे लिये (नीयमानाम्) लायी हुई (दक्षिणाम्) दक्षिणा [दान वा प्रतिष्ठा] को (मा रक्षीः) मत रखले। (वीर्त्सायै) अवृद्धि इच्छा, (असमृद्धये) असम्पत्ति अर्थात् (अरातये) अदान शक्ति [निर्धनता] को [नमो नमः] बार-बार नमस्कार (अस्तु) होवे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विपत्ति में निर्भय होकर धैर्य से उपाय करते हैं, वे उन्नति करते हैं। अथवा मनुष्यों को निर्धन विपत्तिग्रस्तों का सत्कारपूर्वक सहायक होना चाहिये ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(आ) आगत्य (नः) अस्मान् (भर) पोषय (परि) पृथक् (मा स्थाः) मा तिष्ठ (अराते) आ० १।१८।१। रा दाने−क्तिन्। हे अदानशक्ते (नः) अस्मभ्यम् (मा रक्षीः) स्वार्थं मा स्वीकुरु (दक्षिणाम्) द्रुदक्षिभ्यामिनन्। उ० २।५०। इति दक्ष वृद्धौ−इनन्। दक्षिणा दक्षतेः समर्द्धयतिकर्मणः−निरु० १।७। दानम्। प्रतिष्ठाम् (नीयमानाम्) उह्यमानाम् (नमः) सत्कारः। अन्ननाम−निघ० २।७। वज्रनाम−निघ० २।२––०। (वीर्त्सायै) आप्ज्ञप्यृधामीत्। पा० ७।४।५५। इति वि+ऋधु वृद्धौ सनि, ईत्। अ प्रत्ययात्। पा० ३।३।१०२। इति अ, टाप्। अवृद्धीच्छायै (समृद्धये) सम्पत्तये (नमः) (अस्तु) भवतु (अरातये) अदानशक्तये। निर्धनतायै ॥

०२ यमराते पुरोधत्से

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यम॑राते पुरोध॒त्से पुरु॑षं परिरा॒पिण॑म्।
नम॑स्ते॒ तस्मै॑ कृण्मो॒ मा व॒निं व्य॑थयी॒र्मम॑ ॥

०२ यमराते पुरोधत्से ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What wheedling (? parirāpín) man thou puttest forward, O niggard,
    to him of thine we pay homage: do not thou disturb my winning (vaní).
Notes

The third pāda can be read as full only by violence. ⌊See Gram.
§1048.⌋

Griffith

The man whom thou preferrest, O Arati, he who prates to us– This man of thine, we reverence. Baffle not thou my heart’s desire,

पदपाठः

यम्। अ॒रा॒ते॒। पु॒रः॒ऽध॒त्से। पुरु॑षम्। प॒रि॒ऽरा॒पिण॑म्। नमः॑। ते॒। तस्मै॑। कृ॒ण्मः॒। मा। व॒निम्। व्य॒थ॒यीः॒। मम॑। ७.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अरातिसमूहः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • अरातिनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अराते) हे अदान शक्ति ! (यम्) जिस (परिरापिणम्) बड़बड़िया (पुरुषम्) पुरुष को (पुरोधत्से) तू आगे धरती है। (ते) तेरे (तस्मै) उस पुरुष को (नमः) नमस्कार (कृण्मः) हम करते हैं, (मम) मेरी (वनिम्) भक्ति को (मा व्यथयीः) तू व्यथा में मत डाल ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वीर मनुष्य विपत्तिग्रस्त पुरुषों को उत्साहपूर्वक विपत्ति से निकालें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(यम्) पुरुषम् (अराते) म० १। हे अदानशक्ते (पुरोधत्से) अग्रे धरसि (पुरुषम्) मनुष्यम् (परिरापिणम्) रप व्यक्तायां वाचि-णिनि। परिभाषणशीलम् (नमः) सत्कारः (ते) तव (तस्मै) पुरुषाय (कृण्मः) कृवि करणे। कुर्मः (वनिम्) खनिकष्यज्यसिवसिवनि०। उ० ४।१४०। इति वन सभक्तौ−इ। भक्तिम् (मा व्यथयीः) व्यथ भयसंचलनयोः−णिचि लुङि छान्दसं रूपम्। मा विव्यथः। मा व्यथय ॥

०३ प्र णो

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प्र णो॑ व॒निर्दे॒वकृ॑ता॒ दिवा॒ नक्तं॑ च कल्पताम्।
अरा॑तिमनु॒प्रेमो॑ व॒यं नमो॑ अ॒स्त्वरा॑तये ॥

०३ प्र णो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let our god-made winning progress (pra-kḷp) by day and by night; we
    go forth after the niggard; homage be to the niggard.
Notes

Bp.² reads vas for nas in a; in c Bp.²P.M.K. read arātím,
and H.E.I. árātim; our text should doubtless have adopted árātim.
The third pāda is redundant by a syllable.

Griffith

May our desire which Gods have roused fulfil itself by day and night. We seek to win Arati: to Arati be our homage paid.

पदपाठः

प्र। नः॒। व॒निः। दे॒वऽकृ॑ता। दिवा॑। नक्त॑म्। च॒। क॒ल्प॒ता॒म्। अरा॑तिम्। अ॒नु॒ऽप्रेमः॑। व॒यम्। नमः॑। अ॒स्तु॒। अरा॑तये। ७.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अरातिसमूहः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • अरातिनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवकृता) महात्माओं की उत्पन्न की हुई (नः) हमारी (वनिः) भक्ति (दिवा) दिन (च) और (नक्तम्) रात (प्र) अच्छे प्रकार (कल्पताम्) समर्थ होवे। (वयम्) हम लोग (अरातिम्) अदान शक्ति [निर्धनता] को (अनुप्रेमः) ढूँढ कर पावें, (अरातये) अदान शक्ति को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों से शिक्षा पाकर सदा परस्पर भक्ति बढ़ावें और धैर्य से विपत्तियों को सहकर उत्तम पुरुषार्थ करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(प्र) प्रकर्षेण (नः) अस्माकम् (वनिः) भक्तिः (देवकृता) देवैर्विद्वद्भिः सृष्टा प्रेरिता (दिवा) दिने (नक्तम्) नज व्रीडायाम्−क्त। रात्रौ (च) (कल्पताम्) समर्था भवतु (अरातिम्) अदानशक्तिम् (अनुप्रेमः) इण् गतौ−लट्। अनुसृत्य प्रगच्छामः (वयम्) उत्साहितः (नमः) (अस्तु) (अरातये) अदानशक्तये निर्धनतायै ॥३॥

०४ सरस्वतीमनुमतिं भगम्

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सर॑स्वती॒मनु॑मतिं॒ भगं॒ यन्तो॑ हवामहे।
वाचं जु॒ष्टां मधु॑मतीमवादिषं दे॒वानां॑ दे॒वहू॑तिषु ॥

०४ सरस्वतीमनुमतिं भगम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Sarasvatī, Anumati, Bhaga, we going call on; pleasant (juṣṭá)
    honeyed speech have I spoken in the god-invocations of the gods.
Notes
Griffith

We, suppliant, call on Bhaga, on Sarasvati, Anumati, Pleasant words have I spoken, sweet as honey is, at invocations of the Gods.

पदपाठः

सर॑स्वतीम्। अनु॑ऽमतिम्। भग॑म्। यन्तः॑। ह॒वा॒म॒हे॒। वाच॑म्। जु॒ष्टाम्। मधु॑ऽमतीम्। अ॒वा॒दि॒ष॒म्। दे॒वाना॑म्। दे॒वऽहू॑तिषु। ७.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • सरस्वती
  • अथर्वा
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • अरातिनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यन्तः) चलते-फिरते हम लोग (सरस्वतीम्) विज्ञानवती विद्या, (अनुमतिम्) अनुकूल मति और (भगम्) सेवनीय ऐश्वर्य को (हवामहे) बुलाते हैं। (देवानाम्) महात्माओं की (जुष्टाम्) प्रीतियुक्त, (मधुमतीम्) बड़ी मधुर (वाचम्) इस वाणी को (देवहूतिषु) दिव्य गुणों के बुलाने में (अवादिषम्) मैं बोला हूँ ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पुरुषार्थी मनुष्य उत्तम विद्या से उत्तम बुद्धि पाकर ऐश्वर्यवान् होते हैं, यही वाणी उत्तम गुण पाने के लिये महात्माओं की संमत है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(सरस्वतीम्) विज्ञानवतीं विद्याम् (अनुमतिम्) अनुकूलां बुद्धिम् (भगम्) सेवनीयमैश्वर्यम् (यन्तः) गच्छन्तः। उद्योगिनो वयम् (हवामहे) आह्वयामः (वाचम्) इमां वाणीम् (जुष्टाम्) प्रीताम् (मधुमतीम्) माधुर्योपेताम् (अवादिषम्) वद व्यक्तायां वाचि−लुङ्। उच्चारितवानस्मि (देवानाम्) महात्मनाम् (देवहूतिषु) दिव्यगुणानामाह्वानेषु प्राप्तिषु ॥

०५ यं याचाम्यहम्

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यं याचा॑म्य॒हं वा॒चा सर॑स्वत्या मनो॒युजा॑।
श्र॒द्धा तम॒द्य वि॑न्दतु द॒त्ता सोमे॑न ब॒भ्रुणा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Whomever I solicit (yāc) with speech, with Sarasvatī, mind-yoked,
    him may faith find today, given by the brown soma.
Notes

‘Faith given,’ i.e. ‘confidence awakened.’ With b compare 10.8,
below. ⌊See Bloomfield, AJP. xvii. 412; Oldenberg, ZDMG. l. 448.⌋

Griffith

The portion that I crave with speech intelligent and full of power, May faith, presented with the gift of tawny Soma, find to-day.

पदपाठः

यम्। याचा॑मि। अ॒हम्। वा॒चा। सर॑स्वत्या। म॒नः॒ऽयुजा॑। श्र॒ध्दा। तम्। अ॒द्य। वि॒न्द॒तु॒। द॒त्ता। सोमे॑न। ब॒भ्रुणा॑। ७.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • सरस्वती
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • अरातिनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस गुण को (अहम्) मैं (सरस्वत्या) विज्ञानयुक्त, (मनोयुजा) मन से जुड़ी हुई (वाचा) वाणी से (याचामि) माँगता हूँ। (बभ्रुणा) पोषण करनेवाले (सोमेन) परमेश्वर करके (दत्ता) दी हुई (श्रद्धा) श्रद्धा (तम्) उस गुण को (अद्य) आज (विन्दतु) पावे ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर में श्रद्धा करके विज्ञान और पराक्रमयुक्त वाणी से अपना मनोरथ शीघ्र सिद्ध करते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(यम्) गुणम् (याचामि) प्रार्थये (अहम्) पुरुषार्थी (वाचा) वाण्या (सरस्वत्या) विज्ञानवत्या (मनोयुजा) मनसा युक्त्या (श्रद्धा) भक्तिः (तम्) गुणम् (अद्य) वर्तमाने दिने (विन्दतु) प्राप्नोतु (दत्ता) प्रेरिता (सोमेन) परमेश्वरेण (बभ्रुणा) पोषकेण ॥

०६ मा वनिम्

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मा व॒निं मा वाचं॑ नो॒ वीर्त्सी॑रु॒भावि॑न्द्रा॒ग्नी आ भ॑रतां नो॒ वसू॑नि।
सर्वे॑ नो अ॒द्य दित्स॒न्तोऽरा॑तिं॒ प्रति॑ हर्यत ॥

०६ मा वनिम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Do not thou baffle our winning nor speech. Let Indra and Agni both
    bring good things to us. De ye all, willing today to give to us, welcome
    the niggard.
Notes

That is, probably (if the reading is correct), give a pleasant reception
that may win favor. The mss. vary between vī̀rtsīs and vī́r-;
theoretically, the former is decidedly to be preferred, for, if í +
i make ī̀, then a fortiori i + í: see note to Prāt. iii. 56. In
c, H.E.O.K. read ṇo after sárve. The first half-verse is very
irregular.

Griffith

Do not thou make our words or wishes fruitless. Let the twain Indra Agni, bring us treasures. All, fain to-day to give us gifts, welcome Arati with your love.

पदपाठः

मा। व॒निम्। मा। वाच॑म्। नः॒। वि। ई॒र्त्सीः॒। उ॒भौ। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। आ। भ॒र॒ता॒म्। नः॒। वसू॑नि। सर्वे॑। नः॒। अ॒द्य। दित्स॑न्तः। अरा॑तिम्। प्रति॑। ह॒र्य॒त॒। ७.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अरातिसमूहः
  • अथर्वा
  • प्रस्तारपङ्क्तिः
  • अरातिनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे अदान शक्ति] (मा) न तो (नः) हमारी (वनिम्) भक्ति को और (मा) न (वाचम्) वाणी को (वि ईर्त्सीः) असिद्ध कर। (उभौ) दोनों (इन्द्राग्नी) जीव और अग्नि [पराक्रम] (नः) हमारे लिये (वसूनि) अनेक धन (आ भरताम्) लाकर भरें। (अद्य) आज (नः) हमें (दित्सन्तः) दान की इच्छा करनेवाले (सर्वे) हे सब गुणो ! (अरातिम्) अदान शक्ति को (प्रति) प्रतिकूलपन से (हर्यत) प्राप्त हो ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्ण श्रद्धा और सत्य प्रतिज्ञा से आत्मिक और शारिरिक बल बढ़ाकर विद्या धन और सुवर्ण आदि धन बढ़ाकर निर्धनता को हटावें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(मा) निषेधे (वनिम्) भक्तिम् (वाचम्) वाणीम् (नः) अस्माकम् (वि) विरुद्धम् (वि मा ईर्त्सीः) म० १। ऋधु वृद्धौ सनि माङि लुङि रूपम्। विगतसिद्धिं निष्फलां मा कुरु (उभौ) द्वौ (इन्द्राग्नी) इन्द्रो जीवात्मा, अग्निः पराक्रमश्च (आ) आनीय (भरताम्) पोषयताम् (नः) अस्मभ्यम् (वसूनि) धनानि (सर्वे) (नः) अस्मभ्यम् (अद्य) वर्तमाने दिने (दित्सन्तः) दातुमिच्छन्तः (अरातिम्) अदानशक्तिम् (प्रति) प्रातिकूल्येन (हर्यत) हर्य गतिकान्त्योः। गच्छत ॥

०७ परोऽपेह्यसमृद्धे वि

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प॒रोऽपे॑ह्यसमृद्धे॒ वि ते॑ हे॒तिं न॑यामसि।
वेद॑ त्वा॒हं नि॒मीव॑न्तीं नितु॒दन्ती॑मराते ॥

०७ परोऽपेह्यसमृद्धे वि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Go thou far away, O ill-success; we conduct away thy missile; I know
    thee, O niggard, as one putting (? mīv) down, thrusting down.
Notes

The fourth pāda lacks a syllable.

Griffith

Misfortune! go thou far away: we turn thy harmful dart aside. I know thee well, Arati! as oppressor, one who penetrates.

पदपाठः

प॒रः। अप॑। इ॒हि॒। अ॒स॒म्ऽऋ॒घ्दे॒। वि। ते॒। हे॒तिम्। न॒या॒म॒सि॒। वेद॑। त्वा॒। अ॒हम्। नि॒ऽमीव॑न्तीम्। नि॒ऽतु॒दन्ती॑म्। अ॒रा॒ते॒। ७.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अरातिसमूह
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • अरातिनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (असमृद्धे) हे असमृद्धि ! (परः) परे (अप इहि) चली जा, (ते) तेरी (हेतिम्) बरछी को (वि नयामसि) हम अलग हटाते हैं। (अराते) हे अदान शक्ति ! [निर्धनता !] (अहम्) मैं (त्वा) तुझको (निमीवन्तीम्) निर्बल करनेवाली और (नितुदन्तीम्) भीतर चुभनेवाली (वेद) जानता हूँ ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य महादुःखदायिनी निर्धनता को प्रयत्नपूर्वक हटावें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(परः) परस्तात् दूरदेशे (अप इहि) अपगच्छ (असमृद्धे) हे असम्पत्ते (वि) पृथक् (ते) तव (हेतिम्) हननशक्तिम् (नयामसि) नयामः प्रापयामः (वेद) जानामि (त्वा) त्वाम् (अहम्) (नि मीवन्तीम्) नि निषेधे+मीव स्थौल्ये−शतृ, ङीप्। क्षीणस्थौल्यं निर्बलं कुर्वतीम् (नि तुदन्तीम्) तुद व्यथने−शतृ। नितरां व्यथयन्तीम् (अराते) अदानशक्ते ॥

०८ उत नग्ना

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उ॒त न॒ग्ना बोभु॑वती स्वप्न॒या स॑चसे॒ जन॑म्।
अरा॑ते चि॒त्तं वीर्त्स॒न्त्याकू॑तिं॒ पुरु॑षस्य च ॥

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Whitney
Translation
  1. Likewise, greatly making thyself naked, thou fastenest on (sac) a
    person in dreams, O niggard, baffling the plan and design of a man
    (púruṣa).
Notes

It seems as if nagnā bobhuvatī were the equivalent of mahānagnī
bhavantī
‘becoming a wanton,’ the intensive element being shifted from
the adjective to the verb. The pada-text reads svapna-yā́, by Prāt.
iv. 30.

Griffith

Oft, coming as a naked girl thou hauntest people in their sleep, Baffling the thought, Arati! and the firm intention of a man.

पदपाठः

उ॒त। न॒ग्ना। बोभु॑वती। स्व॒प्न॒ऽया। स॒च॒से॒। जन॑म्। अरा॑ते। चि॒त्तम्। वि॒ऽईर्त्स॑न्ती। आऽकू॑तिम्। पुरु॑षस्य। च॒। ७.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अरातिसमूहः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • अरातिनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और (अराते) हे अदान शक्ति [निर्धनता] (पुरुषस्य) मनुष्य के (चितम्) चित्त (च) और (आकूतिम्) संकल्प (वीर्त्सन्ती) असिद्ध करती हुई (नग्ना) लज्जित (बोभुवती) बार-बार होती हुई तू (स्वप्नया) नींद [आलस्य] के साथ (जनम्) जनसमूह को (सचसे) प्राप्त होती है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य निर्धनता के कारण अपने चित्त और संकल्प को नष्ट करते, लज्जित और आलसी होते हैं ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(उत) अपि च (नग्ना) ओनज व्रीडायाम्−क्त ओदितश्च। पा० ८।२।४५। इति तस्य न। लज्जिता (बोभुवती) भू सत्तायां यङ्लुगन्तात्−शतृ। पुनः पुनर्भवन्ती (स्वप्नया) सुपां सुलुक्०। पा–० ७।१।३९। इति विभक्तेर्याच्। स्वप्नेन। आलस्येन (सचसे) समवैषि (जनम्) मनुष्यसमूहम् (अराते) हे अदानशक्ते (चित्तम्) अन्तःकरणम् (वीर्त्सन्ती) म० १। वि+ऋधु−सन्, शतृ, ङीप्। असाधयन्ती नाशयन्ती (आकूतिम्) संकल्पम् (पुरुषस्य) मनुष्यस्य (च) ॥

०९ या महती

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या म॑ह॒ती म॒होन्मा॑ना॒ विश्वा॒ आशा॑ व्यान॒शे।
तस्यै॑ हिरण्यके॒श्यै निरृ॑त्या अकरं॒ नमः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. She that, being great, of great height (-unmāna), permeated all
    regions—to her, the golden-haired, to perdition have I paid homage.
Notes
Griffith

To her the mighty vast in size, who penetrates all points of space, To her mine homage have I paid, Nirriti with her golden hair.

पदपाठः

या। म॒ह॒ती। म॒हाऽउ॑न्माना। विश्वाः॑। आशाः॑। व‍ि॒ऽआ॒न॒शे। तस्यै॑। हि॒र॒ण्य॒ऽके॒श्यै। निःऽऋ॑त्यै। अ॒क॒र॒म्। नमः॑। ७.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अरातिसमूहः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • अरातिनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो (महती) बलवती, (महोन्माना) बड़े डीलवाली [निर्धनता] (विश्वाः) सब (आशाः) दिशाओं में (व्यानशे) व्याप्त हुई है। (तस्यै) उस (हिरण्यकेश्यै) सुवर्ण का प्रकाश करानेवाली (निर्ऋत्यै) क्रूर विपत्ति को (नमः अकरम्) मैंने नमस्कार किया है ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्वव्यापिनी निर्धनता में फँसकर और अन्त में उस का नाश करके सुवर्ण आदि धन प्राप्त करते हैं ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(या) अरातिः (महती) बलवती (महोन्माना) विशालपरिमाणा (विश्वाः) सर्वाः (आशाः) दिशाः (व्यानशे) अशू−लिट्। व्याप (तस्यै) (हिरण्यकेश्यै) हिरण्य+केश−ङीप्। केशा रश्मयः काशनाद्वा प्रकाशनाद्वा−निरु० १२।२५। सुवर्णस्य प्रकाशिकायै (निर्ऋत्यै) अ० ३।११।२। कृच्छ्रापत्तये−निरु० २।७। (अकरम्) अहं कृतवानस्मि (नमः) सत्कारम् ॥

१० हिरण्यवर्णा सुभगा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

हिर॑ण्यवर्णा सु॒भगा॒ हिर॑ण्यकशिपुर्म॒ही।
तस्यै॒ हिर॑ण्यद्राप॒येऽरा॑त्या अकरं॒ नमः॑ ॥

१० हिरण्यवर्णा सुभगा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Gold-colored, fortunate, gold-cushioned, great—to her, the
    golden-mantled, to the niggard have I paid homage.
Notes

The tenth prapāṭhaka, the first of the three very unequal ones into
which this book is divided, ends here.

Griffith

Auspicious, with her golden hue, pillowed on gold, the mighty one To this Arati clad in robes of gold mine homage have I paid.

पदपाठः

हिर॑ण्यऽवर्णा। सु॒ऽभगा॑। हिर॑ण्यऽकशिपुः। म॒ही। तस्यै॑। हिर॑ण्यऽद्रापये। अरा॑त्यै। अ॒क॒र॒म्। नमः॑। ७.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अरातिसमूहः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • अरातिनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [जो] (सुभगा) बड़े ऐश्वर्यवाली (हिरण्यवर्णा) सुवर्ण का रूप रखनेवाली (हिरण्यकशिपुः) सुवर्ण के वस्त्रवाली (मही) बलवती है। (तस्यै) उस (हिरण्यद्रापये) सुवर्ण द्वारा निन्दित गति से बचानेवाली (अरात्यै) अदान शक्ति [निर्धनता] को (नमः अकरम्) मैंने नमस्कार किया है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विपत्तियों का सहन करके अन्त में धनी, बली और सुखी होते हैं ॥१०॥ इति दशमः प्रपाठकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(हिरण्यवर्णा) सुवर्णरूपा (सुभगा) बह्वैश्वर्ययुक्ता (हिरण्यकशिपुः) कश शब्दे हिंसायां च−कु। निपातनात् साधुः। कशिपुर्वस्त्रम्। सुवर्णवस्त्रा (मही) बलवती (तस्यै) (हिरण्यद्रापये) द्रा कुत्सायां गतौ−क्विप्। भुजेः किच्च। उ० ४।१४२। इति द्रा+पा रक्षणे−इ, स च कित्। हिरण्येन सुवर्णेन कुत्साया गतेः रक्षिकायै (अरात्यै) अदानशक्तये निर्धनतायै (अकरम्) अहं कृतवानस्मि (नमः) नमस्कारम् ॥